उप राष्ट्रपति सचिवालय
बेंगलुरु, कर्नाटक में आयोजित भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) आर एंड डी पुरस्कार समारोह में उपराष्ट्रपति के संबोधन का लिखित रूप
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11 JAN 2025 8:00PM by PIB Delhi
मैं इस खास अवसर के लिए आभारी हूं, क्योंकि यह सभी विकासात्मक गतिविधियों को प्रतिबिंबित करता है। कर्नाटक के माननीय राज्यपालश्री थावरचंद गहलोत जी, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड के सीएमडीश्री मनोज जैन, बीईएल के प्रतिष्ठित निदेशक, अधिकारी, वैज्ञानिक, कर्मचारी और कार्यक्रम में उपस्थित सम्मानित विशिष्टगण।
सबसे पहले, लगभग 500 पुरस्कार विजेताओं को मेरी ओर से बधाई। इस प्रकार का सम्मान प्रेरक होता है और दूसरों के लिए भी अनुकरणीय बन जाता है। मुझे व्यक्तिगत रूप से कुछ पुरस्कार प्रदान करने का अवसर मिला है। अवसर मिलने पर,मुझे अन्य से भी मिलने में खुशी होगी।
यह बेहद महत्वपूर्ण बात है कि हम एक कार्यक्रम के तहत नालन्दा में मिल रहे हैं। नालन्दा हमें याद दिलाता है कि नालन्दा, तक्षशिला और कई अन्य प्राचीन संस्थान, वैश्विक स्तर पर ज्ञान और शिक्षा के प्रमुख केन्द्र थे। देश में ऐसे कई लोग हुए हैं, जिन्होंने ज्ञान की खोज के लिए इन संस्थानों का रुख किया है।
उन्होंने इस प्रक्रिया में अपने अनुभव का प्रयोग किया और लाभ हासिल किया। फिर अचानक हम मार्ग से भटक गए, उदाहरण के लिए नालन्दा को ही लीजिए। अब इसके मूल्यों को फिर से खोजा जा रहा है। लेकिन मुझे लगता है कि लगभग 1000 साल या 1100 साल पहले हीहम रास्ता भटक गए थे। इससे पहले तक यह फल-फूल रहा था, ज्ञान और बुद्धिमत्ता की पूरी दुनिया के लिए एक रोशनी के स्तंभ का काम कर रहा था। इसलिए इतिहास की यह संपूर्ण तस्वीर हमारे समृद्ध अतीत की याद दिलाती है। यह देखकर भी संतोषजनक और अच्छा लगता है कि हम उसी स्थिति में वापस आ गए हैं। अब देश उत्कृष्ट संस्थानों से परिपूर्ण है। देश में आईआईटी, आईआईएम, लॉ, स्पेस, ब्लू इकोनॉमी के संस्थान खुल रहे हैं।
विकास भी तेजी से हो रहा है। लेकिन अगर हम सभ्यता पर प्रभाव की बात करें तो उत्कृष्टता और शिक्षा ही यह परिभाषित करती है कि कोई सभ्यता या राष्ट्र किस ओर जाएगा। और इसलिए, हमें उत्कृष्टता पर ज्यादा जोर देना है।
शिक्षा से उत्कृष्टता आती है। शिक्षा ही एकमात्र ऐसी प्रक्रिया है, जो शक्तिशाली, गेम चेंजर तथा प्रभावशाली है। ये समानता लाती है और असमानताओं को दूर करती है, इतना ही नहीं शिक्षा ही मेधावी लोगों को अवसरों का लाभ उठाने में सक्षम बनाती है। और इसलिए, यह नाम हमें सदैव प्रेरित करता रहेगा।
इमारत में घुसते वक्त मैंने एक इमारत देखी, जिसपर एम. विश्वेश्वरैया हॉल लिखा था। एक विद्वान हस्ती माननीय राज्यपाल ने तुरंत इसके बारे में अपने विचार रखे और मेरे ज़ेहन में भी आया,भारत रत्न। यह तथ्य हम सभी जानते हैं। हमें इस पर गर्व है।
वे एक विशेष धारा को लेकर आए, एक धारा जिससे आप जुड़ते हैं और उसका बहुत महत्व होता है। देश इस समय आशाओं और संभावनाओं से भरा हुआ है। भारत एक महत्वाकांक्षी देश बन गया है, क्योंकि दुनिया के किसी भी देश में पिछले दशक में इतनी अभूतपूर्व वृद्धि नहीं हुई है, जितनी भारत में हुई है।
