उप राष्ट्रपति सचिवालय
कोच्चि के राष्ट्रीय उन्नत विधिक अध्ययन विश्वविद्यालय में उपराष्ट्रपति के संबोधन के मूल पाठ का अंश
Posted On:
07 JUL 2025 3:44PM by PIB Delhi
राष्ट्रपति और राज्यपाल दो मात्र ऐसे संवैधानिक पद हैं जिनकी शपथ उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, संसद सदस्यों, विधानसभा सदस्यों या न्यायाधीशों जैसे अन्य पदाधिकारियों से भिन्न होती है।
क्योंकि हम सभी, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य, संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं। लेकिन माननीय राष्ट्रपति और माननीय राज्यपाल, वे संविधान को संरक्षित, सुरक्षित रखने और रक्षा करने की शपथ लेते हैं। क्या मैं स्पष्ट हूँ? इसलिए उनकी शपथ न केवल बहुत अलग है, बल्कि उनकी शपथ उन्हें संविधान को संरक्षित, सुरक्षित और रक्षा करने के भारी दायित्व के लिए बाध्य करती है। मुझे उम्मीद है कि राज्यपाल के पद के लिए इस संवैधानिक अध्यादेश के बारे में सबको अहसास होगा। मुझे पश्चिम बंगाल राज्य में उनके साथ तीन साल तक इस पद पर कार्य करने का सौभाग्य मिला है।
दूसरी, जो बात सबसे अलग है, वह यह हम जैसे बाकी लोगों, जैसे उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों के अलावा, केवल राष्ट्रपति और राज्यपाल, केवल ये दो पद जिन्हें अभियोजन से छूट हैं, किसी और को नहीं। जब तक वे पद पर हैं, वे किसी भी लंबित या विचाराधीन अभियोजन से मुक्त हैं, और मुझे बहुत खुशी और प्रसन्नता है कि श्री राजेंद्र वी. आर्लेकर राज्यपाल के रूप में बहुत उच्च मानक स्थापित कर रहे हैं क्योंकि राज्यपाल आसानी से निशाना बन सकते हैं।
मुझे आज प्रतिभाशाली युवा लोगों के साथ बातचीत करने का शानदार अवसर मिला है। राष्ट्रीय उन्नत विधिक अध्ययन विश्वविद्यालय के शैक्षणिक समुदाय, मैं किसके साथ बातचीत कर रहा हूँ? जो भविष्य में न्याय के प्रहरी, संवैधानिक मूल्यों के पथप्रदर्शक और अधिक समतापूर्ण भारत के निर्माता हैं। आप ही परिभाषित करेंगे कि 2047 में जब हम एक विकसित राष्ट्र के रूप में अपनी स्वतंत्रता की शताब्दी मनाएंगे, तो भारत कैसा होगा।
लेकिन मैं आपको बता दूं, केरल आना मेरे लिए हमेशा खुशी की बात होती है। बहुत संतुष्टि की बात होती है। एक ऐसी भूमि जिसने भारत को कई तेजस्वी दिमाग के लोगों और ईमानदार लोक सेवकों का उपहार दिया है।
आपके पास एक बहुत ही मिलनसार मुख्यमंत्री हैं। फिलहाल वे देश से बाहर हैं। लेकिन जब भी मैं उनसे मिलता हूं, तो बहुत कुछ सीखता हूं। एक और कारण जिसके चलते मैं केरल को अक्सर याद करता हूं, वह यह है कि केरल से राज्यसभा में नौ सदस्य हैं, इनमें से प्रत्येक अपने काम को बहुत गंभीरता से ले रहे हैं और किसी भी तरह की बाधा या गड़बड़ी की स्थिती नहीं है।
मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं कि हमने अपने संविधान सभा से क्या सीखा है। संविधान सभा ने हमारे लिए संविधान बनाया और यह तीन साल से भी कम समय के लिए था। उन्होंने बहस, संवाद, चर्चा, विचार-विमर्श में भाग लिया, लेकिन कभी भी गड़बड़ी या व्यवधान की स्थिती देखने में नहीं आयी, यह एक ऐसी बात है जिसे आपको सीखना चाहिए।
दूसरे पहलुओं पर आने से पहले मैं इस बात को पूरा कर लूंगा। मैं आपसे दो गतिविधियों में शामिल होने का आह्वान करूंगा। इस पर एक निबंध लिखिए कि हम संविधान दिवस क्यों मनाते हैं। 26 नवंबर को, क्यों? इसकी शुरुआत कब हुई? हमारे लिए इसका क्या महत्व है? आप एक निबंध लिखें। मैं कुलपति को ईमेल आईडी साझा करूंगा, जहां आप इसे अगले 15 दिनों के भीतर भेज देंगे। आप संविधान हत्या दिवस पर एक और निबंध लिखेंगे जो आपको 25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा के क्रूर दौर की याद दिलाएगा।
अब ये मौलिक हैं क्योंकि ये संविधानवाद से सम्बंधित हैं। आपको ध्यान पूर्वक सोचना होगा कि 42वें संविधान संशोधन अधिनियम में क्या हुआ। 44 में क्या हुआ और क्या बचा? लाखों लोगों को न्यायपालिका तक पहुंच के बिना जेल में क्यों रखा गया? ऐसा कैसे हुआ कि नौ उच्च न्यायालयों ने नागरिक के पक्ष में फ़ैसला सुनाया लेकिन सर्वोच्च न्यायालय, सबसे बड़ी अदालत ने अलग फ़ैसला सुनाया?
