रक्षा मंत्रालय
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भविष्य के लिए तैयार भारतीय अकादमिक रक्षा इकोसिस्टम के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण के साथ, त्रि-सेवा अकादमिक प्रौद्योगिकी संगोष्ठी (टी-सैट्स) का समापन

Posted On: 23 SEP 2025 8:28PM by PIB Delhi

पहली त्रि-सेवा अकादमिक प्रौद्योगिकी संगोष्ठी (टी-सैट्स) 23 सितंबर, 2025 को मानेकशॉ सेंटर, नई दिल्ली में संपन्न हुई। यह दो दिवसीय संगोष्ठी एक ऐतिहासिक पहल है, जिसका उद्देश्य सेवा-अकादमिक अनुसंधान एवं विकास इकोसिस्टम में समन्वय स्थापित करना है। शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान ने समापन समारोह की अध्यक्षता की, जिसमें रक्षा राज्य मंत्री श्री संजय सेठ और थल सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने भाग लिया। इस संगोष्ठी ने सशस्त्र बलों, अकादमिक जगत और अनुसंधान संस्थानों के शीर्ष बुद्धिजीवियों को स्वदेशी रक्षा अनुसंधान और नवाचार को गति देने के लिए एक साझा मंच प्रदान किया। इसने अकादमिक जगत, विशेषकर विद्वानों और नवोन्मेषियों को अपने शोध अध्ययन और नवाचार प्रस्तुत करने और उनके संभावित सैन्य उपयोग की पहचान करने का अवसर प्रदान किया।

दूसरे दिन के मुख्य अतिथि श्री धर्मेंद्र प्रधान ने रक्षा संबंधी नवाचारों में अकादमिक जगत की अपार संभावनाओं को प्रदर्शित करने वाली अनुसंधान एवं विकास प्रदर्शनी की सराहना की। उन्होंने चुनिंदा परियोजना प्रस्तावों और प्रदर्शों की सराहना की और दस आशाजनक परियोजना प्रस्तावों की भी घोषणा की, जिन्हें अनुसंधान एवं विकास के लिए शामिल किया जाएगा।

मुख्य भाषण देते हुए, श्री धर्मेंद्र प्रधान ने भारत के युवाओं और अकादमिक जगत पर भरोसा जताने के लिए सशस्त्र बलों की सराहना की और कहा कि यह साझेदारी अनुसंधान को वास्तविक रक्षा अनुप्रयोगों में बदल रही है। उन्होंने वैश्विक नवाचार रैंकिंग में भारत की तीव्र वृद्धि, अंतर्राष्ट्रीय सूची में विश्वविद्यालयों का विस्तार और अनुसंधान व्यय में दोगुनी वृद्धि को बढ़ती राष्ट्रीय क्षमता के संकेतक के रूप में रेखांकित किया। उन्होंने रक्षा आयात से निर्यात की ओर भारत के बदलाव को रेखांकित किया, जहाँ ऑपरेशन सिंदूर जैसी उपलब्धियाँ, डीआरडीओ और इसरो की सफलताएँ स्वदेशी नवाचार की शक्ति को प्रदर्शित करती हैं। उन्होंने राष्ट्रीय शक्ति और आत्मनिर्भरता के लिए अकादमिक जगत, उद्योग और सशस्त्र बलों से एक वार्षिक तंत्र के रूप में इस सहयोग को जारी रखने का आह्वान किया।

