सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्‍वयन मंत्रालय
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सांख्यिकीय मॉडल: समावेशी और लक्षित विकास की दिशा में एक अध्ययन

Posted On: 03 NOV 2025 4:25PM by PIB Delhi

सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने उत्तर प्रदेश राज्य के लिए घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएएस) 2022-23 पर आधारित मॉडल-आधारित ज़िला-स्तरीय अनुमानों पर अध्ययन किया है। अध्ययन की रिपोर्ट जारी कर दी गई है। रिपोर्ट सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध है और दिए गए लिंक पर क्लिक करके आप रिपोर्ट देख सकते है।

https://new.mospi.gov.in/uploads/publications_reports/publications_reports1761641209612_6875c53f-d8eb-4458-be3e-1e12a9e528c9_Compiled_Report_final17092025.pdf .

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय और सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय साक्ष्य-आधारित नीति-निर्माण हेतु व्यापक सांख्यिकीय जानकारी प्रदान करने के लिए विविध सामाजिक और आर्थिक विषयों पर नियमित रूप से बड़े पैमाने पर घरेलू सर्वेक्षण करते रहे हैं। इन सर्वेक्षणों में, घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस) सबसे महत्वपूर्ण है। इससे राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर उपभोग पैटर्न, घरेलू विशेषताओं और जीवन स्तर की जानकारी मिलती है।

पृष्ठभूमि

राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (एनएससी) द्वारा राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस) के लिए गठित संचालन समिति ने मॉडल-आधारित जिला-स्तरीय अनुमान तैयार करने के तौर तरीकों का आकलन करने लिए एक पायलट अध्ययन करने की सिफारिश की थी। तदनुसार , घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस): 2022-23 के आंकड़ों का उपयोग करके उत्तर प्रदेश के जिलों के लिए जिला-स्तरीय मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (एमपीसीई) आंकड़ों का अनुमान लगाने के लिए भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आईएसआई), कोलकाता की पूर्व प्रोफेसर डॉ. मौसमी बोस की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। एनएसओ और आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालय (डीईएस), उत्तर प्रदेश सरकार ने समिति को तकनीकी सहायता प्रदान की।

इस अध्ययन की आवश्यकता

एचसीईएस राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर विश्वसनीय अनुमान प्रदान करता है और अब इससे कल्याणकारी योजनाओं की स्थानीय योजना और निगरानी में सहायता के लिए जिला स्तर पर समान जानकारी की मांग भी बढ़ती जा रही है। हालांकि, प्रत्येक जिले में सर्वेक्षण का नमूना अपेक्षाकृत छोटा है, इसलिए सर्वेक्षण से सीधे सांख्यिकीय रूप से विश्वसनीय जिला-स्तरीय अनुमान प्राप्त करना कठिन है। उत्तर प्रदेश राज्य के लिए आंकड़ों की कमी को दूर करने का एक वैकल्पिक तरीका खोजने के लिए, एक मॉडल-आधारित दृष्टिकोण को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में अपनाया गया था।

अध्ययन का उद्देश्य

इसका मुख्य उद्देश्य उत्तर प्रदेश के सभी जिलों के लिए मॉडल-आधारित दृष्टिकोण का उपयोग करके मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (एमपीसीई) के जिला-स्तरीय अनुमान विकसित करना था। जिससे प्रत्यक्ष सर्वेक्षण परिणामों की कमी पूरी हो सके। इसका उद्देश्य यह परीक्षण करना था कि क्या सांख्यिकीय मॉडलिंग, सर्वेक्षण डेटा सीमित या उपलब्ध न होने की स्थिती में सूचना अंतरालों को भरने में मदद कर सकती है।

मॉडल-आधारित विधि कैसे काम करती है

अध्ययन में लघु क्षेत्र आकलन (एसएई) नामक सांख्यिकीय पद्धति का प्रयोग किया गया। यह तकनीक सर्वेक्षण के आंकड़ों को अन्य स्रोतों से प्राप्त जानकारी के साथ मिलाकर जिलों जैसे छोटे क्षेत्रों के लिए बेहतर और अधिक स्थिर परिणाम प्राप्त करती है। मूलतः, यह दृष्टिकोण प्रत्यक्ष नमूनाकरण विश्वसनीय अनुमान देने में विफल रहने की स्थिती में प्रशासनिक आंकड़ों जैसी  सहायक जानकारी शामिल करके, अनुमानों की सटीकता में सुधार करता है।

इसमें प्रयुक्त कुछ सहायक जानकारी इस प्रकार है:

  • वृद्धावस्था पेंशन लाभार्थियों की संख्या,
  • आयुष्मान भारत (पीएम-जेएवाई) योजना के अंतर्गत मरीजों की संख्या,
  • घरेलू एलपीजी कनेक्शनों की संख्या, और
  • अंत्योदय खाद्यान्न वितरण योजना के अंतर्गत लाभार्थियों की संख्या।

 

इस पायलट अध्ययन में दो प्रकार के मॉडल: फे-हेरियट (एफएच) और स्थानिक फे-हेरियट (एसएफएच) का उपयोग किया गया।

 

मुख्य निष्कर्ष

 

  • ग्रामीण क्षेत्रों में उच्चतम औसत (एमपीसीई) वाले शीर्ष पांच जिले बागपत, सहारनपुर, गौतम बुद्ध नगर, मेरठ और गाजियाबाद रहे।
  • शहरी क्षेत्रों में शीर्ष जिले गौतम बुद्ध नगर, गोंडा, गाजियाबाद, बागपत और लखनऊ रहे।
  • अध्ययन से पता चला कि इस तरह के मॉडल-आधारित आकलन, अखिल भारतीय सर्वेक्षण से प्राप्त राज्य-स्तरीय अनुमानों से विश्वसनीय जिला-स्तरीय आंकड़े तैयार करने के लिए लागत-प्रभावी और मापनीय पद्धति के रूप में कारगर हो सकते हैं।

 

निष्कर्ष

 

यह अध्ययन इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे सांख्यिकीय मॉडल उन डेटा की कमी को भरने में मदद कर सकते हैं जो प्रत्यक्ष सर्वेक्षण के परिणाम सीमित होते हैं, नीति निर्माताओं और योजनाकारों को कल्याणकारी कार्यक्रमों की रूपरेखा और मूल्यांकन, जीवन स्तर की निगरानी और क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने के लिए बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। इस अध्ययन में अपनाए गए दृष्टिकोण को अन्य राज्यों और रोज़गार या गरीबी जैसे अन्य सामाजिक-आर्थिक संकेतकों पर भी लागू किया जा सकता है। इससे डेटा-आधारित शासन और स्थानीय स्तर की योजना को बढ़ावा मिलेगा। यह लक्षित उद्देश्यों के लिए किए जाने वाले कार्यों और सतत विकास को समर्थन देने के लिए एक प्रभावी उपकरण के रूप में मॉडल-आधारित आकलन की क्षमता की पुष्टि करता है।

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पीके/केसी/वीके/एसवी


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