कोयला मंत्रालय
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समृद्धि के लिए परित्यक्त कोयला खदानें - सामुदायिक सशक्तिकरण के लिए सीसीएल मत्स्य पालन

Posted On: 16 OCT 2024 1:03PM by PIB Delhi

सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल) ने कई परित्यक्त खदानों को मत्स्य पालन के लिए उपयोगी फार्मों में बदल दिया है, जिससे प्राकृतिक संसाधनों के जिम्मेदारीपूर्ण उपयोग को बढ़ावा मिला है और जिसने स्थानीय अर्थव्यवस्था तथा जैव विविधता को भाी आगे बढ़ाया है। कोल इंडिया लिमिटेड की सहायक कंपनी सीसीएल कोयला मंत्रालय के मार्गदर्शन में अभिनव मत्स्यपालन पहलों का नेतृत्व करके सतत विकास में उल्लेखनीय प्रगति कर रही है।

सीसीएल की मस्त्य पालन परियोजनाएं कई चुनौतियों -आर्थिक और पर्यावरणीय- को संबोधित करने के लिए डिज़ाइन की गई हैं। यह पहल मुख्य रूप से स्थानीय समुदायों को आय का एक अतिरिक्त स्रोत प्रदान करके लाभान्वित करती है और साथ ही राज्य के मछली उत्पादन में भी योगदान देती है।

सीसीएल ने मछलीपालन के लिए पांच परित्यक्त खदानों की विकासित किया है, जिसने  सामुदायिक सहभागिता और मछली उत्पादन दोनों में शानदार परिणाम दिए हैं।

  1. झारखंड के हजारीबाग के अरगडा क्षेत्र में स्थित रेलिगरा मछली पालन परियोजना, 9.71 हेक्टेयर में फैली हुई है। कुल 20 पिंजरे मछलियों के लिए लगाए गए हैं, जिससे सालाना लगभग 9.6 टन मछली का उत्पादन होता है। इस परियोजना से रेलिगरा और बसकुदरा के आस-पास के गांवों के लगभग 100 निवासियों को सीधे-सीधे लाभ मिलता है। इसे जिला प्रशासन का भी समर्थन प्राप्त है।

रेलिगरा मत्स्यपालन परियोजना

  1. झारखंड के अरगडा क्षेत्र में स्थित गिडी ए मत्स्यपालन परियोजना, 28 हेक्टेयर में फैली हुई है। इसमें मछलियों के लिए 22 पिंजरें लगाए गए हैं, जिससे सालाना लगभग 0.72 टन मछली का उत्पादन होता है। इस परियोजना से तेहराटांड, केंडियाटोला और गिडी बस्ती के निवासियों को लाभ पहुंचता है। ये परियोजना आगे के विकास के लिए तैयार है, जिसमें 45 लाख रुपये के समर्थन से सौंदर्यीकरण के प्रयास शामिल हैं। इसके अलावा, इसके पारिस्थितिक महत्व को रेखांकित करते हुए, इसे रामसर साइट के रूप में चिन्हित करने का सुझाव है।

गिडी, एक मत्स्यपालन परियोजना

  1. झारखंड में बोकारो ओसीपी मत्स्य पालन परियोजना 4.22 हेक्टेयर में फैली हुई है, जिसमें मछलियों के लिए 27 पिंजरे लगे हैं। इस परियोजना से सालाना 81 टन मछली का उत्पादन होता है, जिससे 30 स्थानीय परिवारों को लाभ मिलता है। मछली पालन में पंगेसियस, रोहू, तिलापिया और कतला जैसी प्रजातियाँ शामिल हैं, जो स्थानीय मछली उत्पादन में योगदान देती हैं और आस-पास रहने वाले समुदाय की आजीविका का समर्थन करती हैं।
  2. झारखंड के बरकासयाल क्षेत्र में केंद्रीय सौंदा मत्स्यपालन परियोजना में तिलापिया प्रजाति की मछलियों के लिए 40 मछली पिंजरे नवंबर 2023 में लगाए गए थे। इस परियोजना से काफी अधिक उत्पादन होने की उम्मीद है, जिससे लगभग 250 स्थानीय स्थानीय गांवावालों को सीधे लाभ होगा तथा उन्हें स्थायी आय के अवसर मिलेंगे और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।
  3. एनके क्षेत्र में करकट्टा ए और करकट्टा सी मछली पालन परियोजनाएं क्षेत्रीय जलीय कृषि में महत्वपूर्ण योगदानकर्ता हैं। करकट्टा ए 1.80 हेक्टेयर में फैला है, जिसमें मछलियों के 15 पिंजरे हैं, जिससे सालाना 200 टन मछलियाँ पैदा होती हैं, जबकि करकट्टा सी, जो दोनों में से बड़ा है, 4.5 हेक्टेयर में फैला है, जिसमें मछलियों के लिए 50 पिंजरे हैं और इससे सालाना 800 टन मछलियाँ पैदा होंगी। साथ में, इन परियोजनाओं से स्थानीय ग्रामीणों को लाभ होगा, जिससे शानदार उत्पादन आउटपुट मिलेगा, जो क्षेत्रीय विकास और सामुदायिक कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

करकट्टा ए और करकट्टा सी मछलीपालन परियोजना

सीसीएल की मछली पालन परियोजनाएं पानी से भरे खदान गड्ढों को फिर से उपयोग में लाने और उन्हें स्थानीय समुदायों के लिए आजीविका के स्रोत में बदलने में एक गेम-चेंजर रही हैं। ये परियोजनाएं पारिस्थितिक रूप से जिम्मेदार पानी से भरे परित्यक्त खदान गड्ढों को बढ़ावा देते हुए ग्रामीण क्षेत्रों के समग्र आर्थिक उत्थान में योगदान करती हैं। 2025 तक पूरी होने वाली कई परियोजनाओं के साथ, सीसीएल कोयला क्षेत्र में स्थायी औद्योगिक प्रथाओं के लिए एक अनुकरणीय मॉडल स्थापित कर रहा है।

इन मत्स्यपालन परियोजनाओं की प्रगति इस इलाके की सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय दोनों जरूरतों को संबोधित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण छलांग है। इस पहल के जरिए, सीसीएल एक संतुलित दृष्टिकोण को अपना रहा है, जहां सामुदायिक कल्याण और जैव विविधता संरक्षण का एक साथ ध्यान रखा जाता है।

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