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जीएसटी दरों को प्रासंगिक बनाए जाने से बिहार में आर्थिक अवसरों का विस्तार
Posted On:
27 SEP 2025 4:40PM by PIB Delhi
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मुख्य बातें
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- जीएसटी कटौती से मखाना, शाही लीची की खेती को फायदा, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का विस्तार और लाखों किसानों की आमदनी में बढ़ोत्तरी से बिहार की कृषि का कायाकल्प
- दूध पनीर को जीएसटी मुक्त करने तथा घी मक्खन आइसक्रीम पर जीएसटी कटौती से बिहार के सुधा डेयरी से जुड़े 9.6लाख किसानों को सीधा फायदा
- भागलपुरी सिल्क, मधुबनी पेंटिंग्स, पथरकट्टी नक्काशी तथा सुजनी निर्माण जैसे हथकरघा व हस्तकला की वस्तुएं बाजार में ज्यादा प्रतियोगी हुई
- उर्वरक, माइक्रो न्यूट्रिएंट्स तथा कृषि मशीनरी सस्ती होने से कृषि लागतों में किसानों को 7 से 13 प्रतिशत की बचत
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खेती, हथकरघा, हस्तकला और खाद्य प्रसंस्करण पर प्रमुख रूप से निर्भर करने वाली बिहार की अर्थव्यवस्था को हाल में जीएसटी दरों की में की गई कटौती से काफी फायदा मिला है। प्रदेश के मिथिला क्षेत्र के मखाना उत्पादकों से लेकर भागलपुर के रेशम बुनकरों तक, सुधा डेयरी से जुड़े दूध उत्पादकों तथा मधेपुरा रेल कारखाने में कार्यरत इंजीनियर तक सभी जीएसटी के नए सुधारों से प्रभावित हुए है । यानी कि राज्य का क्या परंपरागत क्षेत्र हो या आधुनिक क्षेत्र सभी नए जीएसटी सुधारों के दायरे में शामिल हुआ हैं।
जीएसटी दरों में की गई कटौती से इस बात की उम्मीद जगी है कि अब उपभोक्ताओं पर महंगाई का बोझ हल्का होगा, ग्रामीण इलाकों में आजीविका के अवसर बढेंगे। साथ साथ इससे सूक्ष्म मध्यम उद्योगों को अपने निर्यात बढ़ाने की प्रतियोगिता में टिके रहने की और मजबूती हासिल होगी। जीएसटी दरों की कटौती से प्रदेश की कृषि, हथकरघा, हस्तकला, डेयरी, उर्वरक, रेल विनिर्माण, बांस और बेंत की निर्मित वस्तुएं तथा आयुष व शहद जैसे उभरते उद्योग सभी को प्रोत्साहन प्राप्त होगा।
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कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण
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कहना होगा कि कृषि और खाद्य प्रसंस्करण बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं जो प्रदेश की करीब आधी श्रम शक्ति को रोजगार प्रदान करती हैं। इनसे जुड़े कई मानक उत्पाद अब निचली जीएसटी स्लैब में रखे जाने से इनके उत्पादक किसान और प्रसंस्करणकर्ताओं को एक तरफ कर की राहत मिलने जा रही है दूसरी तरफ बाजार में उनकी पहुंच बढ़ने जा रही है।
मखाना
बिहार देश का 80 से 90 प्रतिशत मखाने का उत्पादन करता है। इसके उत्पादन और प्रसंस्करण से करीब 10 लाख किसानों की आजीविका चलती है। यह फसल उत्तर बिहार के मिथिलांचल इलाके में खास तौर पर वहां के तालाबों में उगाया जाता है। इन इलाकों में दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया,कटिहार, सहरसा तथा अन्य निकटवर्ती जिलें शामिल है। मखाना आधारित सभी स्नैक्स पर अब जीएसटी की दरें 12 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है। इससे मखाना प्रसंस्करणकर्ता और निर्यातक दोनों की करीब छह से सात प्रतिशत की लागत घटने से उनका मुनाफा बढ़ेगा साथ साथ देशी विदेशी बाजार में वह ज्यादा प्रतियोगी बन सकेंगे।
