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खेतों से खाने की मेज तक


खाद्यान्न भंडारण के लिए सुदृढ़ अवसंरचना निर्माण

Posted On: 28 SEP 2025 10:30AM by PIB Delhi

प्रमुख बिंदु

  • भारत ने 2024-25 में 353.96 मिलियन टन का रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन किया (तीसरे अग्रिम अनुमानों के अनुसार)
  • केंद्रीय पूल के खाद्यान्नों के लिए भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) और राज्यों की एजेंसियों (एसजीए) की बंद और कवर एंड प्लिंथ (सीएपी) भंडारण क्षमता 917.83 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) है।
  • देश भर में 40.21 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) की कुल क्षमता वाले 8815 शीतगृह जल्दी सड़ने वाली वस्तुओं का संरक्षण करते हैं।
  • प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस) के विकेंद्रित भंडारों का विस्तार हो रहा है। जून 2025 तक 5937 पीएसीएस पंजीकृत किए गए और 73492 का कंप्यूटरीकरण किया गया।
  • कृषि अवसंरचना कोष (एआईएफ), कृषि विपणन अवसंरचना (एएमआई), प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (पीएमकेएसवाई) और विश्व की सबसे बड़ी खाद्यान्न भंडार योजना जैसी सरकारी योजनाएं भंडारण, प्रसंस्करण और कृषक आय सुरक्षा को मजबूत कर रही हैं।

 

 

परिचय

 

भारत का कृषि क्षेत्र दुनिया के सबसे बड़े कृषि क्षेत्रों में से एक है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। यह खाद्य सुरक्षा, रोजगार सृजन और आर्थिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए आधारशिला का काम करता है। मानव आहार की बुनियाद माने जाने वाले खाद्यान्नों में चावल और गेहूं के अलावा मक्का, ज्वार और बाजरा सरीखे मोटे अनाज तथा अरहर, मूंग, उड़द, चना और मसूर जैसी दालें शामिल हैं। कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और जरूरी पोषकों से समृद्ध ये खाद्यान्न भारत में खाद्य सुरक्षा और पोषण सुनिश्चित करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं।

2024-25 के लिए तीसरे अग्रिम अनुमानों के अनुसार भारत ने 353.96 मिलियन टन खाद्यान्नों का रिकॉर्ड उत्पादन किया। इसमें 117.51 मिलियन टन गेहूं और 149.07 मिलियन टन चावल शामिल है।

हम साल-दर-साल रिकॉर्ड पैदावार ले रहे हैं। आधुनिक भंडारण अवसंरचना यह सुनिश्चित करती है कि खाद्यान्न और जल्दी सड़ने वाले कृषि उत्पादों का सुरक्षित ढंग से संरक्षण किया जा सके, फसल कटने के बाद नुकसान कम-से-कम हो तथा मूल्य स्थिर रहें। भंडारण से बर्बादी घटती है और उत्पाद ज्यादा समय तक खाने के लायक रहते हैं। इस तरह भंडारण खेतों को बाजारों से जोड़ने और बेहतर मुनाफे के लिए किसानों के सशक्तीकरण में मुख्य भूमिका निभाता है। इसके साथ ही यह खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की बुनियाद को भी मजबूती देता है। भारत जैसे विकासशील देश में कच्चे और प्रसंस्करित, दोनों ही तरह के खाद्यान्नों की मांग बढ़ रही है। ऐसे में अनिवार्य वस्तुओं की बारहों महीने उपलब्धता बरकरार रखने में सक्षम भंडारण की केंद्रीय भूमिका है। यह अतिरिक्त उपज को सुरक्षित रखने में मदद करने के अलावा सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिए भी सहायक है। यह सुनिश्चित करता है कि उपजाए गए अनाज का हर दाना राष्ट्रीय पोषण और आर्थिक विकास में योगदान करे। इस तरह सुदृढ़ भंडारण अवसंरचना कृषि समृद्धि और खाद्य सुरक्षा, दोनों का ही आधार है।

 

खाद्यान्न भंडार का महत्व

 

प्रभावी भंडारण अवसंरचना भारत की खाद्य आपूर्ति श्रृंखला के प्रबंधन, बरबादी घटाने तथा किसानों और उपभोक्ताओं का कल्याण सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।

