उप राष्ट्रपति सचिवालय
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जन नायक चौधरी देवी लाल विद्यापीठ, सिरसा के वार्षिक दीक्षांत समारोह में उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूल पाठ (अंश)

Posted On: 05 MAR 2025 4:29PM by PIB Delhi

मैं यहाँ अपने प्रिय विद्यार्थियों की खातिर आया हूँ और प्रिय विद्यार्थियों, जो आखिरी बेंचों पर हैं, मैं आपको बता दूँ, कि यहाँ कोई बैकबेंचर नहीं है। वे केवल आखिरी बेंच पर बैठे हुए हैं, इसलिए,आखिर में बैठे विद्यार्थियों को भी मेरा नमस्कार।

किसी ऐसे संस्थान में दीक्षांत भाषण देना परम सौभाग्य और सम्मान की बात है, जिसका नाम एक महान  शख्सियत के नाम पर रखा गया है। पिछली शताब्दी में ऐसे महान व्यक्तित्व वाले व्यक्ति ज्यादा नहीं हुए, चौधरी देवीलाल जैसे बहुत कम लोग हुए हैं। जब मैं उन्हें देखता हूँ, तो पाता हूँ कि उन्होंने भारत की सेवा की है और अपना मिशन पूरा किया है, अब समय आ गया है कि हम भी वैसा ही करने का संकल्प लें, हम राष्ट्र की सेवा करेंगे। हम भारतीय हैं, भारतीयता हमारी पहचान है, राष्ट्रधर्म सर्वोपरि है।

हमें सदैव राष्ट्र को सर्वोपरि रखना चाहिए। कोई भी हित राष्ट्रहित से बड़ा नहीं हो सकता। राष्ट्रहित के सामने व्यक्तिगत हित और राजनीतिक हित का कोई महत्व नहीं है।

दीक्षांत समारोह में भाषण देना आसान नहीं होता, क्योंकि विद्यार्थी बेहद प्रभावशाली वक्तव्य की अपेक्षा रखते हैं। मैं ईमानदारी से प्रयास करूँगा। आपके लिए मेरा पहला उपदेश यह है, कि मैं हमेशा से स्वर्ण पदक विजेता रहा हूँ, यह मेरा जुनून हुआ करता था। मुझे हमेशा इस बात का डर सताया करता था कि यदि  मैं पहले नंबर पर नहीं आया, तो क्या होगा। मैं इसे आपके साथ साझा करना चाहता हूँ, कि कुछ नहीं होता, थोड़ा खेल ज्यादा खेल लेता, दोस्तों से बात कर लेता।  इसलिए किसी चीज को अपना जुनून मत बनाओ, अपने जीवन को माता-पिता द्वारा बनाई गई नहर की तरह नहीं, बल्कि एक नदी की तरह बहने दो।

ज़माना था बच्चा पैदा हुआ माँ बाप ने तय कर दिया डॉक्टर बनेगा, इंजीनियर बनेगा, आईएएस बनेगा।  लड़के और लड़कियों, यदि आप अपने आस-पास देखें, तो आपके लिए अवसरों में लगातार वृद्धि हो रही है। ये अवसर नीली अर्थव्यवस्था में हैं, ये अवसर अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में हैं। आप ऐसे समय में भारत में हैं, जब पिछले दशक में किसी भी अन्य देश ने भारत जितनी तेज़ी से तरक्की नहीं की है। बड़ा आर्थिक उछाल, अभूतपूर्व ढाँचागत विकास, वयापक डिजिटलीकरण, तकनीकी पैठ।

यदि  मैं आपके साथ कुछ आंकड़े साझा करुँ, तो आप हैरान रह जाएँगे। भारत में प्रति व्यक्ति इंटरनेट खपत चीन और अमेरिका दोनों की कुल इंटरनेट खपत से भी ज़्यादा है। यदि  हम डिजिटल लेन-देन की बात करें, तो हमारा डिजिटल लेन-देन अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के कुल लेन-देन से चार गुना ज़्यादा है।

 

यदि आप हमारी अर्थव्यवस्था की पड़ताल करें, तो एक दशक पहले इसकी स्थिति बहुत नाजुक थी। जब मुझे चौधरी देवीलाल के आशीर्वाद से सांसद के रूप में संसद में प्रवेश करने का अवसर मिला तथा उनके आशीर्वाद और मार्गदर्शन से मैं मंत्री बना, तब आर्थिक स्थिति क्या थी? सोने की चिड़िया कहलाने वाले देश का सोना विदेश में गिरवी रखना पड़ा। हमारी साख बनाए रखने के लिए इसे स्विट्जरलैंड के दो बैंकों में रखा गया। आज हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 700 बिलियन से अधिक है।

