उप राष्ट्रपति सचिवालय
भारत अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र द्वारा 'अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता: भारतीय परिप्रेक्ष्य' विषय पर आयोजित संगोष्ठी में उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूल पाठ (अंश)
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01 MAR 2025 2:41PM by PIB Delhi
आप सभी को सुप्रभात,
जब भारत अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र के अध्यक्ष ने मुझे आमंत्रित किया, तो मैंने उनके साथ बहुत ही स्पष्ट और बेबाक रूप से विचारों का आदान-प्रदान किया।
मैंने न्यायमूर्ति गुप्ता को इंगित किया कि उनके पास भारतीय मध्यस्थता प्रणाली को बहुत ज़रूरी विश्वसनीयता प्रदान करने का कठिन काम है। जब उन्होंने कहा कि कुछ कदम उठाए जाने चाहिए तो मैं बहुत खुश और प्रसन्न हुआ। उन्होंने मुझसे जो कहा, वह मुझे अभी तक याद है। समाधान तलाशने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण और उत्कृष्ट उदाहरण है कि दुर्भावना का यथार्थवादी मूल्यांकन और प्रामाणिक निदान किया जाए। मेरी प्रतिक्रिया उत्साहजनक नहीं थी।
न्यायमूर्ति गुप्ता अटल थे । मैंने प्रतिक्रिया दी। न्यायमूर्ति गुप्ता, जब 1994 में यूएनसीआईटीआरएएल मॉडल आया था, तब ब्रिटेन और भारत दो ऐसे देश थे, जिनका ऐतिहासिक संबंध था और दोनों ने एक ही वर्ष 1996 में कानून बनाया था, लेकिन इस बात पर गौर कीजिए कि तब से लेकर अब तक हमारे कानून को किस तरह के झटके लगे हैं। और इसकी तुलना ब्रिटेन में जो हुआ, उससे कीजिए और इसलिए, विश्वसनीयता प्रदान करने और इस बहुत ही कठिन कार्य को करने के लिए, हितधारकों को सम्मिलित किया जाना चाहिए।
वे हितधारक विधायिका में, कार्यपालिका में, न्यायपालिका में और बार में हैं। मुझे इस बात की बेहद खुशी और प्रसन्नता है कि उन्होंने पहला कदम उठाया है और इस प्रक्रिया में, हालांकि यह अतिशियोक्तिपूर्ण हो सकता है, लेकिन एक ऐसे देश के लिए, जो दुनिया के हर छठे इंसान का घर है, यह वैसा ही कदम हो सकता है, जो नील आर्मस्ट्रांग ने 20 जुलाई, 1969 को उठाया था, जब मनुष्य ने चंद्रमा पर पहली बार कदम रखा था। इसलिए, आपको मेरी शुभकामनाएं ।
इस बात को लेकर मेरी चिंताएं और शंकाएं अब तक बरकरार हैं, आप जितने भी कदम बढ़ाएंगे, वे कठिन होंगे। और इसलिए, महान्यायवादी ने जो कहा, उसके प्रति मेरी आपत्ति यह है कि मध्यस्थता के संबंध में हम वैश्विक क्षेत्र में नहीं हैं। हम इससे बहुत दूर हैं। हमें अपने कथनों से आगे जाना होगा। हमारा सम्मिलन यथार्थवादी आधार पर होना चाहिए।
हममें से प्रत्येक को योगदान देना होगा, और आत्म-मूल्यांकन करने पर हम पाएंगे कि हम उपेक्षा की स्थिति में रहे हैं, और इसलिए, न्यायमूर्ति गुप्ता, मैं उन्हें बहुत लंबे अर्से से जानता हूं। वह इस कार्य के प्रति गंभीर हैं। इसलिए मैं प्रायोजक बेकर, मैकिन्से, मिस सामंथा मोबले, मिस मिन्नी वैन डे पोल के लिए उनकी सराहना करता हूं। आपकी उपस्थिति मायने रखती है, क्योंकि 90 के दशक के अंत में मुझे मध्यस्थता की स्थिति के बारे में आपके संगठन में एक सम्मेलन में भाग लेने का अवसर मिला था।
