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कुशोकबकुला: राजनयिक भिक्षु जिन्होंने मंगोलिया में बुद्ध धम्म का पुनरुत्‍थान किया

Posted On: 27 AUG 2025 8:00PM by PIB Delhi

कुशोकबकुला रिनपोछे पर एक अग्रणी वृत्तचित्र का प्रीमियर 27 अगस्त 2025 को शाम 6:00 बजे इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (आईआईसी), नई दिल्ली में हुआ। ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. हिंडोल सेनगुप्ता द्वारा निर्देशित इस फिल्म में उस बौद्ध भिक्षु और राजनयिक को श्रद्धांजलि दी गई है जिसने आधुनिक लद्दाख को आकार देने और मंगोलिया में बौद्ध धर्म के पुनरुत्‍थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारत में मंगोलिया के राजदूत श्री गनबोल्ड दंबजाव थे और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी) के महानिदेशक श्री अभिजीत हलदर विशिष्ट अतिथि थे और इस कार्यक्रम में वीडियो संदेश के माध्यम से शामिल हुए। स्क्रीनिंग के बाद प्रो. सेनगुप्ता और आईबीसी के निदेशक (शैक्षणिक) प्रो. रवींद्रपंथ के बीच वार्तालाप हुआ।

कुशोकबकुला रिनपोछे ने लद्दाख के स्पितुक में पेथुप गोम्पा के आध्यात्मिक प्रमुख के रूप में कार्य किया और उनके अनुयायी उन्हें बुद्ध अमिताभ के अवतार के रूप में पूजते हैं। उनका मानना ​​है कि वे मूल सोलह अर्हतों में से एक थे-जो बुद्ध के करीबी शिष्य थे और उनका दावा है कि उनके पिछले 19 अवतारों का विवरण तिब्बती धर्मग्रंथ नयतनचगचोट में दर्ज है

इस वृत्तचित्र में रिनपोछे की उल्लेखनीय यात्रा का वर्णन किया गया है, जिसमें स्वतंत्रता के बाद लद्दाखी युवाओं को अपनी भूमि की रक्षा के लिए संगठित करने के उनके शुरुआती दिनों से लेकर दस वर्षों तक मंगोलिया में भारत के राजदूत के रूप में उनकी परिवर्तनकारी भूमिका तक शामिल है। उनके प्रयासों ने साम्यवाद के पतन के बाद इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म का पुनरुत्‍थान करने में सहायता की, जिसमें उलानबटार में एक मठ का निर्माण भी शामिल है, जो लद्दाख में उनके द्वारा स्थापित मठ के समान था। राष्ट्राध्यक्षों सहित असंख्य अनुयायियों के साथ, उनका प्रभाव अपार था।

इस फिल्म में जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी तक, भारत के राजनीतिक नेतृत्व के साथ रिनपोछे के गहरे संबंधों को भी दर्शाया गया है। इसने एक ऐसे व्यक्तित्‍व का चित्रण प्रस्तुत किया जिसका प्रभाव सीमाओं से परे था और जिसने दो देशों के आध्यात्मिक और राजनीतिक परिदृश्य को आकार दिया। इस प्रभावशाली कथा को सिनेमैटोग्राफर कोटेश्वर राव ने जीवंत किया और ग्रिन मीडिया के ऋषि सूरी ने इसका निर्माण किया।

भारत में मंगोलिया के राजदूत श्री गनबोल्ड दंबजाव ने कहा कि कुशोकबकुला रिनपोछे एक महान व्यक्ति थे। उन्होंने 11 वर्षों तक मंगोलिया में भारत के राजदूत के रूप में कार्य किया। उन्‍होंने बताया कि एक युवा विद्वान के रूप में उन्‍हें मंगोलिया के विभिन्न स्‍थलों की उनकी यात्राओं में उनके साथ जाने का अवसर मिला। श्री गनबोल्ड दंबजाव ने कहा कि उन्‍हें कुशोकबकुला का आशीर्वाद प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मंगोलिया के परिवर्तन के समय में उनकी उपस्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण थी। उनकी उपस्थिति और आशीर्वाद के कारण, मंगोलिया ने एक शांतिपूर्ण परिवर्तन का अनुभव किया। हम ऐसे कठिन और परिवर्तनकारी समय में उन्हें भेजने के लिए भारत के लोगों और सरकार के आभारी हैं। रिनपोछे के कारण ही मंगोलिया में बौद्ध धर्म की पुनरुत्‍थान हुआ है।

