भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार का कार्यालय
azadi ka amrit mahotsav

पीएसए प्रो. अजय सूद ने एसटीईएमएम स्व-मूल्यांकन और रिपोर्टिंग ढांचे में समावेशिता के संचालन पर चर्चा करने के लिए बैठक की अध्यक्षता की

Posted On: 28 MAY 2025 6:09PM by PIB Delhi

भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय ने विभिन्न हितधारकों के परामर्श से कार्यालय द्वारा तैयार विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित और चिकित्सा में समावेशिता पर स्व-मूल्यांकन और रिपोर्टिंग फ्रेमवर्क (समावेश-एसटीईएमएम-एसएआरएफ) के संचालन पर चर्चा करने के लिए 28 मई, 2025 को एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई। भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार(पीएसए) प्रो. अजय कुमार सूद की अध्यक्षता में हुई बैठक में क्षमता निर्माण आयोग के सदस्य (मानव संसाधन) डॉ. आर. बालासुब्रमण्यम, सदस्य (मानव संसाधन), क्षमता निर्माण आयोग; श्री विनीत जोशी, सचिव, उच्च शिक्षा विभाग; डॉ. परविंदर मैनी, वैज्ञानिक सचिव, भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार का कार्यालय; सुश्री सौम्या गुप्ता, संयुक्त सचिव (तकनीकी शिक्षा), उच्च शिक्षा विभाग; सुश्री नवनीता गोगोई, डीडीजी (सांख्यिकी), उच्च शिक्षा विभाग; डॉ. अमित दत्ता, निदेशक, नीति एवं शैक्षणिक योजना ब्यूरो, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद शामिल हुए। एसएआरएफ अभ्यास का कार्यान्वयन प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय (ओपीएसए), क्षमता निर्माण आयोग (सीबीसी), उच्च शिक्षा विभाग (डीएचई) और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है।

पीएसए ने बैठक की शुरुआत एसटीईएमएम के महत्व को बताते हुए की, जो समावेशिता के संबंध में मौजूद अंतरों को दूर करने में मदद करेगा। प्रोफेसर सूद ने कहा, "एसटीईएमएम में समावेशिता न केवल एक नैतिक अनिवार्यता है, बल्कि एक वैज्ञानिक और विकासात्मक अनिवार्यता भी है। विविध दृष्टिकोण बेहतर नवाचार, अधिक प्रासंगिक शोध और न्यायसंगत परिणामों को बढ़ावा देते हैं।" उन्होंने रेखांकित किया कि भारतीय संदर्भ में, हमारी जनसांख्यिकीय विविधता और सामाजिक-आर्थिक जटिलता के साथ, समावेशी वैज्ञानिक तंत्र का निर्माण एक चुनौती और आवश्यकता दोनों है। लैंगिक समानता के साथ-साथ यह रूपरेखा सामाजिक-आर्थिक, भाषाई और ज्ञान संबंधी विविधता आदि जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में भी बात करती है, इसके साथ ही न्यायपूर्ण, नैतिक और खुले विज्ञान जैसे महत्वपूर्ण आयामों पर भी चर्चा करती है।

डॉ. मैनी ने कहा, " समावेशिता के सिद्धांतों को विश्व स्तर पर स्वीकार किया जाता है, उनका कार्यान्वयन अत्यधिक विषम है, जो देश, क्षेत्र और अनुशासन के अनुसार अलग-अलग है। भारत का अनूठा सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ हमें एसटीईएमएम में समावेशिता का अधिक सुविचारित और स्थानीय रूप से निहित मॉडल विकसित करने के लिए बाध्य करता है।" ओपीएसए I-स्टेम, रूटेग, वन हेल्थ मिशन, वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन और राष्ट्रीय आजीविका मिशन जैसी अपनी पहलों के माध्यम से इस दृष्टिकोण के लिए प्रतिबद्ध है, जिनमें से प्रत्येक कार्रवाई में समावेशिता को दर्शाता है। डॉ. मैनी ने एक संरचित, एकीकृत और मापनीय दृष्टिकोण की आवश्यकता पर भी जोर दिया, जो संस्थानों को खुद का आकलन करने, प्रगति का मानक तय करने और अंतराल की पहचान करने में सक्षम बना सके। इसी वजह से समावेशिता-एसटीईएमएम स्व-मूल्यांकन और रिपोर्टिंग फ्रेमवर्क की शुरुआत हुई।

