पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय
संसद प्रश्न: ग्लेशियर और जलवायु संरक्षण पर रणनीति
Posted On:
31 JUL 2025 5:16PM by PIB Delhi
भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित कई भारतीय संस्थान/विश्वविद्यालय/संगठन — जैसे कि पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी), खनन मंत्रालय (एमओएम), और जल शक्ति मंत्रालय (एमओजेएस)— हिमालयी ग्लेशियरों की निगरानी विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययनों के लिए करते हैं, जिनमें ग्लेशियर पिघलने की प्रक्रिया भी शामिल है। इन अध्ययनों में पाया गया है कि हिमालयी ग्लेशियरों में विषम रूप से द्रव्यमान की क्षति तेजी से हो रही है। हिंदू कुश हिमालयी ग्लेशियरों के पीछे हटने की दर 14.9 ± 15.1 मीटर/वर्ष (m/a) है; जो सिंधु में 12.7 ± 13.2 m/a, गंगा में 15.5 ± 14.4 m/a और ब्रह्मपुत्र नदी घाटियों में 20.2 ± 19.7 m/a से भिन्न होती है। 1975 से 2023 तक ग्लेशियरों के क्षेत्र माप के आधार पर, भारतीय हिमालयी ग्लेशियरों के संचयी द्रव्यमान में कमी का अनुमान -26 मीटर है।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय अपने स्वायत्त संस्थान, राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर) के माध्यम से 2013 से पश्चिमी हिमालय में चंद्रा बेसिन (2437 वर्ग किमी क्षेत्र) में छह ग्लेशियरों की निगरानी कर रहा है। चंद्रा बेसिन में एक अत्याधुनिक क्षेत्र अनुसंधान स्टेशन ‘हिमांश’ स्थापित किया गया है जो ग्लेशियरों पर क्षेत्र प्रयोग और अभियान चलाने के लिए 2016 से चालू है। चंद्रा बेसिन के लिए एनसीपीओआर द्वारा तैयार ग्लेशियर सूची से पता चलता है कि पिछले 20 वर्षों के दौरान इसने अपने हिमनद क्षेत्र का लगभग 6% खो दिया है। पिछले दशक के दौरान चंद्रा बेसिन के ग्लेशियरों के पीछे हटने की वार्षिक दर 13 से 33 मीटर/वर्ष तक रही है। ऊर्जा संतुलन मॉडल के आधार पर, ऊपरी चंद्रा बेसिन के ग्लेशियरों का अनुमानित औसत वार्षिक द्रव्यमान संतुलन −0.51 ± 0.28 मीटर प्रति वर्ष है, जिसका संचयी द्रव्यमान संतुलन 2015 से 2022 तक −3.54 मीटर है।
ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलने से निम्नलिखित प्रभाव पड़ेंगे: (1) मौसमी परिवर्तन और अपवाह की उच्च अंतर-वार्षिक परिवर्तनशीलता, जो स्थानीय से लेकर क्षेत्रीय/महाद्वीपीय पैमाने पर जल आपूर्ति को प्रभावित कर सकती है, जिसमें आसपास के निचले इलाके भी शामिल हैं, (2) नई/मौजूदा झीलों का निर्माण और विस्तार, ग्लेशियल झील विस्फोट बाढ़ (जीएलओएफ)/अचानक बाढ़ की आवृत्ति में वृद्धि, और (3) वैश्विक स्तर पर समुद्र का जल स्तर बढ़ना। जल उपलब्धता में परिवर्तन से पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता भी बाधित हो सकती है, जिससे इन संसाधनों पर निर्भर समुदायों की आजीविका प्रभावित हो सकती है।
ग्लेशियरों के संरक्षण और जलवायु संतुलन बनाए रखने के लिए सरकार द्वारा एक व्यापक राष्ट्रीय रणनीति या कार्य योजना अपनाई गई है। भारत सरकार ग्लेशियरों के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है और अपने विभिन्न मंत्रालयों, विभागों और संस्थानों के माध्यम से कई उपायों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के प्रयास कर रही है।
जल शक्ति मंत्रालय (एमओजेएस) द्वारा 09.03.2023 को जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय (डीओडब्ल्यूआर, आरडी एंड जीआर) के सचिव की अध्यक्षता में 'ग्लेशियर की निगरानी' पर एक संचालन समिति का गठन किया गया है, एमओजेएस में हिमालय के ग्लेशियरों पर विभिन्न मंत्रालयों और संगठनों द्वारा किए जा रहे कार्यों की निगरानी और समन्वय के लिए विभिन्न मंत्रालयों और संगठनों के सदस्य शामिल हैं।
भारतीय हिमालयी क्षेत्र (आईएचआर) के जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए जल संसाधन विभाग, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय, जल शक्ति मंत्रालय द्वारा मई 2023 में राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच), रुड़की में क्रायोस्फीयर और जलवायु परिवर्तन अध्ययन केंद्र (सी4एस) की स्थापना की गई है।
ग्लेशियल झील विस्फोट बाढ़ (जीएलओएफ) के प्रबंधन हेतु राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के दिशानिर्देशों के एक भाग के रूप में एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार की गई है। गृह मंत्रालय (एमएचए), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) और जल शक्ति मंत्रालय (एमओजेएस) सहित प्रमुख केंद्रीय मंत्रालयों के समन्वय से विकसित इस एसओपी में जीएलओएफ घटनाओं के लिए एक व्यापक और चरणबद्ध प्रतिक्रिया तंत्र की रूपरेखा दी गई है, जिसमें आपदा-पूर्व तैयारी, वास्तविक समय आपातकालीन प्रतिक्रिया और आपदा के बाद की बहाली को शामिल किया गया है। यह समन्वित दृष्टिकोण प्रभावी जीएलओएफ जोखिम प्रबंधन के लिए वैज्ञानिक ज्ञान और परिचालन क्षमताओं का लाभ उठाते हुए एक एकीकृत बहु-क्षेत्रीय प्रतिक्रिया सुनिश्चित करता है।
यह जानकारी आज राज्य सभा में एक लिखित उत्तर में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन राज्य मंत्री, परमाणु ऊर्जा विभाग और अंतरिक्ष विभाग डॉ. जितेंद्र सिंह ने दी।
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पीके/एके/केसी/जीके/डीए
(Release ID: 2150932)