उप राष्ट्रपति सचिवालय
उपराष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा इंटर्नशिप कार्यक्रम के 5वें बैच के प्रशिक्षुओं को दिए गए संबोधन का मूल पाठ (मुख्य अंश)
Posted On:
27 JAN 2025 5:43PM by PIB Delhi
आप सभी को मेरा नमस्कार। आप सब भारत की उभरती ताकत के सैंपल हैं। और इसलिए, इस अनूठे कार्यक्रम में आप सभी का स्वागत है।
इस कार्यक्रम का श्रेय मुझे दिया गया है, लेकिन सच तो यह है कि इसका विचार रजित के माध्यम से सामने आया। क्योंकि वही इसकी जिम्मेदारी संभालते है. मैं नहीं। लेकिन यदि श्रेय दिया जाना है, तो हम इसे साझा कर सकते हैं। यह पांचवां बैच है. लेकिन यह बैच अनूठा है। यह उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में हमारा पहला उद्घाटन सत्र है।
यह पांचवां बैच इसलिए भी विशिष्ट है क्योंकि अब हम भारतीय संविधान को अंगीकृत किये जाने की इस शताब्दी की अंतिम चौथाई में प्रवेश कर चुके हैं। यह एक उल्लेखनीय उपलब्धि है।
जब भारत को संविधान मिला, तो कई लोगों को संदेह था कि क्या यह ऐसा ही रहेगा। लेकिन भारत के लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल के उत्साही योगदान का धन्यवाद, कि उन्होंने इतने कारगर और प्रभावशाली ढंग से देश का एकीकरण किया। आप लोगों को आपस में इस बात पर चर्चा करने की आवश्यकता है कि सरदार जम्मू एवं कश्मीर को छोड़कर इन सभी राज्यों के एकीकरण में शामिल थे। क्या आप मेरी बात समझ गए? यदि सरदार जम्मू एवं कश्मीर के एकीकरण में भी उसी तरह शामिल रहते तो हमारे सामने आने वाली अधिकांश समस्याएं शायद नहीं होतीं। हमारे भारतीय संविधान में डॉ. बी.आर. अम्बेडकर का काफी योगदान है। वह प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे।
उनका दृष्टिकोण वैश्विक था और वे दूरदर्शी थे। उन्होंने संविधान के सभी अनुच्छेदों का मसौदा तैयार किया, केवल एक अनुच्छेद 370 को छोड़कर। आपने सरदार के संदर्भ में देखा है।
वह जम्मू एवं कश्मीर के एकीकरण से जुड़े नहीं थे। डॉ. बी.आर. अम्बेडकर बेहद राष्ट्रवादी थे और संप्रभुता की बात उनके मन में थी। एक संदेश लिखकर, उन्होंने अनुच्छेद 370 का मसौदा तैयार करने से इनकार कर दिया। आपके पास इसे पढ़ने का अवसर होगा। डॉ. अम्बेडकर की इच्छा प्रभावी हुई होती? हमने इतनी बड़ी कीमत नहीं चुकाई होती, जो हमने आपको चुकाई है। मैं एक कीमत के बारे में बताता हूं, जो हमने चुकाई।
वर्ष 1989 में, मैं लोकसभा सदस्य के रूप में संसद के लिए चुना गया। वर्ष 1990 में केन्द्रीय मंत्री के रूप में मैं जम्मू एवं कश्मीर, श्रीनगर गया था। माननीय प्रधानमंत्री वहां थे, मंत्रिपरिषद के सदस्य वहां थे। मैं उनमें से एक था। हमने क्या देखा। श्रीनगर की सड़कों पर 20 नागरिक भी नहीं थे। युवकों और युवतियों, पिछले वर्ष जम्मू एवं कश्मीर में दो करोड़ से अधिक पर्यटक आये