उन्होंने कहा है लोग आमतौर पर प्रधानमंत्रियों की प्रतीक्षा करते हैं, हालांकि, मंगोलिया में यह बिल्कुल विपरीत था। अपने कार्यकाल के दौरान, हमारे राष्ट्रपति बेसब्री से रिनपोछे के आगमन की प्रतीक्षा करते थे। भारत में मंगोलिया के राजदूत ने ऐसे विशिष्‍ट राजदूत को भेजने के लिए भारत सरकार के प्रति गहरा आभार व्यक्त किया। उन्‍होंने कहा कि यूएसएसआर के तहत 70 वर्षों के रक्तपात के बाद, बौद्ध धर्म  का पुरुत्‍थान होने लगा और उस समय, मंगोलिया को वास्तव में बकुला रिनपोछे के मार्गदर्शन की आवश्यकता थी। आईबीसी के महानिदेशक श्री अभिजीत हलदर ने कहा कि वे प्रोफेसर हिंडोल सेनगुप्ता, निर्माता ऋषि सूरी और उन सभी फिल्म निर्माताओं के प्रयासों की गहराई से सराहना करते हैं जिन्होंने कुशक बकुला रिनपोछे की विरासत को पर्दे पर उतारा। उन्‍होंने कहा कि वे 1990 से कुशक बकुला रिनपोछे से जुड़ा हूं, जब वह एक युवा अधिकारी थे, तब उन्होंने कुछ समय के लिए मास्को में भारत के दूतावास का दौरा किया था। तब से 35 वर्ष हो गए हैं और वह उनकी विरासत को जीवित रखने की कोशिश करते हैं।

उन्होंने कहा कि हमने बकुला रिनपोछे की मूर्तियां कलमीकिया, बुरातिया, थुवा और मंगोलिया भेजीं और दो सेंट पीटर्सबर्ग एवं मॉस्को भेजीं। उन्‍होंने आभार जताते हुए कहा कि रिनपोछे आज भी हमारी आध्यात्मिक छवि का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेह में शांति स्तूप, जो जापान और भारत के बौद्ध भिक्षुओं के सहयोग से 1983 में बनाया गया था।

फिल्म में दिखाए गए मंगोलिया के पूर्व राष्ट्रपति नम्बरीन एनखबयार ने कहा कि वह उन्‍हें  महात्मा गांधी की याद दिलाते हैं। उन्‍होंने गांधीजी के बारे में बहुत कुछ पढ़ा है। बकुला भी उनकी तरह एक दूरदर्शी व्यक्ति थे। उन्होंने मंगोलों के ह्दयों पर विजय प्राप्त की। मंगोलिया में बुद्ध दिवस मनाना एक भूली हुई परंपरा बन गई थी, लेकिन बकुला ने हमें इसके महत्व की याद दिलाई। इतने वर्षों के भुला दिए जाने के बाद बुद्ध दिवस का पहला उत्सव फिर से आयोजित किया गया। अब, संसद ने आधिकारिक रूप से बुद्ध दिवस मनाने का प्रस्ताव पारित कर दिया है।

फिल्म में दिखाए गए अगलागबुटील मठ के लामा पुरेवबत ने भारत में थंगका चित्रकला सीखी, जबकि शिरेन्देव दोरलिग ने वहीं ध्यान का अध्ययन किया। आज, मंगोलिया विपश्यना साधना के लिए प्रसिद्ध है और दोनों ही व्यक्ति इसे संभव बनाने का श्रेय कुशकबकुला को देते हैं।

बकुला ही थे जिन्होंने उन्हें भारत भेजा—वे इस बात को गहराई से समझते थे कि सिद्धांत और व्यवहार का साथ-साथ चलना ज़रूरी है। इसी तरह उन्होंने ज्ञान और अनुभव के समन्वय से लोगों को प्रेरित करके समाज की सेवा की। यही कारण है कि कई लोग भारत आए, जिनमें प्रसिद्ध ध्यान गुरु सिरिंदे भी शामिल थे।

कुशकबकुला रिनपोछे की जीवनी के लेखक सोनम वांगचुक ने फ़िल्म में अर्हतबकुला के बारे में विचार व्‍यक्‍त किए हैं, जिनकी पुनः पूजा होने लगी, क्योंकि भविष्यवाणी की गई थी कि बकुला का एक अवतार प्रकट होगा। उस समय जब सोवियत संघ के प्रभाव के कारण बौद्ध धर्म का पतन हो रहा था, कुशकबकुला रिनपोछे के आगमन ने कई लोगों को यह विश्वास दिलाया कि भविष्यवाणी सच हो गई है।

