विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
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अगली क्रांति जैव-आधारित होगी; भारत के डीप-टेक भविष्य को सशक्त बनाने के लिए आरडीआई फंड एक अनूठा कदम है: डॉ. जितेंद्र सिंह


केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सरकार, उद्योग और निवेशकों के बीच साझेदारी को बढ़ावा देने के लिए एक लाख करोड़ रुपये का कोष बनाया जाएगा

मंत्री ने कहा कि टियर-2 और टियर-3 शहरों के लगभग 60,000 स्टार्टअप साबित करते हैं कि नवाचार अब केवल महानगरों तक ही सीमित नहीं है

हम समर्पित जैव प्रौद्योगिकी पहल शुरू करने वाले और अंतरिक्ष एवं परमाणु जैसे रणनीतिक क्षेत्रों को निजी कंपनियों के लिए खोलने वाले पहले देशों में शामिल हैं: डॉ. जितेंद्र सिंह

निजी क्षेत्र भी अंतरिक्ष, परमाणु और जैव प्रौद्योगिकी में सुधारों एवं गति के लिए तैयार नहीं था: डॉ. जितेंद्र सिंह

‘सरकार की ओर देखने’ से लेकर ‘समग्र समाज नवाचार’ तक डॉ. जितेंद्र सिंह ने सरकार, उद्योग, डीआईआई और परोपकारी संस्थाओं से संयुक्त नेतृत्व का आह्वान किया

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत अब जैव प्रौद्योगिकी नीति एवं रणनीतिक तकनीकी सुधारों में देरी करने वालों में नहीं है; बल्कि जैव प्रौद्योगिकी नीति एवं रणनीतिक तकनीकी सुधारों में सबसे आगे है

प्रविष्टि तिथि: 02 DEC 2025 6:26PM by PIB Delhi

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री तथा प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा एवं अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने आज कहा कि अगला बड़ा वैश्विक क्रांति जैव-संचालित होगा और भारत अपनी डीप-टेक क्षमताओं, मजबूत स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र और बढ़ते घरेलू संस्थागत पूंजी के बल पर इस परिवर्तन का नेतृत्व करने के लिए तैयार है।

नई दिल्ली में "भारतीय उद्यम एवं वैकल्पिक पूंजी संघ" (आईवीसीए) द्वारा आयोजित एक विशेष "फायरचैट" सत्र में, डॉ. जितेंद्र सिंह ने हाल ही में घोषित एक लाख करोड़ रुपये के अनुसंधान, विकास एवं नवाचार (आरडीआई) कोष को सरकार द्वारा शुरू की गई सबसे अनोखी एवं दूरदर्शी पहलों में से एक कहा, जिसका उद्देश्य अग्रणी प्रौद्योगिकियों में उच्च जोखिम, उच्च लाभ वाले अनुसंधान को समर्थन देना और सरकार, उद्योग एवं निवेशकों के बीच साझेदारी के एक नए युग को गति प्रदान करना है। उन्होंने कहा कि इस कोष को उदार एवं दीर्घकालिक सोच के साथ तैयार किया गया है, जिसमें कम ब्याज, धैर्यपूर्ण पूंजी एवं जोखिम साझा करने की विशेषताएं हैं, जो स्पष्ट संकेत देती हैं कि सरकार निजी निवेश को बाहर करने के बजाय उसे आकर्षित करना चाहती है।

मंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत तेज़ी से एक डीप-टेक और विज्ञान-आधारित नवाचार शक्ति के रूप में उभर रहा है, जिसे उच्चतम स्तर पर दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति का समर्थन प्राप्त है। उन्होंने कहा कि अतीत के विपरीत, जब भारत अक्सर नई तकनीकों को अपनाने में एक दशक या उससे भी अधिक समय लेता था, अब देश समर्पित जैव प्रौद्योगिकी नीतियां बनाने तथा अंतरिक्ष एवं परमाणु ऊर्जा जैसे रणनीतिक क्षेत्रों को निजी भागीदारों के लिए खोलने वाले अग्रणी देशों में से एक है। उन्होंने लंबे समय से चली रही वर्जनाओं को तोड़ने तथा विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार को राष्ट्रीय विकास एजेंडे के केंद्र में लाने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व एवं दूरदर्शिता को श्रेय दिया।