थे क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व वाली सरकार ने निर्णय लिया कि भारतीय संविधान का एकमात्र अस्थायी अनुच्छेद, एकमात्र ऐसा अनुच्छेद जिसका मसौदा डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने नहीं तैयार किया था और एकमात्र ऐसा अनुच्छेद जिसके संबंध में डॉ. अम्बेडकर को अपनी कलम को तलवार की तरह इस्तेमाल करने का अवसर मिला था तथा जिसके बारे में उन्होंने बताया था कि मैं इसका मसौदा क्यों नहीं तैयार कर रहा हूं, भारतीय संविधान में नहीं रहेगा। यह एक उल्लेखनीय कदम था।
मैं इस ओर आपका ध्यान इसलिए आकर्षित कर रहा हूं क्योंकि आपको स्वयं सीखना होगा। आपको जिज्ञासा के साथ सीखना होगा। आपको जो सिखाया जाएगा, वही अंतिम नहीं है। वह सिर्फ एक छोटी से झलक भर होगी। यदि आप मूल भारतीय संविधान को देखें, जो इतनी अच्छी तरह से संरक्षित है, तो आप काफी कुछ पाएंगे, आप इसे देखें, इसकी प्रशंसा करें, लेकिन आपके लिए इतना ही काफी नहीं है। आपको इसके बारे में सोचना होगा, इसकी शुरुआत कैसे हुई, संविधान सभा में कितने सदस्य थे।
जब हमें आजादी मिली तो कितने सदस्य दूसरी तरफ चले गये? सदस्यों की नियुक्ति या निर्वाचन कैसे किया गया था। कैसे संविधान सभा के छह सदस्य संविधान पर हस्ताक्षर नहीं कर सके? विभिन्न समितियों के अध्यक्ष कौन थे, संविधान सभा के प्रथम सभापति कौन थे?
संविधान सभा की बैठक कितने समय तक चली? इसमें कितने सत्र आयोजित हुए? संविधान कहां सुलेखित किया गया था? और संविधान में हमारी 5,000 साल की सभ्यता की यात्रा को दर्शाने वाले जो लघुचित्र हैं, उनका सृजन कैसे हुआ।
यह सब आपके लिए आंखें खोलने वाला होगा. तो उस जगह की यात्रा के लिए आपको होमवर्क करके आना होगा।
यह बात है। जब आप उस नई बिल्डिंग में प्रवेश करेंगे तो आपको कुछ अलग ही देखने को मिलेगा। जब आप क्यूआर कोड को देखेंगे, तो लगेगा कि यह क्या है? 5,000 साल की सांस्कृतिक विरासत आपके सामने है। आपको गंभीरता से सोचना होगा कि जिस द्वार से आप प्रवेश कर रहे हैं उसका नाम क्यों रखा गया है।
पुरानी बिल्डिंग में जाकर पता कीजिए कि संस्कृत के श्लोक वहां क्यों हैं? आपका एक एक पल आपको उपयोग में लाना पड़ेगा। इसका अल्टीमेट आशय क्या है? इसका उद्देश्य है कि संसद सदस्य लोगों की इच्छा को प्रतिबिंबित करें। संसद लोगों की पवित्र इच्छाओं को प्रतिबिंबित करने वाला सबसे प्रामाणिक मंच है और उनके प्रतिनिधियों को जब काम करना पड़ता है। उन्हें भी सहायता की आवश्यकता होती है। जो लोग शुरुआत में संसद सदस्य के रूप में आते हैं, उन्हें कई चीजों की जानकारी नहीं होती है।
इसलिए जब सहायता प्रदान करने की बात आती है, तो आप बहुत विशेष होते हुए इतनी अच्छी तरह से तैयार रहने वालों की श्रेणी में हैं कि आपको गहराई से जानकारी हो। आपका उद्देश्य किसी संसद सदस्य को उसके कर्तव्यों का बेहतर ढंग से पालन करने में मदद करना, संवैधानिक शक्तियों व दायित्वों के प्रति जागरूक होना होना चाहिए और इसकी आवश्यकता जितनी आज है उतनी पहले कभी नहीं थी।