शाही लीची
मुजफ्फरपुर में जीआई टैग किए लीची के बागानों में पैदा होने वाली शाही लीची प्रदेश के वैशाली, चंपारण,सीतामढ़ी और समस्तीपुर में भी पैदा की जाती हैं। इस पर भी हजारों छोटे किसान और सीजनल श्रमिकों की आजीविका चलती है। गौरतलब है कि बिहार देश का कुल 35 प्रतिशत लीची पैदा करता है। जैसा कि अब विभिन्न फलों के जूस, जैम और अचारों पर भी जीएसटी 12 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है। जाहिर है इस कदम से लीची उत्पादकों और प्रसंस्करणकर्ताओं को 7 प्रतिशत का फायदा मिलेगा और खाड़ी के देशों में उनका मार्केट और बढ़ेगा।
खाद्य प्रसंस्करण
बिहार में पटना, हाजीपुर और भागलपुर स्थित सूक्ष्म मध्यम औद्योगिक बस्तियों में खाद्य प्रसंस्करण की अनेकों वैरायटी तैयार की जाती है। इन बस्तियों में छोटी छोटी इकाईयों के अलावा स्व सहायता महिला समूहों द्वारा कई तरह के स्नैक्स, अचार, बेकरी, चटनी का उत्पादन कार्य किया जाता है। डेयरी कॉपरेटिव संस्था सुधा जो न केवल बिहार बल्कि समूचे पूर्वी भारत का एक स्थापित ब्रांड है जबकि मखाने से निर्मित विभिन्न उत्पादों का मार्केट समूचे भारत में फैला हुआ है। अकेले भागलपुर औद्योगिक प्रक्षेत्र में चालीस से ज्यादा फूड एग्रो यूनिट हैं इसके अलावा यहां स्थापित फूड पार्क और बॉटलिंग परियोजना से काफी रोजगार सृजित होता है। बिस्किट पर आरोपित जीएसटी को 18 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत तथा नमकीन व चटनी पर 12 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर देने से इनकी कीमतें अब 6 से 11 प्रतिशत कम हो जाएंगी और इससे इनकी मांग बढ़ेगी। इसके नतीजतन सूक्ष्म मध्यम इकाईयों का मुनाफा मार्जिन बढ़ेगा।

डेयरी भी बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। अकेले डेयरी कॉपरेटिव सुधा से करीब 9.6 लाख किसान जिसमें अधिकतर सीमांत किसान है, जुड़े हुए है। राज्य में दूध संग्रहण कार्य में स्व सहायता महिला समूहों की जबरदस्त भागीदारी है। दूध के प्रसंस्करण, चिलिंग,परिवहन और इनकी खुदरा बिक्री से वहां हजारों लोगों को रोजगार मिलता है । पटना और बरौनी राज्य में डेयरी गतिविधियों के सबसे बड़े केंद्र है। चुकी यू एच टी दूध और पनीर अब जीएसटी से मुक्त कर दिए गए है। और घी व मक्खन पर जीएसटी दर 12 से घटाकर पांच प्रतिशत तथा आइसक्रीम पर 18 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर देने से ये सभी डेयरी उत्पाद 5 से 13 प्रतिशत सस्ते हो जाएंगे। इस कटौती से डेयरी कारोबार में कार्यशील पूंजी का दबाव घटेगा, डेयरी का सहकारी नेटवर्क और विस्तृत होगा तथा बिहार सहित समूचे पूर्वी भारत के डेयरी उत्पादों के उपभोक्ताओ को सस्ता समान मिलेगा।
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हथकरघा और हस्तकला वस्तुएं
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कहना होगा कि हथकरघा और हस्तकला उद्योग बिहार की सांस्कृतिक विरासत का एक अक्षुण्ण हिस्सा है। इनमें अधिकतर इकाई जिनको जीआई हैसियत प्राप्त है जिनसे अनेकों ग्रामीण शिल्पी परिवारों की आजीविका चलती है।
