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भारत के परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सुरक्षा को लेकर कोई संदेह नहीं है: डॉ. जितेंद्र सिंह


सुरक्षा पहले, उत्पादन बाद में: मंत्री ने भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में मजबूत मानकों का आश्वासन दिया

भारत के परमाणु संयंत्रों का विकिरण स्तर वैश्विक मानकों से काफी नीचे है: डॉ. जितेंद्र सिंह

Posted On: 05 DEC 2024 5:35PM by PIB Delhi

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) तथा प्रधानमंत्री कार्यालय, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज राज्यसभा को आश्वस्त किया कि भारत के परमाणु ऊर्जा संयंत्र दुनिया के सबसे सुरक्षित संयंत्रों में से हैं, जहां कड़े सुरक्षा प्रोटोकॉल और अंतरराष्ट्रीय निगरानी है। प्रश्नकाल के दौरान परमाणु सुरक्षा पर पूछे गए एक प्रश्न का उत्तर देते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत के परमाणु ऊर्जा संयंत्र दुनिया के सबसे सुरक्षित संयंत्रों में से हैं, जहां कड़े सुरक्षा प्रोटोकॉल और अंतरराष्ट्रीय निगरानी है।

मंत्री ने परमाणु संयंत्र के विकास और संचालन के प्रत्येक चरण में कठोर सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करने पर जोर दिया तथा राष्ट्र को आश्वस्त किया कि भारत का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम सुरक्षित और टिकाऊ है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने घोषणा की कि सुरक्षा भारत की परमाणु ऊर्जा नीति की आधारशिला है। उन्होंने कहा, "परमाणु ऊर्जा विभाग में हम 'सुरक्षा पहले, उत्पादन बाद में' के नियम का पालन करते हैं। साइट चयन से लेकर परिचालन जांच तक हर चरण में कड़े प्रोटोकॉल लागू होते हैं।" उन्होंने व्यापक निरीक्षण व्यवस्था की रूपरेखा बताई, जिसमें निर्माण के दौरान तिमाही समीक्षा, संयंत्र चालू होने के बाद अर्ध-वार्षिक निरीक्षण और अनिवार्य पांच साल की लाइसेंस नवीनीकरण प्रक्रिया शामिल है।

भारत के परमाणु सुरक्षा ढांचे को अंतर्राष्ट्रीय निगरानी से और मजबूती मिली है। विश्व परमाणु संचालक संघ (डब्ल्यूएएनओ) और अन्य वैश्विक निकाय समय-समय पर भारत की सुविधाओं की समीक्षा करते हैं, तथा उनके सुरक्षा मानकों को सुदृढ़ करते हैं।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने विकिरण उत्सर्जन को कम करने में साक्ष्य-आधारित उपलब्धियों पर प्रकाश डाला, जिसे उन्होंने परमाणु ऊर्जा विभाग के सावधानीपूर्वक प्रयासों का प्रमाण बताया। उन्होंने बताया, "विश्व स्तर पर, परमाणु संयंत्रों से विकिरण उत्सर्जन के लिए महत्वपूर्ण सुरक्षा मानक 1,000 माइक्रोसीवर्ट है। भारत में, हमारे संयंत्र लगातार इस सीमा से नीचे काम करते हैं।"

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डॉ. जितेंद्र सिंह ने विकिरण के स्तर में उल्लेखनीय सुधार पर प्रकाश डाला, उदाहरण के लिए, कुडनकुलम संयंत्र में, उत्सर्जन एक दशक पहले 0.081 माइक्रोसीवर्ट से घटकर आज केवल 0.002 माइक्रोसीवर्ट रह गया है। इसी तरह, कलपक्कम संयंत्र में भी काफी कमी आई है, जहाँ स्तर 2014 में 23.140 माइक्रोसीवर्ट से घटकर 2023 में 15.961 माइक्रोसीवर्ट रह गया है।