हमारे महान्यायवादी कानूनविद् के समान ही शिक्षाविद् भी हैं, और उनसे मेरी अपेक्षाएं हमेशा से ज़्यादा ही रहती हैं। लेकिन मैं आपको बता सकता हूं और आपके साथ यह बात साझा कर सकता हूं कि महान्यायवादी से मेरी अपेक्षाएं यथार्थवादी हैं। और मुझे यकीन है कि वह यहां से यह संदेश लेकर जाएंगे कि वह अपने पद का उपयोग परिवर्तन को उत्प्रेरित करने के लिए करेंगे, विशेष रूप से ऐसे कानून के संबंध में, जो हमारी मध्यस्थता प्रक्रिया को अंतिमता और मुहिम को टालने वाले कष्टदायी हस्तक्षेपों से पीड़ित कर रहे हैं।
मुझे एशियन अफ्रीकन लीगल कंसल्टेटिव आर्गेनाइजेशन के महासचिव डॉ. कमलिन पिनिटपुवाडोल का अभिवादन करते हुए खुशी हो रही है। जी-20 में जो हुआ, वह मुझे अच्छी तरह याद है । यह प्रधानमंत्री श्री मोदी का विजन था और वह अफ्रीकी संघ को जी-20 का स्थायी सदस्य बनाने में सफल रहे। यूरोपीय संघ पहले से ही इसका सदस्य था। जब हम ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में इस घटनाक्रम की पड़ताल करेंगे, तो हमें इसके गुणात्मक महत्व का एहसास होगा।
इसके अलावा, एक अधिवक्ता भी इस प्रक्रिया में बहुत उत्सुकता से शामिल था, ताकि ग्लोबल साउथ के सरोकारों को वैश्विक रडार पर लाया जा सके। आप अतीत में न्यायपालिका के सदस्यों को शामिल करने वाले कुछ सम्मेलनों में मौजूद थे, और इसलिए, वास्तव में, एक अच्छा सम्मिलन, एशियाई-अफ्रीकी पहलू का सुखदायक सम्मिलन रहा । यह मंच पारंगत लोगों को एक साथ लाया है, लेकिन मुझे लगता है कि कुछ लोगों की अनुपस्थिति भी यहां मौजूद लोगों की उपस्थिति जितनी ही प्रभावशाली है।
मुझे उम्मीद थी कि इस बैठक में उन लोगों की व्यापक भागीदारी होगी, जो किसी के प्रयासों का प्रतिफल प्राप्त कर रहे हैं, जो ध्यान आकृष्ट कर रहे हैं, जो आपके साथी रहे हैं। हमारे जैसे देश में बदलाव तभी होता है, जब हम औपचारिकता से थोड़ा हटकर सीधी बात करते हैं। लेकिन मुझे इस बात में रत्ती भर संदेह नहीं है कि इस कदम ने मुझमें आत्मविश्वास और आशावाद जगाया है और मैं निश्चित रूप से प्रयास करूंगा कि आपका एजेंडा पर विचार-विमर्श बहुत सफल रहे और मैं आग्रह करूंगा कि विचार-विमर्श इस संगोष्ठी के साथ ही समाप्त न हो जाए।
व्यक्तियों के बीच विचार-विमर्श के सत्रों का विस्तार होना चाहिए। हमारे यहां कुछ बेहतरीन विचारक हैं। जब मैं चारों ओर नजर दौड़ाता हूं, तो मैं अपने मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव बनर्जी को देखता हूं, उनकी वंशावली को देखता हूं, हमने कितनी ही बार मिशन मोड में उत्साहपूर्वक चर्चा की है और फिर रुक गए हैं, क्योंकि सहायता सरकारी हितधारकों द्वारा की जानी चाहिए। सहायता कानून द्वारा होनी चाहिए। सहायता ऐसे लोगों द्वारा की जानी चाहिए, जिनका लिखा मायने रखता है, और इसलिए, न्यायमूर्ति गुप्ता ने एक बड़ी चुनौती स्वीकार की है और हरेक चुनौती में संभावनाएं अंतर्निहित होती हैं।