भागलपुरी रेशम
एक रेशमी शहर के रूप में जाने जाना वाले भागलपुर में करीब तीस हजार बुनकर परिवार रहते है। करीब 25 हजार हथकरघा इस शहर में चलायमान है। इसके अलावा यहां हजारों लोग हथकरघा उद्योग से जुड़े रील, रंगाई और अन्य गतिविधियों में संलग्न है। कुल मिलाकर यह उद्योग इस शहर के करीब 1 लाख लोगों विशेषकर अंसारी जुलाहे मुस्लिम और अनुसूचित जाति तांती परिवारों को आजीविका प्रदान करता है। भागलपुर की साड़ी, स्टोल और अन्य वस्त्र आइटम देश के अधिकतर शहरों के बुटीक और इंपोरियम के मार्फत बेचे जाते है। भागलपुर में निर्मित करीब आधे रेशमी कपड़े अमेरिका, यूरोप और पूर्वी एशिया में निर्यात किए जाते हैं। बेहतरीन तसर सिल्क की साड़ी और स्कार्व के लिए विख्यात भागलपुरी सिल्क अपनी गुणवत्ता और प्रभा से देश के अग्रणी फैशन डिजाइनरों को सदैव आकर्षित करती रही है। जैसा कि अब जरी और हस्त निर्मित शॉल पर जीएसटी दरें 12 से घटाकर 5 प्रतिशत कर दी गई उससे इनके तैयार उत्पाद कम से कम 2 से 3 प्रतिशत सस्ते हो जाएंगे। जाहिर है रेशमी साड़ी पहले से सस्ती हो जाएंगी और देशी विदेशी बाजार की प्रतियोगिता में ज्यादा टिक पाएंगी।
मधुबनी पेंटिंग्स
मधुबनी पेंटिंग्स यानी मधुबनी चित्रकला बिहार के मधुबनी, दरभंगा, समस्तीपुर और सीतामढ़ी की ग्रामीण महिलाओं द्वारा बनाई जाती है। यह पेंटिंग्स अपनी चित्रकला के लिए दुनिया भर में विख्यात है। यह हुनर मिथिला प्रक्षेत्र की हजारों महिलाओं को आजीविका भी प्रदान करता है। जितवारपुर नामक एक जगह के 70 प्रतिशत परिवार अपनी आजीविका के लिए केवल अपनी इसी पेंटिंग बिक्री पर निर्भर करते है। ज्यादातर चित्रकार निम्न आय श्रेणी से आते है। मधुबनी में चित्रकारों के लिए एक शिल्पी क्रेडिट कार्ड बनाने के लिए एक शिविर का आयोजन हुआ उसमें 5000 से ज्यादा कलाकारों के आवेदन आए। इससे पता चलता है कि पेंटिंग्स पर कितने लोगों की आजीविका निर्भर करती है।
गौरतलब है मधुबनी पेंटिंग्स मेलों, राज्यों के इंपोरियम और कई ऑनलाइन प्लेटफार्मों पर काफी ज्यादा बिकती है जिसको लोग अपने घरों में, पर्यटन स्थलों की सजावट में ज्यादा उपयोग करते है। अंतरराष्ट्रीय पर ये मधुबनी पेंटिंग अमेरिका, यूरोप और जापान के बुटीक खरीददारों के पास पहुंचती है। बल्कि कई विदेशी दूतावासों में, सांस्कृतिक केंद्रों पर और यहां तक की लंदन के विक्टोरिया और अल्बर्ट म्यूजियम में ये मधुबनी पेंटिंग्स वहां की शोभा बढ़ा रही है। इन पेंटिंग्स पर भी जीएसटी की दरें 12 से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया, इससे हर कलाकृति 6 से 7 प्रतिशत सस्ती हो जाएगी। इससे खरीदारों के लिए यह सस्ता होगा और चित्र शिल्पकारों की भी इससे आमदनी बढ़ेगी।
सूजनी कढ़ाई
मुजफ्फरपुर के भूसरा गांव और मधुबनी के कुछ हिस्से में अवस्थित सूजनी कढ़ाई का कार्य केवल महिला शिल्पियों के जरिए किया जाता है। ये ज्यादातर स्व सहायता महिला समूहों द्वारा संचालित होते है। पुरानी साड़ीयों की रजाई सिलने का यह कढ़ाई कार्य करीब बीस गांव की 600 महिलाओं की वैकल्पिक आमदनी का प्रमुख श्रोत है। इस कला को वर्ष 2006 में जीआई टैग मिलने के उपरांत इसकी राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बाजारों में पैठ बढ़ाने में मदद मिली।
