जल शक्ति मंत्रालय
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गंगा बेसिन में उत्पन्न सीवेज का शोधन

प्रविष्टि तिथि: 04 DEC 2025 6:09PM by PIB Delhi

उपलब्ध सूचना के अनुसार, 5 गंगा राज्यों (मुख्य धारा) में उत्पन्न कुल सीवेज लगभग 10,160 एमएलडी है, जिसके विरुद्ध उपलब्ध एसटीपी क्षमता 7820 एमएलडी है और इस अंतर को कम करने के लिए 1,996 एमएलडी की परियोजनाएँ पूर्ण होने के विभिन्न चरणों में हैं।

परियोजना के आरंभ और पूर्ण होने में विलंब के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

  1. नए सीवेज उपचार संयंत्रों (एसटीपी) की स्थापना के लिए उपयुक्त भूमि को चिन्हित करना,
  2. सीवेज संबंधी नेटवर्क के लिए मार्ग का अधिकार, सड़क के निर्माण के लिए अनुमति प्राप्त करना, वन और राजस्व विभागों जैसे सक्षम प्राधिकारियों से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) जैसी वैधानिक मंज़ूरियाँ जारी कराना।

इन समस्याओं का पता लगाकर इनका समाधान करने के लिए, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन नई डीपीआर तैयार करने सहित परियोजनाओं की स्थिति की बारीकी से निगरानी करने में सक्रिय रूप से शामिल रहा है। एनएमसीजी प्रगति का मूल्यांकन करने, समस्याओं का पता लगाने और समय पर उनका समाधान सुनिश्चित करने के लिए सक्षम प्राधिकारी की अध्यक्षता में और केंद्रीय निगरानी समिति (सीएमसी) के माध्यम से नियमित रूप से व्यापक समीक्षा बैठकें आयोजित करता है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), गंगा नदी के पाँच मुख्य धारा वाले राज्यों - उत्तराखंड-19; उत्तर प्रदेश-41; बिहार-33; झारखंड-04; और पश्चिम बंगाल-15 - में 112 स्थानों पर गंगा नदी की जल गुणवत्ता की मैन्युअल निगरानी करता है।

सीपीसीबी की प्रदूषित नदी खंड (पीआरएस) 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, गंगा मुख्य धारा में प्रदूषण के बारे में निम्नलिखित जानकारी उपलब्ध है:

गंगा मुख्य धारा – राज्य-वार तुलना (वर्ष 2018 बनाम वर्ष 2025)

राज्य

वर्ष 2018 में प्रदूषित खंड

प्राथमिकता (2018)

वर्ष 2025 में  प्रदूषित खंड

प्राथमिकता (2025)

ट्रेंड/ पर्यवेक्षण

उत्तराखंड

हरिद्वार सुल्तानपुर

IV

कोई पीआरएस नहीं

सुधार हुआ है और पीआरएस खंड हटा दिया गया

उत्तर प्रदेश

कन्नौज वाराणसी

IV

बिजनौर तरिघाट

IV / V

आंशिक रूप से सुधार हुआ

बिहार

बक्सर से भागलपुर

V

भागलपुर डी/एस खलगांव डी/एस

V

थोड़ा-बहुत प्रदूषण रहता है

झारखंड

कोई पीआरएस नहीं

कोई पीआरएस नहीं

पश्चिम बंगाल

त्रिवेणी डायमंड हार्बर

III

बहरामपुर डायमंड हार्बर

V

सुधारा हुआ है

 

वर्ष 2025 (जनवरी से अगस्त) के लिए गंगा नदी के जल गुणवत्ता आंकड़ों (माध्यिका मान) के आधार पर, निम्नलिखित अवलोकन किए गए हैं।

(i) पीएच और घुलित ऑक्सीजन (डीओ) नदी के स्वास्थ्य के सबसे महत्वपूर्ण मानदंड हैं। गंगा नदी का पीएच और डीओ, गंगा नदी के सभी स्थानों पर स्नान हेतु आवश्यक मानदंडों को पूरा करता है।

(ii) उत्तराखंड, झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में गंगा नदी के संपूर्ण खंड में, जैव-रासायनिक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) के संबंध में गंगा नदी की जल गुणवत्ता स्नान के मानदंडों के अनुरूप है इसमें निम्नलिखित स्थान/खंड शामिल नहीं हैं:

  • फर्रुखाबाद से पुराना राजापुर, कानपुर।
  • डलमऊ, रायबरेली।
  • उत्तर प्रदेश में डी/एस मिर्जापुर से तारीघाट, गाजीपुर (दो स्थानों नामतः- यू/एस वाराणसी, संगम के बाद गोमती और यू/एस गाजीपुर को छोड़कर)।

