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कुरुक्षेत्र में श्री गुरु तेग बहादुर जी के 350वें शहीदी दिवस के दौरान प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ

Posted On: 25 NOV 2025 7:52PM by PIB Delhi

"जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल"

हरियाणा के गर्वनर असीम घोष जी, लोकप्रिय मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी जी,  केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी मनोहर लाल जी, राव इंद्रजीत सिंह जी, कृष्णपाल जी, हरियाणा एसजीपीसी के अध्यक्ष जगदीश सिंह झींडा जी, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

आज का दिन भारत की विरासत का अद्भुत संगम बनकर आया है। आज सुबह मैं रामायण की नगरी अयोध्या में था और अब मैं यहां गीता की नगरी कुरुक्षेत्र में हूं। यहां हम सभी श्री गुरू तेगबहादुर जी के 350वें बलिदान दिवस पर उन्हें नमन कर रहे हैं। इस आयोजन में हमारे बीच जो संत मौजूद हैं, जो सम्मानित संगत उपस्थित है, मैं आप सभी को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं।  

साथियों,

5-6 साल पहले एक और अद्भुत सयोंग बना था, मैं उसका जिक्र भी जरूर करना चाहता हूं। साल 2019 में 9 नवंबर को जब राम मंदिर पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आया था, तो उस दिन मैं करतारपुर कोरिडॉर के उद्घाटन के लिए डेरा बाबा नानक में था। मैं यही प्रार्थना कर रहा था कि राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो, करोड़ों राम भक्तों की आकांक्षा पूरी हो और हम सभी की प्रार्थना पूरी हुई, उसी दिन राम मंदिर के पक्ष में निर्णय आया। अब आज अयोध्या में जब धर्म ध्व्जा की स्थापना हुई है, तो फिर मुझे सिख संगत से आशीर्वाद लेने का मौका मिला है।

साथियों,

अभी कुछ देर पहले कुरुक्षेत्र की भूमि पर पांचजन्य स्मारक का लोकार्पण भी हुआ है। कुरूक्षेत्र की इसी धरती पर खड़े होकर भगवान श्री कृष्ण ने सत्य और न्याय की रक्षा के, उसे सबसे बड़ा धर्म बताया था। उन्होंने कहा था - स्वधर्मे निधनं श्रेयः। अर्थात्, सत्य के मार्ग पर अपने धर्म के लिए प्राण देना भी श्रेष्ठ है। श्रीगुरु तेगबहादुर जी ने भी सत्य, न्याय और आस्था की रक्षा को अपना धर्म माना, और इस धर्म की रक्षा उन्होंने अपने प्राण देकर की। इस ऐतिहासिक अवसर पर, भारत सरकार ने श्रीगुरु तेग बहादुर जी के चरणों में, एक स्मृति डाक टिकट और विशेष सिक्का भी समर्पित करने का सौभाग्य पाया है। मेरा कामना है, हमारी सरकार गुरु परंपरा की इसी तरह निरंतर सेवा करती रहे।

साथियों,

कुरुक्षेत्र की यह पवित्र भूमि, सिख परंपरा का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। इस भूमि का सौभाग्य देखिए, सिख परंपरा के लगभग सभी गुरु अपनी पावन यात्राओं के दौरान यहां आए। जब नौवीं पातशाही, श्रीगुरु तेग बहादुर जी इस पवित्र भूमि पर पधारे, तो उन्होंने यहां अपने गहन तप और निर्भीक साहस की छाप छोड़ी थी। 

साथियों, 

श्रीगुरु तेग बहादुर जी जैसे व्यक्तित्व, इतिहास में विरले ही होते हैं। उनका जीवन, उनका त्याग, उनका चरित्र बहुत बड़ी प्रेरणा है। मुगल आक्रांताओं के उस काल में, गुरु साहिब ने वीरता का आदर्श स्थापित किया। हम सब जानते हैं कि, श्रीगुरू तेग बहादुर जी के शहीद होने से पहले क्या हुआ था। मुगल आक्रांताओं के उस काल में कश्मीरी हिंदुओं का जबरन धर्मांतरण किया जा रहा था। इस संकट के बीच पीड़ितों के एक दल ने गुरु साहिब से सहयोग मांगा। तब श्रीगुरु साहिब ने उन पीड़ितों को जवाब दिया था, कि आप सब औरंगज़ेब को साफ-साफ कह दें, यदि  श्रीगुरु तेग बहादुर इस्लाम स्वीकार कर लें, तो हम सब इस्लाम धर्म अपना लेंगे।

