उप राष्ट्रपति सचिवालय
राम माधव की पुस्तक 'द न्यू वर्ल्ड: ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी वर्ल्ड ऑर्डर एंड इंडिया' के विमोचन के अवसर पर उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूल पाठ (अंश)
Posted On:
23 JUN 2025 10:00PM by PIB Delhi
आप सभी को शुभ संध्या।
सम्मानित श्रोताओं, यदि मैं यह कहूं कि मुझे ऐसे ज्ञानी और विचारशील श्रोताओं को संबोधित करने का अवसर शायद ही कभी मिला हो, तो यह मेरी बहुत बड़ी गलती होगी। मेरे सांसद इस पर आपत्ति कर सकते हैं, लेकिन कभी-कभी सत्य की जीत होनी ही चाहिए, क्योंकि गांधी जी ने हमें सिखाया है कि सत्य की शक्ति यह है कि आप जो कहने जा रहे हैं उस पर आपको दृढ़निश्चय हो और आपको उससे जुड़े दृष्टांत याद रखने की आवश्यकता न हो।
मेरा दृढ़ विश्वास है कि लोकतंत्र मुख्य रूप से अभिव्यक्ति और संवाद से परिभाषित होता है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। हमारे वैदिक दर्शन में इसे अनंत वाद कहा गया है। इसकी बुनियादी बात यह है कि परस्पर दूसरों के दृष्टिकोण का सम्मान करें- यह अपरिहार्य है, इस पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता।
अक्सर मेरा अपना अनुभव यह दर्शाता है कि दूसरों का दृष्टिकोण सही होता है। मित्रों, भारत जैसे देश में, जहां मानवता का छठा हिस्सा रहता है, वहां ऐसे सम्मानित श्रोताओं के साथ अपने विचार साझा करना मेरे लिए गौरव और सौभाग्य की बात है। 5000 वर्षों की सभ्यतागत परंपराओं वाला यह पृथ्वी का सबसे जीवंत, सबसे प्राचीन और सबसे विशाल लोकतंत्र है। मैं वास्तव में इस अवसर के लिए बहुत आभारी हूं। श्री राम माधव ने दो दशकों से अधिक के लेखन के माध्यम से दार्शनिक और विचारक के रूप में अपनी पहचान बनाई है। इंडियन एक्सप्रेस में कई विषयों पर उनके स्तंभ पाठकों के लिए अत्यंत आनंददायक, विचारोत्तेजक और मुद्दों के समाधान की दिशा में मानवीय प्रतिभा को प्रेरित करने वाले होते हैं।
मैं ‘द न्यू वर्ल्ड: ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी वर्ल्ड ऑर्डर एंड इंडिया' नामक पुस्तक के लेखन के रूप में इस प्रभावशाली और चुनौतीपूर्ण कार्य के लिए उनकी बहुत सराहना करता हूं। इस पुस्तक में वर्तमान और चरमराती उदार व्यवस्था के संबंध में मंथन किया गया है और संभावित नई व्यवस्था की झलक प्रस्तुत की गई है। इसने प्रथमदृष्टया मुझे पॉल कैनेडी की 'द राइज़ एंड फ़ॉल ऑफ़ ग्रेट पॉवर्स' की याद दिला दी।
भारत में हिंदू दर्शन पर आधारित रणनीतिक विचार प्रक्रिया के संबंध में जॉर्ज टैनहम नामक एक अमेरिकी विचारक ने लगभग तीन दशक पहले एक ग्रंथ में प्रभावशाली ढंग से कहा था कि भारत में रणनीतिक सोच का अभाव है। श्री राम माधव की पुस्तक से ऐसा प्रतीत होता है कि जॉर्ज टैनहम सही साबित होते हैं। यह पुस्तक एक विस्तृत, विशाल और चिरस्थायी कार्य है जिसमें विश्व व्यवस्थाओं और उसमें भारत के स्थान के संबंध में भारतीय विचारकों की राय को प्रकट किया गया है।
वैदिक ग्रंथों में ब्रह्मांड की विराट व्यवस्था और उसमें भरत खंड या भारत के स्थान का प्रमाण दिया गया है। महा उपनिषदों में आदर्श के रूप में कहा गया है- अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्। इसमें हमारा दर्शन और विश्व के प्रति हमारा दृष्टिकोण समाहित है। इसे कई अवसरों पर देखा गया है और हाल के घटनाक्रमों से भी यह आसानी से प्रमाणित हो सकता है।