अर्थव्यवस्था के मामले में, बुनियादी ढांचे के मामले में, डिजिटलीकरण के मामले में, प्रतिष्ठा के मामले में ऐसा कोई देश नहीं। भारत की आवाज अब हर जगह सुनाई देती है। एक समय था, जब हमें इस देश से वैश्विक कॉरपोरेट्स या सिलिकॉन वैली में कदम रखने वाला कोई इंसान नहीं मिलता था। लेकिन अब हम परिदृश्य को नियंत्रण करने की स्थिति में हैं।आज ऐसा कोई वैश्विक कॉर्पोरेट या संगठन नहीं है, जो अनुसंधान, विकास या प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो औरजिसमें शीर्ष पर योगदान देने वाली भारतीय प्रतिभा न हो।
ऐसी स्थिति में आपके जैसे संस्थान को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। हमें स्वयं का ऑडिट करना होगा। साल दर साल हम अच्छा प्रदर्शन कर रहे होंगे। हमारे लिए खुशियां मनाने के सभी कारण मौजूद होंगे। लेकिन हमें दुनिया के संगठनों से तुलना करनी होगी और हमें उन चुनौतियों के लिए तैयार रहना होगा, जिनका हमें सामना करना पड़ता है, क्योंकि अब आपका पोर्टफोलियो न केवल बड़ा है, बल्कि यह हर दिन और प्रभावशाली होता जा रहा है। रडार प्रणाली से लेकर हथियार प्रणाली तक, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध उपकरण से लेकर संचार समाधान तक। अब ये सभी ज़रुरी हैं, क्योंकि एक राष्ट्र तभी सुरक्षित होता है, जब उसमें शांति हो और शांति केवल ताकत की स्थिति से ही सुरक्षित होती है और ताकत की स्थिति आपकी रक्षा तैयारियों से परिभाषित होती है।
पारंपरिक युद्ध के दिन अब नहीं रहे। अब आपको तकनीकी रूप से बहुत सक्षम होना होगा। दुनिया एक और बड़े बदलाव के मुहाने पर है।
बदलाव तेजी से आ रहा है। हर पल हम तकनीकी प्रगति कर रहे हैं। मैं प्रौद्योगिकियों की बात कर रहा हूं।इनका सही इस्तेमाल करना होगा। इन्हें सकारात्मक लाभ के लिए प्रयोग करना होगा।
हमें चुनौतियों को अवसरों में बदलना है और इसलिए आपके सामने काम बहुत कठिन कार्य है। आप सभी को ये बात गंभीरता से सोचनी चाहिए कि हम गंभीर परिस्थितियों में आयातित वस्तुएं क्यों ले रहे हैं।
इस तरह के संगठन को आईआईटी जैसे इंजीनियरिंग संगठनों के साथ, प्रबंधन से जुड़े कौशल के लिए आईआईएम के साथ और समान उद्योग गतिविधियों में लगे कॉरपोरेट्स के साथ तालमेल बिठाना होगा। इन सभी का अभिसरण होना चाहिए, ताकि आपको वास्तव में बेहतर परिणाम हासिल करने के लिए किसी प्रकार का तंत्र मिल सके। यह अच्छी बात है कि हमारे पास अनुसंधान एवं विकास और पेटेंट हैं, लेकिन इससे हम संतुष्ट नहीं है। बड़े पैमाने पर अनुभव यह है कि जब हम दुनिया में अपने देश के आयात को देखते हैं, तोजनसांख्यिकीय आकार और उसके आधार पर निभाई जाने वाली भूमिका को देखकर, अनुसंधान और विकास पर हमारा ध्यान ज़रूरत से बहुत कम है।
हमें अनुसंधान एवं विकास को आगे बढ़ाना होगा। वैश्विक परिप्रेक्ष्य में, हमें अपने पेटेंट योगदान को देखना चाहिए। शोध की बात करें तो शोध प्रामाणिक होना चाहिए, अत्याधुनिक होना चाहिए, व्यावहारिक होना चाहिए और शोध से जमीनी हकीकत बदलनी चाहिए।
ऐसे शोध का कोई फायदा नहीं जो सतही से थोड़ा ही बेहतर हो। आपका शोध उस परिवर्तन से संबंधित होना चाहिए, जो आप लाना चाहते हैं और इसके लिए शोध में लगे मानव संसाधन को बेहतर करने की आवश्यकता है। इसके लिए एक बेहद परिपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र की ज़रुरत है।