भंडारण के मुख्य उद्देश्य

  • कटाई के बाद के नुकसान को घटाना: शीतगृहों और आधुनिक भंडारगृहों समेत समुचित भंडारण से कृषि उत्पादों की बरबादी में काफी कमी आती है।
  • खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा जैसे कार्यक्रमों के तहत वितरण के लिए अतिरिक्त भंडार रखना अनिवार्य है।
  • जल्दीबाजी में बिक्री रोकना: भंडारण सुविधाएं किसानों को अपनी उपज को सुरक्षित रखने और सही समय पर बेचने की सहूलियत मुहैया कराती हैं। इससे कृषकों को अपनी फसल जल्दीबाजी में नहीं बेचनी पड़ती और उन्हें बेहतर मूल्य हासिल करने में मदद मिलती है।
  • मूल्य स्थिरीकरण: रणनीतिक अतिरिक्त भंडार से अनिवार्य वस्तुओं की कीमतों में अत्यधिक उतार-चढ़ाव से उपभोक्ताओं को बचाने में मदद मिलती है।
  • गुणवत्ता बरकरार रखना: वैज्ञानिक भंडारण के जरिए नमी और कीटनाशकों जैसे तत्वों को नियंत्रित कर यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि खाद्यान्न मानव उपयोग के योग्य रहें।

 

भारत में खाद्यान्न भंडारण प्रणालियां

 

भारत की विभिन्न खाद्यान्न भंडारण प्रणालियों में कुछ प्रमुख प्रणालियां हैं -

  • केंद्रीकृत भंडारण: इन्हें मुख्य तौर पर एफसीआई जैसी एजेंसियां चलाती हैं।
  • शीतगृह: इनमें फलों, सब्जियों, दूध उत्पादों और मांस जैसी जल्दी सड़ने वाली वस्तुओं को रखा जाता हैं।
  • विकेंद्रित भंडारण: इसमें ग्रामीण गोदाम, पीएसीएस के भंडारगृह और किसानों के खलिहान आते हैं।

 

क. खाद्यान्नों का केंद्रीकृत भंडारण

 

भारत में एफसीआई खाद्यान्नों के केंद्रीकृत भंडारण के लिए जिम्मेदार प्राथमिक एजेंसी है। केंद्रीकृत खरीद प्रणाली के अंतर्गत केंद्रीय पूल के लिए खाद्यान्नों का क्रय एफसीआई या राज्य सरकारों की एजेंसियां (एसजीए) करती हैं। एसजीए खाद्यान्नों की खरीद कर उन्हें भंडारण के लिए एफसीआई को सौंप देती हैं। एसजीए खाद्यान्नों की खरीद में जो खर्च करती हैं वह रकम एफसीआई उन्हें वापस दे देता है। एफसीआई खाद्यान्न का भंडारण करने के अलावा इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए बांटने के लिए जारी भी करता है। इसके अलावा वह अतिरिक्त भंडार को जरूरत पड़ने पर अन्य राज्यों में भेजता है।

एफसीआई गेहूं, चावल और अन्य अनाजों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदता है ताकि किसानों की आय की सुरक्षा हो और पर्याप्त अतिरिक्त भंडार बना रहे। इन अनाजों को गुणवत्ता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वैज्ञानिक रूप से प्रबंधित भंडारगृहों और इस्पात के आधुनिक कक्षों (साइलो) में रखा जाता है। एफसीआई का अतिरिक्त भंडार सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) की रीढ़ की हड्डी है। यह मूल्यों को स्थिर रखने और समूचे साल देशव्यापी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करता है।2

1 जुलाई 2025 की स्थिति के अनुसार केंद्रीय पूल के खाद्यान्नों के भंडारण के लिए एफसीआई और राज्यों की एजेंसियों के पास कुल उपलब्ध बंद और सीएपी भंडारण क्षमता 917.83 लाख मीट्रिक टन की थी।

बंद भंडारण क्षमता यह दिखलाती है कि कुल कितने वजन तक खाद्यान्न गोदामों, भंडारगृहों और इस्पात के कक्षों जैसे छत और दीवारों वाले ढाँचों में रखे जा सकते हैं। सीएपी भंडारण में खाद्यान्न जमीन को ऊँचा कर उस पर रखे जाते हैं। इन्हें सहारा देने के लिए लकड़ी की पेटियों का इस्तेमाल किया जाता है।

