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गंगा नदी की दिव्य महिमा की पुनर्स्थापना: नमामि गंगे कार्यक्रम ने हासिल की महत्वपूर्ण उपलब्धियां

Posted On: 07 MAR 2025 5:04PM by PIB Delhi

भारत सरकार द्वारा 2014 में शुरू किया गया नमामि गंगे कार्यक्रम गंगा नदी के स्वास्थ्य को बहाल करने के लिए अब तक की सबसे महत्वाकांक्षी और समग्र पहलों में से एक है। इसका बहुआयामी दृष्टिकोण प्रदूषण को कम करने, पारिस्थितिक बहाली, क्षमता निर्माण और सामुदायिक भागीदारी को एकीकृत करता है, जिसमें नदी की पर्यावरणीय अक्षुण्ता और इस पर निर्भर लाखों लोगों की आजीविका दोनों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

नमामि गंगे कार्यक्रम में, परियोजनाओं का कार्यान्वयन प्रारंभिक गतिविधियों के पूरा होने के बाद गति पकड़ गया, जिसमें मजबूत निगरानी और वित्तीय अनुमोदन तंत्र शामिल था। 2014-15 से 2023-24 की अवधि के लिए 20,424.82 करोड़ रुपये के उपलब्ध संसाधनों के मुकाबले, एनएमसीजी ने 16,648.49 करोड़ रुपये का वितरण किया है, जो बजटीय प्रावधानों का 82% है।

उल्लेखनीय है कि कार्यक्रम का 42,500 करोड़ रुपये का वित्तीय परिव्यय तत्काल व्यय लक्ष्य (नकद व्यय) के रूप में नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि एक स्वीकृति स्थान के रूप में माना जाना चाहिए जिसमें वर्तमान व्यय और भविष्य की प्रतिबद्धताएं (वार्षिकी भुगतान / ओ एंड एम व्यय) शामिल हैं, प्रदूषण को कम करने वाले बुनियादी ढांचे के लिए जिसकी जीवन अवधि 17 वर्ष है (निर्माण चरण के 2 वर्ष और संचालन और रखरखाव चरण के 15 वर्ष)। हाइब्रिड वार्षिकी मॉडल को निर्मित एसटीपी के जिम्मेदार संचालन और रखरखाव को सुनिश्चित करने के लिए एक अभिनव दृष्टिकोण के रूप में अपनाया गया था, जिसके परिणामस्वरूप पूंजीगत व्यय 15 वर्षों के ओ एंड एम चरण में फैल गया है।

नमामि गंगे कार्यक्रम ने प्रदूषण को कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है, 3,446 एमएलडी सीवेज उपचार क्षमता का निर्माण किया है, जो 2014 से पहले की क्षमता से 30 गुना अधिक है। एनएमसीजी ने 7-8 वर्षों में 127 परियोजनाएं और 152 सीवेज ट्रीटमेंट संयंत्र पूरे किए हैं, जो गंगा नदी की प्राचीन गरिमा को बहाल करने में उल्लेखनीय प्रगति दर्शाते हैं।

सीजीएफ का उद्देश्य देश के निवासियों, अनिवासी भारतीयों और कॉरपोरेट्स सहित नागरिक समाज के सभी वर्गों से योगदान जुटाना है। सीजीएफ में योगदानकर्ताओं में से 95% देश के आम  नागरिक हैं और शेष 5% निजी कॉरपोरेट्स और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां हैं। सीजीएफ के तहत धन का उपयोग गहन वित्तीय विवेक के साथ एनजीपी के तहत बजटीय व्यय के समान एक कठोर स्वीकृति प्रक्रिया के माध्यम से होता है। सीजीएफ का उपयोग मुख्य रूप से अनूठी और विशिष्ट परियोजनाओं के लिए किया जाता है जिनका स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन के उद्देश्यों की उपलब्धि में महत्वपूर्ण योगदान है।

