जनजातीय कार्य मंत्रालय
आदि व्याख्यान 06 ː राष्ट्रीय जनजातीय शोध संस्थान और लुप्तप्राय भाषा केंद्र, विश्वभारती द्वारा 12 और 13 सितंबर 2024 को “प्रौद्योगिकी का उपयोग कर जनजातीय भाषाओं और भारतीय बहुभाषावाद के संरक्षण: नीति और व्यवहार पर राष्ट्रीय संगोष्ठी” का आयोजन
जनजातीय भाषाओं पर अधिक अकादमिक ध्यान देने की आवश्यकता है: प्रो. बिनॉय कुमार सरेन, कुलपति, विश्वभारती
Posted On:
14 SEP 2024 7:53PM by PIB Delhi
एनटीआरआई और सीएफईएल, विश्वभारती विश्वविद्यालय द्वारा भाषा भवन, शांति निकेतन में 12 और 13 सितंबर 2024 को हाइब्रिड मोड में आदि व्याख्यान 06 ː प्रौद्योगिकी का उपयोग कर “जनजातीय भाषाओं और भारतीय बहुभाषावाद के संरक्षण: नीति और व्यवहार पर राष्ट्रीय संगोष्ठी” शीर्षक के तहत एक संयुक्त अकादमिक सभा आयोजित की गई थी।
देश भर से भाषाविदों, डोमेन विशेषज्ञों, क्षेत्रीय विशेषज्ञों, विद्वानों और आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधियों सहित 40 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुतकर्ताओं ने संगोष्ठी के विषय के तहत विविध उप-विषयों पर अपना काम प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम का औपचारिक उद्घाटन विश्वभारती के माननीय कुलपति (कार्यवाहक) प्रो. बिनॉय कुमार सरेन ने किया। प्रो. सरेन ने अपने उद्घाटन भाषण में आदिवासी भाषाओं के संरक्षण के महतव पर बात की। उन्होंने कहा, "जब एक आदिवासी भाषा मर जाती है, तो अक्सर पर्यावरण और टिकाऊ जीवन से जुड़े बहुमूल्य मौखिक इतिहास, रीति-रिवाज और स्वदेशी ज्ञान खो जाते हैं। भाषा संरक्षण से आदिवासी समुदाय सशक्त बनते हैं और इससे देश में बहुभाषावाद को बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करते हुए पीढ़ीगत पहचान, गौरव और निरंतरता को प्रोत्साहन मिलता है।"
एनटीआरआई की विशेष निदेशक प्रो. नुपुर तिवारी ने कार्यक्रम में अपने संबोधन में जनजातीय भाषाओं के संरक्षण की अभिनव पहल के उदाहरणों पर विस्तार से बताया और कहा कि इस कार्यक्रम के माध्यम से एनटीआरआई का उद्देश्य जनजातीय भाषाओं के संरक्षण, सुरक्षा और संवर्धन पर अकादमिक चर्चा को प्रोत्साहित करना है, क्योंकि जनजातीय समुदायों की संस्कृति, परंपराओं और विरासत के संदर्भ में भाषा का खास महत्व है।
प्रो. तिवारी ने प्रत्येक कार्यक्रम में विभिन्न विषयों पर विचार-विमर्श और चर्चा के लिए एकत्रित हुए बहु-हितधारकों की भागीदारी के माध्यम से जनजातीय विकास से संबंधित विषय क्षेत्रों को संबोधित करने, मुद्दों और चुनौतियों की पहचान करने, रणनीतियों के निर्माण और आगे के रास्ते पर विचार करने के लिए बहु-क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य आधारित आउटपुट प्रदान करके जनजातीय मामलों के मंत्रालय, भारत सरकार के मार्गदर्शन में राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान द्वारा आदि व्याख्यान कार्यक्रम श्रृंखला के माध्यम से किए जा रहे ठोस प्रयासों के बारे में भी बताया।
विश्वभारती के लुप्तप्राय भाषा केंद्र के अध्यक्ष प्रो. मनोरंजन प्रधान ने प्रतिनिधियों का आधिकारिक रूप से स्वागत किया और विशेषकर लुप्तप्राय भाषाओं के संदर्भ में विश्वभारती की गतिविधियों और विश्वभारती में किए जा रहे अनुसंधान और विकास कार्यों का परिचय दिया। उन्होंने कहा, “मुझे विश्वास है कि इस सेमिनार में हुई चर्चाएं बहुमूल्य जानकारियां प्रदान करेंगी और विशेष रूप से शिक्षा प्रणाली और समाज में एनईपी-2020 पर केंद्रित नीतियों के संदर्भ में हमारे समुदायों में बहुभाषिकता को बढ़ावा देने और समर्थन करने के लिए नए विचारों को प्रेरित करेंगी।”
विश्वभारती के सीईएफएल के संकाय डॉ. अरिमर्दन कुमार त्रिपाठी ने विशेष रूप से डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के मद्देनजर डिजिटल माध्यमों का उपयोग करके देश में बहुभाषिकता को बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करते हुए कार्यक्रम के उद्देश्यों को साझा किया। उन्होंने सीएफईएल, विश्वभारती द्वारा विकसित वेब पोर्टल और एंड्रॉइड एप्लिकेशन के बारे में भी परिचय दिया
संगोष्ठी के दौरान गणमान्य व्यक्तियों द्वारा सीएफईएल, विश्वभारती द्वारा प्रकाशित लुप्तप्राय जनजातीय भाषाओं पर दो पुस्तकों का विमोचन किया गया। उद्घाटन सत्र में संगीत भवन विश्वभारती के छात्रों द्वारा उद्बोधिनी संगीत भी प्रस्तुत किया गया। संगोष्ठी में प्रस्तुत शोध पत्रों का विस्तार करते हुए, श्री मृत्युंजय प्रभाकर द्वारा निर्देशित “द ब्लाइंड ओपेरा” नामक एक नाट्य नाटक संगीत भवन के छात्रों द्वारा बहुभाषीय विधा में प्रस्तुत किया गया। नाटक में भारत की बहुभाषीय विविधता को दर्शाया गया और प्रतीकात्मक रूप से शामिल किया गया।
संगोष्ठी के समापन सत्र में गणमान्य व्यक्तियों द्वारा आदिवासी भाषाओं का अंग्रेजी-हिंदी-बांग्ला में अनुवाद करने वाले शब्दकोश के निर्माण में योगदान के लिए आदिवासी संसाधन व्यक्तियों को सम्मानित किया गया। आदिवासी संसाधन व्यक्तियों में कुरुख के लिए प्रवत कोराज और महाली भाषा के लिए संतोष टुडू शामिल थे।
संगोष्ठी का समापन सभी हितधारकों को उनके योगदान के लिए धन्यवाद ज्ञापन और शोध पत्र प्रस्तुतकर्ताओं को प्रमाण पत्र वितरण के साथ हुआ।
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