भारत के नवाचार क्षेत्र में हो रहे संरचनात्मक परिवर्तन पर विस्तार से चर्चा करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि पिछले दशक को आईटी, फिनटेक, -कॉमर्स और सॉफ्टवेयर जैसे क्षेत्रों में डिजिटल क्रांति द्वारा परिभाषित किया जाता था, लेकिन आने वाला दशक अंतरिक्ष, जैव-निर्माण, हरित हाइड्रोजन, क्वांटम तकनीक और उन्नत सामग्री जैसे क्षेत्रों में गहरी तकनीक द्वारा परिभाषित होगा। उन्होंने कहा कि ये क्षेत्र विज्ञान-केंद्रित, पूंजी-केंद्रित और बौद्धिक संपदा-केंद्रित हैं और इसलिए ये पारंपरिक निर्माण या अवसंरचना की तुलना में बहुत अलग प्रकार की जोखिम-सहनशील, धैर्यशील पूंजी की मांग करते हैं।

डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की वैश्विक सफलता की कहानियां निजी क्षेत्र, परोपकारी निवेशकों और घरेलू संस्थागत पूंजी की सक्रिय भागीदारी से लिखी गई हैं। उन्होंने कहा कि कई वर्षों तक, भारत की मानसिकता यही रहती थी कि सब कुछ के लिए सरकार से अपेक्षा की जाए और अंतरिक्ष या परमाणु जैसे उभरते क्षेत्रों में भी निजी क्षेत्र ने यह अनुमान नहीं लगाया था कि सुधार किस पैमाने पर या कितनी तेजी से लागू होंगे। उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष, परमाणु एवं जैव प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में इस सरकार ने जिस तरह का सक्रिय, उदार और निर्णायक दृष्टिकोण अपनाया है, उसके लिए निजी क्षेत्र भी तैयार नहीं था। उन्होंने आगे कहा कि आरडीआई फंड का उद्देश्य निजी क्षेत्र को विरासत में मिली हिचकिचाहट से बाहर निकालने एवं आत्मविश्वास के साथ अग्रणी क्षेत्रों में कदम रखने में मदद करना है।

भारत के तेज़ी से विकसित हो रहे स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र का उल्लेख करते हुए, मंत्री ने बल देकर कहा कि नवाचार अब सिर्फ़ बड़े महानगरों तक सीमित नहीं है। उन्होंने बताया कि लगभग 1.75-2 लाख स्टार्टअप में से लगभग 60,000 टियर-2 और टियर-3 शहरों से संबंधित हैं और अब भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र हैं। उन्होंने इसे मिथक करार दिया कि अत्याधुनिक नवाचार केवल बेंगलुरु, मुंबई या हैदराबाद में होते हैं, उन्होंने कहा कि कई दृढ़ निश्चयी एवं आकांक्षी संस्थापक छोटे शहरों और सरकारी स्कूलों से रहे रहे हैं जो स्वयं को साबित करने और मूल्य सृजन करने की प्रबल इच्छा रखते हैं।

आकांक्षी जिलों में युवा अन्वेषकों के साथ अपनी बातचीत को साझा करते हुए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि डिजिटल संपर्क और विज्ञान ज्योति जैसी केंद्रित योजनाओं के कारण दूरदराज के क्षेत्रों में छात्रों के बीच आकांक्षा एवं जागरूकता का स्तर अब बड़े शहरों की तुलना में कहीं अधिक है। उन्होंने एक आकांक्षी ज़िले की एक स्कूली छात्रा का उदाहरण प्रस्तुत किया, जो राष्ट्रीय विज्ञान योजनाओं की अच्छी जानकार थी और पहले से ही मांग कर रही थी कि पात्रता का विस्तार छोटी कक्षाओं तक किया जाए। उन्होंने कहा कि यह दर्शाता है कि पारिस्थितिकी तंत्र कितनी गहराई तक पहुंच चुका है और अगली पीढ़ी किस प्रकार अलग मानसिकता के साथ बड़ी हो रही है।