 

ख. शीतगृह अवसंरचना

 

शीतगृह अवसंरचना फलों, सब्जियों, दूध उत्पादों, मांस और समुद्री खाद्यों जैसी जल्दी सड़ने वाली सामग्रियों को संरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ये तापमान नियंत्रित शीतगृह ताजगी, गुणवत्ता और पोषक तत्वों को बरकरार रखने में मददगार होते हैं जिससे फसल कटने के बाद का नुकसान घटता है। शीत श्रृंखला अवसंरचना में प्रशीतन पूर्व, तौल, छंटाई, वर्गीकरण, पैकेजिंग, नियंत्रित वातावरण में भंडारण, ब्लास्ट प्रशीतन और रेफ्रिजरेटेड परिवहन की सुविधाएं शामिल हैं। जल्दी सड़ने वाली वस्तुओं को ज्यादा समय तक ताजा बनाए रखने के लिए ये सुविधाएं महत्वपूर्ण हैं। सरकार पीएमकेएसवाई और एआईएफ जैसी विभिन्न योजनाओं और पहलकदमियों के जरिए शीतगृह निर्माण और शीत श्रृंखला परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता मुहैया कराती है। भारत में 30 जून 2025 तक 8815 शीतगृह थे जिनकी कुल क्षमता 402.18 लाख मीट्रिक टन है।

ग. विकेंद्रित भंडारण और पीएसीएस की भूमिका

 

1997-98 में शुरू की गई इस व्यवस्था में राज्य सरकारों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) और अन्य कल्याण योजनाओं के अंतर्गत खाद्यान्नों की सीधी खरीद, भंडारण और वितरण की अनुमति दी गई है। इससे स्थानीय खरीद को बढ़ावा मिलने के साथ ही परिवहन की लागत में कमी आती है और किसी खास क्षेत्र की पसंद के अनुरूप वहां खाद्यान्न वितरण में मदद मिलती है। इस पर राज्यों को होने वाले समूचे खर्च का वहन केंद्र सरकार करती है।

विकेंद्रित भंडारण मुख्य तौर पर पीएसीएस के जरिए किया जाता है। पीएसीएस वास्तव में अल्पकालिक सहकारिता ऋण ढांचे के निचले स्तर की शाखा हैं। उनका ग्रामीण स्तर पर खेती के लिए कर्ज लेने वालों से सीधा ताल्लुक रहता है। वे ऋण देने और उसकी उगाही करने के अलावा वितरण और विपणन का काम भी करती हैं।

इस तंत्र में पीएसीएस की महत्वपूर्ण भूमिका है। गाँव के स्तर पर 500 मीट्रिक टन से 2000 मीट्रिक टन की भंडार क्षमता का विकास कर वे किसानों को घर के नजदीक ही खाद्यान्नों के भंडारण, नुकसान को घटाने और बेहतर मूल्य हासिल करने में सहायता करती हैं। पीएसीएस खरीद केंद्र और उचित मूल्य की दुकान (एफपीएस), दोनों का ही काम करती हैं। इस तरह वे दूरदराज के भंडारगृहों से एफपीएस तक खाद्यान्न ले जाने की जरूरत को दूर कर परिवहन खर्च को घटाती हैं जिससे कार्यकुशलता और बचत सुनिश्चित होती है।

पीएसीएस के कामकाज में सुधार लाने के लिए सरकार ने 2516 करोड़ रुपए की कंप्यूटर प्रचालित प्राथमिक कृषि ऋण समिति परियोजना को मंजूरी दी है। इस परियोजना से पीएसीएस के कामकाज में पारदर्शिता, रिकॉर्ड रखरखाव और कार्यकुशलता में वृद्धि होगी। देश में 30 जून 2025 तक 73492 पीएसीएस का कंप्यूटरीकरण किया जा चुका था। इसके अलावा 5937 नए पीएसीएस पंजीकृत किए गए हैं जिससे उनकी पहुंच और गांव के स्तर पर किसानों की मदद करने की क्षमता का विस्तार होगा।

 

खाद्यान्नों का भंडारण सुदृढ़ करने की योजनाएँए

 

क. कृषि अवसंरचना कोष (एआईएफ)

 