मुझे इस बारे में कोई संदेह नहीं है कि हम इस तरह परिवर्तित होंगे। मुझे मध्यस्थता प्रक्रिया की प्रासंगिकता, इसकी आवश्यकता को रेखांकित करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन हमारे देश में और वैश्विक मध्यस्थता प्रक्रिया में कुछ अनुभव होने की वजह से, लगभग तीन वर्षों तक अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय में और लगभग नौ वर्षों तक उस संस्था के आयोग से जुड़े रहने के बाद, मैं यह कह सकता हूं, मुझे लगता है कि यहां हमें विश्वसनीयता बहाल नहीं करनी है। हमें मध्यस्थता की विश्वसनीयता स्थापित करनी है। यह ऐसा समय है, जब वाणिज्य में लोग मध्यस्थता प्रक्रिया से डरते हैं और इसे स्थिति को दूर करना होगा। मध्यस्थता प्रक्रिया से जुड़े बोर्ड के सदस्यों के समान ही मध्यस्थ भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
आश्चर्य की बात यह है कि, मैं अत्यंत संयम के साथ कह रहा हूं, मध्यस्थता की प्रक्रिया के निर्धारण से जुड़ी एक श्रेणी के एक हिस्से पर पूर्ण रूप से कड़ा नियंत्रण है और यह कड़ा नियंत्रण न्यायिक क्षेत्रों से उपजता है और यदि हम इसे एक वस्तुनिष्ठ मंच पर परखें, तो यह अत्यंत पीड़ादायक है। इस देश के हर पहलू में समृद्ध मानव संसाधन, समुद्र विज्ञान, समुद्री, विमानन, अवसंरचना आदि मौजूद हैं और विवाद उस अनुभव से संबंधित हैं जो क्षेत्र से संबद्ध है।
दुर्भाग्यवश, हमने इस देश में मध्यस्थता के बारे में बहुत ही संकीर्ण दृष्टिकोण अपनाया है, जैसे कि यह अधिनिर्णयन है। यह अधिनिर्णयन से कहीं आगे की बात है। यह पारंपरिक अधिनिर्णयन नहीं है, जैसा कि ऐतिहासिक रूप से वैश्विक स्तर पर मूल्यांकन किया जाता है। मैं ये टिप्पणियां करते हुए उत्साहित हूं, क्योंकि ये विचार न्यायमूर्ति गुप्ता के मन में उमड़ते हैं। यहां न आने की उत्कट इच्छा होने के बावजूद, मुझे उनके दृढ़ संकल्प के आगे झुकना पड़ा। अब अगर किसी देश को सबसे सुचारू न्यायिक प्रक्रिया की जरूरत है, तो वह भारत है, और भारत को कई कारणों से किसी भी अन्य देश की तुलना में इसकी अधिक आवश्यकता है।
आखिर ऐसा क्यों है? दरअसल हम एक ऐसा देश हैं, जो उन्नति की ओर अग्रसर है। इस उन्नति को रोका नहीं जा सकता। यह उन्नति क्रमिक है। देवियों और सज्जनों, मैं इस समय देश की स्थिति पर विचार करना चाहता हूं, और मैं यह किसी अधिकार के आधार पर ही कर रहा हूं क्योंकि मुझे 1989 में संसद में, 1991 में मंत्री के रूप में शासन में रहने का अवसर मिला था। इसलिए मैं जानता हूं कि उस समय क्या स्थिति थी और अब क्या स्थिति है।
हम जिस त्वरित आर्थिक उछाल के साक्षी बन रहे हैं। भारत एक दशक पहले 11वीं अर्थव्यवस्था था, और अब 5वीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बन गया है तथा जल्दी ही जापान और जर्मनी से आगे निकलकर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है।
हम 8% की वृद्धि के साथ 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में बढ़ रहे हैं। इससे थोड़ा हटकर देखें, तो बुनियादी ढांचे का अभूतपूर्व विकास हुआ है। जो लोग एक दशक पहले इस देश में आए थे और अब फिर से आए हैं, वे देख सकते हैं कि यह विकास कितनी तेज़ी से हुआ है या यशोभूमि, या भारतीय संसद भवन, कोविड के दौर में भी नव निर्माण हुए हैं, हमारे राजमार्ग, हमारा विमानन क्षेत्र, हमारा अंतरिक्ष क्षेत्र, हमारा डीप सी क्षेत्र। इस तरह हमारे बुनियादी ढांचे का अभूतपूर्व विकास हुआ है। हमारे यहां हर साल 4 नए हवाई अड्डे और 1 मेट्रो प्रणाली बनाई गई है। दुनिया का कौन सा देश ऐसा कर सकता है?