यदि आपको किसी सदस्य की मदद करने का अवसर मिले, तो आपको इस बारे में ध्यान आकर्षित करना पड़ सकता है कि वाद-विवाद कैसा होना चाहिए? हमारी संस्कृति कहती है बिना वाद-विवाद के समस्या का हल नहीं हो सकता। मेरा दृढ़ मत है कि दुनिया विभिन्न समस्याओं का सामना कर रही है। ऐसी समस्याएं जो अपनी प्रकृति में अस्तित्वगत हैं, जलवायु परिवर्तन या आग की घटनाएं भी। हमारे सामने एक समस्या रूस, यूक्रेन और दूसरी इजराइल, हमास की है। लेकिन अंत में, जैसा कि प्रधानमंत्री ने सुझाया है, समाधान सिर्फ बातचीत और कूटनीति के माध्यम से ही होता है। तो क्या हम इस समय ऐसा ही कुछ कर रहे हैं? क्या हमने बहस एवं संवाद की जगह व्यवधान और हंगामा को बढ़ावा नहीं दे दिया है? क्या हमने आम सहमति बनाने की जगह अड़ियल टकराव वाले रुख को नहीं अपना लिया है?
और ऐसा क्यों है, गत 10 वर्ष में आप देखिए तो किसी भी देश ने इतनी बड़ी उछाल नहीं लगाई है अर्थव्यवस्था में, संस्थागत ढांचे में, तकनीकी विकास में जितनी भारत ने लगाई है।
भारत को एकमात्र ऐसे राष्ट्र के रूप में जाना जाता है जिसने पिछले दशक में भारी आर्थिक उछाल, तेज बुनियादी ढांचागत विकास, गहरी तकनीकी पैठ, युवाओं को मदद प्रदान वाली सकारात्मक नीतियों को साकार किया है और इसके परिणामस्वरूप आशा एवं संभावनाओं का माहौल बना है।
इस देश के लोगों ने पहली बार विकास का स्वाद चखा है, क्योंकि उनके घर में शौचालय है, रसोई में गैस कनेक्शन है, उन्हें इंटरनेट उपलब्ध है, रोड कनेक्टिविटी है, एयर कनेक्टिविटी है। उन्हें पाइप से पानी, पीने योग्य पानी मिलने वाला है।
40 मिलियन लोगों को पहले ही किफायती आवास हासिल हो चुका है। जब आप ऐसी स्थिति का स्वाद चखते हैं, तो आप एक आकांक्षी राष्ट्र बन जाते हैं। और यह सब एक बेहतरीन प्लानिंग के साथ किया गया, लेकिन लोग सराहना नहीं करते। जब प्रधानमंत्री जी ने पहली बार कहा कि देश में आकांक्षी जिले होने चाहिए, उनकी संख्या कम होती जा रही है। वो वह जिले थे जहां कोई अधिकारी कलेक्टर नहीं बनना चाहता था। एसपी जाना नहीं चाहता था। विकास वहां नहीं था। उन्होंने यह बीड़ा उठाया कि पूरे देश को एक पठार की तरह बनाना है, पिरामिड की तरह नहीं। नतीजा क्या हुआ? आकांक्षी जिलों की पहचान की गई। आज के दिन 180 डिग्री का बदलाव आ गया है। आईएएस का आदमी आकांक्षी जिले में जिला मजिस्ट्रेट बनना चाहता है। यह बदलाव है।