जल की गुणवत्ता की बहाली के लिए प्रदूषित नदी खंडों पर सीपीसीबी की आवधिक रिपोर्ट के अनुसार; उत्तर प्रदेश में 2015 में कन्नौज से वाराणसी तक का खंड पीआरएस III (बीओडी 10-20 मिलीग्राम/लीटर) श्रेणी में था, जबकि 2022 में निरंतर प्रयासों के कारण नदी की गुणवत्ता में सुधार हुआ और बेहतर प्रदूषित नदी खंड पीआरएस V (बीओडी 3-6 मिलीग्राम/लीटर) में आता है। उत्तर प्रदेश में, 135 चालू एसटीपी में से 118 एसटीपी (90% से अधिक अनुपालन करते हैं) मानदंडों को प्राप्त कर रहे हैं।

बिहार में, 2015 में बक्सर से भागलपुर तक नदी का हिस्सा पीआरएस II (बीओडी 20-30 मिलीग्राम/लीटर) श्रेणी में था, जबकि 2022 में निरंतर प्रयासों के कारण नदी की गुणवत्ता में सुधार हुआ और बेहतर प्रदूषित नदी खंड पीआरएस IV (बीओडी 6-10 मिलीग्राम/लीटर) में आता है। बिहार में, 14 एसटीपी में से 13 चालू हैं।

पश्चिम बंगाल में, 2018 में त्रिवेणी से डायमंड हार्बर तक नदी का हिस्सा पीआरएस III (बीओडी 10-20 मिलीग्राम/लीटर) श्रेणी में था, जबकि 2022 में निरंतर प्रयासों के कारण नदी की गुणवत्ता में सुधार हुआ और बेहतर प्रदूषित नदी खंड पीआरएस IV (बीओडी 6-10 मिलीग्राम/लीटर) में आता है। पश्चिम बंगाल में, 55 मौजूदा एसटीपी में से 53 क्रियाशील थे।

संक्षेप में, ऊपर उल्लिखित राज्यों सहित सभी राज्यों में जल की गुणवत्ता में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है।

प्रयागराज में, यह उल्लेख करना उचित होगा कि 2017 से 2024 तक, उपचार क्षमता 268 एमएलडी से बढ़कर 348 एमएलडी हो गई है। इसके अलावा, नदी के जल की गुणवत्ता पीआरएस IV से सुधरकर पीआरएस V हो गई है। इसके अतिरिक्त, 2017 में 60 अनटैप्ड नालों में से अब कोई भी अनटैप्ड नाला नहीं है। इसी तरह, वाराणसी के लिए, उपचार क्षमता 100 एमएलडी से बढ़कर 420 एमएलडी हो गई है, अनटैप्ड  नालों की संख्या 8 से घटकर एक आंशिक रूप से टैप्ड नाले तक पहुंच गई है और पीआरएस IV से सुधरकर V हो गया है।

नदी के पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार गंगा नदी में पायी जाने वाली डॉल्फ़िन की आबादी में वृद्धि से प्रमाणित होता है। भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के आधारभूत अध्ययन (2018) और वर्तमान अध्ययन की तुलना से गंगा नदी डॉल्फ़िन (प्लेटानिस्ता गैंगेटिका) की आबादी में 3,330 (+/-) 630 से बढ़कर 3,936 (+/-) 763 होने का संकेत मिलता है। अब डॉल्फ़िन गंगा नदी के पहले के अपुष्ट खंडों से भी दर्ज की जा रही हैं, जैसे कि बिठुरा से रसूल घाट (प्रयागराज) के बीच का खंड। भारत में पहली बार बबई और बागमती नदियों से भी डॉल्फ़िन की सूचना मिली थी।

गंगा को पुनर्जीवित करने में नमामि गंगे कार्यक्रम की सफलता को वैश्विक स्तर पर सराहा जा रहा है। दिसंबर 2022 में, पारिस्थितिकी तंत्र बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक ने इसे शीर्ष 10 विश्व बहाली फ्लैगशिप पहलों में से एक के रूप में मान्यता दी। इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय जल संघ ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) को जलवायु स्मार्ट यूटिलिटी की उपाधि से सम्मानित किया, जिससे कार्यक्रम की स्थायी जल प्रबंधन के लिए प्रतिबद्धता और मजबूत हुई।

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एमजी/आरपीएम/केसी


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