उप राष्ट्रपति सचिवालय
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कुटुंब प्रबोधन भारतीय संस्कृति का मूल सिद्धांत - उपराष्ट्रपति


नागरिक द्वारा अपने कर्तव्यों का निर्वहन राष्ट्र सेवा का श्रेष्ठ माध्यम - उपराष्ट्रपति

भारत हमेशा सामाजिक समरसता, विश्व शांति और सबके कल्याण का पक्षधर - उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति ने उज्जैन में 66 वें 'अखिल भारतीय कालिदास समारोह' का उद्घाटन किया

Posted On: 12 NOV 2024 6:05PM by PIB Delhi

उपराष्ट्रपति ने उज्जैन में आज कहा कि समाज में सभी को ‘कुटुंब प्रबोधन’ की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। कुटुंब प्रबोधन को भारत के चरित्र में निहित होने और हमारी संस्कृति के मूल सिद्धांत होने पर ज़ोर देते हुए उन्होंने कहा, “ यह भारत के चरित्र में है, कुटुकम्ब का ध्यान नहीं देंगे तो जीवन सार्थक कैसे रहेगा ? हमें पता होना चाहिए हमारे पड़ोस में कौन है? हमारे समाज में कौन है? उनके क्या सुख दुख हैं? कैसे हम उनको राहत दे सकते हैं? यह जीवन को सार्थक बनाते हैं। ऐसी स्थिति में जब हम पाते हैं कि हर कोई भौतिकवाद की तरफ जा रहा है। इतने व्यस्त हो जाते हैं की हम अपनों को नजरअंदाज कर देते हैं, अपनों का ध्यान नहीं देते हैं? राष्ट्र का ध्यान तभी रहेगा जब कुटुंब का ध्यान रहेगा। राष्ट्र का ध्यान तभी रहेगा जब अपनों का ध्यान रहेगा। यह हमारी संस्कृति का मूल सिद्धांत है।”


आज उज्जैन में 66 वें 'अखिल भारतीय कालिदास समारोह' में अपने उद्द्बोधन में नागरिक कर्तव्यों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए उन्होंने कहा, “ भाइयों और बहनों, कोई भी समाज, कोई भी देश, इस आधार पर नहीं चल सकता कि हम अधिकारों पर जोर दें । हमारे संविधान ने हमें अधिकार दिए हैं, पर हमें संतुलित करना होगा उन अधिकारों को हमारे दायित्व से। नागरिक के दायित्व होते हैं, नागरिक की जिम्मेदारी होती है। और इसलिए आज के दिन मैं आपको आह्वान करूंगा, मन को टटोलिए। हम महान भारत के नागरिक हैं। भारतीयता हमारी पहचान है। हमारा राष्ट्रवाद में विश्वास है, राष्ट्र हमारा सबसे बड़ा धर्म है, राष्ट्र को सर्वोपरि रखते हैं और उसमें हर नागरिक को आहुति देनी है। और उसका सबसे श्रेष्ठ माध्यम है कि नागरिक अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें।”

 

नई युवा पीढ़ी में चरित्र निर्माण के लिए नागरिक कर्तव्यों और नैतिकता के प्रति सजगता बढ़ाने कि  आवश्यकता को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा, “ बच्चे हमारी आने वाली पीढ़ी है। हमें उनके चरित्र का ध्यान देना चाहिए। नैतिकता का विश्वास उनमें बढ़ाना चाहिए। यह हमारी मुख्य जिम्मेदारी है। बहुत अच्छा है हम कल्पना करें आकांक्षा रखे बच्चा डॉक्टर बने, इंजीनियर बने, अफसर बने, उद्योगपति बने, पर सबसे ज्यादा जरूरी है कि बच्चा अच्छा नागरिक बने, वो नागरिक के महत्व को समझे, नागरिक के कर्तव्य को समझें।”

भारत की ‘सामाजिक समरसता’ के प्रति प्रतिबद्धता पर प्रकाश डालते हुए श्री धनखड़ ने कहा, “ आज के दिन ‘सामाजिक समरसता’ को  जगह जगह से चुनौतियाँ दी जा रही हैं। भारत हमेशा सामाजिक समरसता, विश्व शांति और सबके कल्याण को दृष्टि में रखता है। हम उस देश के वासी हैं जिसने वसुधैव कुटुम्बकम को अपनाया, दुनिया के सामने सार्थक प्रयोग रखा है। हमने दुनिया को योग दिया, यह विद्या हमने दी क्योंकि हम सबकी सोचते हैं।


महाकवि कालिदास की कृतियों के माध्यम से प्रकृति के संरक्षण के महत्व को दर्शाते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “ सम्मानित महापुरुषों आज की ज्वलंत समस्या पर्यावरण की है।इसकी ओर हमारा ध्यान महाकवि कालिदास की रचनाओं से मिलता है। उनसे हमें बोध  होता है पर्यावरण संरक्षण और सृजन हमारे अस्तित्व के लिए अहम है। जागरूकता से जलवायु परिवर्तन की गंभीर समस्या पर सभी को ध्यान देना चाहिए और हमें याद रखना चाहिए कि हमारे पास पृथ्वी के अलावा दूसरा कोई रहने का स्थान नहीं है। मेघदूत प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत नज़ारा दिखाता है। पर मेघदूत हमें यह भी सिखाता है इस प्रकृति के साथ खिलवाड़ मत करो। इस प्रकृति का सृजन करना हमारा काम है। यदि अगर हम प्रकृति की ओर ध्यान नहीं देंगे तो पहले कह चुका हूँ, हमारे पास रहने के लिए दूसरी पृथ्वी नहीं है। और प्रकृति का ध्यान देने की शुरुआत प्रधानमंत्री जी ने अपने नारे से की थी जो मैं आह्वान करूंगा कि हर व्यक्ति को करना चाहिए, ‘मां के नाम एक पेड़’ । संपूर्ण भारत के वासी यदि अगर मां के नाम एक पेड़ लगाते हैं, उसका सृजन करते हैं, संरक्षण करते हैं तो वैसी क्रांति आएगी जैसी क्रांति हमने सफाई के मामले में हासिल की है।”

संस्कृति संरक्षण के महत्व और भारतीय संस्कृति के यश पर प्रकाश डालते हुए श्री धनखड़ ने कहा, “ यह निश्चित है, यह ध्यान में रखने वाली बात है, जो देश, जो समाज अपनी संस्कृति, अपनी सांस्कृतिक धरोहर को नहीं सम्भाल के रखता है वो समाज ज़्यादा दिन नहीं टिक सकता है। हमें हमारी संस्कृति पर पूरा ध्यान देना होगा, हमारी सांस्कृतिक जड़ें हमें याद दिलाती हैं कि जीवन का सार क्या है, जीवन का मूल्य क्या है, जीवन का दर्शन क्या है? और हमारे अस्तित्व का महत्व क्या है। आज का यह 66 वा अखिल भारतीय कालिदास समारोह हमारी संस्कृति का प्रतीक है। हमें याद दिलाता है कि दुनिया में हम कितने अद्‌भुत है। भारत जैसा कोई दूसरा देश नहीं है जिसके पास ऐसी सांस्कृतिक विरासत हो।”

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