संस्कृति मंत्रालय
भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत एवं विविध सांस्कृतिक परंपराओं के संरक्षण के लिए योजना
Posted On:
07 AUG 2025 4:12PM by PIB Delhi
"भारत की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर एवं विविध सांस्कृतिक परंपराओं के संरक्षण के लिए योजना", जो 2013-2016 के दौरान परिचालित थी, का उद्देश्य उन संस्थानों, समूहों, व्यक्तियों, चिन्हित गैर-संस्कृति मंत्रालय संस्थानों, गैर-सरकारी संगठनों, शोधकर्ताओं एवं विद्वानों को पुनर्जीवित और सशक्त बनाना था, जिससे वे भारत की समृद्ध अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण, सुरक्षा, प्रगति एवं सुदृढ़ीकरण के लिए गतिविधियों एवं परियोजनाओं को शुरू कर सकें। योजना के अंतर्गत प्रस्तुत रिपोर्टों का उचित रूप से दस्तावेजीकरण किया गया है और ये समर्पित आईसीएच वेबसाइट पर उपलब्ध हैं: https://indiaich-sna.in/scheme-grantees.
इस योजना के अंतर्गत कुल दस अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (आईसीएच) स्वरूपों को औपचारिक रूप से मान्यता एवं समर्थन प्रदान किया गया। आधिकारिक मान्यता एवं समर्थन प्राप्त विशिष्ट आईसीएच स्वरूपों का विवरण निम्न प्रकार है:
क्रम सं.
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तत्व
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भौगोलिक क्षेत्र/स्थान
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1
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कुटियाट्टम
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केरल (चिन्हित 2008)
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2
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रामलीला
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उत्तर प्रदेश और अन्य हिंदी भाषी क्षेत्र (2008 में चिन्हित)
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3
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छऊ नृत्य
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उड़ीसा, झारखंड, पश्चिम बंगाल (चिन्हित 2010)
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4
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मुडियेट्टू
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केरल (चिन्हित 2010)
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5
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संकीर्तन
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मणिपुर (चिन्हित 2013)
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6
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सत्त्रिया नृत्य
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असम (राष्ट्रीय सूची का हिस्सा)
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7
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क़व्वाली
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अखिल भारतीय/दिल्ली (राष्ट्रीय सूची का हिस्सा)
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8
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नौटंकी
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उत्तर भारत - उत्तर प्रदेश, हरियाणा (राष्ट्रीय सूची का हिस्सा)
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9
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सलहेश का त्योहार
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बिहार (राष्ट्रीय सूची का हिस्सा)
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10
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दशावतार
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महाराष्ट्र, गोवा (राष्ट्रीय सूची का हिस्सा)
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संगीत नाटक अकादमी (एसएनए), संस्कृति मंत्रालय अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (आईसीएच) की रक्षा के लिए नोडल एजेंसी के रूप में काम करती है और पूरे देश में आईसीएच के प्रशिक्षण, जागरूकता निर्माण, दस्तावेज़ीकरण एवं प्रचार के लिए कई पहलों का संचालन करती है। अकादमी स्थानीय समुदायों, सांस्कृतिक व्यवसायियों, हितधारकों और छात्रों को शामिल करते हुए क्षमता निर्माण कार्यशालाओं का आयोजन करती है। इन पहलों से विभिन्न क्षेत्रों से राष्ट्रीय विरासत के तत्वों को शामिल करने के लिए अनुरोधों में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है, जिसे एसएनए अपने सलाहकार निकाय की स्वीकृति से अनुरक्षित करता है।
इस संदर्भ में, पंढरपूर वारी और दशावतार जैसे पारंपरिक लोक नाट्य को राष्ट्रीय सूची में शामिल करना महाराष्ट्र की प्रदर्शन कलाओं को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इन परंपराओं का दस्तावेजीकरण एवं संग्रह व्यापक प्रसार में योगदान देता है, मूल्यवान शैक्षणिक संसाधन तैयार करता है और संरक्षण प्रयासों को बल देता है। इसके अलावा, इन तत्वों से संबंधित पत्रिकाओं, मोनोग्राफ और अन्य सामग्रियों का प्रकाशन लुप्तप्राय सांस्कृतिक प्रथाओं के संरक्षण को बढ़ावा देता है। कार्यशालाओं एवं संगोष्ठियों के भाग के रूप में आयोजित सार्वजनिक प्रदर्शन भी व्यापक दर्शकों के बीच जागरूकता एवं सराहना को बढ़ावा देते हैं।
इसके अलावा, अकादमी प्रदर्शन कलाओं एवं अन्य आईसीएच तत्वों, विशेष रूप से "कार्य प्रगति पर" श्रेणी के अंतर्गत सूचीबद्ध तत्वों का नियमित रूप से दस्तावेजीकरण एवं डिजिटल संग्रह करती है। ये प्रयास डिजिटल संरक्षण एवं शैक्षणिक अनुसंधान का समर्थन करते हैं, जिसमें संबंधित विषयों में उच्च अध्ययन भी शामिल हैं। अकादमी विभिन्न आईसीएच रूपों को मान्यता एवं बढ़ावा देने के लिए कलाकारों को पुरस्कार भी प्रदान करती है। अपने व्यापक प्रकाशन कार्यक्रम के माध्यम से, जिसमें पत्रिकाएं, पुस्तकें और एकल-लेख शामिल हैं, संगीत नाटक अकादमी भारतीय प्रदर्शन कलाओं और अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ अकादमिक विमर्श एवं जन सहभागिता में लगातार अपना सार्थक योगदान देती है।
यह जानकारी केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने आज राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में दी।
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पीके/केसी/एके
(Release ID: 2153739)