साथियों, 

इन वाक्यों में श्रीगुरू तेग बहादुर जी की निडरता, उसकी पराकाष्ठा थी। इसके बाद जिसकी आशंका थी, वही हुआ। उस क्रूर औरंगजेब ने गुरु साहिब को बंदी बनाने का आदेश दिया, लेकिन गुरु साहिब ने खुद, दिल्ली जाने की घोषणा कर दी। मुगल शासकों ने, उन्हें प्रलोभन भी दिये, लेकिन श्रीगुरू तेग बहादुर अडिग रहे, उन्होंने धर्म और सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। और इसीलिए, उनका मन तोड़ने के लिए, गुरु साहिब को पथ से डिगाने के लिए, उनके सामने, उनके तीन साथियों- भाई दयाला जी, भाई सती दास जी, भाई मती दास जी की निर्ममता से हत्या की गयी|  लेकिन गुरु साहिब अटल रहे, उनका संकल्प अटल रहा। उन्होंने धर्म का रास्ता नहीं छोड़ा, तप की अवस्था में, गुरु साहिब ने अपना शीश धर्म की रक्षा को समर्पित कर दिया। 

साथियों, 

मुगल इतने पर ही नहीं रुके थे, उन्होंने गुरु महाराज के शीश को अपमानित करने का भी प्रयास किया, लेकिन भाई जैता जी ने, अपने पराक्रम के बल पर, उनके शीश को आनंदपुर साहिब पहुंचाया। इसलिए ही श्रीगुरु गोविंद सिंह जी ने लिखा है - “तिल्कजन्जू राखा प्रभ ता का,तेग बहादुर सी क्रिया, करी न  किन्हुं आन। इसका अर्थ था कि, धर्म का तिलक सुरक्षित रहे, लोगों की आस्था पर अत्याचार न हो, इसके लिए गुरु साहिब ने सब कुछ न्योछावर कर दिया।

साथियों, 

आज गुरु साहिब की इसी बलिदान भूमि के रूप में, आज दिल्ली का शीशगंज गुरुद्वारा, हमारी प्रेरणा का एक जीवंत स्थल बनकर खड़ा है। आनंदपुर साहिब का तीर्थ, हमारी राष्ट्रीय चेतना की शक्ति भूमि है। और आज हिंदुस्तान का जो स्वरूप शेष है, उसमें गुरु साहिब जैसे युग पुरुषों का त्याग और समर्पण समाहित है। और इसी त्याग के कारण, श्रीगुरु तेग बहादुर साहिब को हिंद दी चादर कहकर पूजा जाता है। 

साथियों,

हमारे गुरुओं की परंपरा, हमारे राष्ट्र के चरित्र, हमारी संस्कृति और हमारी मूल भावना का आधार है। और मुझे संतोष है कि पिछले 11 वर्षों में हमारी सरकार ने इन पावन परंपराओं को सिख परंपरा के हर उत्सव को, राष्ट्रीय उत्सव के रूप में भी स्थापित किया है। हमारी सरकार को, श्रीगुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व, श्रीगुरु तेग बहादुर साहिब जी के 400वें प्रकाश पर्व, और श्रीगुरु गोबिंद सिंह जी के 350वें प्रकाश पर्व को, भारत की एकता और अखंडता के उत्सव के रूप में मनाने का अवसर मिला। पूरे भारत के लोग, अपने मत, परंपरा और मान्यताओं से आगे बढ़कर, इन आयोजनों में सम्मिलित हुए हैं। 