वर्ष 2024-25 के दौरान गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों के किनारे 50 स्थानों और यमुना नदी और उसकी सहायक नदियों के किनारे 26 स्थानों पर किए गए जैव-निगरानी के अनुसार, जैविक जल गुणवत्ता (बीडब्ल्यूक्यू) मुख्यतः 'अच्छी' से 'मध्यम' रेंज के बीच रही। विविध बेन्थिक मैक्रो-इनवर्टेब्रेट प्रजातियों की उपस्थिति जलीय जीवन को बनाए रखने के लिए नदियों की पारिस्थितिक क्षमता को इंगित करती है।

पिछले एक दशक से गंगा नदी में डॉल्फ़िन की आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। वर्ष 2009 में 2500 से 3000 लोगों की अनुमानित आधार रेखा से संख्या, वर्ष 2015 में लगभग 3500 हो गई और वर्ष 2021-2023 के दौरान किए गए राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के अनुसार यह लगभग 6327 तक पहुँच गई। यह वर्ष 2009 के बाद से दोगुने से भी अधिक की वृद्धि को दर्शाता है। गंगा बेसिन की 17 सहायक नदियों में से कई नदियों में वर्ष 2021-2023 के आकलन ने डॉल्फ़िन की उपस्थिति की पुष्टि की, जैसे कि रूपनारायण, गिरवा, कौरियाला, बाबा, राप्ती, बागमती, महानंदा, केन, बेतवा और सिंध, इनमें पहले उनका कोई रिकॉर्ड नहीं था

गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों के जल की गुणवत्ता में सुधार के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) द्वारा उठाए गए कदम इस प्रकार हैं:

1. प्रदूषित नदी क्षेत्रों के उपचार हेतु 34,809 करोड़ रुपए की लागत वाली कुल 216 सीवरेज अवसंरचना परियोजनाएँ (एसटीपी) शुरू की गई हैं, जिनकी उपचार क्षमता 6,561 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) है। 3,806 एमएलडी क्षमता वाले 138 एसटीपी पूरे हो चुके हैं और प्रचालन में हैं;

2. औद्योगिक प्रदूषण निवारण के लिए, 3 सामान्य अपशिष्ट उपचार संयंत्र (सीईटीपी) स्वीकृत किए गए हैं, अर्थात जाजमऊ सीईटीपी (20 एमएलडी), बंथर सीईटीपी (4.5 एमएलडी) और मथुरा सीईटीपी (6.25 एमएलडी)। दो परियोजनाएँ, मथुरा सीईटीपी (6.25 एमएलडी) और जाजमऊ सीईटीपी (20 एमएलडी), पूर्ण हो चुकी हैं;

3. अत्यधिक प्रदूषणकारी उद्योगों (जीपीआई) का वार्षिक निरीक्षण: वर्ष 2017 जीपीआई का निरीक्षण में शुरू हुआ। वर्ष 2025 में, निरीक्षण के 8वें दौर में 3,726 अत्यधिक प्रदूषणकारी उद्योगों (जीपीआई) की सूची बनाई गई। अब तक, 3,726 जीपीआई में से 3,023 जीपीआई का टीपीए (8वें दौर) के माध्यम से निरीक्षण किया जा चुका है। इनमें से 204 स्वतः बंद पाए गए और 1,347 चल रहे थे। 1,347 चल रहे जीपीआई में से 966 अनुपालन करते और 381 गैर-अनुपालन वाले पाए गए। 381 गैर-अनुपालन वाले जीपीआई में से 379 जीपीआई को एससीएन जारी किया गया और 2 जीपीआई को बंद करने का निर्देश दिया गया।

4. एनएमसीजी में, नदी जल गुणवत्ता की निरंतर निगरानी; गंगा और यमुना नदी पर सीवेज ट्रीटमेंट संयंत्रों (एसटीपी) आदि के प्रदर्शन के लिए एक ऑनलाइन डैशबोर्ड "प्रयाग" चालू किया गया है;

5. एनएमसीजी ने अक्टूबर 2018 में अधिसूचित न्यूनतम ई-फ्लो मानदंडों को सफलतापूर्वक लागू किया है, जिससे गंगा नदी में निरंतर पर्यावरणीय प्रवाह सुनिश्चित होता है। केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) द्वारा नियमित अनुपालन की प्रभावी निगरानी की जा रही है।

6. जैव विविधता संरक्षण: उत्तर प्रदेश के सात जिलों (मिर्जापुर, बुलंदशहर, हापुड़, बदायूं, अयोध्या, बिजनौर और प्रतापगढ़) में सात जैव विविधता पार्क और उत्तर प्रदेश (3), एवं (1) और झारखंड (1) में 5 प्राथमिकता वाले आर्द्रभूमि को मंजूरी दी गई है;

