शिक्षा मंत्रालय
भारत की उच्च शिक्षा: परंपरा से परिवर्तन तक
Posted On:
13 FEB 2025 5:12PM by PIB Delhi
“गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के प्रति हमारी प्रतिबद्धता के उत्साहजनक परिणाम मिल रहे हैं। हम अपने शैक्षणिक संस्थानों को समर्थन देना जारी रखेंगे और विकास एवं नवाचार के अवसर प्रदान करेंगे। इससे हमारे युवाओं को काफी मदद मिलेगी।”
~प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी
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भारत में शिक्षा इसकी उस प्राचीन दार्शनिक परंपरा में गहराई से अंतर्निहित है, जहां विद्या को महज ज्ञान के संचय के रूप में नहीं बल्कि समग्र आत्म-सशक्तीकरण के साधन के रूप में देखा जाता था। प्राचीन भारतीय ग्रंथों में कहा गया है कि “ज्ञान की संपदा वास्तव में सभी प्रकार की संपदाओं में सर्वोच्च है।” वर्षों से, भारत ने ज्ञान की इस अमूल्य संपदा को समृद्ध करने और इसे अपने युवाओं तक पहुंचाने का प्रयास किया है। विशेष रूप से, पिछले दशक में, भारत ने वैश्विक रैंकिंग में अपने प्रतिनिधित्व में 318 प्रतिशत की प्रभावशाली वृद्धि दर्ज की है - जोकि जी20 देशों के बीच सबसे अधिक वृद्धि है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में इस सकारात्मक छलांग पर प्रकाश डालना अहम है।
भारत के विश्वविद्यालयों का विस्तार और विद्यार्थियों का प्रवाह
10 फरवरी को, नीति आयोग ने ‘राज्यों और राजकीय सार्वजनिक विश्वविद्यालयों के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा का विस्तार’ शीर्षक रिपोर्ट जारी की। यह रिपोर्ट राजकीय सार्वजनिक विश्वविद्यालयों (एसपीयू) पर केन्द्रित है, जो विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में शिक्षा को अधिक सुलभ बनाने की दृष्टि से महत्वपूर्ण रहे हैं। वर्तमान में, एसपीयू 3.25 करोड़ से अधिक विद्यार्थियों को सेवा प्रदान करते हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 में 2035 तक नामांकन को दोगुना करने का लक्ष्य रखे जाने के साथ, एसपीयू अधिकांश विद्यार्थियों को शिक्षित करना जारी रखेंगे।
देश की शिक्षा प्रणाली का विकास एवं विस्तार
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वर्ष 1947 में भारत की आज़ादी के समय, देश की शिक्षा प्रणाली विभिन्न प्रकार की चुनौतियों से ग्रसित थी। भारत में केवल 17 विश्वविद्यालय और 636 कॉलेज थे, जो लगभग 2.38 लाख विद्यार्थियों को सेवा प्रदान करते थे। साक्षरता दर चिंताजनक रूप से कम 14 प्रतिशत थी। अब, हमारे पास 495 राजकीय सार्वजनिक विश्वविद्यालय और उनके साथ 46,000 से अधिक संबद्ध संस्थान हैं जो वास्तव में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये विश्वविद्यालय विद्यार्थियों के कुल नामांकन में 81 प्रतिशत की हिस्सेदारी करते हैं, जोकि पूरे भारत में उच्च शिक्षा को सुलभ बनाता है।
भारत में उच्च शिक्षा के इकोसिस्टम का उदय
वर्ष 1857 में कलकत्ता, बंबई और मद्रास में शुरुआती विश्वविद्यालयों की स्थापना के बाद से, भारत की उच्च शिक्षा के इकोसिस्टम में काफी विस्तार हुआ है। वर्ष 1950-51 में देश में सिर्फ 30 विश्वविद्यालय और 578 कॉलेज थे। हालांकि, एआईएसएचई रिपोर्ट 2021-2022 के अनुसार, परिदृश्य बदल गया है और अब 1,168 विश्वविद्यालय, 45,473 कॉलेज एवं 12,002 स्टैंड-अलोन संस्थान अस्तित्व में हैं। पिछले दो दशकों में अकेले कॉलेजों की संख्या ही चौगुनी से अधिक हो गई है, जोकि इस क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि को रेखांकित करती है।
