विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
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संसदीय प्रश्न: हिमालयी इकोसिस्टम को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय मिशन

Posted On: 20 AUG 2025 4:19PM by PIB Delhi

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) जलवायु परिवर्तन पर दो राष्ट्रीय मिशनों को अपने आंतरिक बजट आवंटन से लागू कर रहा है, जोकि हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय मिशन (एनएमएसएचई) और जलवायु परिवर्तन के लिए रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन (एनएमएसकेसीसी) हैं। हिमालयी इकोसिस्टम को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय मिशन (एनएमएसएचई) के लिए कोई अलग आवंटन नहीं है; हालाँकि, जुलाई 2018 से विभिन्न गतिविधियों को लागू करने के लिए एनएमएसएचई के तहत कुल ₹111.63 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है। एनएमएसएचई के तहत स्वीकृत वर्ष और राज्य-वार बजट नीचे दिया गया है:

क्रम सं.

राज्य/यूटी

राशि करोड़ में

2018-19

राशि करोड़ में

 

2019-20

राशि करोड़ में

 

2020-21

राशि करोड़ में

 

2021-22

राशि करोड़ में

 

2022-23

राशि करोड़ में

 

2023-24

राशि करोड़ में

 

2024-25

कुल धनराशि करोड़ रूपये में

 

1

अरुणाचल प्रदेश

3.60

2.46

-

-

2.57

1.17

-

9.80

2

असम

3.04

9.04

-

-

-

-

-

12.08

3

दिल्ली

0.52

-

9.52

-

-

-

-

10.04

4

हरियाणा

-

-

-

-

1.55

-

-

1.55

5

हिमाचल प्रदेश

1.91

0.80

2.81

1.12

-

-

-

6.64

6

जम्मू एवं कश्मीर

1.88

7.85

-

-

2.74

0.73

-

13.20

7

कर्नाटक

0.41

-

-

-

-

-

-

0.41

8

लद्दाख

 

-

-

2.71

 

2.68

 

5.39

9

मणिपुर

1.18

-

2.14

-

-

-

-

3.32

10

मेघालय

1.29

-

 

-

2.13

 

-

3.42

11

मिजोरम

 

8.09

2.40

-

-

-

-

10.49

12

नगालैंड

-

-

-

-

-

2.51

-

2.51

13

सिक्किम

 

6.80

1.49

-

-

-

-

8.29

14

त्रिची

 

1.49

 

-

-

-

-

1.49

15

उत्तराखंड

0.75

2.06

16.13

-

-

-

1.55

20.49

16

पश्चिम बंगाल

-

-

-

-

2.51

-

-

2.51

 

कुल

14.58

38.59

34.49

3.83

11.50

7.09

1.55

111.63

 

एनएमएसएचई  के तहत, हिमालयी राज्यों के आसानी से समस्याग्रस्त हो जाने का मूल्यांकन किया गया था, जिसे बाद में एक अखिल भारतीय अध्ययन के रूप में विस्तारित किया गया। यह अध्ययन 698 जिलों, जिसमें सूरत क्षेत्र भी शामिल है, में बाढ़ और सूखे के जोखिम का आकलन करने के लिए किया गया था। परिणामों से पता चला कि सूरत में बाढ़ का जोखिम अधिक है, जो सभी जिलों में 97वें स्थान पर है। इसके अलावा डीएसटी ने एनएमएसएचई के तहत 13 हिमालयी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में राज्य जलवायु परिवर्तन प्रकोष्ठ (एससीसीसी) की स्थापना/सशक्तिकरण किया है। इनका मुख्य कार्य जिला स्तर पर सुभेद्यता और जोखिम मूल्यांकन करना और राज्य सरकारों को उनके स्टेट एक्शन प्लान  को लागू करने में सहायता करना है।

हिमालयी इकोसिस्टम के पर्यावरणीय महत्व को देखते हुए, विभाग ने एक 'राष्ट्रीय विशेषज्ञ समिति (एनईसी)' का गठन किया है, जिसमें प्रमुख हितधारकों के विभिन्न वर्गों के लोग शामिल हैं। इनमें शिक्षाविदों और अनुसंधान संगठनों के प्रतिष्ठित जलवायु वैज्ञानिक और संबंधित मंत्रालयों के प्रतिनिधि शामिल हैं। एनईसी, एनएमएसएचई के तहत समर्थित विभिन्न अनुसंधान कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की समीक्षा और मूल्यांकन के लिए नियमित अंतराल पर बैठकें करती है। इसके अतिरिक्त, विभाग परियोजनाओं की क्षेत्र-स्तर की समीक्षा के लिए विशेषज्ञों के दौरे की भी सुविधा प्रदान करता है। डीएसटी समर्थित परियोजनाओं के वैज्ञानिक परिणामों को संबंधित हितधारकों तक पहुँचाने के लिए कार्यशालाएँ भी आयोजित करता है।

जलवायु-प्रेरित प्राकृतिक आपदाओं, जैसे कि भूस्खलन और मिट्टी के कटाव, के प्रभाव का अध्ययन और उन्हें कम करने के लिए, विभाग ने हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रुड़की में एक सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सीओई) की स्थापना की है जो आपदा जोखिम न्यूनीकरण, स्थिरता और अनुकूलन रणनीतियों के क्षेत्र पर केंद्रित है। इसके अलावा, डीएसटी का एक समर्पित स्वायत्त संस्थान, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्लूआईएचजी), देहरादून, भू-खतरों (भूकंप, भूस्खलन), ग्लेशियोलॉजी, भू-संसाधनों आदि से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधान और गतिविधियों को अंजाम देता है।

शहरीकरण जैसी उभरती चुनौतियों का समाधान करने के उद्देश्य से, डीएसटी ने शहरी जलवायु  पर एक राष्ट्रीय नेटवर्क कार्यक्रम का समर्थन किया है और हाल ही में 'शहरी जलवायु अनुसंधान और चरम घटनाएँ' पर एक विशेष आह्वान की घोषणा की है, ताकि बदलते परिदृश्य में शहरी जलवायु के विभिन्न पहलुओं को वैज्ञानिक रूप से समझा जा सके। वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) ने 2021 में "संरक्षित क्षेत्रों के अंदर और आसपास इको पर्यटन दिशानिर्देश" अधिसूचित किए हैं। इसके अलावा, पर्यटन मंत्रालय (एमओटी) ने भी एक 'सतत पर्यटन के लिए राष्ट्रीय रणनीति' तैयार की है, जो पर्यावरणीय स्थिरता, जैव विविधता की सुरक्षा और आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक स्थिरता को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।

यह जानकारी केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पृथ्वी विज्ञान, पीएमओ, कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन, परमाणु ऊर्जा विभाग और अंतरिक्ष विभाग राज्य मंत्री, डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज लोकसभा में एक लिखित जवाब में दी।

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