एडीएम जबलपुर मामले में और इसके विपरित मामले में दो बातें इंगित की गई हैं। आपातकाल लगाना और जितने समय तक लगे आपातकाल लगाना कार्यपालिका का पूर्ण विशेषाधिकार है। 1975 में यह 20 से अधिक महीने था और आपातकाल की घोषणा के दौरान न्यायपालिका तक पहुंच नहीं होती। इसलिए हमने उस समय एक लोकतांत्रिक राष्ट्र होने का अपना पूरा दावा खो दिया। यही है आपकी असलियत।
इनमें से पांच-पांच निबंध, लेखक भारतीय संसद में मेरे मेहमान होंगे, लेकिन मैं आपको बता दूं, मैं यह निर्णय नहीं लूंगा कि कौन सा निबंध अच्छा है क्योंकि सभी निबंध अच्छे होने ही चाहिए। मैं आपके राज्य के नौ प्रतिष्ठित राज्यसभा सदस्यों की मौजूदगी में लॉटरी निकालूंगा। वे यात्रा की सुविधा भी प्रदान करेंगे, बाकी सब मेरी देखरेख में है। दूसरा, मैंने उनका और माननीय मुख्यमंत्री का नाम क्यों लिया।
मैं आपको 15 से 25 के समूहों में भारतीय संसद की नई इमारत को देखने के लिए आमंत्रित कर रहा हूं। कैसे कोविड के चुनौतीपूर्ण समय के दौरान हमने अपनी सभ्यता के 5,000 वर्षों के लोकाचार को दर्शाने के लिए जमीनी स्तर पर इतना कुछ किया और इसे 30 महीने से भी कम समय में हासिल किया।
लेकिन आप मेरे मेहमान होगे। मैं आपके साथ लंच करूंगा। क्या मैं सही कह रहा हूं? कुलपति समूहों का नियम-कायदा तय करेंगे। लेकिन मुझे यकीन है कि वह कुछ लड़कों को भी रखेंगे क्योंकि यहां लड़कियों की संख्या ज़्यादा दिखाई दे रही है।
इस राज्य को देश को सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला न्यायाधीश देने का गौरव प्राप्त है - न्यायमूर्ति एम. फातिमा बीवी, लेकिन उनकी दो विशिष्टताएं हैं। एक, वे हाई कोर्ट की न्यायाधीश थीं। वे सेवानिवृत्त हो चुकी हैं।
उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद पुनः बुलाया गया और वे मात्र ढाई वर्ष की अल्प अवधि के लिए सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश बनीं।
इसी श्रेणी में आने वाले एक और जज हैं असम के बहरूल इस्लाम। केरल से असम तक उन्हें भी सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया, जबकि उनके पास रिटायर्ड हाई कोर्ट जज का टैग था। तो दोनों का कार्यकाल ढाई साल से कम या उसके आसपास रहा।
आपको इसकी जांच करनी चाहिए। ये ऐसे प्रमाण हैं जो आपकों को नई दिशा दिखाएंगे। जब हम ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में बात करते हैं तो केरल में कई अन्य स्थितियां हैं।
जब आप प्राचीन व्यापार, रोमन, अरब, चीनी, पुर्तगाली, डच और ब्रिटिश शासन के जटिल कानूनी विकास की बात करते हैं, तो कोच्चि ने कानून के विकास को देखा है, जिससे हम ईर्ष्या कर सकते हैं। लेकिन जब हम अपने प्राचीन इतिहास, धर्मशास्त्र, स्मृति, धर्मसूत्र को देखते हैं, तो वे हमारे न्यायशास्त्र को परिभाषित करते हैं।
लड़के और लड़कियों, आपको हमेशा याद रखना होगा कि भारत का जन्म 15 अगस्त 1947 को नहीं हुआ था।
हम एक अद्वितीय राष्ट्र हैं। 5,000 वर्षों की सभ्यतागत परंपराएं, इतिहास, पृष्ठभूमि, ज्ञान का खजाना, वेद, उपनिषद, पुराण। हमारे पास नालंदा, तक्षशिला और कई अन्य संस्थान थे। और अभी, मैं आपको दो बातें बता सकता हूं। पिछले कुछ वर्षों में इस देश में जिस पैमाने पर विकास हुआ है, वह पहले कभी नहीं हुआ था, और आज भारत अपने युवाओं की वजह से दुनिया का सबसे महत्वाकांक्षी राष्ट्र है।