साथियों,

हमारी सरकार को गुरुओं से जुड़े पवित्र स्थलों को भव्यतम और दिव्यतम रूप देने का सौभाग्य भी मिला है। बीते एक दशक में, अनेक ऐसे अवसर आए हैं, जब मैं व्यक्तिगत रूप से, गुरु परंपरा के आयोजनों का हिस्सा बना। कुछ समय पहले, जब अफगानिस्तान से, गुरु ग्रंथ साहिब के तीन मूल स्वरूप भारत आए थे, तो ये हर देशवासी के लिए गौरव का क्षण बना था। 

साथियों, 

हमारी सरकार ने गुरुओं के हर तीर्थ को आधुनिक भारत के स्वरूप से जोड़ने का प्रयास किया है। करतारपुर कॉरिडोर का काम पूरा करना हो, हेमकुंड साहिब में रोप वे प्रोजेक्ट का निर्माण करना हो, आनंदपुर साहिब में विरासत-ए-खालसा संग्रहालय का विस्तार हो, हमने गुरुजनों की गौरवशाली परंपरा को अपना आदर्श मानकर, इन सारे कामों को पूरी श्रद्धा से पूरा करने का प्रयास किया है। 

साथियों, 

हम सभी जानते हैं कि कैसे मुगलों ने, वीर साहिबजादों के साथ भी क्रूरता की सारी सीमाएं पार कर दी थीं। वीर साहिबजादों ने, उनको दीवार में चुना जाना स्वीकार किया, लेकिन अपने कर्तव्य और धर्म का मार्ग नहीं छोड़ा। इन्हीं आदर्शों के सम्मान के लिए, अब हम हर साल 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाते हैं। 

साथियों, 

हमने सिख परंपरा के इतिहास और गुरुओं की शिक्षाओं को राष्ट्रीय पाठ्यक्रम का हिस्सा भी बनाया है, ताकि सेवा, साहस और सत्य के ये आदर्श हमारी नई पीढ़ी की सोच का आधार बनें। 

साथियों,

मुझे विश्वास है, कि आप सभी ने ‘जोड़ा साहिब’ के पवित्र दर्शन जरूर किए होंगे। मुझे याद है, जब पहली बार मेरे मंत्रिमंडल के सहयोगी हरदीप सिंह पुरी जी ने मुझसे इन महत्वपूर्ण धरोहरों के बारे में चर्चा की थी। उन्होंने बताया था कि, उनके परिवार ने गुरु गोविंद सिंह जी और माता साहिब कौर जी का पवित्र ‘जोड़ा साहिब’, करीब तीन सौ वर्षों से सहेजकर रखा है। और अब वो इस पवित्र धरोहर को देश–दुनिया की सिख संगत को समर्पित करना चाहते हैं।

साथियों,

इसके बाद इन पवित्र ‘जोड़ा साहिब’ का पूरे सम्मान और मर्यादा के साथ, वैज्ञानिक परीक्षण कराया गया, ताकि ये पवित्र धरोहर आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित हो सके। सभी तथ्यों को देखते हुए, हमने यह सामूहिक निर्णय लिया, कि इन पवित्र ‘जोड़ा साहिब’ को तख्त श्री पटना साहिब को समर्पित किया जाएगा, जहां गुरु महाराज ने अपने बाल्यकाल का एक लम्बा समय बिताया था। पिछले महीने, एक पावन यात्रा के रूप में गुरु महाराज के ये पावन ‘जोड़ा साहिब’ दिल्ली से पटना साहिब ले जाए गए। और वहां मुझे भी इन पवित्र ‘जोड़ा साहिब’ के सामने अपना शीश नवाने का अवसर मिला। मैं इसे गुरुओं की विशेष कृपा मानता हूं, कि उन्होंने मुझे इस सेवा का, इस समर्पण का, और इस पवित्र धरोहर से जुड़ने का अवसर दिया।