आप खुशकिस्मत हैं कि जो ऐसे समय में रह रहे हैं, जब भारत उम्मीदों और संभावनाओं से भरा है। यहाँ  सकारात्मक सरकारी नीतियों, सहायक नीतियों वाला इकोसिस्टम मौजूद है, जो आपको अपनी प्रतिभा और क्षमता का दोहन करने, अपनी महत्वाकांक्षाओं और आकांक्षाओं को साकार करने का पूरा अवसर देता है। अब योग्यता का बोलबाला है। जब ऐसा परिदृश्य है, तो आपको कुछ बड़ा सोचना चाहिए। कभी दबाव में न रहें, कभी तनाव में न रहें। विफलता का डर जीवन का सबसे बुरा डर है, क्योंकि यह एक मिथक है। विफलता जैसी कोई चीज नहीं होती, यह एक ऐसा प्रयास है जो सफल नहीं हुआ। कुछ लोग इतने निराशावादी थे कि उन्होंने चंद्रयान-2 तक को विफल करार दे दिया।

 मैं पश्चिम बंगाल का राज्यपाल था। मैं साइंस सिटी में था, आपकी आयु के लड़के-लड़कियाँ मेरे साथ थे, उस समय रात के करीब 2 बजे थे। मुझे सितंबर 2019 की बात याद है। चंद्रयान-2 चांद की सतह के बहुत करीब आया, लेकिन उसे छू नहीं पाया। मेरे मुताबिक  यह 90 प्रतिशत से ज़्यादा सफल था। इसीलिए चंद्रयान-3 सफल हुआ और इसीलिए विफलता एक मिथक है। विफलता आपको और बेहतर करने का अवसर देती है। इतिहास में कई महान उपलब्धियाँ पहले प्रयास में कभी सफल नहीं हुईं।

लड़के और लड़कियों, यदि आपके ज़हन में कोई शानदार विचार है, तो उस विचार को केवल अपने ज़हन में ही न रहने दें। यह आपके और मानवता के साथ सबसे बड़ा अन्याय होगा। प्रयोग करें, लीक से हट कर सोचें। देखिए, इस देश में, खास तौर पर पिछले दशक में क्या हुआ है। स्टार्टअप, यूनिकॉर्न और विस्तृत आयाम।

लिहाजा, कभी मत डरो, कभी तनाव मत लो, कभी भी दबाव में न रहो। प्रयोग करो; अपने दृष्टिकोण के अनुसार आगे बढ़ो। आपके पास राष्ट्र के लिए योगदान करने को बहुत कुछ होगा। यदि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत को निवेश और अवसरों का पसंदीदा वैश्विक गंतव्य कहा है, तो लड़के-लड़कियों, यह सरकारी नौकरियों के लिए नहीं कहा गया। यह अवसरों के कारण कहा गया है और ये अवसर आज समुद्र की सतह, गहरे समुद्र, जमीन, जमीन के भीतर, आकाश और अंतरिक्ष में उपलब्ध हैं। आपको बस बड़ा सोचना है। एक छलांग लगाइए।

दीक्षांत समारोह शिक्षा का अंत नहीं है, क्योंकि शिक्षा  का संबंध तो हमेशा सीखने से होता है। मैं सुकरात से पहले के युग का एक उद्धरण देना चाहता हूँ, मैं हेराक्लिटस को उद्धृत कर रहा हूँ। महान दार्शनिक हेराक्लिटस ने हमें जीवन का एक पहलू बताया, जिसे अक्सर उद्धृत किया जाता है। ‘जीवन में एकमात्र स्थिर चीज़ परिवर्तन है’ और उन्होंने इसे एक उदाहरण के ज़रिए पुष्ट किया। ‘एक ही व्यक्ति एक ही नदी में दो बार नहीं हो सकता, क्योंकि न तो नदी एक जैसी है और न ही व्यक्ति एक जैसा है।’

