पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
जलवायु कार्रवाई और कार्बन तटस्थता
Posted On:
01 AUG 2024 1:04PM by PIB Delhi
नवंबर 2021 में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) (सीओपी 26) के 26वें सत्र में भारत ने 2070 तक कार्बन उत्सर्जन में अपना शुद्ध शून्य लक्ष्य हासिल करने की घोषणा की। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत ने अपना दीर्घकालिक निम्न ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन विकास कार्यनीतियां (एलटी-एलईडीएस) तैयार की और इसे नवंबर 2022 में यूएनएफसीसीसी में प्रस्तुत किया, जो 2070 तक कार्बन उत्सर्जन में शुद्ध-शून्य के लक्ष्य तक पहुंचने की पुष्टि करती है। भारत की एलटी-एलईडीएस समानता और जलवायु न्याय के सिद्धांतों और सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं के सिद्धांत पर आधारित है। भारत के एलटी-एलईडीएस में सात प्रमुख कार्यनीतिक परिवर्तन शामिल हैं, अर्थात्: (i) विकास के अनुरूप बिजली प्रणालियों का कम कार्बन उत्सर्जन; (ii) एकीकृत, कुशल, समावेशी निम्न-कार्बन परिवहन प्रणाली विकसित करना; (iii) शहरी डिजाइन, इमारतों में ऊर्जा और सामग्री-दक्षता तथा टिकाऊ शहरीकरण में अनुकूलन को बढ़ावा देना; (iv) अर्थव्यवस्था में उत्सर्जन से विकास को अलग करने और एक कुशल, नवोन्मेषी कम उत्सर्जन वाली औद्योगिक प्रणाली के विकास को बढ़ावा देना; (v) कार्बन डाइऑक्साइड हटाना और इससे संबंधित इंजीनियरिंग समाधान; (vi) सामाजिक-आर्थिक और परितंत्र के अनुरूप वन और वनस्पति आवरण को बढ़ाना; और (vii) निम्न-कार्बन उत्सर्जन के आर्थिक और वित्तीय पहलू और वर्ष 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को शुद्ध-शून्य तक पहुंचाना।
वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम, 1980 के तहत गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए वन भूमि के डायवर्जन के लिए पूर्व मंजूरी देते समय वन विखंडन के मुद्दे पर विधिवत विचार किया जाता है। विभिन्न परियोजनाओं, विशेष रूप से रैखिक बुनियादी ढांचे के प्रस्तावों को मंजूरी देते समय शमन उपायों को सुनिश्चित किया जाता है और उन्हें विधिवत ध्यान में रखा जाता है। प्रतिपूरक वनीकरण उन परियोजनाओं के लिए एक अनिवार्य घटक है जहां गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए वनभूमि के परिवर्तन की अनुमति है। इसमें मिट्टी और नमी संरक्षण और पर्यावरण-बहाली के घटक शामिल हैं। इसके साथ ही विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून 2024) पर पूरे देश में "एक पेड़ माँ के नाम" वृक्षारोपण अभियान शुरू किया गया है। इसके अलावा, 2023 में ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम शुरू किया गया है। प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के राज्य वन विभाग से अनुरोध किया गया है कि वे वन विभागों के नियंत्रण और प्रबंधन के तहत उन उजड़े वन भूमि खंड की पहचान करें, जिन्हें हरित ऋण सृजन के उद्देश्य से वृक्षारोपण के लिए उपलब्ध कराया जाएगा। राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम (एनएपी) को लोगों की भागीदारी और विकेन्द्रीकृत वन प्रशासन के साथ मिलकर पहले से चिन्हित किए गए उजड़े वन क्षेत्रों में वनीकरण के लिए अखिल भारतीय आधार पर लागू किया गया है। सीएएमपीए के तहत प्रतिपूरक वनीकरण का उपयोग उजड़े वन भूमि पर वृक्षारोपण करने और पर्यावरण-पुनर्स्थापना कार्यों को पूरा करने के लिए भी किया गया है।
भारत के एलटी-एलईडीएस के अनुसार, शहरी नियोजन में अनुकूलन उपायों को मुख्यधारा में लाना और शहरी नियोजन के दिशानिर्देशों, नीतियों और उपनियमों के भीतर ऊर्जा और संसाधन दक्षता बढ़ाने के उपाय शहरी क्षेत्र के लिए कम कार्बन उत्सर्जन का एक महत्वपूर्ण घटक है। टिकाऊ शहरी नियोजन के लिए प्रासंगिक नीतियों और पहलों में (1) शहरी और क्षेत्रीय विकास योजना निर्माण और कार्यान्वयन (यूआरडीपीएफआई) दिशानिर्देश; (2) नगर एवं ग्राम योजना अधिनियम और (3) कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन (अमृत); प्रधान मंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) - सभी के लिए आवास (शहरी), विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय समूहों के लिए आवास प्रदान करना; स्मार्ट सिटी मिशन (एससीएम); स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) जैसे राष्ट्रीय शहरी मिशन शामिल हैं ।