साथियों,

गुरु तेग बहादुर साहिब जी की स्मृति हमें ये सिखाती हैं, कि भारत की संस्कृति कितनी व्यापक, कितनी उदार और कितनी मानवता-केंद्रित रही है। उन्होंने सरबत का भला का मंत्र, अपने जीवन से सिद्ध किया। आज का यह आयोजन सिर्फ इन स्मृतियों और सीखों के सम्मान का क्षण नहीं है, यह हमारे वर्तमान और भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण प्रेरणा भी है। गुरु साहिब ने सिखाया है, जो नर दुख मै दुख नहीं मानै, सोई पूरन ज्ञानी। यानि जो विपरीत परिस्थितियों में भी अडिग रहता है, वही सच्चा ज्ञानी है,  वही सच्चा साधक है। इसी प्रेरणा के साथ हमें हर चुनौती को पार करते हुए अपने देश को आगे ले जाना है, अपने भारत को विकसित बनाना है।

साथियों, 

गुरु साहिब ने ही हमें सिखाया है, ‘भय काहू को देत नय, नय भय मानत आन’ यानी हम ना किसी को डराएं, और ना किसी से डरकर जिएं। यही निर्भयता समाज और देश को मजबूत बनाती है। आज भारत भी इसी सिद्धांत पर चलता है। हम विश्व को बंधुत्व की बात भी बताते हैं, और अपनी सीमाओं की रक्षा भी करते हैं। हम शांति चाहते हैं, लेकिन अपनी सुरक्षा से कोई समझौता नहीं करते। ऑपरेशन सिंदूर इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। पूरे विश्व ने ये देखा है, नया भारत न डरता है, न रुकता है और ना आतंकवाद के खिलाफ झुकता है। आज का भारत, साहस और स्पष्टता के साथ पूरी शक्ति से आगे बढ़ रहा है।

साथियों,

आज इस अहम अवसर पर, मैं हमारे समाज से, युवाओं से जुड़े एक ऐसे विषय पर भी बात करना चाहता हूं, जिसकी चिंता,  गुरु साहिब ने भी की थी। ये विषय- नशे का है, ड्रग्स का है। नशे की आदत ने हमारे अनेक नौजवानों के सपनों को, गहरी चुनौतियों में धकेल दिया है। सरकार इस समस्या को जड़ से समाप्त करने के लिए सारे प्रयास भी कर रही है। लेकिन यह समाज की, परिवार की भी लड़ाई है। और ऐसे समय में श्रीगुरु तेग बहादुर साहिब की शिक्षा हमारे लिए प्रेरणा भी है और समाधान भी है। हम सब जानते हैं, कि जब गुरु साहिब ने आनंदपुर साहिब से अपनी यात्रा प्रारंभ की, तो उन्होंने अनेकों गांवों में, संगत को अपने साथ जोड़ा।  उन्होंने ना सिर्फ उनकी श्रद्धा और आस्था का विस्तार किया, बल्कि इन क्षेत्रों में रहने वाले समाज का आचरण भी बदला। इन गांवों में रहने वाले लोगों ने हर तरह के नशे की खेती छोड़ी, और गुरु साहिब के चरणों में, अपना भविष्य समर्पित किया। गुरु महाराज के दिखाए इसी मार्ग पर चलते हुए, यदि समाज, परिवार और युवा मिलकर, नशे के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ने का काम करें, तो ये समस्या जड़ से समाप्त हो सकती है।

साथियों,

श्रीगुरु तेग बहादुर साहिब की शिक्षाएं हमारे आचरण में शांति, हमारी नीतियों में संतुलन, और हमारे समाज में विश्वास का आधार बनें, यही इस अवसर का सार है। आज जिस तरह से पूरे देश में,  श्रीगुरु तेग बहादुर का ये शहीदी दिवस मनाया जा है, वो ये बताता है, कि गुरुओं की सीख आज भी हमारे समाज की चेतना में कितनी जीवंत है। इसी भावना के साथ कि ये सारे आयोजन, भारत को आगे ले चलने में, हमारी युवा पीढ़ी की सार्थक प्रेरणा बने, एक बार फिर आप सभी को मेरी अनेक-अनेक शुभकामनाएं हैं। वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह।

 

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