7. एनएमसीजी ने राज्य वन विभाग के माध्यम से गंगा नदी की मुख्य धारा के किनारे एक वानिकी कार्यकलाप परियोजना लागू की है। लगभग 414 करोड़ रुपए की लागत से 33,024 हेक्टेयर क्षेत्र में वनरोपण किया गया है;

8. केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीआईएफआरआई) द्वारा कार्यान्वित विशेष परियोजना के तहत, वर्ष 2017 से गंगा में कुल 160 लाख भारतीय मेजर कार्प (आईएमसी) फिंगरलिंग्स का पालन किया गया है ताकि मतस्य जैव विविधता और नदी डॉल्फ़िन के लिए प्रे बेस का संरक्षण किया जा सके और गंगा बेसिन में मछुआरों की आजीविका सुनिश्चित की जा सके;

9. भारतीय वन्य जीवन संस्थान (डब्ल्यूआईआई), देहरादून और राज्य वन विभाग के सहयोग से डॉल्फ़िन, ऊदबिलाव, हिल्सा, कछुए और घड़ियाल जैसी जलीय प्रजातियों के लिए विज्ञान-आधारित प्रजाति बहाली कार्यक्रम, बचाव और पुनर्वास कार्यक्रम द्वारा डॉल्फ़िन, ऊदबिलाव, हिल्सा, कछुए और अन्य नदी प्रजातियों में वृद्धि हुई है एवं इन्हें पहले की अपेक्षा अधिक देखा जा सकता है, साथ ही जैव विविधता में उल्लेखनीय सुधार देखा गया है;

10. "गंगा नॉलेज पोर्टल" राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन द्वारा आंतरिक रूप से विकसित एक अग्रणी पहल है, जो जल संसाधन प्रबंधन पर व्यापक संसाधनों के लिए एक केंद्रीकृत भंडार के रूप में कार्य करता है। यह मंच छात्रों, शोधार्थियों, हितधारकों और आम जनता तक पत्रिकाओं, प्रकाशनों, पुस्तकों, तकनीकी लेखों, शोध रिपोर्टों; डेटा सेट (जिला नदी मानचित्र, एसटीपी प्रदर्शन और नदी एटलस) और कॉफी टेबल पुस्तकों सहित सामग्रियों (1,295 दस्तावेज़) की एक विशाल श्रृंखला को सुगम्य रूप से पहुँचाया है। गंगा नॉलेज पोर्टल का उद्देश्य जल संसाधन चुनौतियों की जटिलताओं पर ध्यान केंद्रित कर इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में जागरूकता और सूचित निर्णय लेने को बढ़ावा देना है;

11. कुल 139 जिला गंगा समितियाँ (डीजीसी) गठित की गई हैं जो नियमित रूप से 4 एम (मासिक, अधिदेशित, कार्यवृत्त और निगरानी) बैठकें आयोजित करती हैं। अक्टूबर 2025 तक, 4,632 से अधिक बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं;

12. उत्तर प्रदेश राज्य में गंगा टास्क फोर्स (जीटीएफ) का गठन एनएमसीजी को उसके निर्धारित कार्यों को पूरा करने में सहायता देने के लिए किया गया था, जैसे (क) मृदा अपरदन को रोकने के लिए वृक्षारोपण; (ख) जन जागरूकता/भागीदारी अभियानों का प्रबंधन; (ग) जैव विविधता संरक्षण के लिए संवेदनशील नदी क्षेत्रों में गश्त; (घ) घाटों पर गश्त, आदि;

13. गंगा नदी की सफाई और संरक्षण के प्रयासों के लिए जनता के बीच जिम्मेदारी और सहभागिता की भावना पैदा करने के लिए व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाए गए हैं। इनमें शामिल हैं - गंगा उत्सव, नदी उत्सव, नियमित सफाई अभियान और प्लानटेशन ड्राइव, घाट पर योग, गंगा आरती आदि। इन प्रयासों को गंगा रक्षकों के समर्पित कार्यकर्ताओं, जैसे गंगा प्रहरी, गंगा विचार मंच, आदि का भी समर्थन प्राप्त है।

नदी की सफाई एक सतत प्रक्रिया है और भारत सरकार नमामि गंगे कार्यक्रम के अंतर्गत वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करके गंगा और उसकी सहायक नदियों में प्रदूषण की चुनौतियों से निपटने में राज्य सरकारों के प्रयासों को सम्पूरित कर रही है।

यह सूचना जल शक्ति राज्यमंत्री श्री राज भूषण चौधरी द्वारा लोकसभा में लिखित प्रश्न के उत्तर में प्रदान की गई है।

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एनडी


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