मैं आपसे इसलिए अधिक प्रभावित हूं और आपसे बातचीत कर रहा हूं क्योंकि हमारे युवा जनसांख्यिकीय लाभांश से दुनिया ईर्ष्या करती है। हमारे युवाओं की औसत आयु 28 वर्ष है, चीन और अमेरिका इस मामले में हमसे 10 वर्ष बड़े हैं, और इसलिए आप इस देश के भाग्य को नियंत्रित करेंगे।
हमारी विकास की गाड़ी तभी पूरी तरह से चलेगी जब आप सबकी भागीदारी होगी, लेकिन दोस्तों, मेरे युवा दोस्तों, जब हमारे पास इस तरह की वृद्धि होगी, जैसे कि असाधारण आर्थिक उछाल, अभूतपूर्व बुनियादी ढांचे का विकास, गहन डिजिटलीकरण, वैश्विक मान्यता और सभी संस्थानों से प्रशंसा। चुनौतियां तो होंगी ही और चुनौतियां कई गुना होंगी, लेकिन एक बात जो मैं बहुत बुनियादी मानता हूं, वह यह है कि हमारे पास समस्याओं का सामना करने के लिए करियर होना चाहिए। हमें असफलताओं को तर्कसंगत नहीं बनाना चाहिए।
हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि हम एक ऐसे देश से हैं जिसे वैश्विक आख्यान को परिभाषित करना है। हमें एक ऐसे विश्व का निर्माता बनना है जो शांति और सद्भाव में रहे।
हमें सबसे पहले अपनी संस्थाओं के भीतर असहज सच्चाईयों का सामना करने का साहस करना चाहिए। मैं आपको न्यायपालिका का हिस्सा मानता हूं। हमारे देश में न्यायपालिका को लोगों का बहुत भरोसा और सम्मान प्राप्त है। लोगों का न्यायपालिका पर उतना भरोसा नहीं है जितना किसी और संस्था पर है। अगर उनका भरोसा खत्म हो गया, संस्था में विश्वास डगमगा गया, तो हम एक गंभीर स्थिति का सामना करेंगे।
1.4 बिलियन का देश को इसका फल भुगतना होगा, हाल की घटनाएं परेशान करने वाली हैं। वे चिंताजनक हैं। मैं उन पर थोड़ी देर बाद बात करूंगा। लेकिन मेरा मूल सिद्धांत हमेशा से रहा है, एक कानून के छात्र के रूप में, एक वकील के रूप में, एक वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में, एक सांसद के रूप में, एक केंद्रीय मंत्री के रूप में, एक राज्य के राज्यपाल के रूप में, वर्तमान में देश के उपराष्ट्रपति के रूप में, कि संवैधानिक सार और भावना को सर्वोत्तम रूप से पोषित और बनाए रखा जाना चाहिए, और यह संवैधानिक कामकाज के प्रत्येक स्तंभ के साथ निखरता है यदि वे एक साथ, एकता और सद्भाव में काम करते हैं।
लेकिन अगर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका एकमत नहीं हैं, अगर वे एक-दूसरे के साथ तालमेल नहीं रखते हैं, अगर उनके बीच सामंजस्य नहीं है, तो स्थिति थोड़ी चिंताजनक हो जाती है। और यही कारण है कि कानून के छात्रों के रूप में आप शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
मुद्दा यह नहीं है कि कौन सर्वोच्च है। संविधान की प्रत्येक संस्था अपने-अपने क्षेत्र में सर्वोच्च है। हमें इस बारे में कोई गलती नहीं करनी चाहिए, लेकिन अगर कोई संस्था-न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका दूसरे के क्षेत्र में दखल देती है। इससे पूरी व्यवस्था बिगड़ सकती है। इससे ऐसी असंयमित समस्याएं पैदा हो सकती हैं जो हमारे लोकतंत्र के लिए संभावित रूप से बहुत खतरनाक हो सकती हैं।