भारत के परमाणु संयंत्रों को सुनामी और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के लिए रणनीतिक रूप से डिज़ाइन किया गया है। डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि पूर्वी तट पर स्थित संयंत्र इंडोनेशिया में सुनामी-प्रवण क्षेत्रों से 1,300 किलोमीटर से अधिक दूर स्थित हैं, जबकि पश्चिमी तट पर स्थित संयंत्र, जैसे कि तारापुर संयंत्र, पाकिस्तान में सुनामी के सबसे नज़दीकी जोखिम वाले क्षेत्र से 900 किलोमीटर से अधिक दूर स्थित हैं। इसके अलावा, संयंत्रों का निर्माण बाढ़ और समुद्र के उच्चतम दर्ज स्तर से ऊपर किया गया है ताकि चरम स्थितियों में भी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने महत्वपूर्ण उपलब्धियों  पर भी प्रकाश डाला जो परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भारत के अग्रणी के रूप में उभरने को रेखांकित करते हैं। कर्नाटक में कैगा जनरेटिंग स्टेशन ने अभूतपूर्व 962 दिनों तक लगातार संचालन करते हुए वैश्विक मानक स्थापित किया। भारत के पहले परमाणु ऊर्जा संयंत्र तारापुर ने सफलतापूर्वक संचालन के 50 वर्ष पूरे कर लिए हैं, जो वैश्विक परमाणु उद्योग में एक उल्लेखनीय उपलब्धि है।

भारत का पहला स्वदेशी प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर (पीएचडब्ल्यूआर)अब गुजरात के काकरापार में चालू हो गया है, जो परमाणु प्रौद्योगिकी में देश की बढ़ती आत्मनिर्भरता को दर्शाता है। इसके अलावा, कुडनकुलम संयंत्र, जो दशकों से ठप पड़ा था, को वर्तमान प्रशासन के तहत पूरी तरह से चालू कर दिया गया है।

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डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत का परमाणु कार्यक्रम बिजली उत्पादन से कहीं आगे तक फैला हुआ है, जो होमी भाभा के शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा के उपयोग के दृष्टिकोण पर खरा उतरता है। उन्होंने कहा कि परमाणु प्रौद्योगिकी को विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावी ढंग से लागू किया जा रहा है, जैसे कि कृषि, जहाँ यह विकिरण-प्रतिरोधी फसल किस्मों को विकसित करने में सहायता करती है; खाद्य संरक्षण, जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं के शेल्फ जीवन को बढ़ाकर; स्वास्थ्य सेवा, उन्नत कैंसर उपचार और चिकित्सा आइसोटोप के उत्पादन के माध्यम से; और सुरक्षा, कानून प्रवर्तन कर्मियों के लिए सुरक्षात्मक गियर का निर्माण करके।

परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम 2010 पर बहस को संबोधित करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि मौजूदा ढांचा सार्वजनिक हितों की पर्याप्त सुरक्षा करता है और विदेशी और घरेलू निवेश के लिए एक व्यवहार्य वातावरण सुनिश्चित करता है। दायित्व व्यवस्था, ऑपरेटरों पर प्राथमिक जिम्मेदारी डालती है, जिसमें विशिष्ट परिस्थितियों में आपूर्तिकर्ता की जवाबदेही के लिए प्रावधान करता है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने यह कहते हुए समापन किया कि भारत, जिसे कभी परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में एक छोटा खिलाड़ी माना जाता था, अब वैश्विक नेता के रूप में उभरा है। उन्होंने कहा, "भारत अब सिर्फ़ वैश्विक मानकों का पालन नहीं कर रहा है; हम अब ऐसे मानक स्थापित कर रहे हैं जिन्हें हासिल करने की आकांक्षा दूसरे लोग रखते हैं।"

देश सतत विकास में योगदान देने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने सहित महत्वाकांक्षी परमाणु ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, सुरक्षा के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता सर्वोपरि बनी हुई है। परमाणु ऊर्जा में भारत की प्रगति केवल घरेलू ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करती है, बल्कि वैश्विक ऊर्जा और प्रौद्योगिकी सहयोग में देश को एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में भी स्थापित करती है।

केंद्रीय मंत्री का यह बयान ऐसे समय में आया है जब परमाणु ऊर्जा को वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है, जिससे इस क्षेत्र में भारत का नेतृत्व और मजबूत हो रहा है।

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एमजी/केसी/जीके


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