मित्रों, इसका अर्थ है कि "यह मेरा है, वह उसका है, ऐसा संकीर्ण मानसिकता वाले लोग कहते हैं। विशाल हृदय वाले लोगों के लिए तो पूरा विश्व ही एक परिवार है।" भारत का पूरे विश्व को यही संदेश है कि हमारे लिए संपूर्ण विश्व हमारा परिवार है। यह संदेश निरंतर रहा है। यह एक ऐसा संदेश है जिससे भारत भूमि कभी नहीं अलग होगी और इसमें एकसमान और समुदाय आधारित विश्व व्यवस्था की कल्पना की गई है।
महाभारत में राजधर्म (या नैतिकतापूर्ण शासन कला) और धर्मयुद्ध (न्यायपूर्ण युद्ध) का सिद्धांत; अशोक के शिलालेखों में धम्म आधारित कूटनीति; और कौटिल्य का मंडल सिद्धांत- ये सभी रणनीतिक वातावरण के लिए दिए गए सिद्धातों के उदाहरण हैं, जो सभी के लिए लाभकारी हैं। ये दर्शन हमेशा प्रासंगिक रहे हैं। लेकिन, समकालीन परिस्थितों में ये वैश्विक व्यवस्था की आवश्यकता बन गए हैं।
भारतीय चिंतन प्रक्रिया में ऐतिहासिक रूप से निरंतरता बनी रही है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत के विचारकों ने युद्धोत्तर व्यवस्था के लिए स्वयं को तैयार किया। केएम पणिक्कर उन कई लोगों में से एक थे जिन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया।
केएम पणिक्कर ने कहा था कि युद्ध के उपरांत एशियाई देशों के लिए बहुत अधिक संभावना होगी क्योंकि औपनिवेशिक शक्तियों ने मौजूदा व्यवस्था में अपने उपनिवेशों की भूमिका को सीमित कर दिया है। यह बात बड़ी तेजी से महसूस की जा रही है। निश्चित रूप से यह विश्लेषण भविष्य की ओर संकेत करता है।
उपनिवेशवाद और दमनकारी औपनिवेशिक शक्तियां केवल अपने लाभ के लिए मानव और संसाधनों का निर्दयतापूर्वक शोषण करती रहीं। पणिक्कर ने एशिया और पश्चिमी प्रभुत्व में युद्ध के उपरांत की व्यवस्था का वह दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जिसमें एशिया और पश्चिमी शक्तियां बराबरी के स्तर पर होंगी। पणिक्कर ने समुद्री और महाद्वीपीय क्षेत्र के बड़े खिलाड़ी के रूप में भी भारत की कल्पना की, जिसकी वैश्विक समुद्री व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका होगी। वह जहां भी हों, उनकी आत्मा को यह जानकर बड़ी शांति मिलेगी कि इस समय क्या हो रहा है, जिसके बारे में उन्होंने पहले ही सोचा था।
उन्होंने समानता पर आधारित व्यवस्था और वैश्विक शांति एवं सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए भारत के सैद्धांतिक रुख पर बल दिया था। हमारा देश हमेशा वैश्विक शांति और सद्भाव के पक्ष में खड़ा रहा है। इतिहास साक्षी है, वह कभी भी विस्तारवाद में शामिल नहीं रहा। ऐसे में, खासकर भारत जैसे शांतिप्रिय देशों के लिए वर्तमान समकालीन वैश्विक परिदृश्य विचारणीय और चिंताजनक है।
आज जब हम इतिहास के महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़े हैं तब राम माधव भारत के विचारकों की उस शानदार परंपरा में शामिल हो गए हैं जिन्होंने अतीत, वर्तमान और भविष्य के बारे में सोचने की बौद्धिक चुनौती को बड़ी तत्परता और जोश के साथ स्वीकार किया। इसमें दस चुनौतियों का उनका वर्णन विशेष रूप से प्रेरक है। उन्होंने यह स्वीकार किया है कि ऐसी कई और चुनौतियां हैं। भारत जैसे देशों की सभ्यतागत परंपराओं पर आक्रमण निश्चित रूप से ऐसी ही चुनौतियों में से एक होगा। मैं आपसे यह अवश्य साझा करना चाहूंगा कि कुछ चुनौतियां राष्ट्र के अस्तित्व से जुड़ी हैं। मैं उन पर अधिक चर्चा नहीं करूंगा, लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि टाइम बम टिक-टिक कर रहा है।