उदाहरण के लिए, मैं आपको आम आदमी की भाषा में बता दूं, न्याय-निर्णय न्यायपालिका द्वारा किया जाना चाहिए। फैसलें न्यायपालिका द्वारा लिखे जाने चाहिए, विधायिका द्वारा नहीं, कार्यपालिका द्वारा नहीं। और इसी तरह, कार्यकारी कार्य किसके द्वारा किया जाता है? कार्यकारी द्वारा। और क्यों? क्योंकि आप चुनाव के माध्यम से कार्यकारी, राजनीतिक कार्यकारी को चुनते हैं। वे आपके प्रति जवाबदेह हैं।
उन्हें काम करना होगा। उन्हें चुनावों का सामना करना होगा, लेकिन अगर कार्यकारी कार्य, मान लीजिए, विधायिका या न्यायपालिका द्वारा किया जाता है, तो यह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के सार और भावना के विपरीत होगा। मैं इस बात से हैरान हूं कि सीबीआई निदेशक जैसे कार्यकारी अधिकारी को भारत के मुख्य न्यायाधीश की भागीदारी के साथ नियुक्त किया जाता है? क्यों? और जरा सोचिए, और अपने दिमाग पर जोर डालिए।
सीधे सीबीआई से, पदानुक्रम में सबसे वरिष्ठ व्यक्ति से नहीं। उसके ऊपर कई परतें हैं, सी.वी.सी, कैबिनेट सचिव, सभी सचिव। आखिरकार, वह एक विभाग का मुखिया है। आपको अपनी कलम का इस्तेमाल करना चाहिए। क्या यह दुनिया में कहीं और हो रहा है? क्या यह हमारी संवैधानिक योजना के तहत हो सकता है? कार्यकारी की नियुक्ति कार्यकारी के अलावा किसी और द्वारा क्यों की जानी चाहिए। मैं दृढ़ता से ऐसा कहता हूं।
एक और काफी परेशान करने वाली बात यह है कि हाल ही में न्यायपालिका में उथल-पुथल का दौर रहा, लेकिन अच्छी बात यह है कि एक बड़ा बदलाव हुआ है। हम न्यायपालिका के लिए अब अच्छे दिन देख रहे हैं। वर्तमान मुख्य न्यायाधीश और उनके पूर्ववर्ती, तत्काल पूर्ववर्ती ने हमें जवाबदेही, पारदर्शिता का नया क्षेत्र दिया।
वे चीजों को वापस पटरी पर ला रहे हैं। लेकिन पहले के दो साल बहुत परेशान करने वाले थे, बहुत चुनौतीपूर्ण थे। सामान्य व्यवस्था सामान्य नहीं थी। बिना सोचे-समझे कई कदम उठाए गए, उन्हें वापस लेने में कुछ समय लगेगा।
क्योंकि यह बहुत ही बुनियादी बात है कि संस्थाएँ इष्टतम प्रदर्शन के साथ काम करें। अगर राज्य सभा व्यवधान और अशांति में लिप्त रहती है और काम नहीं करती है, तो यह चिंता का विषय है। यह चिंताजनक रूप से चेतावनी पूर्ण होगा। लेकिन मुझे पूरी उम्मीद है कि चीजें सुधरेंगी। संविधान की प्रस्तावना को लेकर बहुत सारे मुद्दे रहे हैं।
सबसे पहले मैं आपको बता दूं कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना बच्चों के लिए माता-पिता की भूमिका की तरह है। आप चाहे जितनी कोशिश कर लें, आप अपने माता-पिता की भूमिका को नहीं बदल सकते। क्या मैं सही कह रहा हूं? यह संभव नहीं है। यह प्रस्तावना है। दूसरी बात, ऐतिहासिक रूप से किसी भी देश की प्रस्तावना में कभी बदलाव नहीं किया गया है।
तीसरा, हमारे संविधान की प्रस्तावना को उस समय बदला गया जब लाखों लोग जेल में थे। हमारे लोकतंत्र का सबसे काला दौर था, आपातकाल का दौर। फिर इसमें बदलाव किया गया और लोकसभा का कार्यकाल भी पांच साल से बढ़ा दिया गया।
इसे उस समय बदला गया जब लोगों की न्याय प्रणाली तक पहुंच नहीं थी। मौलिक अधिकार पूरी तरह से निलंबित कर दिए गए थे। आपको इसकी जांच करनी चाहिए। हम कुछ भी कर लें, हम निश्चित रूप से अपने माता-पिता को नहीं बदल सकते और हमें उनका हमेशा सम्मान करना चाहिए।
