संस्कृति मंत्रालय
रानी चेन्नम्मा का जीवन भारतीयों को अटूट समर्पण और साहस के साथ देश की सेवा करने के लिए प्रोत्सायहित करता रहेगा: श्री शेखावत
कित्तूर में रानी चेन्नम्मा की विजय के 200 वर्ष पूरे होने का जश्नख
केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने विशेष स्मारक सिक्का जारी किया
कर्नाटक से जीवंत सांस्कृतिक प्रस्तुतियां, कित्तूर की विजय में रानी चेन्नम्मा की भूमिका को दर्शाने वाली प्रदर्शनी
Posted On:
24 OCT 2025 10:15PM by PIB Delhi
कित्तूर में रानी चेन्नम्मा की ऐतिहासिक विजय की 200 वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में वर्ष भर चलने वाला राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम आज नई दिल्ली में एक भव्य समापन समारोह के साथ संपन्न हुआ। केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने मुख्य अतिथि के रूप में इस समारोह की अध्यक्षता की।
इस कार्यक्रम में संस्कृति मंत्रालय के सचिव श्री विवेक अग्रवाल, राज्यसभा सांसद नारायणसा कृष्णसा भंडागे, कर्नाटक के आध्यात्मिक गुरु और श्वास योग के संस्थापक स्वामी वचनानंद तथा दिल्ली कर्नाटक संघ के अध्यक्ष श्री सीएम नागराजा भी उपस्थित थे।
इस अवसर पर, केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री ने कित्तूर में रानी चेन्नम्मा की ऐतिहासिक विजय की 200वीं वर्षगांठ पर श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने रानी की निडरता और चिरस्थायी विरासत का उल्लेख करते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि उनका जीवन भारतीयों को अटूट समर्पण और साहस के साथ राष्ट्र की सेवा करने के लिए प्रेरित करता रहेगा।
श्री शेखावत ने कहा, "इस प्रेरणादायक अवसर पर, हम रानी चेन्नम्मा के असाधारण चरित्र से राष्ट्र के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और सेवा को नवीनीकृत करने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं। उनका पराक्रम और संघर्ष हमें याद दिलाता है कि देश की सेवा में कभी संकोच नहीं करना चाहिए।"
उन्होंने राष्ट्रीय पहचान के लिए एक मार्गदर्शक शक्ति के रूप में इतिहास के महत्व का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा, "किसी राष्ट्र का इतिहास उसके लोगों के लिए अत्यधिक महत्व रखता है। जो लोग इसका अध्ययन करते हैं, उनके लिए एक भी तिथि का स्मरण प्रेरणा का स्रोत बन सकता है, जो नागरिकों को अपने अतीत से सीखने और एक उज्जवल भविष्य को आकार देने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। लेकिन यह देखा गया है कि भारत के इतिहास को कई बार गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है या खंडित किया गया है। सदियों से हमारे देश ने विदेशी शक्तियों के आक्रमणों और हमारी संस्कृति और पहचान को मिटाने के प्रयासों का सामना किया है। फिर भी हमारे पूर्वजों ने हर चुनौती का बेजोड़ साहस, दृढ़ता और दृढ़ विश्वास के साथ सामना किया। लेकिन समय के साथ इनमें से कई प्रेरक अध्याय और व्यक्तित्व चुनिंदा कहानियों की छाया में दब गए।"
इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री ने कित्तूर में रानी चेनम्मा की उल्लेखनीय विजय का स्मरण करते हुए 200 मूल्यवर्ग का एक विशेष स्मारक सिक्का जारी किया।
इस विशेष अवसर पर संस्कृति मंत्रालय के सचिव, ने कहा कि कैसे एक साल तक चले इस स्मरणोत्सव ने पूरे भारत में आयोजित प्रदर्शनियों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, व्याख्यानों और प्रतियोगिताओं के माध्यम से रानी चेन्नम्मा की विरासत के साथ जन जुड़ाव को और गहरा किया है। उन्होंने कहा कि उनके इस साहस ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम की नैतिक नींव रखी और महिलाओं की पीढ़ियों को दृढ़ संकल्प और सहानुभूति के साथ नेतृत्व करने के लिए प्रेरित किया।
कार्यक्रम में शाम को अद्भुत सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने कर्नाटक की समृद्ध कलात्मक परंपराओं को जीवंत कर दिया। कार्यक्रम की शुरुआत दिल्ली कर्नाटक संघ की महिला कलाकारों द्वारा नाद गीते की मधुर प्रस्तुति से हुई, जो कर्नाटक की विरासत को एक भावपूर्ण श्रद्धांजलि थी।
इसके बाद एक मनमोहक सांस्कृतिक नृत्य प्रस्तुति हुई, जिसमें कर्नाटक की विविध लोक और शास्त्रीय विधाओं का सार खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया। उनकी प्रस्तुति ने जीवंत वेशभूषा, समन्वित नृत्यकला और मनमोहक भाव-भंगिमाओं से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। यह रानी चेन्नम्मा के सांस्कृतिक सद्भाव और लचीलेपन का प्रतीक थी।
एक विशेष प्रदर्शनी में रानी चेनम्मा की प्रेरणादायक जीवन गाथा, उनके साहस, उत्साही नेतृत्व और ब्रिटिश सेना के प्रति उनके वीरतापूर्ण प्रतिरोध को दर्शाया गया, जिसके कारण 1824 में उन्हें कित्तूर में विजय प्राप्त हुई।
साल भर चलने वाले स्मरणोत्सव के एक हिस्से के रूप में, संस्कृति मंत्रालय ने रानी चेन्नम्मा के ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रतिरोध के 200 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में कई तरह की गतिविधियाँ आयोजित की। इनमें प्रदर्शनियाँ, संगोष्ठियाँ, निबंध प्रतियोगिताएँ और विषयगत प्रदर्शन शामिल है। अक्टूबर 2024 से हुए इस स्मरणोत्सव में उन्हें भारत के उन शुरुआती स्वतंत्रता सेनानियों में से एक के रूप में सम्मानित किया गया जिन्होंने उपनिवेशवाद के विरुद्ध बहादुरी से लड़ाई लड़ी थी।
1824 में ब्रिटिश सेना के खिलाफ कित्तूर की रक्षा में रानी चेन्नम्मा की वीरता, शाही सत्ता को चुनौती देने में उनका नैतिक साहस, तथा न्याय के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता दो शताब्दियों बाद भी राष्ट्र को प्रेरित करती है।
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