कोयला मंत्रालय
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सतत विकास और वैश्विक नेतृत्व के लिए कोयले का कार्यनीतिक इंजन में बदलाव


(केन्द्रीय कोयला एवं खान मंत्री श्री जी. किशन रेड्डी का लेख)

Posted On: 26 MAY 2025 5:39PM by PIB Delhi

श्री नरेन्द्र मोदी ने आज के ही दिन 26 मई, 2014 को पहली बार प्रधानमंत्री के रूप में पदभार ग्रहण किया और भारत के पुनरुत्थान के मिशन को गति दी। तब से प्रत्येक क्षेत्र में व्यापक स्तर पर परिवर्तन और नई ऊर्जा देखी गई है, कोयला इसका प्रमुख उदाहरण है।

पिछले वित्तीय वर्ष में कोयला उत्पादन और डिस्पैच में 1 बिलियन मीट्रिक टन को पार करने की भारत की दोहरी उपलब्धि न केवल हमारी ऊर्जा सुरक्षा आवश्यकताओं को मजबूत करती है, बल्कि बिजली की किफायती, विश्वसनीय और निरंतर आपूर्ति में भी महत्वपूर्ण योगदान देती है। यह उपलब्धि अपने आप में खनन से सीधे जुड़े लगभग 5 लाख श्रमिकों की कड़ी मेहनत का प्रमाण है। इसके अतिरिक्त, कई अन्य लोग भी हैं जो अप्रत्यक्ष रूप से इस सेक्टर में योगदान देते हैं।

हालांकि, यह ऐतिहासिक उपलब्धि रातोंरात प्राप्त नहीं हुई है, बल्कि यह एक दशक के व्यापक सुधारों का परिणाम है। 2014 में कोयला सेक्टर पूरी तरह से अव्यवस्थित क्षेत्र था। नाटकीय रूप से बढ़ती मांग की तुलना में कोयले के उत्पादन में भारी कमी थी। कोयला और लिग्नाइट उत्पादन में 2009-2010 में 566 मिलियन टन से 2013-2014 में 610 मिलियन टन तक मामूली वृद्धि देखी गई। एक बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में हमारी आवश्यकताओं के लिए 1.89 प्रतिशत की संचयी वार्षिक वृद्धि दर पर्याप्त नहीं थी। इसे नवनिर्वाचित नरेन्द्र मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक माना जा रहा था। 2015 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 204 कोयला ब्लॉकों को रद्द करने से सरकार को रूपांतरकारी बदलाव की खोज करने का अवसर मिला। 2020 में वाणिज्यिक कोयला खनन की शुरुआत हुई, जिसने पारदर्शिता और प्रतिस्पर्धा के एक नए युग की शुरुआत की।

दस वर्ष बाद, मार्च-2025 तक लगभग 150 कोयला खदानों की सफलतापूर्वक नीलामी की जा चुकी है। जून, 2020 में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा वाणिज्यिक कोयला खनन के शुभारंभ के बाद से नीलामी के 11 दौर पूरे हो चुके हैं और वाणिज्यिक कोयला खदान नीलामी का 12वां दौर जो हाल ही में मार्च, 2025 में शुरू किया गया था, प्रगति पर है। परिणाम खुद ही बोलते हैं: पिछले एक दशक में भारत के कोयला उत्पादन में 70 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है- पारदर्शिता, दक्षता और स्थिरता के साथ यह एक बड़ी वृद्धि है। राज्य सरकारें सबसे बड़ी लाभार्थियों में से एक रही हैं, जिनके पास नीलामी प्रीमियम और रॉयल्टी के रूप में लगभग 2.50 लाख करोड़ रुपये विभिन्न राज्य सरकारों के कोष में प्राप्त हुए हैं।

कार्यनीतिक साझेदार के रूप में निजी क्षेत्र

स्वतंत्रता के बाद, कोयला उत्पादन को बढ़ाने और विकास के एक नए युग की शुरुआत करने का एक बड़ा अवसर था। हालांकि, निजी क्षेत्र का प्रभावी ढंग से लाभ उठाने के लिए कार्यनीतिक समझ की कमी एक बड़ी बाधा थी। माल ढुलाई समानीकरण नीति जैसी नीतियों ने खनन क्षेत्रों के निकट उद्योग स्थापित करने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं दिया, बल्कि कारखानों को दूर स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया, जिससे सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ।