स्मार्ट सिटी। स्मार्ट सिटी का कॉन्सेप्ट, लोगों को लगा जैसे कपड़े की स्मार्टनेस होती है। स्मार्टनेस को मानव शरीर में आत्मा वाली दृष्टि से देखना होगा। अपने मन के माध्यम से देखना होगा। स्मार्ट सिटी का मतलब एक ऐसे शहर से है जो हमारे युवाओं को उनकी प्रतिभा का उपयोग करने में मदद करने हेतु विभिन्न कारकों की दृष्टि से सक्षम हो। जब कैलिब्रेशन चालू हुआ कि कौन सा शहर सबसे ज्यादा साफ है? महात्मा गांधी जी के आहवान के उदाहरण के तहत प्रधानमंत्री जी ने स्वच्छ भारत का आह्वान किया था। अब देखिए क्या करिश्मा हो गया है। हमारी मानसिकता बदल गई है,यह सब आपको ध्यान देना है। अब इतना तो कुछ हो गया है।
अब लोगों की आकांक्षा आसमान छू रही है, अब हर कोई सब कुछ चाहता है, लोगों के मन में आ गया है की प्रगति की गंगा जब इतनी ज्यादा बह गई है तो हम दुनिया में नंबर एक बनकर रहेंगे और सबसे पहले वह खुद को देखता है। आपका दायित्व है, प्रतिभाशाली युवा होने के नाते आपको यह पता लगाना होगा कि युवाओं के लिए क्या अवसर उपलब्ध हैं।
मैं कुछ हद तक इस बात से चिंतित हूं कि हमारे युवा अभी भी सरकारी नौकरियों के लिए कोचिंग की कक्षाओं के बारे में सोच रहे हैं। वे एक अलग- थलग पड़े हुए हैं और एक लीक से बंधे हुए हैं। सरकारी नौकरी से आगे नहीं सोच पा रहे हैं, उन्हें ध्यान देना चाहिए कि आज के दिन अवसरों का पिटारा बढ़ता ही बढ़ता जा रहा है। नतीजा है स्टार्टअप का। दूसरी और तीसरी श्रेणी के शहरों में स्टार्टअप्स बहुत ज्यादा हैं। यह सब हुआ है।
आपका एक एक पल यहां भारत के सपने को साकार करने का है। विकसित भारत अब मात्र एक सपना नहीं रहा, बल्कि विकसित भारत हमारा एक निश्चित लक्ष्य है, गंतव्य है। जब हम 2047 में आजादी की शताब्दी मनाएंगे, उस समय हम इस लक्ष्य को निश्चित रूप से हासिल कर लेंगे।
लेकिन यह और पहले भी साकार हो सकता है। यह आप और आपकी जमात का दायित्व है। आज के दिन भारत के पास सबसे बड़ी चीज है तो वह यह है - युवा आबादी का जनसांख्यिकीय लाभांश। दुनिया में इसका कोई मुकाबला नहीं। दुनिया इस मामले में हमसे ईर्ष्या करती है। यह चैलेंज भी है यह अपॉर्चुनिटी भी है। चुनौती है कि युवाओं को काम नहीं मिलेगा तो वे अशांत होंगे। वे बेचैन हो जायेंगे। काम मिलेगा, तो वे चुनौती को अवसर में बदल देंगे। मेरी एक बात का ध्यान रखें, आप इसका विवेचन कीजिए। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने जब कहा कि भारत निवेश और अवसर का एक पसंदीदा वैश्विक गंतव्य है। थोड़ा सोचिए। क्या सरकारी नौकरी के लिए कहा था? क्या बाहर के लोगों को यह कहा था कि यहां आकर सरकारी नौकरी कीजिए। तो जिस चीज के लिए कहा था वो हम क्यों नहीं कर पाएंगे। देखना पड़ेगा। थोड़ा सा सोचोगे हालात बदल जाएंगे, आपके बदल जाएंगे।