रक्षा राज्य मंत्री श्री संजय सेठ ने अपने संबोधन में इस बात पर प्रकाश डाला कि त्रि-सेवा अकादमिक तकनीकी संगोष्ठी ने सशस्त्र बलों की परिचालन आवश्यकताओं के लिए प्रौद्योगिकियों के विकास हेतु हमारी वैज्ञानिक प्रतिभा की अपार क्षमता को रेखांकित किया है। इस बात पर ज़ोर देते हुए कि 2025 को सुधारों का वर्ष घोषित किया गया है, उन्होंने सरल खरीद और मज़बूत एकीकृत थिएटर कमांड के साथ-साथ एआई, साइबर, रोबोटिक्स, हाइपरसोनिक्स और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के माध्यम से सेनाओं के आधुनिकीकरण की पहलों को रेखांकित किया। ऑपरेशन सिंदूर और आई डेक्स कार्यक्रम जैसी सफलता की कहानियों का उल्लेख करते हुए, उन्होंने रक्षा उत्पादन में भारत की तीव्र वृद्धि का उल्लेख किया, जिसमें एमएसएमई और स्टार्ट-अप्स महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने शिक्षा जगत, उद्योग जगत और सशस्त्र बलों से आह्वान किया कि वे चर्चाओं को साहसिक कार्यों में बदलें, जिससे भारत भविष्य के लिए तैयार हो सके और अपनी शक्ति, प्रगति और आत्मनिर्भरता के लिए विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त कर सके।

थल सेना प्रमुख, जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने अपने संबोधन में, विशिष्ट प्रौद्योगिकियों में निवेश की आवश्यकता पर बल दिया और शिक्षा जगत - सैन्य सहयोग की अप्रयुक्त क्षमता पर प्रकाश डाला। उन्होंने नए लॉन्च किए गए पोर्टल (www.tsats.org.in) को मिली उत्साहजनक प्रतिक्रिया का उल्लेख किया, जिसमें लगभग 450 प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं, जिनमें से 40% तीनों सेनाओं के विषय विशेषज्ञों के साथ व्यक्तिगत मार्गदर्शन के लिए चुने गए हैं। मिशन-संचालित अनुसंधान के महत्व पर ज़ोर देते हुए, उन्होंने नवाचार, जिनमें टियर-2 और टियर-3 संस्थान भी शामिल हैं, को बढ़ावा देने के लिए प्रौद्योगिकी समूहों, इंटर्नशिप कार्यक्रमों और रक्षा इनक्यूबेशन प्रकोष्ठों के निर्माण पर ज़ोर दिया।

कार्यक्रम के दूसरे दिन "भविष्य के रक्षा प्रौद्योगिकी इकोसिस्टम और प्रौद्योगिकियों का निर्माण" विषय पर एक पैनल चर्चा हुई, जिसका संचालन सेना डिज़ाइन ब्यूरो के अपर महानिदेशक ने किया। चर्चा में अनुसंधान एवं विकास प्रक्रिया और कार्यप्रणालियों से जुड़ी मौजूदा चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया। इसमें अकादमिक जगत और सशस्त्र बलों के बीच एक संरचना युक्त, परिणाम-संचालित साझेदारी स्थापित करने, विशिष्ट प्रौद्योगिकियों का विकास करने और रक्षा अनुप्रयोगों के लिए दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकियों को यथासंभव शीघ्रता से अनुकूलित करने के उपायों पर विचार किया गया।

शिक्षा मंत्री द्वारा तीनों सेनाओं की तकनीकी चुनौती संग्रह (सीटीसी) भी जारी किया गया। सीटीसी में भविष्य की सैन्य अनुप्रयोगों वाली भविष्य की प्रौद्योगिकी/उपकरणों की आवश्यकताओं पर प्रकाश डाला गया है। रक्षा नवाचार इकोसिस्टम से प्रतिक्रियाएँ आमंत्रित की गई हैं और चयनित प्रतिक्रियाओं की उच्चाधिकार प्राप्त चयन समितियों द्वारा समीक्षा

की जाएगी और इन्हें उपयुक्त अनुसंधान एवं विकास योजनाओं के माध्यम से परियोजनाओं के रूप में आगे बढ़ाया जाएगा।

इस संगोष्ठी ने सतत अकादमिक-रक्षा सहयोग की एक मज़बूत नींव रखी है, जिससे नवाचार का वास्तविक परिचालन क्षमताओं के रूप में परिवर्तित होना सुनिश्चित हुआ है। यह एक महत्वपूर्ण आयोजन है, जो आने वाले वर्षों में राष्ट्रीय सुरक्षा और आत्मनिर्भरता के लिए परिवर्तनकारी परिणाम प्रदान करता रहेगा।

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पीके/केसी/जेके


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