पांच हजार वर्षों के इतिहास वाले इस देश में बदलाव की बहुत संभावनाएं हैं, परन्तु, खास तौर से एक बार जनसांख्यिकीय और सभ्यतागत चरित्र में परिवर्तन लाने के लिए किया गया प्रयास चिंता पैदा करता है क्योंकि उसका घरेलू और वैश्विक दोनों ही व्यवस्थाओं पर असर पड़ेगा। हमारी पहचान और इसकी प्राचीन मूल्य प्रणाली को संरक्षित किया जाना चाहिए क्योंकि यह वैकल्पिक नहीं है। हम इसके लिए खड़े हैं। मित्रों, जैसा कि मैंने कहा, अस्तित्व से जुड़ी ये चुनौतियां टिक-टिक करते टाइम बम की तरह हैं। समय बीत रहा है। उनके निष्प्रभावी होने का इंतज़ार है और यह इंतज़ार बढ़ता जा रहा है। हम कई पहलुओं पर उलझन में हैं। किसी भी तरह से देर होने से स्थिति और खराब हो सकती है, जिसे दुरुस्त नहीं किया जा सकेगा।
‘न्यू वर्ल्ड: ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी वर्ल्ड ऑर्डर एंड इंडिया’ के पन्नों को पलटते हुए मुझे लगा कि लेखक के विचारों में विनायक दामोदर सावरकर की छाप है। मुझे अंडमान और निकोबार जाने का अवसर मिला है, सेलुलर जेल के उस कमरे में कुछ समय बिताने का मौका मिला है जिसमें सावरकर को रखा गया था। यह मेरे मस्तिष्क से नहीं बल्कि मेरी आत्मा से व्यक्त हो रहा है। तमाम असहनीय आशंकाओं के बावजूद सावरकर युद्ध के बाद की व्यवस्था के शुरुआती दौर में खड़े प्रसिद्ध विचारक के रूप में स्थापित हैं।
पक्के यथार्थवादी के रूप में सावरकर को युद्ध के बाद की उस विश्व व्यवस्था में यकीन था जिसमें राष्ट्र केवल अपने हितों के लिए काम करेंगे, न कि आदर्शवाद, नैतिकता या अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता के आधार पर आगे बढ़ेंगे। कल्पना कीजिए कि वह कितने बड़े भविष्यवक्ता रहे होंगे। पिछले पखवाड़े और पिछले तीन महीनों के घटनाक्रम पर नज़र डालें। सब हम सभी ने यह साफ-साफ देखा है। उन्होंने युद्ध विरोधी या काल्पनिक अंतर्राष्ट्रीयतावाद को खारिज कर दिया था और इस बात पर बल दिया था कि भारत को अपनी संप्रभुता की रक्षा अपनी शक्ति के माध्यम से करनी चाहिए, न कि लीग ऑफ नेशंस या बाद में संयुक्त राष्ट्र जैसे पश्चिमी-प्रभुत्व वाले संस्थानों पर निर्भर रहकर, जो विश्व में आबादी के छठे हिस्से के निवास वाले भू-भाग के उचित स्थान की अनदेखी करते हैं।
शक्ति से ही शांति स्थापित होती है और संप्रभुता सबसे अच्छी तरह से तब सुरक्षित होती है जब हम युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। मित्रों, मैं लेखक के विचार से पूरी तरह सहमत नहीं हो सकता। वह "वैश्विक बहुपक्षवाद की निरंतर गिरावट" पर प्रकाश डालते हैं और भारत को "रोमांटिकता छोड़ने" और "आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने" का सुझाव देते हैं। यह कहते हुए मैं आपको बताऊं कि मैंने अपने बड़े अच्छे मित्र, सांसद पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी को सुना। उन्होंने भी कुछ अलग ढंग से अपनी बात कही। मैं कोई प्रतिवाद नहीं कर रहा हूं।
मित्रों, आज भारत को मजबूत करना ही इस सरकार का सिद्धांत और संकल्प है। सरकार अपने इरादे पर अडिग है, दृढ़ है, किसी भी बात पर समझौता नहीं करने वाली है और आलोचनाओं से भी सहमत नहीं है। सरकार की रीढ़ मजबूत है। देश ने कभी भी इतनी दृढ़ता से अपना पक्ष नहीं रखा है। हमें इस बात से गुमराह नहीं होना चाहिए कि किसने क्या कहा?