सूज नी उत्पादों में रजाई, वाल हैंगिंग्स और अन्य कई तरह के वस्त्र शामिल है जो प्रादेशिक हस्त कला इंपोरियम, प्रदर्शनियों और कई ऑनलाइन प्लेटफार्मों के जरिए बिकती है। कुछ हद तक इनका जापान, यूरोप और अमेरिका में व्यापार मेला संगठनों और कला म्यूजियमों के जरिए निर्यात भी किया जाता है। इन पर भी जीएसटी दरें 12 से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया। इससे करीब 7 प्रतिशत की लागत में कमी आएगी जो लोक कला की महिला कारीगरों की आमदनी बढ़ाने में मदद करेगी।
सिक्की घास हस्तकला
उत्तर बिहार के मिथिला खासकर मधुबनी के रैयाम गांव और पश्चिम चंपारण के कुछ हिस्से में महिलाएं एक खास तरह के सुनहली घास जो गीली भूमि पर उपजती है जिसे स्थानीय भाषा में मूंज कहा जाता है उससे टोकरी, डलिया और खिलौने बुनती हैं। हालांकि अब कुछ ही शिल्पी इस कार्य में संलग्न हैं पर इस शिल्प का सांस्कृतिक महत्व अनमोल है। इस घास से सिंदूर बॉक्स भी बनाया जाता है जो मिथिला की शादियों के दौरान उसकी एक पारंपरिक जरूरत है।
2018 में जबसे इस कला को जी आई टैग मिला तबसे इसकी पहचान में और ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई। इस कला की शिल्पी मीरा देवी को राष्ट्रीय अवार्ड और अंतरराष्ट्रीय महत्व प्राप्त हुआ है। इसमें यूनेस्को से उन्हें मिला सम्मान भी शामिल है। इस उत्पाद पर भी जीएसटी 12 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया। इससे सिक्की उत्पाद 7प्रतिशत सस्ती हो गई है जिससे बाजार में प्लास्टिक के एक विकल्प उत्पाद के रूप में इसका प्रसार बढ़ने की संभावना है।
पथरकट्टी स्टोन कला
गया स्थित पथरकट्टी स्टोन कला की स्थापित बस्ती अपनी नीली काली ग्रेनाइट नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है। इस कार्य से करीब 500 परिवारों के करीब 650 शिल्पियों की आजीविका चलती है। करीब 300सालों से प्रचलित इस कला को वर्ष 2025 में जीआई टैग मिला। इसके बाद इस कला की पहचान में काफी बढ़ोत्तरी हुई। इस कला के तहत शिल्पी भगवान बुद्ध, महावीर की मूर्तियां और सजावट की कई वस्तुएं बनाते है जो मंदिरों ,मेलों और पर्यटक बाजारों में बिकती हैं। इन कलाकृतियों की बिहार के मंदिर और पर्यटन स्थलों में काफी बिक्री होती है। अब जापान, थाईलैंड और श्री लंका के मार्केट में इस बुद्ध कला की काफी मांग है। इस कलाकृति पर भी जीएसटी दर 12-18 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है इससे पठार कट्टी स्टोन के बड़े बड़े उत्पाद 7 से 13 प्रतिशत सस्ती हो गए है। इससे इनकी मंदिर आने वाले पर्यटकों में बिक्री बढ़ने के साथ साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी पैठ बढ़ेगी।
बांस और बेंत के उत्पाद
वैशाली के स्फूर्ति बस्ती तथा जमुई और गया जिले में बांस और बेंत के उत्पाद बनाने के कार्य में सैकड़ों कारीगर संलग्न पाए जाते है। इसमें पिछड़ी वर्ग की कई महिलाएं भी कारीगर हैं। वैशाली स्थित बस्ती में करीब 330 शिल्पी कार्यरत है जो फर्नीचर, टोकरी और सजावट की कई वस्तुएं घरेलू ग्राहकों,होटलों और ऑनलाइन प्लेटफार्मों के जरिए बिकते है। बांस के फर्नीचर पर भी जीएसटी दर 12 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत किए जाने से ये उत्पाद 6 से 7 प्रतिशत सस्ती हो गई हैं। इस वजह से ये आइटम उपभोक्ताओं के लिए सस्ती हो गई हैं और प्लास्टिक और मेटल के विकल्प के रूप में ये देश विदेश के बाजारो में अपनी पैठ बढ़ा रही हैं।
