रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय
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औषधि क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत के विजन को साकार करने और घरेलू नवोन्मेष को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं क्रियान्वित की जा रही हैं


भारत के फार्मा मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देकर लागत को नवाचार-आधारित विकास में बदलने के लिए 5,000 करोड़ रुपये के परिव्यय से पीआरआईपी योजना शुरू की गई है

फार्मास्यूटिकल्स के लिए उत्‍पादन से जुड़ी योजना का उद्देश्य इस क्षेत्र में निवेश और उत्पादन बढ़ाकर भारत की विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाना है

पिछले छह वित्तीय वर्षों में, दवाओं और औषधि का निर्यात 92 प्रतिशत बढ़ा है, जो वित्त वर्ष 2018-19 में 1,28,028 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 में 2,45,962 करोड़ रुपये पहुंच गया है

Posted On: 22 JUL 2025 5:57PM by PIB Delhi

औषधि निर्माण क्षेत्र (फार्मास्यूटिकल्स) में आत्मनिर्भर भारत के विजन को साकार करने और घरेलू नवोन्‍मेष को बढ़ावा देने तथा औषधि सामग्री आयात पर निर्भरता कम करने के लिए कई योजनाएं क्रियान्वित की जा रही हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  1. फार्मा मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने की योजना (पीआरआईपी)
  2. फार्मास्यूटिकल्स के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना
  3. भारत में औषधि उत्‍पादन की प्रमुख प्रारंभिक सामग्रियों (केएसएम)/औषधि मध्यवर्ती (डीआई)/सक्रिय औषधि सामग्री (एपीआई) के घरेलू उत्‍पादन को बढ़ावा देने की पीएलआई योजना (थोक दवाओं के लिए पीएलआई योजना)
  4. बल्क ड्रग पार्क योजना
  5. औषधि उद्योग योजना का सुदृढ़ीकरण

भारत के फार्मा मेडटेक क्षेत्र को लागत से नवाचार आधारित विकास में बदलने के लिए अनुसंधान और दवा की खोज तथा विकास और चिकित्सा उपकरणों के प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास हेतु उद्योग-अकादमिक संपर्क को बढ़ावा देने के लिए 5,000 करोड़ रुपये के परिव्यय से पीआरआईपी योजना आरंभ की गई है। इसमें अनुसंधान के बुनियादी अवसंरचना स्‍थापित करने तथा चिन्ह्ति क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने के लिए, सात राष्ट्रीय औषधि शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों (एनआईपीईआर) में से प्रत्येक में उत्कृष्टता केंद्र (सीओई) स्थापित किए गए हैं। इसके लिए कुल 700 करोड़ रुपये की बजटीय मदद दी गई है। ये उत्‍कृष्‍टता केंद्र एंटी-वायरल और एंटी-बैक्टीरियल दवा की खोज और विकास, चिकित्सा उपकरण, थोक दवाएं, प्रवाह रसायन विज्ञान (ऐसी प्रक्रिया जिसमें रासायनिक अभिक्रियाएं एक सतत प्रवाह में होती हैं) और निरंतर उत्‍पादन, नवीन औषधि वितरण प्रणाली, फाइटोफार्मास्युटिकल्स (वनस्पति-आधारित दवा) और जैविक चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्रों में स्‍थापित किए गए हैं। अब तक इस योजना के तहत 104 अनुसंधान परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है और दो पेटेंट दायर किए गए हैं। इस योजना में प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में अनुसंधान और नवाचार परियोजनाएं आरंभ करने के लिए शैक्षणिक जगत के साथ सहयोग सहित उद्योग और स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए 4,250 करोड़ रुपये का परिव्यय शामिल है।