देश भर में कृषि अवसंरचना मजबूत करने के उद्देश्य से मध्यकालिक ऋण सुविधा के तौर पर एआईएफ की शुरुआत 2020 में की गई। इसके तहत कटाई के बाद की प्रबंधन अवसंरचनाओं और कृषि संपदा की व्यावहारिक परियोजनाओं में निवेश के लिए ब्याज में छूट और कर्ज पर गारंटी दी जाती है। यह योजना खेत के नजदीक ही भंडारण और परिवहन सुविधाओं के निर्माण पर केंद्रित है ताकि किसान अपनी उपज को समुचित ढंग से रख सकें। इससे फसल कटाई के बाद होने वाली बरबादी घटेगी, उन्हें बेहतर कीमतें मिल सकेंगी और बिचौलियों पर उनकी निर्भरता में भी कमी आएगी। भंडारगृह, शीतगृह, छंटाई और वर्गीकरण इकाई तथा फसल पकाने के कक्ष जैसी अवसंरचनाओं से व्यापक बाजारों तक पहुंचने की किसानों की क्षमता बढ़ती है। इसके परिणामस्वरूप बेहतर मूल्य मिलने से उनकी आमदनी में बढ़ोतरी होगी है।5

एआईएफ के अंतर्गत सितंबर 2025 तक 1.27 लाख परियोजनाओं के लिए 73155 करोड़ रुपए मंजूर किए गए हैं। इन परियोजनाओं के तहत बनाई जाने वाली अवसंरचनाओं में हजारों भंडारगृह और शीतगृह शामिल हैं। मंजूर की गई इन परियोजनाओं का कुल परियोजना व्यय 1.17 लाख करोड़ रुपए है।

 

. कृषि विपणन अवसंरचना (एएमआई)

 

एएमआई योजना इंटीग्रेटेड स्कीम फॉर एग्रीकल्चरल मार्केटिंग (आईएसएएम) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण भारत में गोदामों और भंडारण गृहों के निर्माण और नवीनीकरण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करके कृषि विपणन के बुनियादी ढांचे को मजबूत करना है।

30 जून 2025 तक, भारत के 27 राज्यों में कुल 49,796 भंडारण अवसंरचना परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। इन परियोजनाओं से कुल 982.94 लाख मीट्रिक टन की भंडारण क्षमता बढ़ेगी और इन योजनाओं को सहायता प्रदान करने के लिए कुल 4,829.37 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी गई है।

 

ग.  प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (पीएमकेएसवाई)

 

यह एक व्यापक योजना है, जिसका उद्देश्य खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के लिए आधुनिक बुनियादी ढांचा बनाना और खेत से लेकर खुदरा बिक्री करने वाले तक एक सुगम और कुशल आपूर्ति श्रृंखला स्थापित करना है। यह योजना किसानों को अपनी उपज का बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद करती है, बर्बादी कम करती है और विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करती है। इसके अलावा  यह योजना खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देने के साथ साथ प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात को भी बढ़ाती है।इस योजना के एक घटक, एकीकृत कोल्ड चेन और मूल्य संवर्धन अवसंरचना के तहत, बागवानी और गैर-बागवानी कृषि उत्पादों की कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने के लिए कोल्ड चेन स्थापित करने के लिए सहायता दी जाती है।

प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना के विभिन्न घटकों के अंतर्गत, योजना की शुरुआत से लेकर जून 2025 तक कुल 1,601 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। इनमें से 1,133 परियोजनाएं अब चालू हैं या पूरी हो चुकी हैं, जिनसे सालाना 255.66 लाख मीट्रिक टन की प्रसंस्करण और भंडारण क्षमता बन गई है।

 

 

. कोल्ड स्टोरेज और बागवानी उत्पादों के लिए पूंजी निवेश सब्सिडी योजना

 

