विधि एवं न्याय मंत्रालय
त्वरित न्याय, सुरक्षित समाज: फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालयों का प्रभाव
Posted On:
20 MAR 2025 6:43PM by PIB Delhi
“न्याय में देरी न्याय से इनकार करने के समान है”
- विलियम ई ग्लैडस्टोन
- फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय (एफटीएससी) बलात्कार और पोक्सो अधिनियम के मामलों में न्याय में तेजी लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिनकी निपटान दर 96.28% है।
- अकेले 2024 में, 88,902 नए मामले दर्ज किए गए और 85,595 मामलों का समाधान किया गया, जो लंबित मामलों का समाधान निकालने में एफटीएससी की प्रभावशीलता को दर्शाता है।
- सरकार ने निर्भया फंड के तहत ₹1952.23 करोड़ के वित्तीय परिव्यय के साथ इस योजना को 2026 तक बढ़ा दिया है।
- नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, इन अदालतों ने सामूहिक रूप से 3,06,604 से अधिक मामलों का निपटारा किया है।
- एफटीएससी न्याय, महिलाओं की सुरक्षा और यौन अपराधों के पीड़ितों द्वारा सामना किए जाने वाले वेदना को कम करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हैं।
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96.28% की प्रभावशाली निपटान दर के साथ, फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय (एफटीएससी) ने बलात्कार और पोक्सो अधिनियम के तहत अपराधों के मामलों में त्वरित कानूनी कार्यवाही सुनिश्चित करके यौन अपराधों के पीड़ितों के लिए न्याय में उल्लेखनीय रूप से तेजी लायी है। अकेले 2024 में, 88,902 नए मामले दर्ज किए गए, जबकि 85,595 मामलों का समाधान किया गया, जिससे केस बैकलॉग समाधान करने में इन अदालतों की प्रभावशीलता का पता चलता है।
एफटीएससी की आवश्यकता
एक मजबूत कानून और नीतिगत ढांचे के अस्तित्व में होने के बावजूद, देश भर के विभिन्न न्यायालयों में बड़ी संख्या में बलात्कार और पॉक्सो अधिनियम के मामले लंबित हैं। कठोर सजा शुरू करने के पीछे का मुख्य उद्देश्य रोक लगाना है, लेकिन यह तभी संभव है जब ट्रायल समय सीमा के भीतर पूरा हो और पीड़ितों को न्याय शीघ्र मिले। दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और पॉक्सो अधिनियम जांच और ट्रायल पूरा करने के लिए सख्त समयसीमा निर्धारित करते हैं, फिर भी केस बैकलॉग और सीमित न्यायिक संसाधनों के कारण देरी होती रहती है।
भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेते हुए याचिका (आपराधिक) संख्या 1/2019 में पॉक्सो अधिनियम के अपराधों में समय पर जांच और ट्रायल का मुद्दा उठाया और 25 जुलाई, 2019 को निर्देश जारी कर मामलों के शीघ्र निपटारे को अनिवार्य बना दिया। इन निर्देशों और आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018 को लागू करने के लिए, सरकार ने 2 अक्टूबर, 2019 को एफटीएससी योजना शुरू की, जिसके तहत बलात्कार और पोक्सो अधिनियम के मामलों के शीघ्र निपटान के लिए देश भर में विशेष अदालतें स्थापित की गईं।

अभी तक प्रगति
विधि एवं न्याय मंत्रालय के न्याय विभाग द्वारा प्रबंधित एफटीएससी की केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस) के कार्यान्वयन का उद्देश्य पूरे देश में फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय (एफटीएससी) स्थापित करने में राज्य सरकारों की सहायता करना है। इस योजना के तहत, विशेष पोक्सो (ई-पोक्सो) न्यायालयों सहित कुल 790 एफटीएससी स्थापित किए जाने हैं। प्रत्येक एफटीएससी से अपेक्षा की जाती है कि समय पर न्याय तथा लंबित मामलों में कमी सुनिश्चित करने के लिए वह प्रति तिमाही 41-42 मामलों का तथा वार्षिक रूप से कम से कम 165 मामलों का निपटारा करे।



वर्तमान में, 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 404 विशेष पोक्सो न्यायालयों सहित 745 फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय (एफटीएससी) कार्यरत हैं, जिन्होंने आज तक सामूहिक रूप से 3,06,604 से अधिक मामलों का निपटारा किया है। एफटीएससी की स्थापना और कामकाज राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। वे अपने संबंधित उच्च न्यायालयों के परामर्श से अपनी जरूरत और संसाधनों के अनुसार इन न्यायालयों की स्थापना करते हैं।
वित्तीय ढांचा
फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय (एफटीएससी) योजना शुरू में एक वर्ष के लिए शुरू की गई थी और बाद में इसे मार्च 2023 तक बढ़ा दिया गया था। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 28 नवंबर, 2023 को अपनी बैठक में इस योजना को 1 अप्रैल, 2023 से 31 मार्च, 2026 तक तीन और वर्षों के लिए बढ़ा दिया। इस अवधि के लिए कुल वित्तीय परिव्यय ₹1952.23 करोड़ है, जिसमें ₹1207.24 करोड़ केंद्रीय हिस्सा है, जिसे निर्भया फंड के माध्यम से वित्त पोषित किया गया है।

वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान, राज्यों/संघ शासित प्रदेशों में फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालयों (एफटीएससी) के कामकाज के लिए केंद्रीय हिस्से के रूप में कुल ₹200.00 करोड़ आवंटित और पूरी तरह से जारी किए गए हैं।
फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय (एफटीएससी) योजना का वित्तपोषण केंद्र प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) के पैटर्न का अनुसरण करता है, जैसा कि नीचे उल्लिखित है:
- लागत साझाकरण: केंद्र सरकार 60% का योगदान देती है, जबकि राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारें 40% का योगदान देती हैं। हालांकि, पूर्वोत्तर राज्यों, सिक्किम और पहाड़ी राज्यों जम्मू-कश्मीर (अब एक केंद्र शासित प्रदेश), हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के लिए यह अनुपात 90:10 है।
- केंद्र शासित प्रदेशों के लिए वित्तपोषण: विधानसभा वाले केंद्र शासित प्रदेशों में 60:40 का अनुपात लागू होता है, जबकि विधानसभा रहित केंद्र शासित प्रदेशों में पूरा वित्तपोषण केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है।
- एक न्यायिक अधिकारी और सात सहायक कर्मचारियों के पारिश्रमिक से संबंधित खर्चों को पूरा करने के लिए धनराशि का प्रावधान किया जाता है और साथ ही फ्लेक्सी-अनुदान भी दिया जाता है। फ्लेक्सी-अनुदान का उपयोग दैनिक परिचालन खर्चों को पूरा करने और अदालतों को बच्चों और महिलाओं के अनुकूल बनाने के लिए किया जा सकता है।
- प्रतिपूर्ति मोड: यह योजना प्रतिपूर्ति के आधार पर संचालित होती है, जहां संबंधित राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सरकारों द्वारा व्यय विवरण प्रस्तुत करने के बाद ही धन जारी किया जाता है।
भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए) की मुख्य सिफारिशें
भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए) द्वारा वर्ष 2023 में इस योजना का तीसरे पक्ष द्वारा मूल्यांकन किया गया, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ इस योजना को जारी रखने की सिफारिश की गई है। आईआईपीए द्वारा दी गई सिफारिशें इस प्रकार हैं:
- आईआईपीए ने इस योजना को जारी रखने की जोरदार सिफारिश की क्योंकि इसका प्राथमिक उद्देश्य महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के मामलों को सुव्यवस्थित और त्वरित न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से संभालना है।
- मुकदमों में तेजी लाने के लिए, राज्यों और उच्च न्यायालयों को पोक्सो मामलों में अनुभवी विशेष न्यायाधीशों की नियुक्ति, संवेदनशीलता के साथ प्रशिक्षण सुनिश्चित करने और महिला सरकारी अभियोजकों की नियुक्ति सहित मापदंडों को मजबूत करना चाहिए।
- न्यायालय कक्षों को ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग सिस्टम और एलसीडी प्रोजेक्टर जैसी आधुनिक तकनीक के साथ अपग्रेड करने की आवश्यकता है। वर्तमान विकसित तकनीकों के साथ तालमेल बिठाने के लिए, न्यायालय इलेक्ट्रॉनिक केस फाइलिंग और अदालती रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण सहित आईटी सिस्टम को बढ़ा सकता है।
- न्यायालयों में लंबित मामलों को तेजी से निपटाने और डीएनए रिपोर्ट को समय पर प्रस्तुत करने के लिए फोरेंसिक प्रयोगशालाओं को बढ़ाना और जनशक्ति को प्रशिक्षित करना। यह न केवल वैज्ञानिकों और रिपोर्टिंग अधिकारियों की सहायता करने के लिए कुशल जनशक्ति की मदद करेगा, बल्कि निष्पक्ष और त्वरित न्याय देने में भी मदद करेगा।
- पीड़ितों की गवाही दर्ज करने की बेहतर प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए सभी जिलों में अंतिसंवेदनशील साक्षी अभिसाक्ष्य केंद्र (वीडब्ल्यूडीसी) स्थापित किए जाने चाहिए, जिससे एक सहज अदालती कार्यवाही शुरू हो सके। राज्यों को बच्चों की पहचान का खुलासा किए बिना बंद दरवाजों के पीछे, बच्चों के अनुकूल तरीके से मुकदमा चलाने की पहल करनी चाहिए। इसके अलावा, हर एफटीएससी में एक बाल मनोवैज्ञानिक होना चाहिए जो बच्चे को सख्त प्री-ट्रायल और ट्रायल प्रक्रियाओं में सहायता करे।
फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालयों ने पीड़ितों की सुविधा के लिए न्यायालयों के भीतर अंतिसंवेदनशील साक्षी अभिसाक्ष्य केंद्रों की स्थापना करने तथा दयापूर्ण कानूनी प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करने के लिए न्यायालयों को बाल-अनुकूल न्यायालय बनाने के दृष्टिकोण को विशेष रूप से अपनाया है।
निष्कर्ष
फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय भारत की न्यायिक प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं, जो जघन्य अपराधों के पीड़ितों के लिए त्वरित न्याय सुनिश्चित करते हैं। भले ही, चुनौतियां बनी हुई हैं, लेकिन निरंतर सुधार और बुनियादी ढांचे में सुधार उनकी प्रभावशीलता बढ़ सकती है। केस बैकलॉग का समाधान करने और विशेषज्ञ-निर्देशित कानूनी कार्यवाही प्रदान करने में उनकी भूमिका पीड़ितों की वेदना और संकट को कम करने में महत्वपूर्ण है, जो कमजोर समूहों की रक्षा करने और उत्तरदायी कानूनी ढांचे के माध्यम से न्याय को बनाए रखने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है।
संदर्भ
Swift Justice, Safer Society: The Impact of Fast Track Special Courts
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(Release ID: 2113409)
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