औषधि उत्‍पादन क्षेत्र में पीएलआई योजना का उद्देश्य इस क्षेत्र में निवेश और उत्पादन बढ़ाकर और उच्च मूल्य सामग्री उत्पाद विविधीकरण में योगदान देकर भारत की उत्‍पादन क्षमताओं को बढ़ाना है। यह बायोफार्मास्यूटिकल्स (जैव-औषधि) जटिल जेनेरिक दवाओं, पेटेंट की गई दवाओं या पेटेंट समाप्ति के करीब पहुंच चुकी दवाओं, स्वप्रतिरक्षी रोगों की दवाओं, कैंसर-रोधी दवाओं आदि जैसी उच्च मूल्य वाली दवाओं के उत्पादन को प्रोत्साहित करती है, साथ ही बल्क ड्रग्स (सक्रिय दवा सामग्री )  के लिए पीएलआई योजना के तहत अधिसूचित एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट (सक्रिय दवा सामग्री)/की स्टार्टिंग मैटेरियल (आरंभिक सामग्री)/ड्रग इंटरमीडिएट (मध्यवर्ती दवा)  के अलावा अन्य एपीआई/केएसएम/डीआई के उत्पादन को भी प्रोत्साहित करती है, जिससे आत्मनिर्भरता में योगदान हुआ है। इस योजना से उत्पादों में निवेश और उत्पादन  बढ़ा है। मार्च 2025 तक, योजना की छह वर्षीय अवधि में 17,275 करोड़ रुपये  के प्रतिबद्ध निवेश से काफ़ी अधिक निवेश बढ़ा है। योजना के तीसरे वर्ष तक 37,306 करोड़ रुपये का संचयी निवेश हो चुका है, और 1,70,807 करोड़ रुपये के निर्यात सहित 2,66,528 करोड़ रुपये के स्वीकृत उत्पादों की कुल बिक्री हो चुकी है। योजना की छह वर्षीय अवधि में लक्षित 2,94,000 करोड़ रुपये की संचयी बिक्री योजना के चौथे वर्ष में ही पार हो जाने की उम्मीद है।

बल्क ड्रग्स के लिए पीएलआई योजना का उद्देश्य महत्वपूर्ण केएसएम, डीआई और एपीआई में आत्मनिर्भरता बढ़ाना और आयात पर निर्भरता कम करना है। मार्च 2025 तक, योजना के तहत छह वर्षीय उत्पादन अवधि में निवेश के लिए स्वीकृत परियोजनाओं के अंतर्गत 3,938.5 करोड़ रुपये का प्रतिबद्ध निवेश, योजना के तीसरे वर्ष तक किए गए 4,570 करोड़ रुपये के संचयी निवेश से काफी अधिक पहुंच गया है। इसके अलावा, 25 एपीआई/केएसएम/डीआई के लिए उत्पादन क्षमता सृजित की गई है।

बल्क ड्रग्स पार्क योजना के अंतर्गत, तीन पार्क स्वीकृत किए गए हैं और आंध्र प्रदेश, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में उनकी संबंधित राज्य कार्यान्वयन एजेंसियों द्वारा विकसित किए जाने के विभिन्न चरणों में हैं। इनकी कुल परियोजना लागत 6,300 करोड़ रुपये से अधिक है, जिसमें साझा आधारभूत ढांचे निर्मित करने के लिए प्रत्येक को 1,000 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता शामिल है। ये पार्क रियायती दर पर भूमि और बिजली, पानी, अपशिष्ट उपचार संयंत्र, भाप, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, गोदाम सुविधाओं से युक्‍त होंगे। तीनों राज्यों की राज्य कार्यान्वयन एजेंसियां तय पूंजी निवेश पर पूंजीगत सब्सिडी, ब्याज सब्सिडी, राज्य वस्तु एवं सेवा कर प्रतिपूर्ति, स्टाम्प शुल्क और पंजीकरण शुल्क में छूट सहित अन्‍य राजकोषीय प्रोत्साहन भी दे रही हैं।

फार्मास्युटिकल उद्योग को मजबूत करने की योजना निम्नलिखित उप-योजनाओं द्वारा आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण को साकार करने में सहायक हैं : 