सरकार और उसके लोग राष्ट्र के लिए, राष्ट्र प्रथम और हमारे राष्ट्रवाद के लिए दृढ़ता से खड़े हैं, जरा सोचिए, डिजिटल से लेकर भौतिक बुनियादी ढांचे तक और शोध से लेकर शिक्षा तक, भारत अपनी ताकत को मजबूत करने के लिए पूरी तरह समर्पित है। इसमें कोई उलझन नहीं है। भारत को जिस तरह की शक्ति की जरूरत है, उसे लोगों को काफी हद तक सशक्त बनाकर हासिल किया गया है। यह एक ऐसा पैमाना है जो हैरान करने वाला है। 50 लाख से अधिक लोग बैंकिंग समावेशन में शामिल हो रहे हैं। जिस पैमाने पर लोगों को गैस कनेक्शन मिले हैं, उस स्तर को देखें और और हर क्षेत्र में डिजिटल पहुंच के स्तर को भी देखें। मैं और अधिक विस्तार में नहीं जाना चाहता, आप यह जानते हैं।
इस तरह के परिवर्तनों ने पिछले दशक में भारत को विश्व का सबसे विकसित राष्ट्र बना दिया है। दुनिया की बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को ध्यान में रखते हुए और तेज़ी से विकास करते हुए भारत विश्व का ऐसा राष्ट्र बन गया है जिसकी आकांक्षाएं बहुत बड़ी हैं। ये सब ऐसे समय में हो रहा है जब हमें बड़ी आसानी से गलत समझा जाता है। मज़े की बात यह है कि जब आप ये बातें कहते हैं तो पाखंडी चाटुकार आपको आपकी स्थिति से वंचित करने के लिए उस तरफ इशारा करते हैं, सामान्य रूप से जिसको लेकर खुद उन पर ही उंगुली उठाई जानी चाहिए।
मित्रों, 50 के दशक के फेबियन समाजवादी भी देश की उस दिशा से मुंह नहीं मोड़ सकते, जिसे हम हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं। और हम क्या हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं? क्या हम उस भारत का निर्माण नहीं कर रहे हैं, जिसका जन्म 15 अगस्त, 1947 को नहीं हुआ था। हमने केवल औपनिवेशिक सत्ता से मुक्ति पाई थी। सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः यही हमारा दर्शन है “सभी प्राणी सुखी हों; सभी प्राणी रोग मुक्त हों।”
पिछले दशक के दौरान विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का तमगा बरकरार रखते हुए भारत अब लाभकारी युवा जनसांख्यिकी के साथ ऐसा राष्ट्र बन गया है जिससे सबसे अधिक उम्मीदें हैं। हमारी औसत युवा आयु 28 वर्ष है, हम चीन और अमेरिका से एक दशक छोटे हैं। मित्रों, जैसे-जैसे हम अपने सभी नागरिकों के कल्याण के लिए आगे बढ़ते हैं, तब हम दूसरों के लिए रोल मॉडल बन जाते हैं। हम खोखली बयानबाजी नहीं करते, बल्कि सबसे आगे बढ़ने के उदाहरण बन गए हैं।
हम पहले से ही डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों में अग्रणी हैं। वंचित और विकासशील देश हमारे रास्ते पर चल सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व के कारण जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान वैश्विक चिंता के मामलों को चर्चा के लिए निगाह में रखा जा सका। पहली बार ऐसा हुआ कि अफ्रीकी संघ को जी-20 की सदस्यता में यूरोपीय संघ के बराबर रखा गया। मैं इसे एक आमूल-चूल बदलाव वाली प्रगति कहूंगा। इसलिए, जब हम भारत की शक्ति का आकलन करते हैं तो हमारा दृष्टिकोण व्यापक होना चाहिए, न कि अलग-अलग घटनाओं से निर्धारित होना चाहिए। जो लोग क्षणिक स्थितियों के लिए खड़े होते हैं, वे इस भारत के बेड़े में नहीं हैं।
एक बार जब हम अपने अंदर की ताकत हासिल कर लेते हैं तब हम अपने बाहरी रणनीतिक माहौल को आकार दे सकते हैं। मित्रों, चूंकि हम वैश्विक व्यवस्थाओं की बात कर रहे हैं, इसलिए भारत का उदय उसके अनुकूल है, सभी के लिए लाभकारी है, किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता है, यही वसुधैव कुटुम्बकम है।
