रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय
वित्त वर्ष 2023-24 के लिए भारत का फार्मास्यूटिकल बाज़ार 50 बिलियन अमरीकी डॉलर का है, जिसमें घरेलू खपत 23.5 बिलियन अमरीकी डॉलर और निर्यात 26.5 बिलियन अमरीकी डॉलर का है
फार्मास्यूटिकल्स विभाग ने विभिन्न फार्मा विशेषज्ञताओं में स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट की शिक्षा प्रदान करने और उच्च स्तरीय अनुसंधान करने के लिए सात राष्ट्रीय फार्मास्यूटिकल शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (एनआईपीईआर) की स्थापना की है
फार्मास्यूटिकल्स और चिकित्सा उपकरणों में अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करने के लिए “भारत में फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान और विकास और नवाचार पर राष्ट्रीय नीति” बनाई गई है
Posted On:
17 DEC 2024 5:57PM by PIB Delhi
वित्त वर्ष 2023-24 के लिए भारत का फार्मास्यूटिकल बाज़ार 50 बिलियन अमरीकी डॉलर का है, जिसमें घरेलू खपत 23.5 बिलियन अमरीकी डॉलर और निर्यात 26.5 बिलियन अमरीकी डॉलर का है। भारत का फार्मा उद्योग मात्रा के हिसाब से दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा और उत्पादन के मूल्य के मामले में 14वां सबसे बड़ा उद्योग माना जाता है। जेनेरिक दवाओं, अत्याधिक उपयोग होने वाली दवाओं, दुकानो से सीधे मिलने वाली दवाओं, टीकों, बायोसिमिलर और बायोलॉजिक्स को कवर करने वाले अत्यंत विविध उत्पाद आधार के साथ, भारतीय फार्मास्यूटिकल उद्योग वैश्विक स्तर पर मजबूत है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा प्रकाशित राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी 2024 के अनुसार, उद्योग के लिए कुल उत्पादन यानी फार्मास्यूटिकल्स, औषधीय और वनस्पति उत्पाद वित्त वर्ष 2022-23 के लिए स्थिर कीमतों पर 4,56,246 करोड़ रुपये हैं जिसका वर्धित मूल्य 1,75,583 करोड़ रुपए है। वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान फार्मास्यूटिकल्स, औषधीय और वनस्पति उत्पाद उद्योग में 9,25,811 लोग लगे हुए हैं।
फार्मा क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) तथा नवाचार विभिन्न वैज्ञानिक मंत्रालयों/विभागों के अंतर्गत आने वाले अनेक संस्थानों और संगठनों द्वारा किया जाता है। फार्मास्यूटिकल्स विभाग ने राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों के रूप में सात राष्ट्रीय फार्मास्यूटिकल शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (एनआईपीईआर) स्थापित किए हैं, जो स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट शिक्षा प्रदान करने के अलावा विभिन्न फार्मा विशेषज्ञताओं में उच्च स्तरीय अनुसंधान करते हैं। इसके अलावा, विभाग ने फार्मास्यूटिकल्स और चिकित्सा उपकरणों में अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करने तथा इस क्षेत्र में नवाचार के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए “भारत में फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास तथा नवाचार पर राष्ट्रीय नीति” तैयार की है, ताकि भारत दवा खोज और नवीन चिकित्सा उपकरणों में अग्रणी बन सके। इसके लिए एक मजबूत इकोसिस्ट और उद्यमशीलता का माहौल तैयार किया गया है, ताकि अनुसंधान एवं विकास तथा नवाचार के समग्र विकास को सुनिश्चित किया जा सके। नीति को 18.08.2023 को अधिसूचित किया गया।
उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए नीति में तीन मुख्य क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है:
- एक नियामक वातावरण तैयार करना जो उत्पादों के विकास में नवाचार और अनुसंधान को सुविधाजनक बनाए, तथा सुरक्षा और गुणवत्ता के पारंपरिक नियामक उद्देश्यों का विस्तार करे।