  1. सामान्य सुविधाओं के लिए फार्मास्युटिकल उद्योग को सहायता - इस योजना का उद्देश्य सामान्य सुविधाएं स्‍थापित करने के लिए फार्मास्युटिकल क्लस्टरों को वित्तीय सहायता प्रदान कर बुनियादी सुविधाओं को सुदृढ़ करना है। परीक्षण प्रयोगशालाओं, अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं, अपशिष्ट उपचार संयंत्रों और प्रशिक्षण केंद्रों में इससे मदद मिलती है, जिससे साझा संसाधनों को विकसित करने और उनका लाभ उठाने में सक्षम बनाकर क्लस्टरों की दीर्घकालिक व्यवहार्यता और विकास किया जा सके। एपीआई-सीएफ के तहत, फार्मास्युटिकल क्लस्टरों को कुल 139.33 करोड़ रुपये की अनुदान  परियोजनाओं को सामान्य सुविधाओं के निर्माण की मंजूरी दी गई है और वे निष्पादन के विभिन्न चरणों में हैं। इनके बनने से लगभग 1,300 मौजूदा फार्मास्युटिकल इकाइयों को सामान्य सुविधाएं मिलेंगी।
  2. संशोधित औषधि प्रौद्योगिकी उन्नयन सहायता योजना (आरपीटीयूएएस): इस योजना का उद्देश्य 500 करोड़ रुपये से कम औसत कारोबार वाली छोटी और मध्यम दवा कंपनियों की उत्पादन सुविधाएं बढ़ाने में सहायता करना है ताकि वे औषधि नियम, 1945 की संशोधित अनुसूची एम और विश्व स्वास्थ्य संगठन - उत्तम विनिर्माण पद्धतियों (डब्ल्यूएचओ-जीएमपी) के निर्दिष्ट मानक हासिल कर सकें और उनकी घरेलू और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार हो। इसके तहत, 1 जुलाई 2025 तक, 142 सूक्ष्म, लघु और मध्यम दवा कंपनियों के लिए उक्त मानक हासिल करने के लिए सहायता स्वीकृत की गई है, जिसकी कुल राशि 135.84 करोड़ रुपये है।

इन योजनाओं से पिछले छह वित्तीय वर्षों में दवाओं और फार्मास्यूटिकल्स के निर्यात में 92 प्रतिशत बढ़ोत्‍तरी हुई है और यह वित्त वर्ष 2018-19 में 1,28,028 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 में 2,45,962 करोड़ रुपये पहुंच गया है।

सरकार ने सबको किफायती मूल्‍य पर गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना आरंभ की है। इस योजना के तहत, देश भर में जनऔषधि केंद्र खोले गए हैं, जहां दवाएं बाज़ार में प्रमुख ब्रांडेड दवाओं की तुलना में लगभग 50 प्रतिशत से 80 प्रतिशत कम कीमत पर उपलब्ध कराई जाती हैं। 30 जनू, 2025 तक, देशभर में कुल 16,912 जनऔषधि केंद्र खोले गए हैं और प्रतिदिन औसतन लगभग 10 से 12 लाख लोग सस्‍ती दवाइयां खरीदते है। इस योजना में 2,110 दवाइयां और 315 सर्जिकल, चिकित्सा उपभोग्य वस्तुएं और उपकरण उपलब्‍ध कराए गए हैं।  इनमें हृदय, कैंसर-रोधी, मधुमेह-रोधी, संक्रमण-रोधी, एलर्जी-रोधी और जठरांत्र-रोधी दवाइयां और न्यूट्रास्युटिकल्स जैसे सभी प्रमुख चिकित्सीय औषधि शामिल हैं। पिछले 11 वर्षों में, ब्रांडेड दवाओं की कीमतों की तुलना में लोगों को लगभग 38,000 करोड़ रुपये की अनुमानित बचत हुई है। इसके अलावा, इस योजना से 6,800 से अधिक महिला उद्यमियों सहित 16,000 से अधिक लोगों को स्व-रोज़गार मिला है।

केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री श्रीमती अनुप्रिया पटेल ने आज राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।

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