मेरे युवा मित्रों, अगर आपने मार्च की इडस के बारे में सुना है। आपमें से जिन्होंने जूलियस सीज़र को पढ़ा है, जहां भविष्यवक्ता ने सीज़र को चेतावनी दी थी, मार्च की इडस से सावधान रहें, और जब सीज़र महल से दरबार में जा रहा था, तो उसने भविष्यवक्ता को देखा और सीज़र ने कहा मैंने ऐसा किया, मार्च आ गया है।, भविष्यवक्ता ने कहा, हां, लेकिन गया नहीं, और दिन खत्म होने से पहले, सीज़र की हत्या कर दी गई। मार्च की इडस दुर्भाग्य और विनाश से जुड़ी है।
14 और 15 मार्च की रात को हमारी न्यायपालिका में मार्च की यादें ताज़ा हो गईं। मार्च, एक भयानक समय था। एक जज के घर पर बड़ी मात्रा में नकदी थी। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि यह अब सार्वजनिक डोमेन में है, आधिकारिक तौर पर सुप्रीम कोर्ट ने यह बात रखी है कि हाई कोर्ट के एक जज के आधिकारिक घर पर बड़ी मात्रा में नकदी पाई गई थी। अब मुद्दा यह है कि अगर वह नकदी पाई गई थी, तो सिस्टम को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए थी और पहली प्रक्रिया यह होनी चाहिए थी कि इसे आपराधिक कृत्य के रूप में निपटाया जाए।
जो लोग दोषी हैं, उन्हें ढूंढ़ो। उन्हें न्याय के कटघरे में लाओ, लेकिन अभी तक कोई एफआईआर नहीं हुई है। केंद्र सरकार इस मामले में हाथ बांधकर रहने के लिए मजबूर है, क्योंकि 90 के दशक में सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया था, उसके अनुसार एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती। आपको वह फैसला जरूर पढ़ना चाहिए।
मैं न्यायपालिका की स्वतंत्रता के पक्ष में हूं। मैं न्यायाधीशों की सुरक्षा का प्रबल समर्थक हूं। न्यायाधीश बहुत कठिन परिस्थितियों से निपटते हैं। वे कार्यपालिका के विरुद्ध मामलों का निर्णय करते हैं। वे विधायिका के मामलों से सम्बंधित कुछ क्षेत्रों में काम करते हैं। हमें अपने न्यायाधीशों को हल्के मुकदमों से बचाना चाहिए। इसलिए मैं विकसित तंत्र के विरुद्ध नहीं हूं, लेकिन जब ऐसा कुछ होता है।
कुछ बातें चिंताजनक हैं। घटना 14 और 15 मार्च की रात को हुई, लड़के-लड़कियों के साथ, हमें पता ही नहीं चला। इस साल 21 मार्च को, करीब सात दिन बाद, हमें इस जघन्य अपराध के बारे में पता चला।
अब सवाल यह उठता है कि क्या किसी को पहले से इसकी जानकारी थी? हां, यह आग लगने की घटना थी। अग्निशमन तंत्र मौजूद था, सिस्टम से जुड़े लोगों को इसकी जानकारी थी। इसे क्यों साझा नहीं किया गया? मैं इस मामले को लेकर चिंतित हूं।
क्या यह एक अकेली घटना है या ऐसी अन्य घटनाएं भी हैं।
यह ऐसी चीज है जिससे हमें निपटना होगा। इसलिए मैं दृढ़ता से महसूस करता हूं और मैंने कई मौकों पर कहा है कि संवैधानिक प्रावधानों के संदर्भ में न्यायाधीश से निपटने के संवैधानिक तंत्र के साथ आगे बढ़ना एक रास्ता है।
लेकिन यह कोई समाधान नहीं है क्योंकि हम लोकतंत्र होने का दावा करते हैं और हम हैं भी। दुनिया एक परिपक्व लोकतंत्र की तरह दिखती है जहां कानून का शासन होना चाहिए, कानून के समक्ष समानता होनी चाहिए जिसका मतलब है कि हर अपराध की जांच होनी चाहिए। अगर पैसे की मात्रा इतनी ज़्यादा है, तो हमें पता लगाना होगा कि क्या यह दागी पैसा है? इस पैसे का स्रोत क्या है? यह एक न्यायाधीश के आधिकारिक आवास में कैसे जमा हुआ? यह किसका था?