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उर्वरक और अन्य कृषि लागत कारखाने
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बेगुसराय स्थित बरौनी यूरिया कॉम्प्लेक्स जो एचयूऑरएल कार्यक्रम का एक हिस्सा है वह 1.27 एमएम टी पी ए क्षमता की राज्य की एक अग्रणी औद्योगिक इकाई है। इसमें हजारों आईटी आई पासआउट नौजवायऔर डिप्लोमा धारकों को रोजगार मिला है। इसके अलावा कई ग्रामीण नौजवानों को प्रदेश के कृषि लागत सहकारी बिक्री नेटवर्क व बिक्री केंद्रों के डीलर के रूप में भी रोजगार मिला है।
अमोनिया, सल्फर एसिड और नाइट्रोजन एसिड पर जैसा कि जीएसटी दरें 18 से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है और माइक्रोन्यूट्रींस व गायबरलिक एसिड पर भी जीएसटी 12 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है। इससे कृषि की इस प्रमुख लागत आइटम पर 6 से 7 प्रतिशत की बचत हुई है। उदाहरण के तौर पर 200 रुपए की बोटल पर 14 रुपए का कम कर लगेगा और इससे तैयार उर्वरक की लागत 2 से 3 प्रतिशत घट जाएगी। जाहिर है किसान इससे लाभान्वित होंगे और कृषि फसलों की उत्पादकता बढ़ेगी।
बिहार ट्रैक्टर और कई खेती उपकरणों का तेजी से उभरता बड़ा बाजार है जिसके 90 प्रतिशत ग्राहक छोटे और सीमांत किसान है। पहले कृषि में मशीनों का इस्तेमाल एक सीमा तक था लेकिन अब यह तेजी से बढ़ रहा है। बल्कि बिहार में ट्रैक्टर घनत्व राष्ट्रीय औसत से भी ऊपर चला गया है। हजारों किसान कृषि उपकरणों की प्रदर्शनी और मेलों में जमकर भाग लेते हैं। इन कृषि उपकरणों की मांग खासकर उत्तर और मध्य बिहार के फसल उत्पादक इलाकों में ज्यादा है जहां ट्रैक्टरों की सलाना बिक्री दसियो हजार में है। छोटे किसान के लिए मशीनों का उपयोग फसल नुकसान को कम करता है और कृषि की कार्यदक्षता बढा ता है। बल्कि अब कई महिला चालित सहकारी समितियों द्वारा भी ट्रैक्टर और हार्वेस्टरों की खरीद की जा रही है।
जैसा कि अब ट्रैक्टर, पंपों और सिंचाई उपकरणों, टायरों पर जीएसटी दर 12-18 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है। इससे उम्मीद है कृषि उपकरण 7 से 13 प्रतिशत तक सस्ते हो जाएंगे।मिसाल के तौर पर 8 लाख की कीमत वाले ट्रैक्टर पर अब 56000 रुपए कम कर लगेगा। कीमतों में मिली इस राहत से कृषि मशीनरी का इस्तेमाल ज्यादा किया जाएगा, कृषि की उत्पादकता बढ़ेगी और किसानों की आमदनी भी। प्रदेश का कुल कृषि कारोबार 3 लाख करोड़ का है जिसे और बल मिलेगा