- राजकोषीय और गैर-राजकोषीय उपायों के मिश्रण के माध्यम से नवाचार में निजी और सार्वजनिक निवेश को प्रोत्साहित करना।
- क्षेत्र में सतत विकास के लिए मजबूत संस्थागत आधार के रूप में नवाचार और अंतर-क्षेत्रीय अनुसंधान का समर्थन करने के लिए एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना।
नीति दस्तावेज़ का विवरण सार्वजनिक डोमेन ( https://pharmaceuticals.gov.in/policy ) पर उपलब्ध 18.08.2023 के राजपत्र अधिसूचना में देखा जा सकता है। विभाग ने 5 वर्ष की अवधि यानी 2023-24 से 2027-28 के लिए 5000 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ फार्मा क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए एक योजना (पीआरआईपी) भी तैयार की है, जिसे देश में अनुसंधान के बुनियादी ढांचे को मजबूत करके भारतीय फार्मा मेडिटेक क्षेत्र को लागत आधारित से नवाचार आधारित में बदलने के उद्देश्य से 17.08.2023 को अधिसूचित किया गया था। पीआरआईपी योजना के दो घटक हैं:
घटक ए: सात मौजूदा राष्ट्रीय औषधि शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थानों (एनआईपीईआर) में उत्कृष्टता केंद्र (सीओई) स्थापित करके अनुसंधान बुनियादी ढांचे को मजबूत करना।
घटक बी: फार्मा मेडिटेक क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देना, जिसमें छह निर्दिष्ट प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में इन-हाउस और अकादमिक अनुसंधान एवं विकास दोनों के लिए कंपनियों/परियोजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी। योजना का विवरण सार्वजनिक रूप से उपलब्ध 17.08.2023 के राजपत्र अधिसूचना में देखा जा सकता है ( https://pharmaceuticals.gov.in/schemes )
उपरोक्त के अलावा, 19/03/2019 को नई औषधि और क्लिनिकल परीक्षण नियम, 2019 अधिसूचित किए गए हैं, जिसमें देश में नई दवाओं के अनुसंधान और विकास तथा नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न प्रावधान शामिल हैं। प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं: -
• नैदानिक परीक्षण और नई दवा के आवेदनों का 90 दिनों की अवधि के भीतर अनुमोदन या अस्वीकृति या आगे की जानकारी प्राप्त करके निपटान।
• भारत में औषधि खोज, अनुसंधान और विनिर्माण के भाग के रूप में किसी नई औषधि या अन्वेषणात्मक नई औषधि के नैदानिक परीक्षण के लिए आवेदन के मामले में, आवेदन का निपटारा 30 दिनों की अवधि के भीतर किया जाना है।
• क्लिनिकल परीक्षण आवेदन के मामले में, यदि निर्धारित समय-सीमा के भीतर सीडीएससीओ से कोई आदेश प्राप्त नहीं होता है, तो आवेदन को स्वीकृत माना जाएगा।
• कुछ विशेष परिस्थितियों जैसे अपूर्ण आवश्यकता, दुर्लभ बीमारियों के लिए अनऔषधियों आदि में त्वरित/शीघ्र अनुमोदन प्रक्रिया के लिए प्रावधान।
• औपचारिक चर्चा और विशिष्ट मामलो में आधिकारिक हल के लिए सीडीएससीओ के साथ आवेदकों की बैठकों का प्रावधान।
निर्यात के लिए दवा को औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम और उसके अंतर्गत नियमों के प्रावधानों के अनुसार विनिर्माण लाइसेंस के तहत निर्मित किया जाना आवश्यक है। इसके अलावा, निर्माता को आयात करने वाले देश की आवश्यकताओं का अनुपालन करना आवश्यक है।
उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, सरकार ने विशेष रूप से फार्मास्युटिकल उद्योग के लिए बौद्धिक संपदा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए कोई विशेष पहल नहीं की है। हालाँकि, बौद्धिक संपदा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए उद्योग के प्रकार की परवाह किए बिना कई पहल की गई हैं। इस संबंध में की गई मुख्य पहलों का विवरण नीचे दिया गया है:-
1. पेटेंट, भौगोलिक संकेत, ट्रेडमार्क, डिजाइन और कॉपीराइट से संबंधित नियमों में संशोधन, इस प्रकार हैं: -