इस देश का इतिहास आक्रमणों और विजय का नहीं है, इसलिए यह सबके अनुकूल है। हम अपनी शक्ति को बाहरी क्षेत्रों में आक्रमण के माध्यम से प्रदर्शित नहीं करते हैं। देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कुछ वर्ष पहले वैश्विक समुदाय को संदेश दिया था कि हम विस्तारवादी युग में नहीं रह रहे हैं। उन्होंने पूरी दुनिया को संदेश दिया कि हमारा देश मानता है, सभी वैश्विक विवादों, विध्वंसक मतभेदों को बातचीत और कूटनीति के माध्यम से हल किया जाना चाहिए। और जब हाल ही में सीमा पार से आतंकवादी हमला हुआ तो प्रधानमंत्री ने ऐसा ही किया। उन्होंने केवल आतंकवादियों को निशाना बनाया। नागरिक आबादी को बचाए रखने के लिए बेहद सटीक कार्रवाई की गई। जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े बहावलपुर और मुरीदके इसके प्रमाण हैं। और इस हमले ने कितना गहरा घाव दिया, इसका प्रमाण यह है कि आतंकवादियों, मंत्रियों और सेना की वर्दी वाले लोगों के साथ ताबूतों को कब्रिस्तान ले जाया गया। जब आत्मरक्षा की बात आती है, तो हमारे रणनीतिक विचारों में बल प्रयोग वैध माना गया है क्योंकि हम धर्म-युद्ध या केवल युद्ध में विश्वास करते हैं। मैंने प्रारंभ में ही यह कहा था। हमारे वैदिक दर्शन में इसे पुनीत कर्म माना गया है।
मित्रों, मैं पुनः हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर की बात करना चाहता हूं। इस हमले में केवल 26 लोगों की जान नहीं गई, बल्कि भारत की आत्मा को भी चोट पहुंचाई गई। हम गांधी की धरती हैं, वहां ऐसी बर्बरता? आतंकवाद का ऐसा कृत्य भारत की अखंडता, एकता और शुचिता तथा भारतीय मूल्यों पर हमला था।
मैं पूरी दृढ़ता के साथ कहना चाहता हूं कि समावेशिता हमारी सभ्यता की रगों में है। विश्व में कोई भी व्यक्ति इस स्तर तक नहीं पहुंच सकता कि वह हमें यह सिखा सके कि समावेशिता क्या है, क्योंकि भारत में सदियों से समावेशिता का वास रहा है।
दूसरा पहलू यह है कि अब तक हमारा उत्थान वैश्विक व्यवस्था के लिए लाभकारी रहा है। हमने स्वयं को अच्छाई के लिए काम करने वाली शक्ति सिद्ध किया है। जब विश्व के कोने-कोने में विनाशकारी कोविड महामारी फैली थी तब हम 100 से अधिक देशों को टीके उपलब्ध कराकर दुनिया के औषधालय बन गए। हमने अपने अद्वितीय डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को सबके लिए, सार्वजनिक बना दिया है और विश्व में कई देश इसे अपना रहे हैं।
मैंने 1989 में संसद सदस्य के रूप में सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया और मुझे मंत्री बनने का सौभाग्य मिला। मैंने कभी नहीं सोचा था कि भारत को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक से इतनी प्रशंसा मिलेगी। हमारे डिजिटलीकरण मॉडल की इतनी सराहना होगी कि छह वर्षों की हमारी उपलब्धियों की थाह चार दशकों से अधिक समय में भी आसानी से नहीं लगायी जा सकेगी। इसलिए हमने एक बार फिर अपने दर्शन को सही साबित किया है।
