विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
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वैश्विक स्तर पर 121 जैव-कंपनियों में से 21 अब भारत की : डॉ. जितेंद्र सिंह


भारत का 21 नए जैव-सक्षम सुविधा केन्द्रों के साथ जैव-निर्माण में वैश्विक नेतृत्व का लक्ष्य : डॉ. जितेंद्र सिंह

जैव प्रौद्योगिकी आत्मनिर्भर भारत को गति देगी, रोज़गार सृजन करेगी और आयात पर निर्भरता कम करेगी : डॉ. जितेंद्र सिंह

उद्योग, शिक्षा जगत और सरकार जैव-निर्माण को आगे बढ़ाने के लिए हाथ मिला रहे हैं

Posted On: 01 SEP 2025 5:34PM by PIB Delhi

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी; पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) तथा प्रधानमंत्री कार्यालय, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बायोई3 (अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार के लिए जैव प्रौद्योगिकी) नीति के अंतर्गत उच्च-निष्पादन करने वाले जैव-विनिर्माण प्लेटफार्मों को लॉन्च किया। उन्होंने इस पहल को भारत को जैव-प्रौद्योगिकी-आधारित विकास के वैश्विक हब के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।

इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में जैव-प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) और बीआईआरएसी द्वारा उद्योग जगत के हितधारकों के साथ एक संवादमूलक बैठक को संबोधित करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, "अब वैश्विक स्तर पर 121 जैव-कंपनियों में से 21 भारत की हैं। यह उस देश के लिए कोई छोटी उपलब्धि नहीं है जो कभी दूसरों का अनुसरण करता था; आज, हम जैव-विनिर्माण नीति को संस्थागत रूप देने वाले अग्रणी देशों में से हैं।"

डॉ. सिंह ने कहा कि जैव-विनिर्माण पर सरकार का फोकस भारत को महत्वपूर्ण क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनाने और आयात पर निर्भरता कम करने के एक व्यापक विजन का हिस्सा है। उन्होंने कहा, "बायोएनेबलर्स भारत में जैव प्रौद्योगिकी-आधारित विकास की अगली लहर की नींव हैं। विश्व स्तरीय प्लेटफ़ॉर्म, टूल्स और बुनियादी ढांचा प्रदान करके, बायोएनेबलर्स हमारे वैज्ञानिकों, स्टार्टअप्स और उद्योग को विचारों से नवोन्मेषणों और प्रयोगशालाओं से बाज़ारों तक तेज़ी से आगे बढ़ने में सक्षम बनाते हैं।"

लॉन्च किए गए ये नए प्लेटफ़ॉर्म देश भर में 21 उन्नत बायो-सक्षम सुविधा केन्द्रों को एक साथ लाते हैं। ये सुविधा केन्द्र स्टार्टअप्स, लघु एवं मध्यम उद्यमों, उद्योगों और शैक्षणिक संस्थानों को प्रौद्योगिकियों का परीक्षण, परिमाण और व्यावसायीकरण करने के लिए साझा बुनियादी ढांचा प्रदान करेंगे। इनके कार्यक्षेत्र में माइक्रोबियल बायोमैन्युफैक्चरिंग, स्मार्ट प्रोटीन, टिकाऊ कृषि, कार्यात्मक खाद्य पदार्थ, कार्बन कैप्चर, समुद्री जैव प्रौद्योगिकी और अगली पीढ़ी की कोशिका एवं जीन थेरेपी शामिल हैं।

भारत की हाल की प्रगति को रेखांकित करते हुए डॉ. सिंह ने कहा कि देश की जैव अर्थव्यवस्था लगभग 10 अरब डॉलर से बढ़कर आज लगभग 100 अरब डॉलर हो गई है, और आने वाले वर्षों में इसे 300 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य है। उन्होंने बायोटेक स्टार्टअप्स के विस्तार पर भी बल दिया, जिनकी संख्या एक दशक पहले के 50 से बढ़कर आज 13,000 से अधिक हो गई है और जिन्हें बीआईआरएसी के तहत लगभग 100 इनक्यूबेटरों का समर्थन प्राप्त है। डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, "विश्वभर की 121 बायो-कंपनियों में से 21 अब भारत में हैं। यह उस देश के लिए कोई छोटी उपलब्धि नहीं है जो कभी दूसरों का अनुसरण करता था; आज, हम जैव-विनिर्माण नीति को संस्थागत रूप देने वाले अग्रणी देशों में से हैं।"

डॉ. सिहं ने इन पहलों को भारत के व्यापक कार्यनीतिक लक्ष्यों से जोड़ा और बताया कि जैव-विनिर्माण न केवल स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण में नवोन्मेषण को बढ़ावा देती है, बल्कि पेट्रोलियम आयात को कम करने और देश की भू-राजनीतिक स्थिति को मज़बूत करने में भी योगदान देती है। उन्होंने कहा कि 1990 के दशक की आईटी की तरह ही "बीटी" (बायो-टेक्नोलॉजी) आने वाले दशकों में भारत की विकास गाथा का बहुत महत्वपूर्ण शब्द बनने के लिए तैयार है।

जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. राजेश एस. गोखले ने इस लॉन्च को एक "अग्रणी कदम" बताया जो वैश्विक जैव अर्थव्यवस्था में भारत के नेतृत्व को गति देगा और विभिन्न सेक्टरों में स्थायी समाधान संभव बनाएगा।

घोषित सुविधा केन्द्रों में विशिष्ट रसायनों के लिए प्रायोगिक स्तर के संयंत्र, कार्यात्मक खाद्य पदार्थों और औषधि मध्यवर्तियों के लिए फर्मेंटेशन हब, जीन डिलीवरी वेक्टर के लिए जीएमपी-ग्रेड सुविधाएं और मोनोक्लोनल एंटीबॉडी, एंजाइम और एमआरएनए-आधारित उत्कृष्ट दवाओं के लिए अत्याधुनिक व्यवस्थाएं शामिल हैं।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने हितधारकों और युवाओं को जोड़ने के लिए सशक्त संचार और लोकसंपर्क के महत्व पर भी ज़ोर दिया  और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अपने स्वतंत्रता दिवस संबोधन में बायोई3 नीति का उल्लेख किए जाने का स्मरण किया। उन्होंने कहा कि इस तरह की स्पष्टता भारत के भविष्य को आकार देने में जैव प्रौद्योगिकी के महत्व का संकेत देती है।

डॉ. सिंह ने कहा कि जब भारत अपनी स्वतंत्रता की शताब्दी की ओर अग्रसर है, जैव प्रौद्योगिकी "विकसित भारत" विजन की आधारशिला होगी। उन्होंने कहा, "जिस तरह आईटी एक समय एक प्रचलित शब्द बन गया था, उसी तरह जैव प्रौद्योगिकी आने वाले दशकों का पथप्रदर्शक होगी।"

इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले उद्योग जगत के अग्रणी व्यक्तियों और अनुसंधानकर्ताओं ने सीएआर-टी सेल थेरेपी, एमआरएनए प्लेटफॉर्म, समुद्री बायोफाउंड्री, सिंथेटिक बायोलॉजी और प्रोबायोटिक्स जैसी अग्रणी प्रौद्योगिकियों को सक्षम बनाने में सरकार समर्थित सुविधा केन्द्रों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया। कई उद्यमियों ने कहा कि डीबीटी और बीआईआरएसी से शुरुआती चरण का समर्थन उन्हें "ब्रेक" देने में सहायक रहा है, लेकिन दीर्घकालिक स्थिरता मजबूत नैदानिक ​​​​मान्यता, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और निजी निवेश पर निर्भर करेगी। उन्होंने वेक्टर और प्लास्मिड के व्यापक स्तर पर स्वदेशी उत्पादन की कमी, प्रोबायोटिक्स के लिए नियामकीय बाधाओं और जैव-निर्माण ईकोसिस्टम में मैरीन तथा सामुद्रिक अर्थव्यवस्था के अवसरों के अधिक एकीकरण की आवश्यकता जैसी चुनौतियों की ओर इंगित किया।

सुझावों का जवाब देते हुए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि बीआईआरएसी की भूमिका आरंभिक  सहायता प्रदान करना है, लेकिन उद्योग को टिके रहने और विस्तार करने के लिए अंततः वैश्विक साझेदारों और निवेशकों को आकर्षित करना होगा। उन्होंने कंपनियों से दोहराव से आगे देखने और अगली पीढ़ी की प्रौद्योगिकियों जैसे उन्नत सीएआर-टी, तंत्रिका संबंधी विकारों के लिए भविष्य की चिकित्सा और समुद्री जैव प्रौद्योगिकी में नेतृत्व का लक्ष्य रखने का आग्रह किया। डॉ. सिंह ने यह सुनिश्चित करने के लिए कि जैव-विनिर्माण के परिणाम प्रमाणित और  मान्य हों तथा व्यापक रूप से अपनाए जाएं, उन्होंने शिक्षा-उद्योग के बीच घनिष्ठ संबंध, विषय-वस्तु आधारित कार्यक्रम तथा मजबूत संचार कार्यनीतियों की भी अपील की।

इस कार्यक्रम में बीआईआरएसी के प्रबंध निदेशक डॉ. जितेंद्र कुमार सहित वैज्ञानिक सलाहकार और शिक्षा जगत तथा उद्योग के प्रतिनिधियों तथा डीबीटी एवं बीआईआरएसी के वरिष्ठ अधिकारियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्होंने भारत की जैव-अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने वाले सहयोगात्मक प्रयास पर जोर देते हुए उभरते जैव-विनिर्माण हबों पर अंतर्दृष्टि साझा की।

 

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पीके/केसी/एसकेजे/एमपी


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