फिल्म में जानकारी दी गई है कि किसी राजनयिक के लिए एक देश में लंबे समय तक सेवा करना असाधारण है—आमतौर पर, अधिकतम अवधि लगभग तीन वर्ष होती है। हालांकि, कुशकबकुला मंगोलिया में काफी लंबे समय तक रहे और 1993 में बुद्ध के पवित्र अवशेषों को वहां ले आए। वे एक अद्वितीय बौद्ध गुरु थे—उनके योगदान को केवल कूटनीति के चश्मे से नहीं समझा जा सकता। वे एक सच्चे आध्यात्मिक गुरु थे।

आईबीसी धम्मपिया के पूर्व महासचिव ने कहा कि बकुला ने धम्म की शक्ति से रूस, मंगोलिया और भारत के बीच मैत्री सेतु का काम किया। मंगोलिया में भारत के पूर्व राजदूत श्री एमपी सिंह ने कुशोकबकुला रिनपोछे के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए मंगोलिया स्थित भारतीय दूतावास में उनके द्वारा प्रयुक्त प्रार्थना कक्ष को यथावत रखा है। उन्होंने कहा कि कुशोकबकुला रिनपोछे के योगदान ने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय और आर्थिक संबंधों को मज़बूत किया।

फिल्म प्रदर्शन के बाद प्रोफ़ेसर सेनुप्ता और प्रोफ़ेसर रवींद्रपंथ के बीच वार्तालाप हुआ। प्रोफ़ेसर सेनगुप्ता ने प्रोफ़ेसर पंथ का स्वागत किया, जिन्होंने उन्हें बधाई देते हुए कहा कि जहां कहीं भी बुद्ध धम्म विद्यमान है, आईबीसी वहां अपना सहयोग देने के लिए उपस्थित है। प्रोफ़ेसर पंथ ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र ने पहले ही वेसाक को संयुक्त राष्ट्र दिवस (यूएनडीवी) के रूप में मान्यता दे दी है, जो बुद्ध की शिक्षाओं की सार्वभौमिक प्रासंगिकता की पुष्टि करता है। उदाहरण के लिए, विपश्यना हमें आत्म-अवलोकन और आत्मनिरीक्षण के माध्यम से वस्‍तुओं को उनके वास्तविक स्वरूप में देखना सिखाती है। आंखें बंद करके और भीतर की ओर मुड़कर, व्यक्ति स्पष्ट रूप से देखना शुरू कर देता है। बौद्ध धर्म और विपश्यना दोनों ही सभी के लिए हैं, जो ज्ञान और आंतरिक शांति का शाश्वत मार्ग प्रदान करते हैं।

उन्होंने कहा कि कुशोकबकुला समाज के लिए एक अभ्यासशील भिक्षु थे। उन्होंने दोहराया कि रिनपोछे का संदेश था कि धम्म का अभ्यास व्यक्तिगत रूप से किया जाना चाहिए और परंपरा और अभ्यास को एकीकृत करके इसे लोगों तक पहुंचाया जाना चाहिए। यह संदेश सभी तक पहुंचना चाहिए ताकि वे स्वयं को शुद्ध बना सकें और दूसरों को भी प्रेरित कर सकें।

संवादात्मक चर्चा का समापन एक श्रोता द्वारा अपने अनुभव साझा करने के साथ हुआ, जो रिनपोछे को बचपन से जानती थीं और उनके निधन से ठीक एक महीने पहले उनसे मिली थीं। उन्होंने बताया कि उनके द्वारा अपनाए गए बौद्ध धर्म की प्रकृति वज्रयान परंपरा में निहित थी। फिर भी, वे लद्दाखी छात्रों को भारत के सारनाथ और बोधगया जैसे स्थानों पर थेरवाद बौद्ध धर्म का अध्ययन करने के लिए भेजने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध थे। यह उनके व्यक्तित्व के एक रोचक पहलू, धर्म के प्रति उनके गैर-सांप्रदायिक दृष्टिकोण को दर्शाता है। उनकी जीवनी पढ़ने के बाद ही उन्‍हें एहसास हुआ कि एक राजनेता के रूप में वे कितने कुशल थे। एक भिक्षु और एक राजनयिक दोनों एक साथ, यह एक अद्भुत संयोजन था। उन्होंने इस दिशा में प्रयास करने के लिए आईबीसी को धन्यवाद दिया।

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पीके/केसी/एसएस/वाईबी


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