इसके लिए शारीरिक सहयोग की ज़रूरत है। इसमें आपके द्वारा किए जाने वाले कार्यों में कोई बाधा नहीं आनी चाहिए। इसे आर्किमिडीज़ की तरह आना होगा।वह बाथरूम में था और फिर बोला, "यूरेका, यूरेका, यूरेका"। देश में प्रतिभाएं प्रचुर मात्रा में हैं। हमारे युवक और युवतियां, अभी भी अवसरों के बारे में जागरूक नहीं हैं।
वे सरकारी नौकरियों के लिए लंबी कतारों में लगते हैं। ये अच्छी बात है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक बड़ा बदलाव लेकर आई है। बेहतरी के लिए बदलाव यह है कि हम डिग्रियों से दूर होते जा रहे हैं। हम कौशल उन्मुख हो रहे हैं। लेकिन अब जो सबसे बुनियादी चीज है, वह है कुछ नया करने की भावना।शोध में लगे होने की भावना, जो आपको स्कूल और कॉलेजों में रहने के दौरान जागृत होनी चाहिए। और ऐसा तब हो सकता है, जब हम उन लोगों को पहचानें, जिन्होंने योगदान दिया है जैसा कि हमने कुछ लोगों के लिए किया है।
लेकिन यह मान्यता केवल पारंपरिक अभिनंदन या स्मृति चिन्ह देने तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए। इसे आगे बढ़ना चाहिए। इसके ठोस पहलू होने चाहिए।
भारत एक ऐसा देश है, जो संसाधनों से भरपूर है, लेकिन हमें संसाधनों का सही उपयोग, संसाधनों का समय पर उपयोग, तकनीकी अंतर को पाटना है। और क्यों नहीं? हमें नेता बनना चाहिए। हमने 6000 करोड़ रुपये के राजकोषीय आवंटन के साथ क्वांटम कंप्यूटिंग आयोग की कल्पना करके अच्छा कदम उठाया।
अब आपको आगे बढ़ना ही होगा। ग्रीन हाइड्रोजन मिशन द्वारा उत्पन्न चुनौतियाँ ऐसी चुनौतियाँ हैं, जिनका समाधान अवश्य खोजा जाना चाहिए।जब हमारे योगदान की बात आती है, तो पेटेंट के माध्यम से, हम परिणामी क्षेत्रों में योगदान नहीं दे रहे हैं। हमारी उपस्थिति न्यूनतम है।
हम मानवता का छठा हिस्सा हैं। हमारी प्रतिभा हमें व्यापक भागीदारी की अनुमति देती है। और इसके लिए, हर वो व्यक्ति जो प्रबंधकीय सीट, शासन के हिस्से की भूमिका में है, उसे पहल करनी चाहिए।यह ज़रूरी है, क्योंकि हम वैश्विक समुदाय में एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में तभी उभर सकते हैं, जब हम अनुसंधान और विकास पर ज़ोर देंगे।
आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा इसी पर आधारित है। आत्मनिर्भरता तभी आएगी, जब दुनिया हमें अनुसंधान और विकास की मिसाल के रूप में देखेगी।
और इसके लिए, मैं हमारे कॉरपोरेट्स से अपील करता हूं। निश्चित रूप से उनके पैमाने बड़े होंगे। लेकिन फिलहाल उनका फोकस उतना नहीं है।अगर आप वैश्विक परिप्रेक्ष्य में अनुसंधान और विकास के लिए कॉर्पोरेट के योगदान को देखें, तो हम बमुश्किल कहीं दिखते हैं।
मैं जानता हूं कि कॉरपोरेट की कल्पना, प्रबुद्ध प्रबंधकीय कौशल से की जाती है। लेकिन उन्हें एक मंच पर आना होगा, इसे एक मिशन बनाना होगा ताकि अनुसंधान और विकास को एक बड़ी छलांग मिल सके।
हमें इसके प्रति जुनून पैदा करना होगा। मैं तीन-आयामी रणनीति का सुझाव देता हूं। ये आर्थिक संप्रभुता का मार्ग है और यह तब होगा जब हम अनुसंधान और विकास में अपना निवेश करेंगे।
इससे हमें अपनी रक्षा और रणनीतिक जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी।क्योंकि अगर हमारे पास यह स्वयं नहीं है, तो हम वास्तव में इसके लिए एक बड़ी कीमत चुका रहे हैं।