17 मई, 1957 को तत्कालीन इस्पात, खान और ईंधन मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह ने कोयला खनन उद्योग पर अधिक सार्वजनिक नियंत्रण स्थापित करने और कोयला भंडार वाली या संभावित भूमि के अधिग्रहण के इरादे से लोक सभा में कोयला धारक क्षेत्र (अर्जन और विकास) विधेयक प्रस्तुत किया। 1951 से 1956 के बीच पहली पंचवर्षीय योजना के अंत में भारत का कोयला उत्पादन 38 मिलियन टन था। सदन को संबोधित करते हुए मंत्री महोदय ने कहा, “ब्रिटेन, जो हमारे देश से 13 गुना छोटा है, में कोयला उत्पादन 230 मिलियन टन है। अगर आप अमेरिका को लें, तो यह लगभग 460 मिलियन टन प्रति वर्ष है। सोवियत संघ में यह लगभग 390 मिलियन टन है। यहां तक ​​कि चीन ने भी हाल ही में अपना उत्पादन बढ़ाकर 100 से 120 मिलियन टन प्रति वर्ष कर दिया है।

हालांकि, निजी क्षेत्र के नवोन्मेषण और जोखिम लेने की क्षमताओं तथा भारतीय युवाओं की उद्यमशीलता की भावना में विश्वास की कमी के परिणामस्वरूप 1990 में कोयला उत्पादन लगभग 200 मिलियन मीट्रिक टन पर पहुंच गया। आज की वाणिज्यिक नीलामी व्यवस्था पारदर्शी और संरचित तरीके से एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में निजी क्षेत्र का उपयोग करती है - जो अतीत की तुलना में एक महत्वपूर्ण बदलाव है।

पर्यावरण और स्थिरता संबंधी चिंताओं पर ध्यान देना

दशकों से कोयला और खनन क्षेत्र में पर्यावरण संबंधी चिंताओं की अनदेखी की जाती रही है। हालांकि, पिछले एक दशक में टिकाऊपन सबसे अग्रिम स्थिति में पहुंच गया है। व्यापक स्तर पर वनीकरण, पर्यावरण के अनुकूल खनन प्रथाओं और स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकियों जैसी पहलों ने इस क्षेत्र के पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया है।

चल रही सौर और पवन परियोजनाओं, पंप स्टोरेज प्लांट और कोल इंडिया के पहले गैर-कोयला महत्वपूर्ण खनिज ब्लॉक अधिग्रहण के साथ विविधीकरण ने गति पकड़ी है। विस्फोट-मुक्त कोयला खनन अब उत्पादन में 55 प्रतिशत योगदान देता है, जिससे प्रदूषण में काफी कमी आई है। इसके अतिरिक्त, कैबिनेट ने 8,500 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय के साथ कोयला गैसीकरण को झंडी दे दी है और इस स्वच्छ कोयला विकल्प में निवेश बढ़ाने और एक स्थायी ऊर्जा भविष्य को सुरक्षित करने की योजना बनाई है। अगले कुछ वर्षों में, खदान बंद करना एक मुख्य प्राथमिकता बनी रहेगी और निर्बाध, प्रगतिशील और टिकाऊ खदान बंद करने की गतिविधियों को सक्षम करने के लिए दिशानिर्देशों को संशोधित किया जा रहा है।

भूमिगत खनन के पर्यावरणीय लाभों जैसे कि भूमि पर कम व्यवधान, निम्न उत्सर्जन और अधिक गहराई पर खनन आदि को देखते हुए, हमारी सरकार इसे काफी प्रोत्साहित कर रही है। 2029-30 तक 100 मीट्रिक टन तक पहुंचने के लिए एक स्पष्ट रोडमैप पहले से ही पूरी प्रतिबद्धता के साथ लागू किया जा रहा है।

इसके अतिरिक्त, मंत्रालय फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी (एफएमसी) परियोजनाओं पर तेजी से काम कर रहा है, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि 90 प्रतिशत कोयला कन्वेयर बेल्ट, साइलो और रैपिड लोडिंग सिस्टम तथा वाटर स्प्रिंकलर सहित मशीनीकृत और पर्यावरण अनुकूल प्रणालियों के माध्यम से लोड किया जाएगा।