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) देश भर में वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए राष्ट्रीय स्तर की रणनीति के रूप में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) लागू कर रहा है। एनसीएपी के तहत, वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए 131 गैर-प्राप्ति/मिलियन से अधिक शहरों के लिए शहर विशिष्ट स्वच्छ वायु कार्य योजनाएं तैयार की गई हैं। शहरी कार्य योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए वित्त पोषण केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं जैसे स्वच्छ भारत मिशन एसबीएम (शहरी), कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन (अमृत), स्मार्ट सिटी मिशन, किफायती परिवहन के लिए टिकाउ विकल्प (एसएटीएटी), हाइब्रिड एवं इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाना और विनिर्माण (एफएएमई-II), नगर वन योजना आदि और राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकारों और इसकी एजेंसियों जैसे नगर निगम, शहरी विकास प्राधिकरण और औद्योगिक विकास प्राधिकरण आदि से जुटाया जाता है।
इसके अलावा, सरकार ने वायु प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और कमी के लिए कई पहल की है। इसमें पर्यावरण कानून और संबंधित नियम; राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता और प्रवाह निर्वहन मानकों की अधिसूचना; स्वच्छ/वैकल्पिक ईंधन (जैसे सीएनजी/एलपीजी) की शुरूआत; इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम; भारत स्टेज (बीएस) IV से बीएस VI ईंधन मानदंडों तक आना; समय-समय पर औद्योगिक क्षेत्रों के लिए उत्सर्जन मानकों में संशोधन, स्वच्छ उत्पादन प्रक्रियाओं को बढ़ावा देना; हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन और उपयोग के लिए प्रोत्साहन; पत्तियों, जैव ईंधन और कचरे को खुले में जलाने पर प्रतिबंध लगाना; और एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन पर आयोग का गठन करना शामिल है।
सरकार ने प्रचारात्मक और नियामक उपायों के माध्यम से देश में मैंग्रोव और कोरल रीफ की सुरक्षा, रखरखाव, संरक्षण और संवर्द्धन के लिए कदम उठाए हैं। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जलवायु अनुकूलता बढ़ाने के लिए तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता प्रदान की है, जिसमें मैंग्रोव और कोरल रीफ का संरक्षण, आश्रय स्थल वृक्षारोपण, कोरल रीफ प्रत्यारोपण, तटीय समुदायों की आजीविका सुरक्षा में वृद्धि, तटीय क्षेत्रों में प्रदूषण उन्मूलन और क्षमता निर्माण शामिल है। इसके अलावा, गुजरात और ओडिशा के चिन्हित हिस्सों के लिए एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजनाएं (आईसीजेडएमपी) तैयार की गई हैं। पश्चिम बंगाल के चिन्हित हिस्सों के लिए भी आईसीजेडएम योजना और समुद्री स्थानिक योजना तैयार की गई है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जैव ढाल के रूप में काम करने के अलावा, बहुत उच्च जैविक उत्पादकता और कार्बन पृथक्करण क्षमता वाले अद्वितीय, प्राकृतिक परितंत्र के रूप में मैंग्रोव को बढ़ावा देने और संरक्षित करने के लिए जून 2023 में 'तटरेखा आवास और मूर्त आय के लिए मैंग्रोव पहल (मिष्टी) शुरू की। मिष्टी ने 9 तटीय राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों में फैले लगभग 540 वर्ग किलोमीटीर क्षेत्र में मैंग्रोव की बहाली/पुनर्वनीकरण की परिकल्पना की है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में मैंग्रोव की 3,046 हेक्टेयर भूमि की बहाली के लिए गुजरात, पश्चिम बंगाल, केरल और केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी को कुल 12.55 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं।
जलवायु अनुकूलता बढ़ाने के लिए, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986; वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972; भारतीय वन अधिनियम, 1927; जैविक विविधता अधिनियम, 2002 के तहत तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) अधिसूचना (2011 और 2019) और समय-समय पर संशोधित इन अधिनियमों के माध्यम से नियामक उपाय लागू किए जाते हैं। पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के तहत प्रख्यापित तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) अधिसूचना, 2019 में मैंग्रोव और कोरल रिफ परितंत्र सहित 11 पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों (ईएसए) के संरक्षण और प्रबंधन योजनाओं पर विशेष ध्यान दिया गया है।
यह जानकारी पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री श्री कीर्ति वर्धन सिंह ने आज राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में दी।
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