शिक्षा मंत्रालय
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‘अखिल भारतीय शिक्षा समागम 2024’ में जीईआर एवं रैंकिंग और प्रत्यायन पर आयोजित पैनल परिचर्चाओं के दौरान अनेक अहम सुझाव मिले

Posted On: 30 JUL 2024 6:41PM by PIB Bhopal

शिक्षा मंत्रालय ने 29 जुलाई 2024 को नई दिल्ली स्थित मानेकशॉ सेंटर ऑडिटोरियम में ‘अखिल भारतीय शिक्षा समागम (एबीएसएस) 2024’ का आयोजन किया जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की चौथी वर्षगांठ का प्रतीक है। शिक्षा राज्य मंत्री एवं कौशल विकास व उद्यमिता मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री जयंत चौधरी और शिक्षा एवं पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास राज्य मंत्री डॉ. सुकांत मजूमदार इस कार्यक्रम में उपस्थित थे। उच्च शिक्षा विभाग के सचिव श्री के. संजय मूर्ति, स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के सचिव श्री संजय कुमार, कई शिक्षाविद, विश्वविद्यालयों के कुलपति, अधिकारीगण, और बडी संख्‍या में विद्यार्थी भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए। इस अवसर पर छह पैनल परिचर्चाएं आयोजित की गईं जिनमें से तीन पैनल परिचर्चाएं स्कूली शिक्षा पर और तीन पैनल परिचर्चाएं उच्च शिक्षा पर आयोजित की गई थीं।

उच्च शिक्षा पर आयोजित एक पैनल परिचर्चा रैंकिंग और प्रत्यायन पर केंद्रित थी। इसका संचालन एनईटीएफ के अध्यक्ष प्रो. अनिल सहस्रबुद्धे ने किया। इसमें चार पैनलिस्ट ये थे: डॉ. मनोज तिवारी, निदेशक, आईआईएम मुंबई एवं टीआईएसएस के कार्यवाहक कुलपति; डॉ. रजनीश कुमार, केमिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर, आईआईटी मद्रास; डॉ. एस. वैद्यसुब्रमण्यम, शास्त्र डीम्ड यूनिवर्सिटी के कुलपति; और डॉ. उज्ज्वला चक्रदेव, कुलपति, एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को एक व्यापक रूपरेखा के रूप में सराहा गया है जिसका उद्देश्य शिक्षार्थियों के समग्र विकास को बढ़ावा देना और अनेक सुधारों के जरिए उच्च शिक्षण संस्थानों (एचईआई) की गुणवत्ता को बढ़ाना है जिनमें बहु-विषयक शिक्षा, गहन सोच एवं विश्लेषणात्मक क्षमता को बढ़ावा देना, अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देना, अवसंरचना की गुणवत्ता बढ़ाना, बेहतरीन उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए शिक्षक प्रशिक्षण को प्रभावकारी एवं सशक्त बनाना शामिल हैं, ताकि भारतीय मूल्यों में निहित सर्वांगीण, रचनात्मक रोजगार योग्य और उद्यमशील व्यक्तियों को तैयार किया जा सके।

प्रक्रियाओं को बेहतर बनाने के लिए मापन और निगरानी दो महत्वपूर्ण उपाय हैं, ताकि अपेक्षित परिणाम प्राप्त किए जा सकें। रैंकिंग और प्रत्यायन दो ऐसे उपाय हैं जो किसी भी संस्थान को यह जानने में सक्षम बनाते हैं कि उसकी साख कैसी है और उसकी ताकत एवं कमजोरियां क्या हैं ताकि वह कमजोरियों को दूर करने के लिए संबंधित प्रक्रियाओं को बेहतर कर सके एवं ताकत को और भी अधिक मजबूत कर उत्कृष्टता प्राप्त कर सके। इससे सहयोग और प्रतिस्पर्धा के साथ-साथ एक-दूसरे से सर्वोत्तम तौर-तरीके सीखने को बढ़ावा मिलेगा जिससे देश में शिक्षा का समग्र माहौल बेहतर होगा।

