विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय

कोडाइकनाल सौर वेधशाला ने सूर्य के अध्ययन के 125 वर्ष पूरे होने पर उत्सव मनाया

Posted On: 02 APR 2024 6:21PM by PIB Delhi

 

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान, भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) ने 1 अप्रैल 2024 को प्रतिष्ठित कोडाइकनाल सौर वेधशाला (केएसओ) की 125वीं वर्षगांठ मनाई, जिससे कोडाइकनाल सौर वेधशाला (केएसओ) के इतिहास का स्मरण किया जा सके। इसके वैज्ञानिकों का अभिनंदन करने और इसकी विरासत का सम्मान करना भारत में खगोल विज्ञान के लिए एक प्रमुख और बड़ी उपलब्धि था। कोडाइकनाल सौर वेधशाला (केएसओ) के पास 20वीं सदी की शुरुआत से हर दिन रिकॉर्ड की जाने वाली 1.2 लाख डिजिटल सौर छवियों और सूर्य की हजारों अन्य छवियों का एक डिजिटल भंडार उपलब्ध है।

बाएं से-1. प्रो. अन्नपूर्णी सुब्रमण्यम, 2. ए.एस. किरण कुमार, 3. एस. सीता, 4. प्रो. सिराज हसन

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष और भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) की शासी परिषद के अध्यक्ष ए.एस.किरण कुमार ने वर्षगांठ समारोह के लिए कोडाइकनाल सौर वेधशाला (केएसओ) की 125वीं वर्षगांठ के प्रतीक चिन्ह का अनावरण किया, साथ ही वेधशाला के इतिहास और शोध उपलब्धियों का विवरण देने वाली एक पुस्तिका का भी विमोचन किया।

1 अप्रैल 1899 को अंग्रेजों द्वारा स्थापित, वेधशाला के पास दुनिया में सूर्य के सबसे लंबे समय तक निरंतर दैनिक रिकॉर्ड में से एक है। इसके साथ ही इस अद्वितीय डेटाबेस को डिजिटल कर दिया गया है। यह डेटाबेस अब दुनिया भर के खगोलविदों के लिए सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है।

इन समारोहों के आरंभ में, भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) ने 1792 में मद्रास में स्थापित वेधशाला से शुरू हुए इस वेधशाला के समृद्ध इतिहास, इसकी विविध उपलब्धियों और इसके चल रहे अनुसंधान को दर्शाने के लिए आने वाले महीनों में कई कार्यक्रमों की योजना बनाई है। कोडाइकनाल सौर वेधशाला (केएसओ) वर्तमान में, भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) के अंतर्गत एक फील्ड स्टेशन के रूप में कार्यरत है, जो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्त संस्थान है।

भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) की निदेशक प्रो. अन्नपूर्णी सुब्रमण्यम ने वेधशाला की विरासत पर प्रकाश डाला और बताया कि कैसे एक सदी से भी अधिक समय से ज्ञान की खोज के लिए प्रौद्योगिकी की कई पीढ़ियों के माध्यम से निरंतर नवाचार की आवश्यकता होती है, साथ ही वैज्ञानिकों की पीढ़ियों के माध्यम से कौशल का हस्तांतरण भी होता है। भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) के पूर्व निदेशक और सौर भौतिक विज्ञानी प्रोफेसर सिराज हसन ने वर्ष 1909 में वेधशाला में गैस के रेडियल प्रवाह के कारण सनस्पॉट में देखे गए एवरशेड प्रभाव की खोज के बारे में बात की।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अंतरिक्ष विज्ञान कार्यक्रम कार्यालय की पूर्व निदेशक एस. सीता ने रेखांकित किया कि विद्यार्थियों के बीच इसकी विशिष्टता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विद्यालयों और महाविद्यालयों की पाठ्यपुस्तकों में कोडाइकनाल सौर वेधशाला (केएसओ) के बारे में बातचीत करने की आवश्यकता है

कोडाइकनाल सौर वेधशाला

1 अप्रैल को भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान द्वारा अपने स्थापना दिवस के रूप में भी मनाया जाता है, जब इसे वर्ष 1971 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक संस्थान के रूप में स्थापित किया गया था। वर्ष 2024 के लिए स्थापना दिवस व्याख्यान कोडाइकनाल से श्री ए.एस.किरण कुमार द्वारा दिया गया, जिसमें उन्होंने "भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम" पर चर्चा की, जहां उन्होंने देश के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के साराभाई और अन्य लोगों के प्रारंभिक दृष्टिकोण से शुरू करते हुए इसके इतिहास का रेखांकन किया, जिसमें दूरस्थ शिक्षा के लिए अद्वितीय कार्यक्रम भी शामिल थे, जो किसानों एवं मछली पकड़ने वाले समुदाय, और आपदा संबंधी चेतावनी के लिए जानकारी प्रदान करते थे। उन्होंने सफल चंद्रयान-3 मिशन के लिए दूर की गई तकनीकी चुनौतियों और गगनयान के साथ भविष्य पर प्रकाश डालते हुए रिमोट सेंसिंग, मैपिंग और संचार के विभिन्न क्षेत्रों में हुई प्रगति के बारे में भी चर्चा की।

यह आयोजन इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि कैसे कोडाइकनाल सौर वेधशाला डेढ़ सदी से भी अधिक वैज्ञानिकों द्वारा भारतीय धरती से सूर्य को समझने, ग्रहणों का अध्ययन करने, वर्ष 1868 में हीलियम की खोज करने, सूर्य में प्लाज्मा प्रक्रिया को समझने और इसके विस्तार, प्रमुखता और चमक-दमक को समझने का प्रमाण है। हाल ही में प्रक्षेपित किए गए आदित्य-एल-1 पर विजिबल एमिशन लाइन कोरोनोग्राफ, जिसे भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) के क्रेस्ट में असेंबल किया गया था और भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) के नेतृत्व में लद्दाख में प्रस्तावित नेशनल लार्ज सोलर टेलीस्कोप, इस समृद्ध विरासत को आगे बढ़ा रहा है

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