इस योजना का उद्देश्य वैज्ञानिक भंडारण सुविधाओं को बढ़ावा देना और जल्दी खराब होने वाले कृषि उत्पादों के कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करना है। इस योजना के तहत, सामान्य क्षेत्रों में कोल्ड स्टोरेज और "नियंत्रित वातावरण" भंडारण के निर्माण, विस्तार या आधुनिकीकरण के लिए परियोजना लागत की 35% और पूर्वोत्तर, पहाड़ी और अनुसूचित क्षेत्रों में 50% ऋण-संबद्ध बैक-एंडेड सब्सिडी दी जाती है। यह सब्सिडी 5,000 मीट्रिक टन से लेकर 20,000 मीट्रिक टन तक की क्षमता वाले भण्डार गृहों के लिए उपलब्ध है। यह पहल किसानों और उद्यमियों को भंडारण में सुधार, उत्पाद की शेल्फ लाइफ बढ़ाने, बेहतर मूल्य प्राप्त करने और बागवानी मूल्य श्रृंखला को मजबूत बनाने में मदद करती है।

 

च.  सहकारी क्षेत्र में भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए दुनिया की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना

 

सरकार ने मई 2023 में आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप सहकारी क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ा अनाज भंडारण योजना को मंजूरी दी। इस योजना में प्राथमिक कृषि ऋण समिति (पीएसीएस) स्तर पर कृषि बुनियादी ढांचे का निर्माण शामिल है, जिसमें गोदाम, कस्टम हायरिंग सेंटर, प्रसंस्करण इकाइयां और उचित मूल्य की दुकानें शामिल हैं। यह योजना सरकार की मौजूदा योजनाओं जैसे कृषि बुनियादी अवसंरचना  कोष, कृषि विपणन बुनियादी ढांचा योजना, कृषि मशीनीकरण उप-मिशन, प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम औपचारिकरण योजना आदि के साथ लागू की जा रही है। इस एकीकरण के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं:

  • विकेंद्रीकृत भंडारण को बढ़ावा देना और केंद्रीकृत खरीद पर निर्भरता कम करना।
  • पक्के किराये के माध्यम से पीएसीएस गोदामों का साल भर उपयोग सुनिश्चित करना।
  • पीएसीएस की वित्तीय स्थिति में सुधार करना और उन्हें आत्मनिर्भर ग्रामीण संस्थाओं के रूप में विकसित होने में सक्षम बनाना।
  • अनाज की अंतिम वयक्ति तक डिलीवरी को बेहतर बनाना और फसल के बाद होने वाले नुकसान को कम करना।

इस योजना के पायलट प्रोजेक्ट के तहत, अगस्त 2025 तक 11 राज्यों में 11 प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ (पीएसीएस) में गोदामों का निर्माण पूरा हो जाएगा। इसके अलावा, नए गोदामों के निर्माण के लिए 500 से अधिक पीएसीएस की पहचान की गई है। इस विस्तार का उद्देश्य पीएसीएस की कार्यक्षमता और आय बढ़ाना तथा उन्हें मल्टी-सर्विस सेंटर में बदलना है।

 

छ. भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए योजनाएं

 

आधुनिक भंडारण के लिए स्टील साइलो का निर्माण: इस पहल का उद्देश्य वैज्ञानिक तरीके से भंडारण सुनिश्चित करना, फसल के बाद होने वाले नुकसान को कम करना और बल्क हैंडलिंग वाले स्टील साइलो के उपयोग को बढ़ावा देकर खाद्य सुरक्षा को मजबूत करना है। इस अत्यधिक स्वचालित और आधुनिक तरिके के तहत निगरानी वाले वातावरण में अनाज को बहुत बड़ी मात्रा में स्टोर किया जाता है और लोडिंग व अनलोडिंग के लिए मशीनीकृत सिस्टम का उपयोग किया जाता है। ऐसे नियंत्रित वातावरण से न केवल अनाज का संरक्षण बेहतर होता है, बल्कि उनकी शेल्फ लाइफ भी काफी बढ़ जाती है, जिससे भंडारण अधिक कुशल और भरोसेमंद हो जाता है। सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की साझेदारी (पीपीपी) मॉडल में साइलो का निर्माण: 30 जून, 2025 तक, 48 जगहों पर 27.75 एलएमटी क्षमता वाले साइलो बनकर तैयार हो चुके हैं और उनका उपयोग भी शुरू हो गया है। 87 जगहों पर 36.875 एलएमटी क्षमता वाले साइलो का निर्माण किया जा रहा है। इसके आलावा 54 जगहों पर 25.125 एलएमटी क्षमता वाले साइलो के लिए टेंडर प्रक्रिया जारी है।

 

