पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय
भारत ने भारत समुद्री विरासत संगोष्ठी के साथ वैश्विक समुद्री विरासत को संरक्षित करने का बीड़ा उठाया
उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने 'ग्लोबल कनेक्टर' के रूप में भारत की समुद्री विरासत को रेखांकित किया
आईएमएचसी भारत को एक वैश्विक केंद्र एवं अग्रणी समुद्री राष्ट्र बनाने के लिए खाका तैयार करेगा: प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी
Posted On:
11 DEC 2024 6:51PM by PIB Delhi
पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय द्वारा बहुप्रतीक्षित भारत समुद्री विरासत संगोष्ठी 2024 (आईएमएचसी) का उद्घाटन आज यशोभूमि, द्वारका, नई दिल्ली में माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ द्वारा संबोधित एक विशेष सत्र के साथ हुआ जिसमें उन्होंने भावी पीढ़ियों के लिए देश की समुद्री विरासत को संरक्षित करने के महत्व पर बल दिया। इस सम्मेलन ने पूरे विश्व के प्रमुख मंत्रियों, प्रमुख वक्ताओं, समुद्री विशेषज्ञों और विचारकों को एक साथ लाया और भारत की समृद्ध समुद्री यात्रा विरासत, वैश्विक स्तर पर सांस्कृतिक एवं आर्थिक आदान-प्रदान को आकार देने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका और सतत समुद्री नवाचार के लिए इसकी दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला, जो एक समुद्री पावरहाउस के रूप में भारत के उद्भव को रेखांकित करता है।
माननीय उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि “भारत आज एक उभरती हुई समुद्री शक्ति बन रहा है, जो वैश्विक समुद्री पहलों का नेतृत्व करने के लिए रणनीतिक रूप से हमारी भौगोलिक स्थिति और उन्नत अवसंरचना का लाभ उठा रहा है। प्रगतिशील समुद्री कूटनीति के माध्यम से, विशेष रूप से सागर जैसी पहल, क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा एवं विकास जैसी पहलों के माध्यम से, हम मजबूत अंतरराष्ट्रीय साझेदारी को बढ़ावा दे रहे हैं और भारत-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित कर रहे हैं। नियम-आधारित व्यवस्था सर्वोत्कृष्ट है और भारत यह सुनिश्चित करने की दिशा में पहल एवं नेतृत्व कर रहा है कि समुद्रों पर नियम-आधारित शासन के लिए बड़ा अंशदान हो। मुझे पूरा विश्वास एवं उम्मीद है कि यह दो दिवसीय समुद्री विरासत संगोष्ठी 2024 सतत नवाचार की दिशा में आगे बढ़ते हुए हमारी समुद्री विरासत का सम्मान करने के लिए हमारे सामूहिक समर्पण को नवीकृत करता है।”
इस दिन देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विशेष संदेश प्राप्त हुआ है जिसमें उन्होंने कहा है कि हिंद महासागर में एक रणनीतिक स्थान, व्यापार एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान की विरासत के साथ, भारत अपनी समुद्री अवसंरचना को मजबूत करने के लिए तैयार है। लोथल में राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर का विकास, भारत-मध्यपूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा जैसी पहलों के साथ मिलकर, वैश्विक समुद्री मामलों में भारत की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है। संगोष्टी इस विरासत का उत्सव मनाने के लिए एक मंच प्रदान करता है, जबकि 2047 तक एक अग्रणी समुद्री केंद्र बनने के भारत के दृष्टिकोण को साकार करने की दिशा में एक मार्ग तैयार करता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “जैसा कि हम 2047 तक विकसित भारत के निर्माण के दृष्टिकोण को साकार करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, 21वीं सदी के लिए समुद्री अवसंरचना को और मजबूत करना हमारे प्रयासों का अभिन्न अंग है। मुझे यकीन है कि संगोष्ठी में विचार-विमर्श से भारत न केवल अपनी समृद्ध समुद्री विरासत पर गर्व करने में सक्षम होगा, बल्कि एक भविष्योन्मुखी रूपरेखा भी तैयार करेगा जो उसे एक वैश्विक केंद्र एवं एक अग्रणी समुद्री खिलाड़ी बनने में सक्षम बनाता है।”