पेटेंट नियम: 2014 से पेटेंट आवेदनों की फाइलिंग और प्रसंस्करण को सुव्यवस्थित और सरल बनाने, अनियमितताओं को दूर करने, पेटेंट देने की प्रक्रिया में प्रक्रियागत देरी और जटिलताओं का निवारण करने, आईटी और डिजिटल प्रौद्योगिकियों के उपयोग को सुव्यवस्थित करने और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्रों को कुछ लाभ प्रदान करने के लिए पेटेंट नियमों में कई बार संशोधन किया गया है। किए गए कुछ प्रमुख परिवर्तन इस प्रकार हैं: पेटेंट आवेदन दाखिल करने और प्रसंस्करण तथा पेटेंट के रखरखाव के लिए कम से कम 80% की फीस छूट स्टार्टअप्स, लघु संस्थाओं (एमएसएमई) और शैक्षणिक संस्थानों को दी गई है, शीघ्र जांच की सुविधा स्टार्टअप्स, लघु संस्थाओं (एमएसएमई), भारत को अंतर्राष्ट्रीय आवेदनों के लिए प्राधिकरण चुनने वाले आवेदकों, महिला आवेदकों, सरकारी संस्थानों/विभागों को दी गई है, पेटेंट एजेंटों द्वारा दस्तावेजों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रस्तुत करना अनिवार्य कर दिया गया है और समयसीमा को सुव्यवस्थित किया गया है, प्राथमिकता दस्तावेज और फॉर्म 27 (पेटेंट के कामकाज के बारे में विवरण) दाखिल करने की आवश्यकताओं को सुव्यवस्थित किया गया है, पेटेंट जांच प्रक्रिया को तेज करने के लिए जांच के लिए अनुरोध करने का समय 48 महीने से घटाकर 31 महीने कर दिया गया है
स्टार्ट-अप बौद्धिक संपदा संरक्षण (एसआईपीपी) योजना - "स्टार्ट-अप बौद्धिक संपदा संरक्षण (एसआईपीपी)" योजना भारत में स्थापित प्रौद्योगिकी और नवाचार सहायता केंद्रों (टीआईएससी) की सेवाओं का उपयोग करके इच्छुक स्टार्टअप्स और सभी भारतीय नवप्रवर्तकों/रचनाकारों, शैक्षणिक संस्थानों द्वारा पेटेंट, ट्रेडमार्क और डिजाइन की सुरक्षा की सुविधा प्रदान करती है। यह योजना 2016 में शुरू की गई थी और इसे 31-03-2026 तक बढ़ा दिया गया है। अब तक स्टार्ट-अप्स को आवेदन दाखिल करने में मदद करने के लिए 2700 से अधिक सूचीबद्ध सुविधाकर्ता हैं। इस योजना को हाल ही में संशोधित किया गया है और सुविधा शुल्क में कम से कम 100% की उल्लेखनीय वृद्धि की गई है। संशोधित लागू शुल्क संरचना इस प्रकार है:
भुगतान का चरण
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पेटेंट रुपए
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ट्रेड मार्क रुपए
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डिजाइन रुपए
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आवेदन दाखिल करते समय
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15000
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3000
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3000
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आवेदनों के अंतिम निपटान के समय
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बिना विरोध के
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25000
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5000
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5000
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विरोध के साथ
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35000
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10000
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10000
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यह जानकारी केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री श्रीमती अनुप्रिया पटेल ने आज राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में दी।
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