मुझे स्वदेशी घटक देखने का अवसर मिला है। हमारे पास तेजी से स्वदेशीकरण वाले उपकरण आ रहे हैं।
लेकिन क्या हमारे पास इंजन हैं? क्या हमारे पास मूल सामग्री है? क्या हमारे पास वह चीज़ है, जो दूसरे हमसे प्राप्त करना चाहते हैं? या क्या हम इसे सामान्य पहलुओं तक ही सीमित रख रहे हैं? इस बात से संतुष्ट होने का कोई मतलब नहीं है, कि जब नट और बोल्ट की बात आती है, तो हम स्वदेशी हैं।
हमारा लक्ष्य 100% होना चाहिए और ऐसा तभी हो सकता है जब आप किसी मिशन से प्रेरित हों। और मित्रों, ये समय की मांग भी है।
हमने 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए हमें बड़े पैमाने पर विनिर्माण पर फोकस करना होगा। विनिर्माण गतिविधियों को तेज़ करना होगा और वह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जरूरतों को तभी पूरा कर सकती है, जब हमारे पास कुछ क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास के माध्यम से विशिष्टता हो। प्रामाणिक शोध को ही शोध के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए। जो शोध को नजरअंदाज करता है, उसके लिए कड़े मानक होने चाहिए।
इसका उदाहरण कुछ यूं है कि अगर इसे वैश्विक स्तर पर मान्यता मिल जाए, तो उस पर एक शोध पत्र प्रस्तुत किया जाए, जिसका क्षणिक महत्व हो और फिर वह ठंडे बस्ते में चला जाए। उसी धूल से हमें दूर रहना है। हालाँकि आपका ट्रैक रिकॉर्ड बेहद प्रभावशाली है, लेकिन जब पूरा देश उम्मीद करता है,तो वह उम्मीदें इससे कहीं ज्यादा होती है।
हम अपनी पिछली उपलब्धियों पर इतरा नहीं सकते। एक दशक में हमारी पिछली उपलब्धियाँ शानदार, अभूतपूर्व, और बेहतरीन रही हैं। 500 मिलियन लोग बैंकिंग समावेशन में शामिल हो रहे हैं। 150 मिलियन को गैस कनेक्शन मिल रहे हैं, गांवों तक डिजिटल कनेक्टिविटी जा रही है, दुनिया से मेल खाने वाली सड़कें बन रही हैं, दुनिया में सबसे अच्छी ट्रेनें आ रही हैं। सब कुछ हो रहा है, लेकिन लोग और अधिक चाहते हैं, क्योंकि हमने उन्हें शासन के रूप में यह स्थापित कर दिया है, कि हम जो वादा करते हैं उसे पूरा करते हैं।
और इसलिए, हर दिन हमें नवाचारी बनना होगा। और इसी तरह यदि आपके जैसे संस्थान अनुसंधान और विकास से जुड़ेंगे, तो इसके परिणामस्वरूप अधिक नौकरियां पैदा होंगी। विकसित भारत का सपना, जो अब मेरे हिसाब से सपना नहीं रहा, वो हमारा उद्देश्य है, हमारी मंजिल है, एक छोटी सी मंजिल है।
प्रति व्यक्ति आय की जब बात आती है, तो आपको लंबी छलांग लगानी होगी। इसलिए, मेरे पास जो भी थोड़ी सी जानकारी है, उस पर ध्यान देने के बाद, आपके संगठन को अब काम पर ध्यान केंद्रित होना चाहिए। इसे डिजाइन से निर्माण तक सेमीकंडक्टर क्रांति का नेतृत्व करना चाहिए।
इसके बारे में सोचें, मंथन करें, अपने दिमाग को दौड़ाएं । यह वक्त की ज़रूरत है। हमें फ्रेंड-शोरिंग के माध्यम से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में भारत की स्थिति मज़बूत करने के लिए पहल करने की ज़रूरत है। घरेलू स्टार्टअप और स्वदेशी घटक विकास को बढ़ावा देना ज़रूरी है।
ऐसे स्टार्टअप की पहचान करें, जिन्हें सहायता की ज़रूरत है। ऐसे काफी लोग हैं, जो उद्यम करना चाहते हैं। मैं लोगों से कहता रहा हूं, यदि आपके पास कोई विचार है, तो अपने मन औरमस्तिष्क को इसके लिए पार्किंग स्टेशन न बनने दें।