प्रतिष्ठित पैनलिस्टों की ओर से प्रत्यायन, एनबीए द्वारा कार्यक्रम प्रत्यायन, रैंकिंग, एनआईआरएफ, और क्यूएस रैंकिंग पर कई महत्वपूर्ण सुझाव प्राप्त हुए। इस दौरान कुछ मुख्य बातें ये थीं - राष्ट्रीय एवं वैश्विक रैंकिंग में अपनी साख को बढ़ाने में उच्च शिक्षण संस्थानों के शोध आउटपुट की मात्रा और गुणवत्ता दोनों का ही विशेष महत्व है; मजबूत डेटा संग्रह प्रणाली और डेटा सत्यापन के माध्यम से उच्च शिक्षण संस्थानों द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले डेटा की गुणवत्ता बढ़ाना जिससे रैंकिंग की प्रभावशीलता बढ़ाने में मदद मिलती है; एनआईआरएफ में शामिल शीर्ष संस्थानों के लिए वैश्विक रैंकिंग में भाग लेने का मार्ग सुनिश्चित करना ताकि वर्ष 2047 तक 10 भारतीय उच्च शिक्षण संस्थान निश्चित रूप से वैश्विक रैंकिंग में शीर्ष 100 में शामिल हो सकें; इत्‍यादि।

विद्या शक्ति के माध्यम से स्‍टेम या एसटीईएम को बढ़ावा देने और जीईआर को बढ़ाने में उच्च शिक्षण संस्थानों की भूमिका पर आयोजित एक अन्य पैनल परिचर्चा में उच्च शिक्षा विभाग ने विद्या शक्ति योजना को लागू करके तकनीकी क्षेत्रों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए एसटीईएम में दाखिला बढ़ाने का अपना लक्ष्य व्यक्त किया। इस पहल के तहत दो वर्षों में 10,000 ग्रामीण संपर्क केंद्र (आरआईसी) स्थापित किए जाएंगे जिसमें 8वीं से लेकर 12वीं कक्षा तक के 500,000 छात्रों को लक्षि‍त किया जाएगा, और इसके तहत छात्राओं पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। आईआईटी मद्रास द्वारा विकसित पाठ्यक्रम में व्यावहारिक अभ्यास और सिमुलेशन सॉफ्टवेयर शामिल हैं। स्थानीय उच्च शिक्षण संस्थान (एचईआई) हब के रूप में कार्य करेंगे जहां छात्र मेंटर या शिक्षा सारथी की भूमिका निभाएंगे। इस योजना में सीएससी का उपयोग किया जाएगा, जिससे कि उनकी सफल शैक्षणिक पहुंच का लाभ उठाया जा सके। आईआईटी मद्रास मेंटरों को निरंतर प्रशिक्षण और आवश्‍यक सहायता प्रदान करेगा।

सत्र का संचालन आईआईटी मद्रास के निदेशक प्रो. वी. कामाकोटि ने किया। ओपन मेंटर ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी श्री पी. नागराजन एक पैनलिस्ट और मुख्य वक्ता थे। जिन पैनलिस्टों ने अपने-अपने विचार साझा किए उनमें श्री हिमांशु नागपाल, मुख्य विकास अधिकारी, वाराणसी; श्री राजेंद्र एक्का, दक्षिण भारत सचिव, एकल ग्रामोत्थान फाउंडेशन के अलावा श्रीमती आर. अरुण, व्याख्याता, एसईएमएटी आंध्र प्रदेश भी शामिल थीं।

परिचर्चा के दौरान इस बात पर जोर दिया गया कि एनईपी 2020 को जमीनी स्तर के समुदायों की जरूरतों को अवश्‍य ही पूरा करना चाहिए। कोविड-19 महामारी ने थोड़े समय के लिए व्यवधान उत्‍पन्‍न किया, लेकिन इसने डिजिटल शिक्षा का मार्ग प्रशस्त कर दिया। विद्या शक्ति योजना इन्हीं व्यवधानों के एक परिणाम के रूप में उभर कर सामने आई। एनईपी 2020 के तहत वर्ष 2030 तक उच्च शिक्षा में सकल दाखिला अनुपात (जीईआर) को बढ़ाकर 50% से भी अधिक के स्‍तर पर पहुंचाने का लक्ष्य है।

आईआईटी मद्रास द्वारा क्रियान्वित विद्या शक्ति योजना पर विस्तार से चर्चा की गई, जो तमिलनाडु के 5 गांवों में शुरू हुई है और अब इसका विस्‍तार भारत एवं श्रीलंका में 504 आरआईसी तक में हो गया है।

ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने में डिजिटल दीदी कार्यक्रम की सफलता, और वाराणसी एवं आंध्र प्रदेश में विज्ञान और गणित सिमुलेशन में 3,300 शिक्षकों को प्रशिक्षित करके रोजगार सृजन और छात्रों का ध्यान बढ़ाने, अवधारण क्षमता और साप्ताहिक सूक्ष्म मूल्यांकन में होने वाले प्रदर्शन में व्‍यापक बेहतरी होने पर प्रकाश डाला गया।

छात्रों की प्रगति और समझ की निगरानी करने हेतु साप्ताहिक सूक्ष्म आ‍कलन के लिए सीखने की क्षमता बढ़ाने के उद्देश्‍य से प्रयोगों और वर्चुअल प्रयोगशालाओं का प्रदर्शन करने के लिए सिमुलेशन सॉफ्टवेयर का उपयोग करके छात्रों की मातृभाषा में 5-12 कक्षा के लिए केंद्रीकृत लाइव ऑनलाइन शिक्षण की कार्य योजना और इसे कैसे कार्यान्वित किया जा रहा है, इस पर भी चर्चा की गई।

छात्रों को व्यावहारिक शिक्षा में शामिल करने के लिए वर्चुअल रियलिटी सेशन और एसटीईएम किट की क्षमता पर भी प्रकाश डाला गया। विद्या शक्ति में शैक्षणिक अंतर को दूर करने के लिए इस तरह के अंतर का व्यापक रूप से आकलन करना अत्‍यंत आवश्‍यक है। वर्तमान स्थिति का आकलन करने के लिए शैक्षणिक प्रदर्शन और सामाजिक-आर्थिक कारकों दोनों को ही समझना आवश्यक है। इसके अलावा जागरूकता और सहभागिता के माध्यम से अभिभावकों की धारणाओं में बदलाव लाने से शैक्षणिक नतीजों को बेहतर करके गरीबी के चक्र को तोड़ने में काफी मदद मिल सकती है।

इस दौरान एकल विद्यालय पहल पर भी चर्चा की गई, जिसमें ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में एकल-शिक्षक संस्थानों और एकल के ऑन-व्हील कार्यक्रम पर ध्यान केंद्रित किया गया, जो बसों को मोबाइल कंप्यूटर लैब में परिवर्तित कर देता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ग्रामीण छात्रों, जिनमें स्कूल की पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चे भी शामिल हैं, को कंप्यूटर साक्षरता अवश्‍य ही प्राप्त हो।

वर्चुअल शिक्षा और रोजगार कौशल के लिए एकल योजना के तहत वर्चुअल माध्यम से सामान्य गणित और विज्ञान शिक्षण प्रदान करने, गृहिणी महिलाओं के लिए मैनुअल सॉफ्टवेयर प्रशिक्षण, और महिलाओं को अपने घरों से ही ऑनलाइन काम करने में सक्षम बनाने के लिए रोजगार कौशल को बढ़ावा देने पर विशेष जोर दिया जाता है।

यह परिचर्चा एसटीईएम शिक्षा को एकीकृत करने, समग्र दृष्टिकोण अपनाने, और साक्षरता एवं संख्यात्मकता को मजबूत करने पर केंद्रित थी। इस दौरान मुख्य बिंदुओं में प्रौद्योगिकी का एकीकरण, और अनुभवात्मक शिक्षा, पाठ्यक्रम में लचीलापन, शिक्षकों का निरंतर विकास, और समानता, अनुसंधान एवं सुलभ संसाधनों को प्राथमिकता देते हुए उद्योग जगत के साथ सहयोग करना शामिल थे।

पैनलिस्टों ने इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए अनेक मूल्यवान सुझाव दिए, जैसे कि सकल दाखिला अनुपात (जीईआर) बढ़ाने के लिए उच्च शिक्षा वाले छात्रों के माता-पिता के साथ बातचीत करके जमीनी स्तर पर जुड़ना. जीईआर को काफी हद तक बढ़ाने और सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए उच्च शिक्षण संस्थानों के साथ सहयोग करना; अधिक गांवों को कवर करने के लिए आरआईसी की संख्या का विस्तार करके जीईआर बढ़ाने के लिए विद्या शक्ति जैसी पहलों का उपयोग करना और यह सुनिश्चित करना कि प्रत्येक ग्रामीण बच्चे को गुणवत्तापूर्ण या बेहतरीन शिक्षा प्राप्त हो; इत्‍यादि।

 

 

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