भारत समुद्री विरासत संगोष्ठी, श्रम एवं रोजगार, युवा मामले एवं शिक्षा और संस्कृति एवं पर्यटन जैसे प्रमुख मंत्रालयों के साथ सहयोग को बढ़ावा देता है और स्थायी आजीविका का निर्माण करने के श्रम मंत्रालय के लक्ष्यों के साथ संरेखित कौशल विकास एवं रोजगार के अवसरों पर प्रकाश डालता है। यह युवाओं को समुद्री क्षेत्र में करियर की तलाश करने के लिए प्रेरित करता है और विरासत को शिक्षा में एकीकृत करता है। संस्कृति एवं पर्यटन मंत्रालय के साथ साझेदारी में, यह आयोजन सांस्कृतिक संरक्षण और पर्यटन के उत्प्रेरक के रूप में भारत की समुद्री विरासत को बढ़ावा देता है। साथ मिलकर, ये मंत्रालय राष्ट्रीय विकास, युवा सशक्तिकरण और वैश्विक जुड़ाव के लिए एक एकीकृत संरचना तैयार करते हैं।
संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए, केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने अपनी समुद्री विरासत को संरक्षित करने एवं बढ़ावा देने के लिए भारत की प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला। इस पहल के महत्व पर बात करते हुए श्री सोनोवाल ने कहा, “हमारी समृद्ध समुद्री विरासत केवल हमारे अतीत की कहानी नहीं है, बल्कि हमारे भविष्य के लिए एक प्रकाशस्तंभ भी है। यह संगोष्ठी समुद्री नवाचार एवं संरक्षण में भारत के नेतृत्व की पुष्टि करता है, भविष्य की पीढ़ियों के लिए हमारी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए स्थायी प्रथाओं को आगे बढ़ाता है। हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के दूरदर्शी मार्गदर्शन एवं नेतृत्व में, लोथल में राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर की स्थापना उस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, एक ऐसा स्थान जहां हम भविष्य की पीढ़ियों के लिए अपने समुद्री अतीत को जीवंत करेंगे। यह युवाओं को अपनी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करते हुए हमारे पूर्वजों की प्रतिभा का प्रदर्शन करेगा।”
उन्होंने आगे कहा, “महासागर सिर्फ एक संसाधन नहीं है बल्कि यह एक विरासत है, यह एक पुल है जो अतीत को भविष्य से जोड़ता है, सभ्यताओं को एकजुट करता है, नवाचार को बढ़ावा देता है और एक समुद्री राष्ट्र के रूप में हमारी पहचान को आकार देता है। अपनी समुद्री विरासत को संरक्षित करके, हम न केवल अपने पूर्वजों का सम्मान करते हैं, बल्कि पर्यटन, शिक्षा एवं युवा जुड़ाव की अपार संभावनाओं को भी खोलते हैं। आइए हम भविष्य की पीढ़ियों को इस विरासत को गले लगाने के लिए प्रेरित करें, इसे सतत विकास, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और वैश्विक नेतृत्व के प्रकाश स्तंभ में बदलें।”
उद्घाटन सत्र में प्रमुख गणमान्य व्यक्तियों का भी संबोधन शामिल था। केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने सांस्कृतिक पर्यटन में समुद्री विरासत के एकीकरण पर प्रकाश डालते हुए कहा, “हमारा समुद्री अतीत प्रेरणा एवं गौरव के स्रोत के रूप में कार्य करता है, जो भारत की अनूठी विरासत की वैश्विक प्रशंसा को बढ़ावा देता है। लोथल के प्राचीन डॉकयार्ड से लेकर हमारे पूर्वजों द्वारा पोषित सांस्कृतिक आदान-प्रदान तक भारत की समृद्ध समुद्री विरासत, सदियों की आर्थिक समृद्धि एवं वैश्विक संपर्क का प्रतीक है। जैसा कि हम लोथल में राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर की स्थापना करते हैं, हम नवाचार, स्थिरता एवं सहयोग के भविष्य के लिए पाठ्यक्रम निर्धारित करते हुए इस विरासत का सम्मान करते हैं। समृद्धि एवं सुरक्षा के स्रोत हमारे महासागर वैश्विक चुनौतियों और अवसरों से निपटने की कुंजी हैं। आइए हम इस विरासत का उत्सव मनाएं और उसकी रक्षा करें और यह सुनिश्चित करें कि भारत का समुद्री प्रभाव वैश्विक मंच को आकार देता रहे।”
केंद्रीय श्रम एवं रोजगार और युवा मामले और खेल मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया ने युवाओं को आकर्षित करने में समुद्री अध्ययन की क्षमता के बारे में बात करते हुए कहा कि “हमारी समुद्री जड़ों को समझना युवाओं को अपनी विरासत से जुड़ने और एक स्थायी भविष्य के लिए नवाचार करने का अवसर प्रदान करता है। चोल जैसे राजवंशों के दूरदर्शी नेतृत्व में भारत के दक्षिणी राज्यों ने लंबे समय तक व्यापार विस्तार को समर्थन प्रदान किया है, जो भारत को दूर के तटों से जोड़ता है और समुद्री उत्कृष्टता की विरासत को बढ़ावा देता है। महासागर के नाम पर भारत एकमात्र देश है, और यह हमारी विरासत लोथल, विश्व की सबसे पुराने मानव निर्मित डॉकयार्ड और विश्व के साथ समुद्री ज्ञान साझा करने के लिए मलाम समुदाय के समर्पण के माध्यम से चमकती है। प्राचीन ज्ञान की यह संपदा हमारे समुद्री भविष्य के निर्माण के लिए अत्यधिक गर्व और प्रेरणा का स्रोत है।”
गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने कहा कि “भारत के समुद्री भविष्य के लिए हमारा दृष्टिकोण आत्मनिर्भर भारत को प्राप्त करने, सतत एवं लचीले बंदरगाहों, आधुनिक पोत परिवहन और हमारी समृद्ध समुद्री परंपरा के संरक्षण को सुनिश्चित करने के भारत सरकार के लक्ष्यों के साथ निकटता से जुड़ी हुई है, हम मानते हैं कि समुद्री विकास और विरासत साथ-साथ चलते हैं और यह संघर्ष अतीत एवं भविष्य को एक साथ जोड़ने की दिशा में एक महत्पूर्ण कदम है। आइए हम यह सुनिश्चित करने की दिशा में आगे बढ़ें कि भारत की समुद्री विरासत आने वाली पीढ़ी के लिए विकसित होती रहे”
केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग राज्य मंत्री शांतनु ठाकुर ने वैश्विक व्यापार नेटवर्क में भारत के ऐतिहासिक योगदान को रेखांकित किया, जबकि एमओपीएसडब्ल्यू के सचिव टी के रामचंद्रन ने प्रतिभागियों का स्वागत किया और इस आयोजन के लिए मंच तैयार किया। पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के संयुक्त सचिव आर लक्ष्मण ने धन्यवाद ज्ञापन दिया और सम्मेलन के आयोजन में सहयोगात्मक प्रयासों की सराहना की।
भारत की समुद्री विरासत पर मुख्य सत्र एवं पैनल चर्चाएं निर्बाध रूप से आपस में जुड़ी हुई हैं, जो वैश्विक व्यापार, संस्कृति और नवाचार में राष्ट्र के ऐतिहासिक योगदानों की व्यापक खोज प्रस्तुत करती हैं। प्रोफेसर वसंत शिंदे ने लोथल संग्रहालय में दर्शाए गए भारत की समुद्री विरासत पर एक ज्ञानवर्धक प्रस्तुति के साथ मंच तैयार किया, जिसके बाद एरिक स्टेपल्स ने पश्चिमी हिंद महासागर के साथ भारत के संबंधों पर प्रकाश डाला। इन अंतर्दृष्टि का समर्थन करते हुए, डॉ. राजीव निगम ने मानव संस्कृतियों पर तटीय वातावरण के प्रभाव की जांच की, समुद्री इतिहास का एक बहुआयामी आख्यान प्रस्तुत किया।
इन विषयों पर आगे बढ़ते हुए, पैनल चर्चा ने भारत की प्राचीन समुद्री प्रथाओं एवं व्यापार नेटवर्क का पता लगाने के लिए प्रख्यात विशेषज्ञों को एक मंच पर लाया। हड़प्पा सभ्यता के आंतरिक प्रदेश एवं बाहरी व्यापार संबंध, रोमन साम्राज्य के साथ भारत का संपर्क और इसका प्रभाव और भारत, दक्षिण पूर्व एशिया और अन्य के साथ व्यापार एवं सांस्कृतिक संबंधों जैसे विषयों ने अपनी जीवंत समुद्री परंपराओं के माध्यम से वैश्विक संपर्क के रूप में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला।
संगोष्ठी सम्मेलन में गोवा, अरुणाचल प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश के मंत्रियों की भागीदारी देखी गई। इस कार्यक्रम ने राष्ट्रीय समुद्री विरासत सम्मेलन के विकास के लिए शीर्ष समिति की उद्घाटन बैठक को भी चिह्नित किया। 20 से अधिक स्टालों की एक प्रदर्शनी में भारत में जहाज निर्माण तकनीकों, नेविगेशन प्रणालियों एवं ऐतिहासिक व्यापार मार्गों का प्रदर्शन किया गया, जिसका उद्घाटन प्रतिष्ठित गणमान्य लोगों ने किया। इस दिन का समापन भारत की तटीय परंपराओं का उत्सव मनाते हुए एक जीवंत सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ हुआ, जिसमें उत्सव के साथ छात्रवृत्ति प्रदान करना भी शामिल था। राजधानी में आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन में 11 देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए, जो इस आयोजन के अंतर्राष्ट्रीय महत्व को दर्शाता है।
सम्मेलन के दूसरे दिन समुद्री इतिहास में चोलों के योगदान, पारंपरिक जहाज निर्माण में प्रगति और भारत में नौसैनिक शक्ति के विकास जैसे विषयों पर आकर्षक चर्चा की गई। समापन सत्र में भारत की समुद्री विरासत के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए रोडमैप की रूपरेखा तैयार की गई।
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