असफलता से मत डरो। प्रयोग करो। जिसे आप असफलता कहते हैं वह और कुछ नहीं बल्कि सफलता की एक शर्त है कि आप अगली बार सफल होंगे।
और कृपया सहयोग को बढ़ावा दें। अकेले मत रहें। आईआईटी, आईआईएम, उत्कृष्टता वाले संस्थानों से संपर्क करें। उनके साथ एमओयू करें, क्योंकि इससे आपको कई चीजें मिलेंगी, जो आपके पास नहीं हैं, और जिन्हें विकसित करना आपके लिए मुश्किल हो सकता है। ऐसी चीज़ें आपको आसानी से मिल जाएंगी।
एक अच्छा सुझाव मुझे एक दिन पहले ही चिकित्सा व्यवस्था से जुड़े एक व्यक्ति ने दिया था। उन्होंने कहा कि हमारे मेडिकल कॉलेजों को इंजीनियरिंग कॉलेजों, प्रबंधन कॉलेजों के साथ जुड़ना चाहिए, क्योंकि वे अब एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
तो जैसे कि हम हर चीज़ के लिए एक दूसरे पर निर्भर वैश्विक समुदाय बन रहे हैं। विभिन्न क्षेत्र भी एक दूसरे पर निर्भर हैं। किसी को तो और ज्यादा योगदान देना होगा।
जब आप किसी व्यवस्था का हिस्सा होते हैं, तो कुछ ऐसे क्षेत्र होंगे, जहां आप प्रमुख रूप से योगदान दे रहे होंगे। कुछ ऐसे क्षेत्र होंगे, जहां अन्य लोग प्रमुख रूप से योगदान दे रहे होंगे। आप गहरे सहयोग को बढ़ावा दें। फिर अपने आप को एक ऐसे केंद्र में बदल लें, जहां उद्योग जगत, शिक्षा जगत का साथ मिलकर अत्याधुनिक समाधान तैयार करे। जब तक आपका संवाद नहीं होगा, जब तक स्टार्टअप इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के विचारों को नहीं जानेंगे, तब तक आप नहीं जान पाएंगे कि वे क्या खोज रहे हैं, उन्हें क्या दिक्कतें आ रही हैं। यहां तक कि शीर्ष मोबाइल फोन के उपयोगकर्ता भी सुझाव दे सकते हैं कि क्या जोड़ने की ज़रूरत है। मैं किसी ब्रांड का नाम नहीं लेना चाहता, लेकिन अच्छे ब्रांड में भी कमियां हैं, जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है और इसलिए आखिरकार उपभोक्ता ही आपको यह बताने के लिए एक आदर्श मार्गदर्शक है, कि उसे कौन सी इन्वेंट्री चाहिए और वह क्या ढूंढ रहा है। मुझे यकीन है कि जब आप इस गतिविधि में शामिल होंगे, तो आपके साथ जुड़े लोग उत्साहित, ऊर्जावान, प्रेरित होंगे और वे अधिक सम्मान भी अर्जित करेंगे।
स्वामी विवेकानन्द ने कहा था, "उठो, जागो, तब तक मत रुको,जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये।" हम एक विकसित भारत नहीं बना सकते, जब तक कि यह एक सामूहिक लक्ष्य न हो। हमारे लिए समय समाप्त हो रहा है।
हमने 1.4 अरब लोगों की आकांक्षाओं को जगाया है, इस देश के 1.4 अरब लोगों ने विकास का स्वाद चखा है, उन्होंने बुनियादी ढांचे का फल चखा है, उन्हें घर-द्वार पर शौचालय, पानी, सड़क की उपलब्धता की सुविधाएं मिली हैं।उनके पास गैस कनेक्शन है, वे किफायती आवास से जुड़े हुए हैं, वे और उम्मीदें लगा रहे हैं। आपको उनके लिए सही व्यवस्था बनानी होगी।
मैं आपको बधाई देता हूं कि आप एक ऐसी गतिविधि में लगे हुए हैं, जिसका हमारी विकास यात्रा के साथ बहुत गहरा जुड़ाव है। मुझे यकीन है कि आपका योगदान बेहतर ही होगा।
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
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एमजी/केसी/एनएस
(Release ID: 2092327)
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