इस प्रक्रिया में कई दंडात्मक प्रावधानों का उल्लंघन किया गया है। मुझे उम्मीद है कि एफआईआर दर्ज की जाएगी। हमें मामले की जड़ तक जाना चाहिए क्योंकि लोकतंत्र के लिए सबसे महत्वपूर्ण है हमारी न्यायपालिका जिस पर लोगों का अटूट विश्वास है। इसकी नींव ही हिल गई है।
इस घटना के कारण स्थिती डावांडोल है। और इसलिए हमें इस मुद्दे को उस दृष्टिकोण से जांचना चाहिए, और मुझे यकीन है कि आप इस पहलू की जांच करने में निश्चित रूप से लगे होंगे। ऐसे कई अन्य मुद्दे हैं जिनकी आपको जांच करने की आवश्यकता है। और एक यह है कि हमेशा अपने समय से आगे की सोचें।
यदि आप समझ सकें तो एक संवैधानिक प्रावधान है कि कुछ संवैधानिक प्राधिकारियों को अपने पद के बाद कोई कार्यभार संभालने की अनुमति नहीं है - जैसे लोक सेवा आयोग का सदस्य सरकार के अधीन कोई कार्यभार नहीं ले सकता।
सीएजी यह कार्यभार नहीं ले सकता। मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त यह कार्यभार नहीं ले सकते क्योंकि उन्हें प्रलोभनों और प्रलोभनों के अधीन होने से मुक्त होना चाहिए। यह न्यायाधीशों के लिए नहीं था। क्यों? क्योंकि न्यायाधीशों से पूरी तरह से इससे दूर रहने की अपेक्षा की जाती थी। और अब हमारे पास सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों के लिए पद है। क्या मैं सही हूँ?
और सभी को समायोजित नहीं किया जा सकता, केवल कुछ को समायोजित किया जा सकता है। इसलिए जब आप सभी को समायोजित नहीं कर सकते, तो आपको कुछ को समायोजित करना होगा। इसमें चयन और चयन की व्यवस्था है। जब चयन और चयन की व्यवस्था होती है, तो संरक्षण होता है। यह हमारी न्यायपालिका को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा रहा है।
मैं चाहता हूं कि आप लड़के और लड़कियों, मैंने आपको कुछ सुझाव दिए हैं कि आप साप्ताहिक आधार पर एक छोटे समूह में मिलें और इन मुद्दों पर चर्चा करें।
मेरी कही गई बातों को कभी भी गलत नहीं समझा जाना चाहिए, क्योंकि मैं कुछ ऐसा कह रहा हूं जो न्यायपालिका को मजबूत नहीं करता। मैंने अपने जीवन का सबसे बेहतरीन समय न्यायपालिका को दिया है। मैं बार को न्यायपालिका का ही एक हिस्सा मानता हूं। मैंने इसके हर पल का आनंद लिया है, और अंत में, अपनी बात समाप्त करने से पहले, लड़कों और लड़कियों, आपके लिए अवसरों की सौगात दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। चारों ओर देखिए।
विधि स्नातकों के रूप में, आपको नीति निर्माण, नीति रूपरेखा बनाना, संमुद्री अर्थव्यवस्था, अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था, साइबर सुरक्षा से जुड़ने के अवसर मिलेंगे, ये सभी मुद्दे वहां हैं। इसलिए हमारे जैसे देश में, जो बहुत तेज़ गति से विकसित हो रहा है, आपका भविष्य सुनिश्चित है। देश का इको-सिस्टम आशा और संभावनाओं से भरा हुआ है। एक ऐसी स्थिति जो हममें से किसी के पास भी नहीं थी जब हम छात्र थे। ठीक है? तो मेरा प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया? तो अनुबंध पूरा हो गया है। क्या मैं सही कह रहा हूं? अनुबंध पूरा। मैं, दो माननीय मंत्रियों के उदार समर्थन के साथ माननीय राज्यसभा सांसदों और राष्ट्रीय उन्नत विधिक अध्ययन विश्वविद्यालय के प्रशासन से इसे जल्द से जल्द पूरा करने के लिए मांग करूंगा।
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
***
एमजी/आरपीएम/केसी/ वीके/एसवी
(Release ID: 2142963)
Visitor Counter : 16