आज के दिन एक बहुत शुभ संकेत हुआ है और वो शुभ संकेत है कि संविधान निर्माताओं ने जिसकी कल्पना की थी और निर्देश दिया था संविधान में और वह भारतीय संविधान के भाग 4 में है। राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत। हमारे संविधान निर्माताओं ने राज्य को निर्देश दिया कि वह नीति-निर्देशक सिद्धांतों को साकार करने के लिए कड़ी मेहनत करें। कुछ सिद्धांत तो साकार हो गए हैं, जैसे कि शिक्षा का अधिकार। पर एक जो साकार हुआ है, वो है अनुच्छेद 44। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 44 निर्देश देता है, आज्ञा देता है कि राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करे। हम सभी आज खुशी के मूड में हैं।
भारतीय संविधान को अंगीकृत करने की सदी की आखिरी चौथाई का आरंभ देवभूमि उत्तराखंड से हुआ है। यूसीसी को वास्तविकता में परिणत किया गया है। एक राज्य ने इसे संभव किया है। मैं उत्तराखंड सरकार को अपने राज्य में समान नागरिक संहिता बनाकर संविधान निर्माताओं के सपने को साकार करने के दूरदर्शिता भरे कदम के लिए बधाई देता हूं। और मुझे विश्वास है कि यह बस समय की बात है जब पूरे देश में ऐसा कानून होगा।
मैं तो कहूंगा कि कुछ लोग अज्ञानतावश इसकी आलोचना कर रहे हैं। हम उस बात की आलोचना कैसे कर सकते हैं जो भारतीय संविधान में निर्देशित है। हमारे देश के संस्थापकों की ओर से दिया गया आदेश है। एक ऐसा प्रावधान जो लैंगिक समानता लाना चाहता है, हम इसका विरोध क्यों करते हैं? मैं उस पर बाद में आऊंगा।
हमारे जहन में राजनीति ने इतना घर कर दिया है कि वह जहर का रूप ले चुकी है, राजनीतिक लाभ के लिए राष्ट्रवाद को तिलांजलि देते हुए पलक भर भी नहीं झपकते।
कोई समान नागरिक संहिता लागू करने का विरोध कैसे कर सकता है! आप इसका अध्ययन करें। संविधान सभा की बहसों का अध्ययन करें, अध्ययन करें कि देश की सर्वोच्च अदालत ने कितनी बार ऐसा संकेत दिया है। राज्यसभा का सभापति रहते हुए, मेरे सामने एक दुर्लभ ऐतिहासिक क्षण आया था जब तीन दशकों की विफलताओं के बाद, लोकसभा एवं राज्य विधानमंडलों में महिलाओं को एक तिहाई की सीमा तक आरक्षण देने का संवैधानिक प्रावधान लाया गया था।
लैंगिक न्याय लोकतंत्र का अभिन्न अंग है। कौन रहेगा? हमारे वेदो में देखें। प्रारंभिक वैदिक संस्कृति में आपको महिला दार्शनिक, नेतृत्व की भूमिका में महिलाएं मिलेंगी। जब नीतिगत विकास की बात आई, तो वे एक ही धरातल पर थे। मैं अनगिनत बातें नहीं गिनाना चाहता। यह आपको चिंतन करना पड़ेगा। मैं आपसे अपील करूंगा कि आपके पास संविधान सभा के सदस्यों की एक सूची है और आप में से प्रत्येक को एक सदस्य का चयन गहन अध्ययन के लिए करना चाहिए कि उन्होंने किस विषय पर भाग लिया, उनकी भागीदारी का स्तर क्या था। आज एक महत्वपूर्ण लेख है जिसमें लेखक ने संविधान सभा के एक सदस्य को चुना, यह लेख इंडियन एक्सप्रेस में है। जब आप उस लेख को पढ़ेंगे, तो आप पाएंगे कि आपको भी एक सदस्य को चुनना चाहिए और आप तभी प्रबुद्ध हो सकेंगे।
