संस्‍कृति मंत्रालय
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2014 से भारत ने अपनी संस्कृति पर गर्व से चर्चा करना शुरू किया है - श्री हरिवंश


2014 के बाद से भारत का सांस्कृतिक वातावरण बदल गया है - महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि

प्रविष्टि तिथि: 18 APR 2025 9:45PM by PIB Delhi

विश्व धरोहर दिवस (18 अप्रैल) के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के भाषणों और संस्कृति पर विचारों का संकलन 'संस्कृति का पांचवां अध्याय' इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) में जारी किया गया। इस पुस्तक का विमोचन जूना अखाड़े के प्रमुख आचार्य महामंडलेश्वर पूज्य स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज ने किया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता राज्यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश ने की, जबकि आईजीएनसीए के अध्यक्ष श्री राम बहादुर राय मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी भी इस अवसर पर उपस्थित थे।

'संस्कृति का पांचवां अध्याय' पुस्तक में प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी द्वारा विभिन्न अवसरों पर भारतीय संस्कृति, परंपराओं, आध्यात्मिक मूल्यों और सांस्कृतिक विरासत पर दिए गए भाषणों का संकलन किया गया है। इसकी प्रस्तावना श्री राम बहादुर राय ने लिखी है और संकलन डॉ. प्रभात ओझा ने किया है। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक प्रधानमंत्री मोदी के सांस्कृतिक पुनरुत्थान के दृष्टिकोण को उनकी सरकार के केंद्रीय उद्देश्य के रूप में दर्शाती है।

इस अवसर पर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज ने कहा कि 2014 से देश भर में हर दिशा में नवाचार देखने को मिल रहा है और वातावरण में बदलाव साफ दिखाई दे रहा है। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के सांस्कृतिक योगदान की सराहना करते हुए कहा, "2014 में नरेन्‍द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से एक निश्चित बदलाव आया है। लोग अब सांस्कृतिक विषयों पर अधिक गहराई और गर्व के साथ चर्चा करते हैं।" उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा, "2008 में यूरोप में रहने वाले एक भारतीय गुरु ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की स्थापना के लिए बहुत प्रयास किए और भारत सरकार से मदद मांगी। 2016 में नरेन्‍द्र मोदी ने इसे साकार किया। आज 21 जून को विश्‍व भर में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है - यह भारत की सांस्कृतिक विरासत के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का प्रमाण है।"

श्री हरिवंश ने रामधारी सिंह दिनकर की मौलिक रचना ‘संस्कृति के चार अध्याय’ का उल्‍लेख किया। इसकी प्रस्तावना जवाहरलाल नेहरू ने लिखी थी। उन्होंने कहा कि यदि आज दिनकर जीवित होते तो वे अपनी रचना के कुछ हिस्सों को पुन: पढ़ते और संशोधित करते ताकि इसे और समृद्ध बनाया जा सके। श्री हरिवंश ने कहा कि 1952 के बाद संस्कृति के बारे में चर्चाएं कम हो गईं लेकिन 2014 से संस्‍कृति के बारे में फिर से चर्चाएं हो रही हैं। “2014 के बाद, भारत ने अपनी संस्कृति और प्राचीन विरासत के बारे में गर्व से बात करना शुरू कर दिया है, और इसका श्रेय प्रधानमंत्री को जाता है।” उन्होंने श्री रघुबीर नारायण के ‘बटोझिया’ गीत की एक प्रसिद्ध पंक्ति को उद्धृत करते हुए अपना भाषण समाप्त किया: “सुंदर सु भूमि भैया भारत के देशवा में, मोर प्राण बसे हिम खोह रे बटोझिया।”

श्री राम बहादुर राय ने नरेन्‍द्र मोदी के व्यक्तित्व के दो आयामों के बारे में बताया - एक राजनेता और प्रशासक का, और दूसरा आध्यात्मिक रूप से प्रवृत्त नेता का। प्रधानमंत्री के आलोचकों को हल्के-फुल्के अंदाज में संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "नरेन्‍द्र मोदी का व्यक्तित्व लोगों में भाव पैदा करता है - सकारात्मक सोच वाले लोग उनकी खूबियों को देखते हैं जबकि नकारात्मक सोच वाले लोग आलोचना में उलझे रहते हैं।" उन्होंने कहा कि मोदी के चारों और कई तरह की कहानियां बुनी गई हैं लेकिन यह पुस्‍तक एक अलग चित्रण प्रस्तुत करती है - एक संत हृदय प्रधानमंत्री का। "प्रधानमंत्री पर लिखी गई पुस्तकों के विशाल भंडार में से यह एक अलग है। इसमें वह शानदार कोहिनूर है जिसे एक संत ने 'वेताल पचीसी' में राजा विक्रमादित्य को भेंट किया था। वह कोहिनूर भारत की संस्कृति है।"