भारत में रिकॉर्ड कोयला उत्पादन और डिस्पैच के बावजूद, चीन, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और यूरोपीय ब्लॉक जैसे देशों द्वारा प्रति व्यक्ति खपत की जाने वाली कोयला ऊर्जा भारत की प्रति व्यक्ति खपत से काफी अधिक है। कुल कोयला ऊर्जा खपत के मामले में भी भारत चीन और समान आबादी वाले विकसित ओईसीडी ब्लॉक के बाद तीसरे स्थान पर है। बिजली की कुल संस्थापित क्षमता में कोयले के योगदान में गिरावट देखी गई है। 2014-2015 में संस्थापित क्षमता में 60 प्रतिशत योगदान से यह अब घटकर 47 प्रतिशत रह गया है, जबकि सौर और अन्य नवीकरणीय स्रोतों में तेजी आई है। हालांकि, ऊर्जा के एक महत्वपूर्ण प्राथमिक स्रोत के रूप में कोयला भारत को विकसित भारत 2047 की ओर ले जाने की शक्ति प्रदान करता रहेगा।

इसलिए हमारा निरंतर प्रयास होना चाहिए कि हम नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में परिवर्तन के बीच संतुलन बनाएं और साथ ही, टिकाऊ कोयला उत्पादन के लिए पर्यावरण अनुकूल उपायों का नवोन्मेषण और विकास करें।

विकसित भारत 2047 के लिए कोयला सेक्टर

भारत की प्रति व्यक्ति बिजली खपत 1.10 मेगावाट घंटा है, जो विश्व औसत 3.42 मेगावाट घंटा से एक तिहाई से भी कम है। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे हैं और 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन रहे हैं और 2047 तक पूरी तरह से विकसित 35 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में तब्दील हो रहे हैं, हमारी ऊर्जा आवश्यकताएं बढ़ती रहेंगी और कोयला हमारे ऊर्जा मिश्रण में एक महत्वपूर्ण स्तंभ बना रहेगा।

भारत का कोयला क्षेत्र न केवल भारत के विकास को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि यह आधुनिक खनन अर्थव्यवस्था में क्या संभव है, इसके नियमों को भी पुनर्भाषित कर रहा है। भारत शीघ्र ही अपना पहला कोयला व्यापार एक्सचेंज आरंभ करने जा रहा है। यह प्लेटफ़ॉर्म उद्योगों के लिए कोयले की सुविधा प्राप्त करने में क्रांतिकारी बदलाव लाएगा, निर्बाध व्यापार और पारदर्शी मूल्य निर्धारण को सक्षम करेगा, साथ ही हमारी बढ़ती अर्थव्यवस्था को शक्ति प्रदान करने के लिए ईंधन की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करेगा। इस क्षेत्र ने प्रचालनों को सुव्यवस्थित करने और शासन में सुधार करने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों को भी अपनाया है। डिजीकोल पहल का उद्देश्य कोयला खदानों को सुरक्षा और दक्षता सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल ट्विन के अलावा पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए 5जी तकनीक, एआई-संचालित निगरानी, ​​कोयला परिवहन के लिए जीपीएस ट्रैकिंग, ड्रोन सर्वेक्षण और डिजिटल नीलामी प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करने के माध्यम से कोयला खदानों को डिजिटल बनाना है।

एक समय में भ्रष्टाचार में लिप्त और अव्‍यवस्थित रूप से विशाल क्षेत्र के रूप में देखे जाने वाले कोयला और खनन क्षेत्र में पिछले दशक में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। जब हम भविष्य की ओर आधुनिकीकरण, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और टिकाऊ प्रथाओं पर निरंतर ध्यान केंद्रित करते हुए देखते हैं, तब आगे की यात्रा में और भी ऐतिहासिक उपलब्धियों का नजर आना तय लगता है, जो वैश्विक खनन और संसाधन अर्थव्यवस्था में एक अग्रणी देश के रूप में भारत की भूमिका को मजबूत करेंगे।

(जी. किशन रेड्डी केंद्रीय कोयला एवं खान मंत्री हैं तथा सिकंदराबाद लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं)

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