युवकों और युवतियों, हमें चुनौतियों को देखना होगा और राष्ट्र के लिए चुनौती यह है कि लाखों अवैध प्रवासी हमारी भूमि पर रह रहे हैं। क्या यह हमारी संप्रभुता को चुनौती नहीं है? इस तरह के लोग कभी भी हमारे राष्ट्रवाद से नहीं जुड़ेंगे। वे स्वास्थ्य, शिक्षा एवं अन्य सुविधाओं से संबंधित हमारे संसाधनों और उन नौकरियों का उपयोग करेंगे,जो हमारे लोगों के लिए हैं। मैं उम्मीद करता हूं कि सरकार में बैठा हर कोई इस पर गंभीरता से विचार करेगा। इस समस्या की ओर ध्यान देने और इसका समाधान करने में एक दिन की भी देरी नहीं की जा सकती। एक राष्ट्र लाखों की संख्या में अवैध प्रवासियों को कैसे झेल सकता है? वे हमारे लोकतंत्र के लिए खतरा हैं क्योंकि वे हमारी चुनावी प्रणाली को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं, वे हमारे सामाजिक सद्भाव, हमारे देश की सुरक्षा, हमारे राष्ट्रवाद के लिए भी खतरा हैं। आप सब जो यहां पर हैं, आपके पास एक बहुत बड़ी ताकत आ गई है आज, सोशल मीडिया की ताकत।
आप इस देश में संस्थानों को खत्म होते देख रहे हैं, तो क्यों? क्योंकि एक छोटे से समूह का हमारे राष्ट्रवाद से नाममात्र का जुड़ाव है। आपको उन्हें बेनकाब करना होगा, एक देश के विरुद्ध राष्ट्र-विरोधी अभियान बेतहाशा बढ़ रहा है और यह उभार बेरोक है। गंतव्य अच्छी तरह से निर्धारित है। ऐसी परिस्थिति के अंदर ऐसे विचारों को कुचलना पड़ता है, उन पर प्रतिघात करना पड़ता है, उन पर कुठाराघात करना पड़ता है और यह सबसे बड़ा दायित्व आज के नवयुवकों और नवयुवतियों के ऊपर है।
आपको इस चुनौती को स्वीकार करना होगा, इन अभियानों को बेअसर करना होगा। आज के दिन क्या हो रहा है? भ्रामक सूचनाओं का अंबार है। कुछ भी कह देंगे मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ, देश में कुछ ऐसे महानुभाव हैं जो कहते हैं कि भारत के अलावा उस देश की हालत अच्छी है। क्या हो गया उन देशों मे, दुनिया में शांति स्थापना के लिए, दुनिया कि प्रगति के लिए, हमारी धरती मां को बचाने के लिए सबसे प्रभावी सार्थक मज़बूत पहल कहीं है, तो भारतवर्ष में है।
यह आपका समय है, यह आपका दायित्व है, आपको स्वयं सीखना होगा, आपको जिज्ञासु होना होगा, यदि आप दो-तीन एक साथ आए हैं आप और दोस्ती बनाइये, तो अब मंच है, संवाद उसमें आयोजित किया जाएगा। आपका जुडाव राज्यसभा से, मैं रहूं या ना रहूं, जीवन पर्यंत है। आपका संपर्क उन लोगों से, जिन्होंने पहले इस इंटर्नशिप का लाभ उठाया है, जीवंत होना चाहिए। सबसे बड़ी खासियत है कि आप क्षेत्र, भाषा, लिंग और शिक्षा की दृष्टि से प्रतिनिधि हैं, यह अनूठा अवसर है।
हमारा उद्देश्य आप पर होमवर्क का बोझ डालना नहीं है, आपको होमवर्क का सृजन करना है। जो लोग आपकी सहायता कर रहे हैं वे प्रोत्साहित करने वाले मोड में हैं लेकिन शांत बैठने वाले मोड में नहीं हैं। उन्हें उम्मीद है कि आप उन्हें अपना सर्वश्रेष्ठ देंगे।
धन्यवाद।
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