इसलिए बदलाव होना ही चाहिए, और अभी बदलाव युगांतकारी है, बदलाव किसी भी तूफान से कहीं ज़्यादा है। डिसरप्टिव टेक्नोलॉजीज, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स, ब्लॉकचेन, मशीन लर्निंग, और हर पल हम आमूल-चूल बदलाव देख रहे हैं। हर पल एक बदलाव है जो बड़ी चुनौतियाँ लेकर आता है और हर चुनौती को एक अवसर में बदलना होगा जो आपको, लड़कों और लड़कियों को करना है।

जब आप संसद की नई इमारत में कदम रखेंगे, तो आपको पता चलेगा कि सदी की सबसे बड़ी महामारी कोविड के बावजूद, 30 महीने से भी कम समय में यह इमारत बनकर तैयार हो गई, पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार हो गया। इतना ही नहीं, हमारी 5,000 साल की सभ्यता का प्रतिबिंब भी संसद में मौजूद है।

बालकों और बालिकाओं, पिछले दशक में दुनिया के किसी भी देश ने भारत जितनी त्वरित रफ्तार से विकास नहीं किया है। इससे एक ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है, लोगों ने विकास का स्वाद चखा है, उन्होंने विकास देखा है। वे वहां आकांक्षापूर्ण मोड में हैं और यदि  लोग आकांक्षापूर्ण मोड में हैं, तो बेचैनी की स्थिति हो सकती है, आतुरता हो सकती है, समस्या हो सकती है, लेकिन उस समस्या का समाधान प्रत्येक व्यक्ति को करना होगा।

मैं आपको कुछ सुझाव देना चाहता हूँ। प्रिय लड़के और लड़कियों, हमेशा नागरिक कर्तव्यों, मौलिक कर्तव्यों को अधिकारों से अधिक महत्व दें। सदैव अपने परिवार, अपने शिक्षकों, अपने बुजुर्गों, अपने पास-पड़ोस का ख्याल रखें, क्योंकि यही हमारी सभ्यता और संस्कृति है। पर्यावरण पर विश्वास करें, क्योंकि यही हमारी चिंता का विषय है। यह खतरनाक रूप से एक चिंताजनक परिदृश्य है। हमारे पास रहने के लिए दूसरी धरती नहीं है। स्थिति बहुत विकट है। हम लगभग ध्वस्त हो रहे हैं। हमें इस समस्या से बाहर निकलने का रास्ता खोजना होगा।

मैं आपके साथ एक विचार साझा करते हुए अपनी बात समाप्त करना चाहूँगा। हम सभी को आर्थिक राष्ट्रवाद को बढ़ावा देना होगा। गांधी जी ने हमें स्वदेशी का नारा दिया था। प्रधानमंत्री ने कहा है, 'स्थानीय के लिए मुखर बनें।' यदि  हम अनावश्यक आयात न करें, तो हम अपने विदेशी मुद्रा भंडार में सैकड़ों अरब डॉलर से अधिक की बचत कर सकते हैं। इससे हमारे लोगों को काम मिलेगा। उद्यमिता फलेगी-फूलेगी। आप यह कर सकते हैं। इस कमरे में, यदि  आप हमारे कपड़ों को देखेंगे, तो आपको पता चलेगा कि वे देश के बाहर सिले हुए हैं। यहाँ बेहतर गुणवत्ता उपलब्ध है, इसलिए राजकोषीय लाभ के लिए कभी भी राष्ट्रीय हित, राष्ट्रीय आर्थिक हित से समझौता नहीं किया जा सकता।

सदैव उस व्यक्ति पर गर्व करें, जिनके नाम पर, जिनकी याद में संस्थाएँ हैं। लोगों ने बहुत ही कम मनुष्यों को गौरवान्वित किया है, आपको पद्म भूषण मिल सकता है, आपको भारत रत्न मिल सकता है, आपको सभी तरह के सम्मान मिल सकते हैं, लेकिन आपको राष्ट्रपिता की उपाधि कहाँ से मिलती है? आपको सरदार की उपाधि कहाँ से मिलती है? आपको 'ताऊ' की उपाधि कहाँ से मिलती है? ताऊ यहाँ हैं, ताऊ हमारी देखरेख करते हैं।

ताऊ ने राजनीति में मेरा मार्गदर्शन किया है। मैंने उनसे यही सीखा है कि समाज के विकास के लिए काम करते रहो तथा ग्रामीण परिदृश्य और किसानों को कभी नज़रअंदाज़ न करो।

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एमजी/आरपीएम/केसी/आरके / डीए


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