जनजातीय कार्य मंत्रालय
एनटीआरआई में शानदार आदिवासी गीतों और नृत्य के साथ राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव 2025 आरंभ
जनजातीय गौरव वर्ष हमारा गौरव हमारी धरोहर उत्सव
Posted On:
11 NOV 2025 7:11PM by PIB Delhi
भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय और जनजातीय कार्य मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान (एनटीआरआई) ने पहला राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव 2025 सफलतापूर्वक आयोजित किया। इसे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा धरतीआबा भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती मनाने के लिए घोषित जनजातीय गौरव वर्ष के शुभ अवसर पर आयोजित किया गया।
यह दो दिवसीय कार्यक्रम भारत की समृद्ध आदिवासी साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत का उत्सव मनाता है और इसका मकसद जनजातीय ज्ञान प्रणालियों के संवाद, संरक्षण और प्रचार के लिए राष्ट्रीय मंच प्रदान करना है।
यह उत्सव बड़े उत्साह और सम्मान के साथ शुरू हुआ। इसकी शुरुआत भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर फूल चढ़ाकर और माला पहनाकर की गई। इसके बाद गणमान्य व्यक्तियों ने औपचारिक दीपक जलाया, जो ज्ञान और बुद्धि की जीत का प्रतीक था। उद्घाटन समारोह में जनजातीय कलाकारों द्वारा पारंपरिक माडिया गीत और नृत्य की लयबद्ध ऊर्जा गूंज उठी, जो भारत की स्वदेशी परंपराओं की जीवंतता और विविधता को दर्शाती है।

माननीय महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती सावित्री ठाकुर ने गेस्ट ऑफ ऑनर के रूप में मुख्य भाषण दिया। उन्होंने माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और भारत सरकार की जनजातीय कल्याण के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता के लिए उनके नेतृत्व की तारीफ़ की। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव 2025 सांस्कृतिक पुनर्जागरण और समावेशिता के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत के विज़न को साकार करने की दिशा में ऐतिहासिक कदम है।

माननीय राज्यसभा सदस्य श्रीमती मीनाक्षी जैन ने साहित्य और सांस्कृतिक स्वतंत्रता के बीच संबंध के बारे में कहा, “जब किसी समाज का साहित्य गुलाम हो जाता है, तो उसकी संस्कृति भी गुलाम हो जाती है।” उन्होंने आदिवासी समाजों की रचनात्मक भावना को बढ़ावा देने में बौद्धिक स्वतंत्रता के महत्व पर ज़ोर दिया।

जनजातीय कार्य मंत्रालय में सचिव श्रीमती रंजना चोपड़ा ने जनजातीय साहित्य की तारीफ़ करते हुए इसे हाशिए पर पड़े समुदायों की आवाज़ को बुलंद करने और राष्ट्रीय चर्चा में समावेशिता को बढ़ावा देने का शक्तिशाली माध्यम बताया। उन्होंने समुदाय-आधारित विकास और सांस्कृतिक सशक्तिकरण की दिशा में मंत्रालय के लगातार प्रयासों पर प्रकाश डाला। उन्होंने एनटीआरआई को देश भर के जनजातीय कवियों, लेखकों, उपन्यासकारों, कहानीकारों, कलाकारों और प्रकाशकों को एक ही मंच पर लाने के लिए बधाई दी।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की सदस्य श्री निरुपम चकमा ने इस बात पर बल दिया कि छोटे जनजातीय समुदायों की भाषाओं को संरक्षित करना भारत की भाषाई विविधता को बनाए रखने के लिए ज़रूरी है। सदियों से जनजातीय ज्ञान प्रणालियाँ मौखिक पारंपरिक लोकगीतों के माध्यम से फली-फूली हैं जो पहाड़ियों में गूंजते हैं, नदियों द्वारा सुनाई जाने वाली कहानियाँ, कहावतें जो पूरा नैतिक सच बताती हैं, और त्योहार जो मौसम के चक्र को चिह्नित करते हैं।
एफसीआई चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर श्री आशुतोष अग्निहोत्री, आईएएस ने जनजातीय साहित्य को प्राचीन वैदिक परंपराओं से खूबसूरती से जोड़ा, और दोनों में मौजूद गहरी इकोलॉजिकल चेतना पर बात की। काव्यात्मक अंदाज़ में उन्होंने कहा: “अक्षर की आकांक्षा होती है कि शब्द बने, शब्द की आकांक्षा होती है कि वाक्य बने, वाक्य की आकांक्षा होती है कि कविता बने और कविता की आकांक्षा होती है कि वह महाकाव्य बने।”
श्री आशुतोष अग्निहोत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि “प्रकृति सबसे बड़ी टीचर है,” और जनजातीय कहानियों में यह शाश्वत सत्य झलकता है।
एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के निदेशक प्रोफेसर बी. वी. शर्मा ने जनजातीय मौखिक साहित्य के डॉक्यूमेंटेशन और संरक्षण की तत्काल ज़रूरत पर अपनी राय रखी। उन्होंने स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों और भाषाई विविधता की सुरक्षा के उद्देश्य से चल रहे कई सरकारी कार्यक्रमों के बारे में बताया।

जनजातीय कार्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव श्री अनंत प्रकाश पांडे ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह साहित्यिक उत्सव भारत के बड़े सांस्कृतिक नैरेटिव में आदिवासी साहित्य को पहचानने और उसे इंटीग्रेट करने का सामूहिक राष्ट्रीय प्रयास है। उन्होंने जनजातीय कल्याण और भाषाई संरक्षण के लिए मंत्रालय के प्रयासों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि आदिवासी साहित्य केवल कलात्मक अभिव्यक्ति नहीं है, बल्कि इकोलॉजिकल ज्ञान और सामुदायिक मूल्यों का भंडार है।
राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान की विशेष निदेशक प्रोफेसर नूपुर तिवारी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि “भारत की जनजातीय सभ्यता उतनी ही पुरानी है जितनी कि यह धरती खुद है, और जनजातीय समुदाय यादों के रखवाले, प्रकृति के रक्षक और मानवीय संतुलन के संरक्षक हैं।” उनकी भाषा, गीत, कहानियाँ प्रकृति की लय और सामुदायिक जीवन के नैतिक ताने-बाने से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने स्वदेशी भाषाओं, मौखिक परंपराओं और सांस्कृतिक प्रथाओं को संरक्षित करने की तत्काल ज़रूरत पर ज़ोर दिया, जो भारत की सभ्यतागत ज्ञान की रीढ़ हैं।

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में, राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव 2025, अपनी जनजातीय ज्ञान प्रणालियों, मौखिक परंपराओं और रचनात्मक अभिव्यक्तियों के संरक्षण, उत्सव मनाने और उन्हें बढ़ावा देने के भारत के सामूहिक संकल्प का प्रतीक है। कविता, गीतों, मिथकों और कहानियों के माध्यम से, जनजातीय समुदाय दुनिया को संतुलन, सम्मान और स्थिरता में गहराई से निहित जीवन शैली की याद दिलाते रहते हैं।
इस दो दिवसीय महोत्सव में पैनल चर्चाएँ, कविता पाठ, कहानी-कथन सत्र और प्रदर्शनियाँ होंगी, जो देश भर के जनजातीय लेखकों, कलाकारों, शोधकर्ताओं और नीति-निर्माताओं को एक साथ लाएँगी और सांस्कृतिक कायाकल्प और सामाजिक न्याय की निरंतर यात्रा में ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित होंगी।
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