परिसंपत्ति मुद्रीकरण: इस पहल के तहत, भारतीय खाद्य निगम (ऍफ़सीआई)  की खाली ज़मीन पर नए गोदाम बनाए जाएंगे, ताकि अतिरिक्त भंडारण क्षमता बढ़ाई जा सके और कम इस्तेमाल हो रही संपत्तियों का बेहतर उपयोग किया जा सके। जुलाई 2025 तक 177 जगहों की पहचान की गई है, जहां 17.47 एलएमटी  क्षमता वाले गोदाम बनाए जा सकते हैं।

 

केंद्रीय क्षेत्र की योजना भंडारण और गोदाम (पूर्वोत्तर पर विशेष ध्यान): सरकार इस योजना को उत्तर-पूर्वी राज्यों, हिमाचल प्रदेश, झारखंड और केरल में स्टोरेज क्षमता बढ़ाने के लिए लागू करती है। यह योजना 2025 तक लागू रहेगी जिसके लिए उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए 379.50 करोड़ रुपये और अन्य राज्यों के लिए 104.58 करोड़ रुपये का वित्तीय आवंटन किया गया है। अब तक, पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए 379.50 करोड़ रुपये और पूर्वोत्तर क्षेत्र के अलावा अन्य क्षेत्रों के लिए 104.58 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं।

 

निजी उद्यम गारंटी(पीइजी ) योजना: 2008 में शुरू की गई यह योजना स्टोरेज की दिक्कतों को दूर करने और अनाज के सुरक्षित भंडारण को सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई थी। पीपीपी मॉडल के अंतर्गत लागू इस योजना में सरकार तय समय के लिए भंडारण क्षमता किराए पर लेने की गारंटी देती है, जिससे भंडारण के क्षेत्र में वैज्ञानिक ढंग से किये जाने वाले निजी निवेश को बढ़ावा मिलता है और देश की खाद्य सुरक्षा अवसंरचना मजबूत होती है।

 

निष्कर्ष

 

कृषि भारत की जीवनरेखा है, जो लाखों लोगों को भोजन उपलब्ध कराती है, उनकी आजीविका का साधन बनती है और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। रिकॉर्ड स्तर पर अनाज उत्पादन भारत की कृषि क्षमता को दर्शाता है, लेकिन कुशल भंडारण और वितरण यह सुनिश्चित करता है कि अनाज का हर दाना उपभोक्ता तक पहुंचे। खाद्य सुरक्षा के लिए अनाज का उत्पादन और भंडारण बहुत ज़रूरी है। बढ़ती आबादी और बदलते मौसम को देखते हुए, साल भर अनाज की उपलब्धता और कीमतों में स्थिरता बनाए रखने के लिए पर्याप्त भंडार गृह, भंडारण सुविधाओं में सुधार और फसल के बाद होने वाले नुकसान को कम करना आवश्यक है। इस प्रकार, अनाज सिर्फ फसलें नहीं हैं, बल्कि वे कृषि विकास, ग्रामीण आय और वैश्विक खाद्य प्रणाली की रीढ़ हैं।

संदर्भ

उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय

https://sansad.in/getFile/loksabhaquestions/annex/185/AU4468_koies7.pdf?source=pqals

https://sansad.in/getFile/loksabhaquestions/annex/185/AU2925_wt7OY2.pdf?source=pqals

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कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय

https://dfpd.gov.in/scheme/en

https://agriinfra.dac.gov.in/Home/Dashboard

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https://sansad.in/getFile/loksabhaquestions/annex/185/AU273_QNtGUE.pdf?source=pqals

https://static.pib.gov.in/WriteReadData/specificdocs/documents/2021/dec/doc2021121721.pdf

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सहकारिता मंत्रालय

https://www.cooperation.gov.in/index.php/en/about-primary-agriculture-cooperative-credit-societies-pacs

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https://sansad.in/getFile/loksabhaquestions/annex/185/AU4294_L70M1K.pdf?source=pqals

https://sansad.in/getFile/loksabhaquestions/annex/185/AS225_nsgLve.pdf?source=pqals

 

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय

https://pmfme.mofpi.gov.in/pmfme/#/Home-Page

 

एफएसएसएआई

https://www.fssai.gov.in/upload/uploadfiles/files/5_%20Chapter%202_4%20%28Cereals%20and%20Cereal%20products%29.pdf

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