इस विचार की शुरुआत 2023 के जी20 मुख्य विज्ञान सलाहकारों के गोलमेज सम्मेलन (सीएसएआर) के दौरान हुई, जहाँ विज्ञान और प्रौद्योगिकी में समावेशिता एक मुख्य एजेंडा के रूप में उभरी। प्रणालीगत असमानताओं को दूर करने, ज्ञान की बहुलता को बढ़ावा देने और भाषाई और ज्ञानात्मक विविधता सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर एक मजबूत सहमति थी। इन वैश्विक अंतर्दृष्टि को भारत के लिए कार्रवाई योग्य कदमों में बदलने के लिए, एक स्थिति पत्र का मसौदा तैयार किया गया था, जिसमें भारत के एसटीईएमएम तंत्र के लिए सबसे अधिक प्रासंगिक समावेशिता के प्राथमिकता वाले आयामों को रेखांकित किया गया था, जिसे व्यापक सहयोग और परामर्श के माध्यम से आगे बढ़ाया गया। ओपीएसए ने इस समावेशिता-एसटीईएमएम एसएआरएफ को संरचना, अंतर्दृष्टि और जवाबदेही लाने के प्रयास के रूप में विकसित किया कि कैसे संस्थान समावेशिता का दृष्टिकोण अपनाते हैं।

बैठक के दौरान, ओपीएसए के दक्षता लिंगायत ने एक प्रस्तुति दी जिसमें ढांचे और उसके मापदंडों का अवलोकन, हितधारक परामर्श प्रक्रिया के संदर्भ में इसका विकास और प्रस्तावित कार्य बिंदुओं को दर्शाया गया। भारत के एसटीईएमएम तंत्र की अनूठी विशेषताओं को पहचानते हुए, ढांचा 'एक आकार सभी के लिए उपयुक्त' दृष्टिकोण से आगे बढ़ता है। यह वैश्विक सर्वोत्तम विधियों से प्रेरणा लेता है और उन्हें वैचारिक और प्रासंगिक समझ दोनों के माध्यम से भारत की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप ढालता है।

डॉ. बालासुब्रमण्यम, सदस्य (एचआर-सीबीसी) ने अपने संबोधन में प्रस्तावित ढांचे के आसपास एक संरचित क्षमता-निर्माण मॉड्यूल विकसित करने और इसे सुशासन में आत्मसात करने के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एसटीईएमएम पारिस्थितिकी तंत्र में समावेशिता के लिए ढांचा प्रतिनिधित्व से परे है, जिसका उद्देश्य संस्थागत उत्कृष्टता को बढ़ावा देना है। डॉ. बालासुब्रमण्यम ने आगे कहा कि एक बार प्रायोगिक और मान्य होने के बाद, यह ढांचा वैश्विक दक्षिण के देशों के लिए एक बेंचमार्क मॉडल के रूप में काम करने की क्षमता रखता है।

डीएचई के सचिव श्री विनीत जोशी ने इस ढांचे के पांच मापदंडों की अंतर्संबंधता पर प्रकाश डाला और दोहराया कि इसमें समावेशिता के सामाजिक, भौगोलिक और आर्थिक पहलुओं को शामिल करना चाहिए। इसके अलावा, डीएचई की सुश्री नवनीता गोगोई ने अपनी प्रस्तुति में अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (एआईएसएचई) डेटाबेस और समावेशिता से संबंधित इसके पहलुओं का अवलोकन साझा किया।

एआईसीटीई के नीति एवं शैक्षणिक योजना ब्यूरो के निदेशक डॉ. अमित दत्ता ने फ्रेमवर्क और एआईसीटीई के अंतर्गत आने वाले तकनीकी संस्थानों से अच्छे प्रतिनिधित्व के महत्व के बारे में बात की।

बैठक का समापन समावेशिता-एसटीईएमएम-एसएआरएफ पहल को आगे बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण निर्णयों के साथ हुआ। यह निर्णय लिया गया कि डीएचई के साथ मिलकर एक उपयुक्त प्रायोगिक रणनीति के साथ एक स्व-मूल्यांकन और रिपोर्टिंग रूपरेखा का संचालन किया जाएगा। एसटीईएमएम में समावेशिता पर एक क्षमता निर्माण मॉड्यूल सीबीसी के साथ मिलकर विकसित किया जाएगा। इन प्रयासों की देखरेख और समन्वय के लिए, ओपीएसए, डीएचई, सीबीसी और एआईसीटीई के प्रतिनिधियों से मिलकर एक संयुक्त कार्य समूह का गठन किया जाएगा।

***

एमजी/केसी/जेके/चबी  


(Release ID: 2132160)
Read this release in: English , Urdu , Tamil