प्रतिदिन 14 किलोमीटर राजमार्ग और विश्व स्तरीय राजमार्ग तथा 6 किलोमीटर रेलवे बनाए जा रहे हैं। 1.4 बिलियन की आबादी वाले देश में प्रौद्योगिकी का गहन प्रसार है। 85 मिलियन लोगों को किफायती आवास का लाभ मिला है। 330 मिलियन लोगों को स्वास्थ्य कवरेज तथा 29 मिलियन छोटे व्यवसायों को सालाना ऋण दिया जा रहा है।
मैं ये आंकड़े इसलिए दे रहा हूं, क्योंकि जहां तक मध्यस्थता की प्रक्रिया का सवाल है, ये तर्कसंगत एवं युक्तिसंगत हैं। देश किस दिशा में जा रहा है? हम चंद्र और मंगल मिशन, वैक्सीन के उत्पादन पर गर्व करते हैं, हम सेमीकंडक्टर, क्वांटम कंप्यूटिंग, ग्रीन हाइड्रोजन मिशन पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। हम उन गिने-चुने देशों में हैं, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर कम से कम ध्यान तो केंद्रित कर रहे हैं। हम दुनिया के उन कुछ देशों में से एक हैं, जो वाणिज्यिक रूप से 6जी का दोहन करने की राह पर हैं। और पूरे देश में 4जी के हमारे प्रसार को देखिए। यह हर गांव में है। और इसलिए, हमारे पास सर्वव्यापी डिजिटलीकरण है। 6.1 बिलियन मासिक डिजिटल लेनदेन हो रहे हैं।
तीसरा विशालतम ग्लोबल इकोसिस्टम और सबसे बड़ा यूनिकॉर्न- अच्छी तरह से प्रसारित है। जन-केंद्रित नीतियां हैं। घर में शौचालय, घर में गैस कनेक्शन, घर में बिजली का कनेक्शन, घर में इंटरनेट कनेक्शन, सड़क संपर्क, सब कुछ मौजूद है। और इसलिए, एक दशक के इस विकास ने भारत को दुनिया के सबसे आकांक्षी राष्ट्र के रूप में परिवर्तित कर दिया है। लोग अब बेचैनी में भी आराम करते हैं। उन्हें और अधिक पाने की चाहत है। वे और अधिक इसलिए चाहते हैं, क्योंकि उन्होंने विकास का स्वाद चख लिया है। उन्हें जन-केंद्रित नीतियों का लाभ मिला है। यह सब आर्थिक गतिविधि में उछाल से ही संभव है। और हर आर्थिक गतिविधि में मतभेद, विवाद होंगे, जिनके त्वरित समाधान की आवश्यकता होगी।
कभी-कभी, धारणाओं में भिन्नता, अपर्याप्त सहायता या असहायता के कारण विवाद और मतभेद उत्पन्न होते हैं। ऐसी स्थिति में, यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम अधिनिर्णयन पर ध्यान केंद्रित करें। अब वह समय है जब भारत वैश्विक स्तर पर हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है। क्यों न भारत वैश्विक विवाद समाधान केंद्र के रूप में भी उभरकर सामने आए ? अगर मैं खुद के बारे में विचार करता हूं तो मुझे अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय में सदस्य के रूप में रहने से बहुत लाभ हुआ है।
उनके पास ऐसा क्या है, जो हमारे पास नहीं है? उनके बुनियादी ढांचे की हमारे पास मौजूद बुनियादी ढांचे से तुलना नहीं की जा सकती। यहां ऐसे सांस्कृतिक केंद्र हैं, जहां मध्यस्थों को संबद्ध किया जा सकता है । कोलकाता जाएं , जयपुर जाएं , बैंगलोर जाएं , हैदराबाद जाएं , चेन्नई जाएं , किसी भी हिस्से में जाएं, मेट्रो से दूर जाएं तो आपको सब मिल जाएगा। मैंने 10 साल में दुबई और सिंगापुर में बिना किसी विरोध के डर के स्व-मूल्यांकन पर विश्वसनीयता के साथ मध्यस्थ केंद्रों का विकास देखा है। इस कारण से, मैं कह सकता हूं कि हम कहीं नहीं हैं।