जब मानवीय प्रयासों की बात आती है तो हम दोस्तों और दुश्मनों दोनों को बचाने के लिए आगे आते हैं। जैसा कि हमारे प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री ने बार-बार कहा है कि हमारा लक्ष्य हिंद महासागर क्षेत्र में 'संपूर्ण सुरक्षा प्रदाता' बनना है। जब संकट होता है, जब भी जरूरत होती है, तब भारत सबसे पहले प्रतिक्रिया देने वाला होता है। हमने यह करके दिखाया है। जब दुनिया युद्ध की राह पर होती है तब हम दूसरों को बातचीत और कूटनीति के लिए भी राजी करते हैं। हम इस कठिन समय को भी देख रहे हैं। हम सभी को याद दिला रहे हैं कि यह युद्ध का समय नहीं है। हमारे लिए यह केवल शांति, समृद्धि, सद्भाव, सभी के विकास का समय है, जिसका मंत्र है- वसुधैव कुटुम्बकम।
भारत का मानना है कि ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका समाधान कूटनीति के रास्ते से न हो। यहां जो श्रोतागण हैं, उनका अनुभव मुझसे भी अधिक है। युद्ध कितना भी भयंकर क्यों न हो, अंतिम समाधान वार्ता से ही निकलता है। जरा सोचिए, पीड़ित कौन हैं? उन्हें कितनी जल्दी भुला दिया जाता है? उनकी पीड़ा आजीवन बनी रहती है, इसलिए इस मार्ग की वकालत की जाती है और इसीलिए जी-20 के दौरान भारत ने “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य” का नारा देकर विश्व को शांति का यह संदेश दिया।
मित्रों, भारत के उत्थान के मार्ग पर सावधानी से चलना होगा। ऐसी शक्तियां भी हैं जो हमारे जीवन को कठिन बनाने पर तुली हुई हैं। देश के अंदर और बाहर भी ऐसी ताकतें हैं। हमारे हितों को नुकसान पहुंचाने वाली ये दुष्ट ताकतें भाषा जैसे मुद्दों पर हमें बांटकर हमारा नुकसान करना चाहती हैं। भला कौन-सा देश भारत जैसी भाषाई समृद्धि पर गर्व कर सकता है। हमारी शास्त्रीय भाषाओं पर गौर करें, उनकी संख्या कितनी है। संसद में ऐसी 22 भाषाएं हैं, जिनमें से किसी भी भाषा में कोई भी अपनी बात कह सकता है। इसके लिए ऐसे कई विचारकों की आवश्यकता होगी जो एक साथ आकर चुनौतियों और अवसरों पर चर्चा करें और नीति निर्माताओं को सही रणनीतिक निर्णय लेने में सहायता करें।
नीतियों का विकास अब थोड़ा और अधिक प्रतिनिधि चरित्र वाला होना चाहिए। भारत के थिंक टैंक विभिन्न प्रारूपों में उपलब्ध हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए यह आवश्यक है कि उनमें सभी शामिल हों। मैं सुझाव नहीं दूंगा, बल्कि कहूंगा, मनीष जी जानते हैं कि राजनीतिक तापमान कम होना चाहिए। राजनीतिक दलों के बीच अधिक संवाद होना चाहिए। मेरा दृढ़ विश्वास है कि देश में हमारा कोई दुश्मन नहीं है, हमारे बाहर दुश्मन हैं और जो देश में दुश्मन हैं, वे बहुत कम हैं। वे भारत के लिए शत्रुतापूर्ण रुख रखनेवाली बाहरी शक्तियों से जुड़े हैं।
मुझे बेहद खुशी है कि यह पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है और आने वाली पीढ़ियों के विद्वान और विचारक जो इस विषय पर विमर्श करेंगे, उन्हें इस मौलिक कार्य को अवश्य देखना होगा। मैं इस पुस्तक को प्रकाशित करने के लिए लेखक की सराहना करता हूं।
मित्रों, मैं यह कहकर अपनी बात समाप्त करना चाहता हूं कि भारत अब केवल संभावनाओं वाला राष्ट्र नहीं रहा, विकसित भारत हमारा सपना नहीं है, यह हमारी मंजिल है। यह उन्नति अजेय है, यह उन्नति क्रमिक है और हम भारत का सबसे शांतिपूर्ण पुनरुत्थान देखेंगे जो ऐतिहासिक होगा और देश का हर व्यक्ति, देश की हर एक आत्मा इसके लिए प्रतिबद्ध है क्योंकि राष्ट्र प्रथम की सोच वैकल्पिक नहीं है। हम भारतीय हैं, भारतीयता हमारी पहचान है, राष्ट्रीयता हमारा धर्म है।
धन्यवाद।
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(Release ID: 2139190)