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जीईआर में उल्लेखनीय वृद्धि
वर्ष 1950-51 और 2021-22 के बीच, भारत का सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) उल्लेखनीय रूप से 71 गुना बढ़ गया, जोकि पिछले दशकों में विद्यार्थियों के नामांकन को बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति को दर्शाता है। जीईआर के आंकड़े इस वृद्धि को दर्शाते हैं। वर्ष 1950-51 में जीईआर 0.4 था, जो 2021-22 में बढ़कर 28.4 तक जा पहुंचा। यह प्रभावशाली प्रगति राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 द्वारा निर्धारित लक्ष्यों के अनुरूप है, जिसका लक्ष्य 2035 तक 50 प्रतिशत का जीईआर हासिल करना है।
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विभिन्न श्रेणियों में नामांकन के रुझानों पर एक नज़र डालें:
- राजकीय सार्वजनिक विश्वविद्यालयों (एसपीयू) में नामांकन: 2011-12 में 2.34 करोड़ विद्यार्थियों से बढ़कर 2021-22 में 3.24 करोड़ विद्यार्थी हो गया।
- एसईडीजी (सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूह) के विद्यार्थियों का नामांकन (2011-2022): अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के विद्यार्थियों के नामांकन में 80.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई, अनुसूचित जाति (एससी) के विद्यार्थियों के नामांकन में 76.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 2011-12 में, 15 प्रतिशत पात्र अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों (18-23 वर्ष की आयु) को पूरे भारत में एचईआई में नामांकित किया गया था, जो 2021-22 तक बढ़कर लगभग 26 प्रतिशत हो गया। अनुसूचित जनजाति (एसटी) के विद्यार्थियों का नामांकन भी दोगुना हो गया और उसमें 106.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई तथा उच्च शिक्षा में पात्र अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों का प्रतिशत पिछले दशक में 11 से बढ़कर 21 प्रतिशत हो गया, जबकि मुस्लिम अल्पसंख्यक विद्यार्थियों के नामांकन में 60.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के विद्यार्थियों के नामांकन में 53.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
- एसपीयू में दिव्यांग (पीडब्ल्यूडी) विद्यार्थियों का नामांकन: 2011-12 में 52,894 विद्यार्थी से बढ़कर 2016-17 में 53,921 विद्यार्थी (2 प्रतिशत की वृद्धि) और 2021-22 में 56,379 विद्यार्थी (2016-17 से 4.6 प्रतिशत की वृद्धि और 2011-12 से 6.6 प्रतिशत की वृद्धि) हो गया।
- राजकीय सार्वजनिक विश्वविद्यालय (शिक्षण विभाग और संबद्ध इकाइयों/ऑफ-कैंपस केन्द्रों) नामांकन में सबसे बड़ी हिस्सेदारी निभाते हैं, जो 2011-12 में 24.5 लाख से बढ़कर 2021-22 में लगभग 29.8 लाख हो गया है और 21.8 प्रतिशत की दशकीय वृद्धि को दर्शाता है।
- राज्य के निजी विश्वविद्यालयों (शिक्षण विभाग और संबद्ध इकाइयों/ऑफ-कैंपस केन्द्रों) ने बेहद उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की, 2011-12 में नामांकन 2.7 लाख से बढ़कर 2021-22 में 16.2 लाख हो गया - 497 प्रतिशत की एक आश्चर्यजनक वृद्धि।
- केन्द्रीय विश्वविद्यालयों (शिक्षण विभाग और संबद्ध इकाइयों/ऑफ-कैंपस केन्द्रों) में एक दशक के दौरान 26.4 प्रतिशत की मध्यम वृद्धि दर्ज की गई, जो 2011-12 में 5.55 लाख से बढ़कर 2021-22 में 7.01 लाख हो गई।