यदि अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता की बात करें,तो हम अपने साथ व्यावसायिक संबंध रखने वाले लोगों के जहन में नहीं हैं। एक समय था जब इस देश में पहली बार बिजली खरीद समझौता हुआ था। मेरे मित्र गौरव बनर्जी मेरी बात की पुष्टि करेंगे। यह समझौता देश के बाहर एक कानूनी फर्म द्वारा तय किया गया था, लेकिन न्यायमूर्ति गुप्ता, इसने तीन शर्तों पर टैरिफ का प्रावधान किया था। एक था टैरिफ ए, अगर मध्यस्थता भारत में भारतीय कानून के अनुसार होती है, तो टैरिफ ए माइनस 1 से सस्ता होगा। अगर मध्यस्थता भारत में होती है लेकिन भारतीय कानून के अनुसार नहीं होती। अगर मध्यस्थता भारत के बाहर और बाहरी कानूनी व्यवस्था के तहत होती है, तो भी यह सस्ता होगा। हमें इसे बदलना होगा, और यह यूएनआरडब्ल्यूए के बिजली खरीद समझौते में परिलक्षित होता है।
जब हम स्वाभाविक रूप से, सांस्कृतिक रूप से और अन्यथा विश्व में सबसे समृद्ध मानव संसाधन हैं, अत्यधिक कुशलता की आवश्यकता वाली तकनीकों के प्रति अधिकतम अनुकूलन की क्षमता वाले भारतीय हैं और यही कारण है कि आप डिजिटल लेनदेन के कारण औपचारिक अर्थव्यवस्था को विकसित होते हुए देखेंगे, इसलिए, हमारे लिए अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने का समय आ गया है, ताकि हम उस मैराथन मार्च का हिस्सा बन सकें, जो भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए देश में चल रहा है। साथ ही भारत अब क्षमताओं वाला देश भर नहीं है और विकसित राष्ट्र का दर्जा पाना अब हमारा सपना नहीं है, बल्कि यह हमारी मंजिल है। इतना ही नहीं, सभी वैश्विक संगठन जो 90 में, जब मैं सरकार का हिस्सा था, पूरी तरह से हमारे साथ थे, वैश्विक केंद्र के रूप में हमारी प्रशंसा कर रहे हैं, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का कहना है यह निवेश और अवसर का पसंदीदा केंद्र है। विश्व बैंक ने इस बात के लिए हमारी सराहना की है कि हमने लगभग छह वर्षों में जो डिजिटलीकरण हासिल किया है, वह अन्यथा चार दशकों में भी हासिल नहीं किया जा सकता था।
और इसलिए हमें कुछ बुनियादी बातों पर गौर करना होगा, मैं कुछ सुझाव दे सकता हूं। इस देश के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश, मैं उनके द्वारा छोड़ी गई विरासत या पदचिह्नों, उन्होंने किस प्रकृति का पीछे छोड़ा, के बारे में चिंतित नहीं हूं, लेकिन उन्होंने मध्यस्थता की प्रक्रिया में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की भागीदारी का उल्लेख करते हुए यह टिप्पणी की कि यह प्रक्रिया ओल्ड ब्वॉयज क्लब बन गई है ।
मुझे एक पल के लिए भी गलत नहीं समझा जाना चाहिए। इस देश के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मध्यस्थता प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण हैं, वे हमें विश्वसनीयता प्रदान करते हैं। मैं कुछ पूर्व मुख्य न्यायाधीशों और न्यायाधीशों - न्यायमूर्ति लोढ़ा, न्यायमूर्ति ठाकुर, को जानता हूं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता के लिए वैश्विक स्तर पर सराहा जा रहा है ।
मैं आपको बता दूं कि सभी न्यायाधीश अद्भुत न्याय कर रहे हैं, मैं एक पल के लिए भी यह नहीं कह रहा हूं कि उनसे दूर रहिए, हरगिज नहीं!