स्वागत भाषण देते हुए डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने प्रधानमंत्री के लक्ष्‍य"विरासत भी, विकास भी" के बारे में बताया। उन्होंने विश्व धरोहर दिवस पर इस पुस्तक के लोकार्पण के विशेष महत्व पर ध्यान दिलाते हुए कहा कि यह पुस्तक नए भारत का दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। पुस्तक के संकलनकर्ता डॉ. प्रभात ओझा ने पुस्तक का परिचय देते हुए कहा कि इसमें प्रधानमंत्री के 34 भाषणों का संकलन किया गया है, साथ ही इसमें एक परिशिष्ट भी है जिसमें दो आध्यात्मिक नेताओं के विचार शामिल हैं जो दोनों ही प्रधानमंत्री के सांस्कृतिक दृष्टिकोण का समर्थन करते प्रतीत होते हैं। कार्यक्रम का संचालन प्रभात प्रकाशन के श्री प्रभात कुमार ने किय। इन्होंने धन्यवाद ज्ञापन भी दिया।

पुस्‍तक के बारे में

अपने विस्तृत प्राक्कथन के अंत में श्री राम बहादुर राय लिखते हैं: "यदि हम भारतीय संस्कृति के सुपरकंप्यूटर के कीबोर्ड की खोज कर रहे हैं तो वह खोज इस पुस्तक से शुरू और समाप्त होती है। इस अर्थ में, यह अध्याय मोदी युग में संस्कृति से प्रेरित है। यह एक सांस्कृतिक यात्रा का निमंत्रण भी है।" यह विचार प्रधानमंत्री मोदी के सांस्कृतिक संबोधनों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने के पीछे के उद्देश्य को स्पष्ट रूप से व्यक्त करता है।

इस यात्रा में कई मील के पत्थर शामिल हैं जिन्हें पाठक इन भाषणों के माध्यम से समझ सकते हैं। भाषणों को कालानुक्रमिक रूप से व्यवस्थित किया गया है जिनकी शुरुआत 2015 के स्वतंत्रता दिवस के भाषण से होती है और समापन 20 अक्टूबर, 2024 को वाराणसी में आरजे शंकर आई हॉस्पिटल के उद्घाटन के अवसर पर दिए गए भाषण से होता है। लाल किले की प्राचीर से दिया गया पहला भाषण राष्ट्रीय मुद्दों, कल्याणकारी योजनाओं और सरकारी उपलब्धियों पर चर्चा करता है। अंतिम भाषण, स्वाभाविक रूप से, सार्वजनिक स्वास्थ्य का उल्‍लेख है लेकिन इसमें कांची कामकोटि परंपरा के तीन शंकराचार्यों को प्रधानमंत्री की श्रद्धांजलि भी शामिल है।

कुल मिलाकर, ये 34 भाषण सांस्कृतिक संदर्भों की एक विस्तृत श्रृंखला- केदारनाथ, श्री राम जन्मभूमि, काशी विश्वनाथ मंडपम और ओंकारेश्वर जैसे पवित्र तीर्थस्थलों से लेकर 'भगवद् गीता' के विभिन्न संस्करणों के विमोचन, गुरु नानक जयंती, वैश्विक बौद्ध सम्मेलन, आचार्य विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज की जयंती और विश्व सूफी सम्मेलन जैसे अवसरों तक को कवर करते हैं ।

विश्व सूफी सम्मेलन में प्रधानमंत्री के संबोधन का एक अंश इस प्रकार है: 'पवित्र कुरान और हदीस में निहित, सूफीवाद भारत में इस्लाम का चेहरा बन गया। यह भारत के खुलेपन और बहुलवाद में फला-फूला और इसकी प्राचीन आध्यात्मिक परंपराओं से जुड़कर इसने एक विशिष्ट भारतीय पहचान बनाई। सूफीवाद ने भारत में एक विशिष्ट इस्लामी विरासत को आकार देने में मदद की।"

ये भाषण विभिन्न धार्मिक परंपराओं में भारतीयता की पहचान करने की खोज को दर्शाते हैं। परिशिष्ट में आचार्य श्री प्रज्ञा सागर जी महाराज और कांची कामकोटि के शंकराचार्य श्री शंकर विजयेंद्र सरस्वती स्वामी जी के विचार शामिल हैं। दोनों ही प्रधानमंत्री द्वारा प्रस्तुत सांस्कृतिक दृष्टि की पुष्टि करते प्रतीत होते हैं।।

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