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आईजीएनसीए ने पद्म पुरस्कार विजेताओं को सम्मानित किया

Posted On: 29 APR 2025 10:05PM by PIB Delhi

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) में मंगलवार को एक भव्य सम्मान समारोह आयोजित किया गया जिसमें कला और मंदिर वास्तुकला के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित पांच प्रतिष्ठित हस्तियों को सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम में सम्मानित होने वाले पुरस्कार विजेताओं में शामिल थे: कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए प्रसिद्ध कला इतिहासकार प्रो. रतन परिमू, शास्त्रीय कला के क्षेत्र में उनके कार्यों के लिए प्रख्यात संगीतज्ञ और शिक्षाविद् प्रो. भारत गुप्त, विशिष्ट मूर्तिकार श्री अद्वैत चरण गडनायक, प्रतिष्ठित मंदिर वास्तुकार श्री राधाकृष्णन स्थापती और पारंपरिक संगीत के संरक्षण और प्रदर्शन में उनके योगदान के लिए प्रसिद्ध मांड और भजन गायिका बेगम बतूल। इस कार्यक्रम की परिकल्पना डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने की थी।

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डॉ. सोनल मानसिंह ने अपने संबोधन में पद्म पुरस्कार विजेताओं को हार्दिक बधाई दी और भारत की सांस्कृतिक विरासत के अभिन्न अंग के रूप में उनके योगदान को स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि ऐसे व्यक्ति समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत होते हैं और हमारी परंपराओं को बनाए रखने और बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने कहा कि जो लोग इस संस्थान से जुड़ते हैं, उनके बीच अक्सर ऐसा बंधन विकसित हो जाता है जो जीवन भर बना रहता है। उन्होंने उत्कृष्टता केंद्र के रूप में आईजीएनसीए के महत्व पर बोलते हुए कहा कि इसे सटीकता, स्थिरता और अटूट प्रतिबद्धता के साथ अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए मान्यता प्राप्त है। उन्होंने कहा कि यहां सबसे कठिन कार्य भी असाधारण दक्षता और ईमानदारी के साथ किए जाते हैं। उन्होंने कहा कि यह संस्थान एक ऐसा केंद्र है जो अपने दायित्वों को सटीकता, स्थिरता और अटूट प्रतिबद्धता के साथ पूरा करता है।

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'राष्ट्रीय कला केंद्र' भारतीय कला का वास्तविक प्रतीक है।

आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने इस अवसर पर अपने स्वागत भाषण में कहा कि सम्मानित होने वाले प्रत्येक पद्मश्री पुरस्कार विजेता का किसी न किसी रूप में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र से गहरा संबंध है। उन्होंने कहा कि आईजीएनसीए के लिए अपने मंच से ऐसे प्रतिष्ठित विद्वानों को सम्मानित करना गर्व और सम्मान की बात है। अद्वैत गडनायक का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अद्वैत वास्तव में अद्वितीय है। डॉ. जोशी ने बेगम बतूल को प्यार से बड़ी बहन कहकर संबोधित किया। उन्होंने कहा कि पेशे से एक प्रशिक्षित इंजीनियर होते हुए भी राधाकृष्णन स्थापती ने अपने पिता की मंदिर वास्तुकला की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए इंजीनियरिंग को पीछे छोड़ दिया। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि आज मनाया जा रहा बंधन केवल मान्यता का नहीं है, बल्कि आईजीएनसीए के साथ एक गहरे पारिवारिक और भावनात्मक संबंध का भी है।

डॉ. जोशी ने इस वर्ष के पद्म पुरस्कारों के महत्व पर विचार करते हुए कहा कि वैसे तो वार्षिक घोषणाएं हमेशा गर्व का विषय होती हैं लेकिन इस वर्ष यह विशेष रूप से व्यक्तिगत अनुभव था। जिस रात सम्मान घोषित किए गए, उस रात उन्होंने व्यक्तिगत रूप से 22 व्यक्तियों को बधाई दी। सम्मानित किए गए व्यक्तियों में पद्म भूषण से सम्मानित आईजीएनसीए के अध्यक्ष श्री राम बहादुर राय और आईजीएनसीए के ट्रस्टी श्री वासुदेव कामथ के साथ-साथ प्रोफेसर भारत गुप्त भी शामिल थे। दोनों को पद्मश्री मिला है। डॉ. जोशी ने कहा कि आईजीएनसीए के साथ उनके दीर्घकालिक और सार्थक जुड़ाव ने अन्य सम्मानित पुरस्कार विजेताओं की तरह इस समारोह को विशेष रूप से यादगार बना दिया।

आईजीएनसीए के कलाकोश प्रभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. सुधीर लाल ने प्रो. भारत गुप्त और प्रो. रतन परिमू के विशिष्ट योगदान पर बोलते हुए शास्त्रीय विचार और कला इतिहास के क्षेत्र में उनके स्थायी प्रभाव पर प्रकाश डाला। आईजीएनसीए के संरक्षण और सांस्कृतिक अभिलेखागार प्रभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. अचल पंड्या ने श्री डी. राधाकृष्णन स्थापथी के जीवन और कार्यों पर विस्तार से चर्चा की और दक्षिण भारत की मूर्तिकला परंपराओं के प्रति उनके समर्पण और स्वदेशी रूपों को संरक्षित करने की उनकी प्रतिबद्धता की ओर ध्यान आकर्षित किया। आईजीएनसीए के कलादर्शन प्रभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. ऋचा कंबोज ने श्री अद्वैत गडनायक का एक व्यापक परिचय प्रस्तुत किया और एक मूर्तिकार और कला प्रशासक के रूप में उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। आईजीएनसीए के मीडिया सेंटर के नियंत्रक श्री अनुराग पुनेठा ने गर्मजोशी के साथ बेगम बतूल का परिचय कराया और मौखिक और लोक परंपराओं के संरक्षण और संवर्धन में उनके योगदान का विस्तृत विवरण दिया।

इस अवसर पर सभी पांच पद्मश्री पुरस्कार विजेताओं ने भी अपने विचार साझा किए और इस सम्मान समारोह के आयोजन के लिए आईजीएनसीए के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया। बेगम बतूल ने अपनी मधुर आवाज में प्रसिद्ध राजस्थानी लोकगीत "केसरिया बालम पधारो म्हारे देस" गाकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया।

समवेत सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में दिल्ली और देश भर के विद्वानों, छात्रों और कला पारखी लोगों ने हिस्सा लिया। वक्ताओं ने पुरस्कार विजेताओं के योगदान की सराहना की और उन्हें भारत की सांस्कृतिक चेतना का संरक्षक बताया। आईजीएनसीए द्वारा आयोजित यह समारोह न केवल सम्मान का प्रतीक था, बल्कि युवा पीढ़ी तक भारतीय कलात्मक परंपराओं की विरासत को आगे बढ़ाने की दिशा में एक प्रेरक पहल भी थी।

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