लेकिन ऐसे क्षेत्र मौजूद हैं, जहां मध्यस्थता के मामले को समुद्र विज्ञान, विमानन और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में विशेषज्ञों द्वारा सहायता की आवश्यकता होती है, हमारे न्यायाधीश संभवत: दुनिया में बेहतरीन हैं। वे सूझबूझ से काम करते हैं, और इसलिए एक पल के लिए भी मुझे गलत नहीं समझा जाना चाहिए। मैं पूर्व मुख्य न्यायाधीश की ओल्ड ब्वॉयज क्लब वाली टिप्पणी को साझा नहीं करता। न्यायमूर्ति गुप्ता एक बड़ा बदलाव लाने के अपने उत्साह और प्रतिबद्धता के कारण तत्काल उपयुक्त हैं, लेकिन मैं आलोचक का दृष्टिकोण अपना रहा हूं और आलोचक का दृष्टिकोण यह है कि देश के महान्यायवादी वास्तव में विचार कर सकते हैं और एक बड़ा बदलाव ला सकते हैं, दुनिया में इस देश ने मुझे बताया है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर स्वतः संज्ञान लिया है।
मुझे यकीन है कि मैं अन्वेषण नहीं सकता, और अनुच्छेद 136 का हस्तक्षेप संभवत: संकीर्ण दरार था। लेकिन वह दीवार हर तरह से और बड़े पैमाने पर ध्वस्त हो गई है, जिसमें मजिस्ट्रेट को क्या करना है, सत्र न्यायाधीश को क्या करना है, जिला न्यायाधीश को क्या करना है, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को क्या करना है, जैसी बाते शामिल हैं। दीवार का ध्वस्त होना भी मध्यस्थता प्रक्रिया को नुकसान पहुंचा रहा है।
मैं पूरी विनम्रता और इस देश के एक जागरूक नागरिक के रूप में यह सुझाव दे रहा हूं कि जिस मुद्दे पर आप बहस कर रहे हैं वह सूक्ष्म-लघु उद्योगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, वे सरल और आसान मध्यस्थता प्रक्रिया चाहते हैं। समय की कमी के कारण मैं वह सब नहीं कह पाऊंगा, जो मैं कहना चाहता हूं, और चूंकि मैंने न्यायमूर्ति गुप्ता के साथ निजी तौर पर अपने विचार साझा किए हैं, इसलिए मैं निष्कर्ष के तौर पर अपनी बात कहूंगा।
आइए, हम आगे बढ़ें, क्योंकि अब समय आ गया है कि हम वैकल्पिक समाधान से सौहार्दपूर्ण समाधान की ओर कदम दर कदम आगे बढ़ें। यह वैकल्पिक क्यों होना चाहिए, यह आवश्यक तौर पर पहला विकल्प होना चाहिए, यह मुकदमेबाजी का विकल्प क्यों होना चाहिए, इसलिए विवाद समाधान से, मतभेद समाधान तक सौहार्दपूर्ण समाधान होना चाहिए, हम इसे विवाद क्यों कहते हैं, ये मतभेद हैं, ये मतभेद इसलिए हैं क्योंकि एक नए व्यक्ति ने मेक इन इंडिया में एक विशेष उद्यम शुरू किया है, उसने एक स्टार्टअप शुरू किया है। कुछ अंतर है, यह अंतर वह दूर करना चाहता है क्योंकि वह सब कुछ नहीं है।
उनके पास विविध विभाग नहीं हो सकते और इसलिए, हमें इसे विवाद समाधान से मतभेद समाधान में बदलना चाहिए और फिर समाधान क्यों? इसे समाधान से निपटान में क्यों नहीं बदलना चाहिए और न्यायिक रूप से लागू करने योग्य निर्णयों के पैकेज की तलाश क्यों होनी चाहिए। आइए हम आपसी सहमति की ओर अभिमुख हों।
मेरे साधारण आकलन के अनुसार ये सभी वाणिज्यिक साझेदारियों को सुरक्षित करेंगे। वे साझेदारियों को तोड़ेंगे नहीं । वे वाणिज्य, व्यवसाय, व्यापार और उद्योग में साझेदारियों को बढ़ावा देंगे और उनका फलना –फूलना सुनिश्चित करेंगे। यह आर्थिक विकास के लिए शुभ संकेत होगा और यह हमें वैश्विक मध्यस्थता के क्षेत्र में भी स्थान दिलाएगा, जहां हम अभी बहुत दूर हैं।
फिलहाल, देवियों और सज्जनों, मुझे कोई संदेह नहीं है, मैं अपने मन की बात एक वाक्य में स्पष्ट कर देना चाहता हूं : हमारे देश में मध्यस्थता प्रक्रिया, अधिनिर्णयन की सामान्य पदानुक्रमिक प्रणाली पर एक अतिरिक्त बोझ मात्र है। मैं न्यायमूर्ति गुप्ता द्वारा मुझे दिए गए अवसर के लिए आभारी हूं । मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूं और मैं आपकी हर प्रकार से, उचित या समीचीन तरीके से सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध हूं ।
देवियों और सज्जनों, आपके समय और धैर्य के लिए बहुत-बहुत आभार।
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