कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय
भाषा के विकास के लिए उसे रोजगार से जोड़ें - हिन्दी सलाहकार सम्मेलन में डॉ. जितेंद्र सिंह
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि पिछले एक दशक में सरकारी संस्थानों में भाषा इको-सिस्टम में स्पष्ट बदलाव आया है, केंद्रीय विभागों में हिन्दी का प्रयोग लगातार बढ़ा है
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के प्रकाशनों का शुभारंभ किया, शासन, विज्ञान और प्रशासन में ज्ञान-आधारित हिन्दी सामग्री के विस्तार का आग्रह किया
प्रविष्टि तिथि:
01 DEC 2025 6:00PM by PIB Delhi
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री तथा प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा एवं अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज सरकारी प्रतिष्ठानों में हिन्दी को अपनाने के लिए मजबूत प्रयास करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि आधिकारिक कामकाज में भाषा का व्यावहारिक उपयोग इसके विकास और प्रासंगिकता के लिए महत्वपूर्ण है।
कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) की हिन्दी सलाहकार समिति की बैठक की अध्यक्षता करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि कोई भी भाषा तब तक स्थायी रूप से विकसित नहीं हो सकती जब तक उसे रोजगार से न जोड़ा जाए। उन्होंने शासन में कार्यात्मक और संवाद के माध्यम के रूप में हिन्दी के महत्व पर जोर दिया।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि पिछले एक दशक में सरकारी संस्थानों में भाषायी परिवेश में स्पष्ट बदलाव आया है। उन्होंने कहा कि केंद्रीय विभागों में हिन्दी का प्रयोग लगातार बढ़ा है और प्रशासनिक दस्तावेजों, संवाद और प्रशिक्षण सामग्री के लिए हिन्दी भाषा का इस्तेमाल बढ़ रहा है। साथ ही, उन्होंने द्विभाषी दस्तावेजीकरण बढ़ाने के कारण विभागों पर पड़ने वाले संचालन संबंधी दबावों को स्वीकार करते हुए कहा कि कार्यभार की वास्तविकताओं को संतुलित करते हुए हिन्दी के अधिकाधिक इस्तेमाल को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि मिजोरम सहित, पहले हिन्दी भाषा के दायरे से बाहर माने जाने वाले क्षेत्रों में अब हिन्दी शिक्षा और संवाद की मांग बढ़ रही है। उन्होंने सेवा क्षेत्रों में भर्ती की प्राथमिकताओं का उदाहरण दिया, जहां अंग्रेजी और हिन्दी दोनों का कार्यसाधक ज्ञान एक लाभ के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि यह बदलाव व्यापक सामाजिक और व्यावसायिक रुझानों को दर्शाता है, खासकर उन क्षेत्रों में रोजगार के बढ़ते अवसरों के साथ जहां द्वि-भाषा कौशल रोजगार क्षमता में सुधार करते हैं।
बैठक के दौरान तीन प्रकाशनों - कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग की ‘कौशल पत्रिका’, पेंशन एवं पेंशनभोगी कल्याण विभाग की ‘सोपान पत्रिका’ और सलाहकार समिति की सदस्य सुश्री अंबुजा मालखेडकर द्वारा लिखित ‘कर्नाटक की श्रृंखलाएं’ का विमोचन करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रशासन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में ज्ञान-आधारित हिन्दी साहित्य का और अधिक विकास होना चाहिए। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि विभाग हिन्दी में उत्कृष्टता प्रदर्शित करने वाले अधिकारियों को मान्यता दें और यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएं कि वेबसाइट, दस्तावेज और सार्वजनिक सामग्री हिन्दी में उपलब्ध हों।
समिति के सदस्यों ने विभागीय कार्यवाहियों में हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने, हिन्दी में विज्ञान संवाद को प्रोत्साहित करने और सोशल मीडिया के माध्यम से डिजिटल सामग्री का विस्तार करने सहित कई प्रस्ताव प्रस्तुत किए। उन्होंने अधिकारियों की सहायता के लिए विश्वविद्यालयों के माध्यम से तकनीकी उपकरणों और संसाधनों की उपलब्धता पर भी प्रकाश डाला। डॉ. जितेंद्र सिंह ने सदस्यों को औपचारिक बैठकों के बाहर भी सुझाव साझा करते रहने के लिए आमंत्रित करते हुए आग्रह किया कि जब भी उन्हें भाषा के प्रयोग और नीति में कोई कमी, त्रुटि या सुधार के अवसर दिखाई दें, तो वे विभाग से संपर्क करें।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस बात पर भी जोर दिया कि हिन्दी का विकास अन्य भारतीय भाषाओं की कीमत पर नहीं होना चाहिए। दस्तावेजीकरण में सटीक हिन्दी का प्रयोग करने वाले दक्षिणी राज्यों के कई अधिकारियों के भाषायी विषय की सराहना करते हुए, उन्होंने कहा कि विविधता को बनाए रखने और समावेशी संवाद संरचना के निर्माण के लिए हिन्दी और क्षेत्रीय भाषाओं, दोनों को मजबूत किया जाना चाहिए।
कुछ सदस्यों ने इस बात पर बल दिया कि सार्थक भाषायी विकास तभी संभव है जब हिन्दी को रोजगार के अवसरों से जोड़ा जाए, जिसमें शैक्षिक नीति के अनुभवों और कॉर्पोरेट भर्ती के रुझानों का भी जिक्र किया गया। डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस बात पर सहमति जताते हुए कहा कि भाषा तब प्रासंगिक हो जाती है जब वह काम, शिक्षण और आवागमन के अवसर खोलती है। उन्होंने गैर-हिन्दी भाषी राज्यों में भी अभिभावकों और समुदायों की ओर से हिन्दी की बढ़ती मांग की ओर इशारा किया।
यह बैठक देश के बहुभाषी स्वरूप को अक्षुण्ण रखते हुए प्रशासन में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ाने पर व्यापक सहमति के साथ संपन्न हुई। बैठक में शासन में हिन्दी की उपस्थिति को और बढ़ाने, आधिकारिक सूचनाओं की हिन्दी में पहुंच सुनिश्चित करने और मंत्रालयों व विभागों में भाषायी प्रणालियों पर संवाद जारी रखने की सरकार की मंशा की पुष्टि की गई।



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(रिलीज़ आईडी: 2197239)
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