मंत्री ने कहा कि डीप-टेक के अलावा, भारत के पास हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र, तटीय एवं नीली अर्थव्यवस्था, कृषि, सुगंध और प्राकृतिक उत्पादों जैसे क्षेत्रों में अद्वितीय क्षमताएं हैं, जहां हज़ारों सफल स्टार्टअप ऐसे संस्थापकों द्वारा स्थापित किए गए हैं जो स्नातक भी नहीं हैं लेकिन उनमें मूल्य सृजन के लिए जुनून, योग्यता एवं सहज प्रवृत्ति है। उन्होंने अरोमा मिशन को एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया कि कैसे विज्ञान-आधारित मध्यवर्तनों से हज़ारों ग्रामीण उद्यमियों को तैयार किया जा सकता है, निर्यात-गुणवत्ता वाले उत्पाद तैयार कर सकते हैं और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा को आकर्षित कर सकते हैं।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने बल देकर कहा कि भारत आज एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है जहां वह मात्र तेजी से विकसित होने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था ही नहीं बल्कि एक विज्ञान-प्रेरित, नवाचार-प्रेरित वैश्विक नेता बनने की ओर अग्रसर है। उन्होंने कहा कि 2047 तक एक विकसित भारत बनने की भारत की महत्वाकांक्षा के लिए तकनीकी शक्ति, आर्थिक लचीलापन एवं वित्तीय आत्मनिर्भरता आवश्यक है, जिसमें पेंशन फंड, बीमा कंपनियां, बैंक, सार्वभौमिक जुड़ी संस्थाएं और पारिवारिक कार्यालय जैसी घरेलू संस्थागत निवेशक अहम भूमिका निभाएंगे। उन्होंने घरेलू वैकल्पिक निवेश कोषों (एआईएफ) की बढ़ती भागीदारी का स्वागत किया और कहा कि आज भारत में लगभग 1,700 पंजीकृत एआईएफ हैं जिनमें 15 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश  हैं, जो पूंजी बाजार की गहराई एवं निवेशकों के  विश्वास को दर्शाते हैं।

आरडीआई फंड को इस नई संरचना की आधारशिला बताते हुए, मंत्री ने कहा कि यह एआई, अर्धचालक, स्वच्छ ऊर्जा, जैव प्रौद्योगिकी, उन्नत सामग्री, रक्षा-तकनीक और अंतरिक्ष-तकनीक जैसे क्षेत्रों में अग्रणी अनुसंधान एवं विकास का समर्थन करेगा और भारत को केवल मेक इन इंडिया नहीं, बल्कि भारत में आविष्कार करने वाला बनने में मदद करेगा। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि इस कोष का उद्देश्य खोज से लेकर क्रियान्वयन तक संपूर्ण नवाचार संरचना को मजबूत करना तथा उद्योग, शिक्षा जगत, स्टार्टअप, निवेशकों एवं सार्वजनिक संस्थानों को एकीकृत राष्ट्रीय नवाचार संरचना में एक साथ लाना है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (एएनआरएफ) जैसे संस्थानों, अंतरिक्ष में आईएन-स्पेस जैसे क्षेत्रीय इंटरफेस और जैव प्रौद्योगिकी में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र और आईवीसीए जैसे उद्योग निकायों की भूमिका पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ये प्लेटफॉर्म सहयोग करने, इष्टतम साझेदारी मॉडल विकसित करने और निवेशकों को उपयुक्त अवसर प्रदान करने के लिए वैज्ञानिक एवं वित्तीय इंटरफेस के रूप में कार्य करते हैं, तदर्थ या यादृच्छिक जुड़ाव से बचते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि प्रत्येक खिलाड़ी पारिस्थितिकी तंत्र में सबसे उपयुक्त स्लॉट में फिट बैठे।

एक संवादात्मक बातचीत में फंड मैनेजरों के सुझावों का जवाब देते हुए, केंद्रीय मंत्री ने प्रारंभिक चरण के अनुसंधान, जिसमें निम्न प्रौद्योगिकी तत्परता स्तर पर कार्य करना भी शामिल है, के लिए कॉर्पोरेट एवं परोपकारी पूंजी की आवश्यकता को स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय परोपकारी निवेश पहले ही भारत के विज्ञान एवं नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण मात्रा में मौजूद हैं और यह घरेलू परोपकारियों एवं कॉर्पोरेट जगत के लिए अनुकरणीय सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि सरकार नवाचार साझेदारी को किसी एक क्षेत्र तक सीमित रखने के बजाय सरकार, निजी क्षेत्र, कॉर्पोरेट, परोपकारी लोगों और गैर सरकारी संगठनों के बीच सहयोग का समग्र संयोजन की परिकल्पना करती है।