बिहार में मधेपुरा में रेल इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव का कारखाना है। इसी तरह से नालंदा हरनौत में रेल कैरेज रिपेयर वर्कशॉप है और हाजीपुर में पूर्व मध्य रेलवे का मुख्यालय है। इनमें हजारों तकनीशियन और इंजीनियर काम करते है। मधेपुरा की एलो स्टेम परियोजना में करीब 10 हजार लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिला है। इसमें समाज के ओबीसी और इबीसी श्रेणी के कई आईटीआई पासआउट और डिप्लोमा धारको के अलावा कई प्रवासी कुशल कारीगर शामिल है जो इसे तकनीकी रोजगार का एक प्रमुख श्रोत बनाते है। जैसा कि टेक्निकल टेक्सटाइल, कार्टून, बॉक्स इत्यादि पर आरोपित जीएसटी 12-18 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत पर ला दिया गया है। इससे रोजाना के पैकिंग ओर दुकानों की जरूरत के सामान की कीमत 6 से 7 प्रतिशत तक सस्ते हो जाएंगी। साथ ही उत्पादन और रखरखाव की लागत भी 1से 2 प्रति शत घट जाएगी। कुल मिलाकर इससे लोकोमोटिव मैन्युफैक्चरिंग और रेल कोचों के रखरखाव की कार्य कुशलता बढ़ जाएगी और भारतीय रेल के मॉल धुलाई और पैसेंजर सेवाओं के समूचे परिदृश्य में बिहार की भूमिका और मजबूत होगी।
अपने पारंपरिक क्षेत्रों की मजबूती के अलावा बिहार के नए उभरते विकास क्षेत्रों को भी नई जीएसटी रेजीम से फायदा मिलेगा।
आयुष और हर्बल उत्पाद
बिहार का आयुष सेक्टर जो पटना और गया स्थित छोटी आयुर्वेदिक इकाईयों से नज़र आता है इसके अलावा वहां महिला स्व सहायता समूह द्वारा चालित हर्बल साबुन और तेल उत्पादन इकाइयों से भी। यहां के पारंपरिक वैद्य परिवार स्थानीय स्तर पर आयुर्वेदिक उत्पादों के निर्माता है। अब आयुर्वेदिक दवाओं और अन्य प्रसाधनो पर लागू जीएसटी दरें 12-18 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है। इससे इनकी कीमतें 6-13 प्रतिशत गिर गई हैं जिससे एमएसएमई और एसएचजी दोनों को अपना बाजार विस्तार करने में मदद मिलेगी।
शहद और मधुमक्खी पालन
मुजफ्फरपुर स्थित मधुमक्खी क्लस्टर में करीब 750 मधुमक्खी पालक कार्यरत है जो राज्य के मधुमक्खी पालन का एक बड़ा केंद्र है। ये अधिकतर लोग या तो छोटे किसान हैं या महिला उद्यमी हैं जो डाबर और पतंजलि जैसे बड़े ब्रांडो को शहद की आपूर्ति करते हैं। साथ ही ये लोग अमेरिका और मध्य पूर्व के देशों में शहद के निर्यात के लिए भी प्रयत्नशील हैं।इन पर भी जीएसटी घटाकर 5 प्रतिशत करने से इनकी लागत में 6-7 प्रतिशत की कमी आई है और सहकारिता और ग्रामीण आजीविका को बल मिला है।
जीएसटी दरों को प्रासंगिक किए जाने से बिहार की अर्थव्यवस्था में कई तरह के नये अवसर मिलने की संभावना बनी है। इसकी वजह से वहां खाद्य पदार्थों, डेयरी उत्पादों, हथकरघा और हस्तकला की कई जरूरी सामानों की लागत घटेगी। दूसरी तरफ खेती, बुनाई, कढ़ाई, बांस की कलाकृति निर्माण और डेयरी इन सभी में आजीविका के ज्यादा अवसर प्राप्त होंगे। इसी के साथ साथ वहां के खाद्य प्रसंस्करण, उर्वरक और फॉर्म मशीनरी में कार्यरत एमएसएमई इकाइयों को मजबूती हासिल होगी तथा रेल और औद्योगिक इकाइयों की लागत में कमी आएगी
जबकि आयुष और शहद निर्माण जैसे क्षेत्रों को और विस्तार मिलेगा। इसके अलावा बिहार के ग्रामीण क्षेत्र से लेकर शहरी क्षेत्र तक के मखाना उत्पादकों, लीची किसानों से लेकर रेशम बुनकरों, चित्रकारों, डेयरी उत्पादकों और औद्योगिक मजदूरों सभी को कर बोझ हल्का होने तथा प्रतियोगिता में टिकने तथा आजीविका की मजबूती से काफी लाभ हासिल होगा। ये नया जीएसटी सुधार आत्मनिर्भरता और 2047 के विकसित भारत के विजन को साकार करेगा।
जीएसटी दरों को प्रासंगिक बनाए जाने से बिहार में आर्थिक अवसरों का विस्तार
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