वर्ष 2021-22 में राष्ट्रीय जीपीआई (लिंग समानता सूचकांक) 2011-12 में 0.87 की तुलना में 1.01 था, जो एक दशक में लैंगिक समानता की दिशा में 16 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है।
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अखिल भारतीय स्तर पर शैक्षणिक पदों पर शिक्षक
भारत में उच्च शिक्षण संस्थानों (एचईआई) में लगभग 16 लाख शिक्षक हैं, जिनमें से अधिकांश (68 प्रतिशत) व्याख्याता/सहायक प्रोफेसर हैं। रीडर/एसोसिएट प्रोफेसर कुल संकाय का लगभग 10 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसके बाद प्रोफेसर एवं समकक्ष 9.5 प्रतिशत, डेमन्स्ट्रेटर/ट्यूटर 6 प्रतिशत, अस्थायी शिक्षक 5.7 प्रतिशत और विजिटिंग शिक्षक 0.8 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं। पिछले कुछ वर्षों में प्रोफेसरों की संख्या में मामूली वृद्धि हुई है।
वैश्विक अनुसंधान में भारत का योगदान
वैश्विक स्तर पर अनुसंधान संबंधी प्रकाशनों में भारत के योगदान में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो 2017 में 3.5 प्रतिशत से बढ़कर 2024 में 5.2 प्रतिशत हो गई है। यह वृद्धि एनआईआरएफ 2024 रैंकिंग में परिलक्षित होती है, जहां भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) अनुसंधान संबंधी आउटपुट के मामले में अग्रणी हैं, जो 16 संस्थानों के माध्यम से कुल प्रकाशनों में 24 प्रतिशत से अधिक का योगदान देते हैं। इसके बाद निजी डीम्ड विश्वविद्यालयों का स्थान है, जो कुल प्रकाशनों में लगभग 23.5 प्रतिशत की हिस्सेदारी करते हैं और 22 संस्थानों ने अपने अनुसंधान संबंधी आउटपुट में सुधार दर्शाया है।
भारत ने अपने उच्च शिक्षा क्षेत्र में भी एक मजबूत निवेश किया है और 2021 में अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1.57 प्रतिशत हिस्सा तृतीयक स्तर की शिक्षा को समर्पित करते हुए कई यूरोपीय देशों को पीछे छोड़ दिया तथा संयुक्त राज्य अमेरिका एवं यूनाइटेड किंगडम के करीब आ गया। यह निरंतर निवेश भारत के शिक्षा से जुड़े इकोसिस्टम के विस्तार और मजबूती का समर्थन करता है, जिससे अनुसंधान एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की सुलभता के मामलों में प्रगति सुनिश्चित होती है।
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निष्कर्ष
नामांकन में उल्लेखनीय वृद्धि, राजकीय सार्वजनिक विश्वविद्यालयों (एसपीयू) के विस्तार और वंचित समूहों के बेहतर प्रतिनिधित्व के साथ भारत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में प्रभावशाली विकास हुआ है। देश ने लैंगिक समानता, संकाय विकास और वैश्विक स्तर पर अनुसंधान संबंधी योगदान के मामले में प्रगति की है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के साथ, भारत का लक्ष्य 2035 तक 50 प्रतिशत का जीईआर हासिल करना और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की न्यायसंगत सुलभता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से शिक्षा के बुनियादी ढांचे, संकाय एवं अनुसंधान को और अधिक मजबूत करने पर ध्यान केन्द्रित करना है।
संदर्भ
https://static.pib.gov.in/WriteReadData/specificdocs/documents/2024/jun/doc202467340601.pdf
https://x.com/narendramodi/status/1806249732043628945
https://www.niti.gov.in/sites/default/files/2025-02/Expanding-Quality-Higher-Education-through-SPUs.pdf
कृपया पीडीएफ फाइल देखें
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