आरडीआई फंड की ब्याज दरों और संचालन से जुड़े सवालों पर, डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि सरकार इस पहल को खुलेपन एवं सीखने की सोच के साथ अपना रही है। उन्होंने कहा कि शुरुआती कॉल एवं प्रतिक्रिया पैटर्न के आधार पर मार्जिन का निर्धारण किया जा सकता है, और इस बात पर बल दिया कि सरकार और निवेशकों, दोनों को एक-दूसरे की कमियों, शक्तियों और इनपुट से सीखने के लिए तैयार रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसे अत्यंत घनिष्ठ, पारस्परिक समझ एवं विश्वास की भावना से बनाना चाहिए, कि किसी प्रतिस्पर्धा के रूप में, जहां एक पक्ष दूसरे से बेहतर दिखने की कोशिश करता है।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि एक बड़ा और अक्सर कम आंका जाने वाला, बदलाव भारतीय युवाओं एवं पेशेवरों की मानसिकता में बदलाव है। उन्होंने कहा कि जहां पहले विदेश जाने वाली पीढ़ियों को वापस लौटने के लिए अक्सर कोई निश्चित समय-सीमा नहीं होती थी, वहीं आज बढ़ती संख्या में युवा भारतीय अपनी वापसी की योजना पहले से बना रहे हैं क्योंकि उन्हें शोध, नवाचार एवं उद्यमिता के क्षेत्र में स्वदेश में ही समान अवसर दिखाई दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज विदेशों में उन्नत अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र में काम करने वाले आधे से अधिक भारतीय वास्तव में भारतीय मूल के हैं, जिनका जन्म, शिक्षा एवं प्रशिक्षण भारत में हुआ है, जो दर्शाता है कि घरेलू पारिस्थितिकी तंत्र अब विश्वस्तरीय प्रतिभाओं को पोषित करने में सक्षम है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि 2030 और उसके आगे भारत को पारंपरिक विकास चरणों से आगे निकलने की अपनी क्षमता से परिभाषित किया जाएगा, ठीक उसी तरह जैसे यह सीधे लैंडलाइन से मोबाइल टेलीफोन की ओर बढ़ा और एक वैश्विक आईटी नेता के रूप में उभरा। उन्होंने गहरे समुद्र मिशन, लंबी तटरेखा, हिमालय पर्वतमाला और भारत की जैव विविधता का उल्लेख रणनीतिक परिसंपत्तियों के रूप में किया, जो गहरे समुद्र में खनन, मत्स्यपालन, जलवायु प्रौद्योगिकी और पुनर्योजी समाधानों में नए आयाम खोलेंगे तथा निवेशकों एवं नवप्रवर्तकों के लिए नए अवसर उत्पन्न करेंगे।

मंत्री ने यह दोहराते हुए  कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में कोई भी सुधार या क्रांति अकेले नहीं हो सकतीफोरम में उपस्थित फंड प्रबंधकों, घरेलू संस्थागत निवेशकों एवं उद्यमियों से अपील किया कि वे आने वाले दशकों को भारत से वैश्विक नवाचार परिदृश्य को आकार देने के लिए "पीढ़ी में एक बार आने वाले क्षण" के रूप में देखें। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे दुनिया धीरे-धीरे पूरी तरह से विनिर्माण-केंद्रित दृष्टिकोण से पुनर्जनन, पुनर्चक्रण, आनुवंशिकी एवं जैव-आधारित समाधानों पर केंद्रित दृष्टिकोण की ओर बढ़ रही है, भारत को दुनिया के लिए एक समाधान प्रदाता के रूप में अपनी स्थिति मजबूत करनी चाहिए, जो अपनी ही पूंजी, वैज्ञानिकों एवं उद्यमियों से संचालित हो।

डॉ जितेन्द्र सिंह ने निवेशक समुदाय को आश्वस्त किया कि सरकार एक पूर्वानुमान योग्य, सहायक एवं अग्रगामी नीति वाला वातावरण प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है और उन्हें सरकारी संस्थानों के साथ साझेदारी करने के लिए आमंत्रित किया ताकि सबसे उपयुक्त क्षेत्रों और सहयोग के मॉडल की पहचान की जा सके। उन्होंने कहा कि हम अब वैश्विक परिदृश्य का हिस्सा हैं और यह उद्यम पूंजीपतियों, घरेलू संस्थानों और नवप्रवर्तकों के लिए भारत के नए क्षेत्रों में निवेश करने का सही समय है। उन्होंने कहा कि हमें साथ मिलकर यह  सुनिश्चित करना होगा कि भारत केवल भविष्य की तकनीकों में भाग ही नहीं ले बल्कि उनका नेतृत्व भी करे।

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पीके/केसी/एके


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