पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय
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संसद प्रश्न: क्लाउड सीडिंग

Posted On: 23 JUL 2025 3:36PM by PIB Delhi

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) ने 2018-2019 के दौरान क्लाउड एरोसोल इंटरेक्शन एंड प्रीसिपिटेशन एन्हांसमेंट एक्सपेरिमेंट (सीएआईपीईईएक्स) नामक एक अनुसंधान अध्ययन किया था। यह सीएआईपीईईएक्स अध्ययन भारतीय प्रायद्वीप के वृष्टि छाया क्षेत्र में विशेष रूप से किराए पर लिए गए क्लाउड सीडिंग और अनुसंधान केंद्रित विमानों का उपयोग करके किया गया था। इस अध्ययन में वृष्टि छाया क्षेत्र में क्लाउड सीडिंग के लिए दिशानिर्देश तैयार किए गए हैं।

आईआईटीएम ने इस विषय में ज्ञान और विशेषज्ञता विकसित की है। आईआईटीएम में "मिशन मौसम वेदर_एमओडी" वर्टिकल के अंतर्गत अनुसंधान और तकनीकी क्षमताओं का विकास किया जा रहा है। इसमें 16 मीटर ऊंचे क्लाउड चैंबर का विकास, सीडिंग एयरक्राफ्ट किराए पर लेना, क्लाउड सीडिंग ड्रोन, सीडिंग सामग्री और डिस्पेंसर का सहयोगात्मक विकास और उद्योग एवं स्टार्टअप कंपनियों के साथ अन्य प्रासंगिक तकनीक से देश में क्षमता विकास करना शामिल है। मौसम परिवर्तन संबंधी अनुप्रयोगों से संबंधित क्षेत्रों में संचालन के लिए आवश्यक विमान और संबंधित अनुमतियों की उपलब्धता न होने के कारण परिचालन संबंधी तैयारी में बाधा आ रही है। हालांकि अधिकांश प्रासंगिक तकनीक आयात के लिए उपलब्ध है, फिर भी परिचालन संबंधी तैयारी हासिल करने के लिए भारत में और अधिक विकास की आवश्यकता है।

सीएआईपीईईएक्स के दौरान क्लाउड सीडिंग परीक्षण 2018 और 2019 में महाराष्ट्र के सोलापुर के वृष्टिछाया क्षेत्र में एक अनुसंधान प्रयोग के रूप में किए गए थे। इसके मुख्य उद्देश्य थे:

    • एरोसोल-बादल-वर्षा अंतःक्रिया की जांच करना - क्लाउड सीडिंग का विज्ञान और
    • विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) की सिफारिशों के अनुसार सतही वर्षा पर प्रभाव की जांच करने के लिए रैंडम क्लाउड सीडिंग का संचालन करना।

जनता के लिए रिपोर्ट जारी कर दी गई है और नीचे दिए गए लिंक पर उपलब्ध है:

https://www.tropmet.res.in/~lip/Publication/Technical-Reports/CAIPEEX-Report-July2023.pdf

रिपोर्ट में गर्म-आधारित बादलों से वर्षा बढ़ाने के लिए एक वैज्ञानिक प्रयोग रणनीति दी गई है। यह पाया गया कि स्वचालित वर्षामापी उपकरणों के अनुसार, कुछ स्थानों पर वर्षा में लगभग 46±13 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है, और औसतन, बुवाई स्थल से हवा की दिशा में 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में लगभग 18±2.6 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। विस्तृत वैज्ञानिक प्रकाशन वेबसाईट https://doi.org/10.1175/BAMS-D-21-0291.1 पर उपलब्ध है।

संभावित अनुप्रयोगों में शामिल हैं:

  • वर्षा बढ़ाने के लिए जलग्रहण-स्तर के अनुप्रयोगों हेतु लक्षित क्लाउड सीडिंग प्रयास।
  • ओवरसीडिंग द्वारा वर्षा का दमन।
  • अन्य प्रासंगिक लक्षित मौसम बदलाव संबंधी पहलुओं में कोहरा दमन, ओला दमन, समुद्री बादल चमकाना आदि शामिल हैं।
  • प्रतिकूल मौसम के मामलों में हस्तक्षेप की काफी कम गुंजाइश है।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) ने क्लाउड एरोसोल इंटरेक्शन और वर्षा संवर्धन प्रयोग (सीएआईपीईएक्स) नामक एक अनुसंधान अध्ययन किया था और आईआईटीएम ने इस विषय में ज्ञान और विशेषज्ञता विकसित की थी और इस पर लगातार काम कर रहा है।

क्लाउड सीडिंग के पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी खतरे और क्या क्लाउड सीडिंग से होने वाली वर्षा, विशेष रूप से अत्यधिक प्रदूषित शहरी क्षेत्रों में, वायु प्रदूषण को कम करने में मदद कर सकती है, यह अनुसंधान का एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी उचित दस्तावेजीकरण और सीएआईपीईईएक्स में विकसित दिशानिर्देशों के अनुसार जांच-पड़ताल की जानी चाहिए। देश में क्लाउड सीडिंग तकनीक के नियमन और भविष्य में इसके इस्तेमाल पर सरकारी नीति के लिए यह एक पूर्वापेक्षा है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन, परमाणु ऊर्जा विभाग और अंतरिक्ष विभाग में राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज लोकसभा में एक लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।

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