कोयला मंत्रालय

टिकाऊ ऊर्जा व्‍यवस्‍था के लिए कोयला सीपीएसई का विविधीकरण

Posted On: 08 MAR 2024 12:20PM by PIB Delhi

कोयला मंत्रालय कोयला केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम (सीपीएसई) में विविधता लाने के उद्देश्य से एक परिवर्तनकारी पहल में सबसे आगे है, जिससे उनकी स्थिरता बढ़ेगी और भारत की ऊर्जा सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा। यह पहल भविष्य के लिए एक तैयार, सुदृढ़ और टिकाऊ ऊर्जा व्‍यवस्‍था को बढ़ावा देने के सरकार के व्यापक दृष्टिकोण के अनुरूप है। कोयला मंत्रालय ने विविधीकरण के लिए प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की है और यह अपने ऊर्जा पोर्टफोलियो में विविधता लाने और भारत के अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों में योगदान करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में उद्यम करके अपना दायरा बढ़ा रहा है।

वैश्विक ऊर्जा प्रतिमानों में बदलाव और बढ़ती पर्यावरणीय जागरूकता की पृष्ठभूमि में, कोयला मंत्रालय पिट-हेड टीपीपी, सौर ऊर्जा संयंत्र, पवन मिल, कोयला/लिग्नाइट गैसीकरण संयंत्र और महत्वपूर्ण खनिज अन्वेषण की स्‍थापना करते हुए सक्रिय रूप से सीपीएसई के भीतर व्यापक विविधीकरण को बढ़ावा दे रहा है। कोयला मंत्रालय के इस मार्गदर्शन का लक्ष्य भविष्य में कोयला अधिशेष की आशा करते हुए सीआईएल और एनएलसीआईएल दोनों के लिए स्थायी संचालन को सुरक्षित करना है।

अक्षय - सौर और पवन ऊर्जा: सीआईएल, एनएलसीआईएल और एससीसीएल की संयुक्त सौर क्षमता लगभग 1700 मेगावाट है। इसके अतिरिक्‍त पवन चक्कियों की भी क्षमता 51 मेगावाट की है। कोयला क्षेत्र का लक्ष्य 2030 तक लगभग 9000 मेगावाट की कुल अक्षय ऊर्जा क्षमता हासिल करना है। कोयला कंपनियां छतों, फ्लोटिंग के साथ-साथ जमीन पर लगे सौर और पवन संयंत्रों के साथ-साथ पुनः प्राप्त खनन क्षेत्रों में सौर पार्क विकसित करने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।

अक्षय - पंप भंडारण ऊर्जा: कोयला मंत्रालय ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने के लिए उन कोयला खदानों में पंप भंडारण परियोजनाएं (पीएसपी) शुरू कर रहा है जिनमें से कोयला निकाला जा चुका है। इसका उद्देश्य कोयला क्षेत्र के टिकाऊ विकास को बढ़ावा देते हुए पनबिजली के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग करना है। कोयला रहित खदानों में निचले जलाशय, जल स्रोत और भूमि की उपलब्धता के कारण वहां पीएसपी शुरू करने के लिए अनुकूल माहौल होता है। सीआईएल और एनएलसीआईएल पंप भंडारण परियोजनाओं (पीएसपी) पर व्यवहार्यता अध्ययन कर रहे हैं। सीआईएल ने इसके लिए 24 कोयला रहित खदानों और अन्य स्थलों की पहचान की है। राज्य सरकारों, निजी कंपनियों और अनुसंधान संस्थानों के साथ सहयोग की योजनाओं के साथ, ईपीसी और पीपीपी जैसे व्यावसायिक मॉडल को अंतिम रूप देने के लिए हितधारक परामर्श जारी है।

अक्षय - भूतापीय ऊर्जा: कोयला मंत्रालय ने बिजली उत्पादन के लिए भूतापीय ऊर्जा का उपयोग करने के लिए एक अभूतपूर्व परियोजना शुरू की है। एससीसीएल कमान के मनुगुरु क्षेत्र में स्थित यह प्रायोगिक परियोजना क्लोज्ड-लूप बाइनरी ऑर्गेनिक रैंकिन साइकिल (ओआरसी) प्रक्रिया प्रौद्योगिकी पर आधारित है। इसका उद्देश्य भारत में पहली स्वदेशी 20 किलोवाट प्रायोगिक प्रदर्शन इकाई स्थापित करना है, जो ताप स्रोत के रूप में भू-तापीय तरल पदार्थ का उपयोग करती है। बिजली उत्पादन लागत का मानकीकरण और अनुकूलन करते हुए इस परियोजना से स्वच्छ, विश्वसनीय और कुशल बिजली का उत्पादन होगा। इस परियोजना का अंतिम लक्ष्य वाणिज्यिक व्यवहार्यता के लिए निर्बाध बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करना, प्रक्रिया को स्वदेशी बनाना, स्केलिंग के लिए एक मॉडल स्थापित करना और अवधारणा के प्रमाण के लिए बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) पंजीकृत करना है।

अक्षय - हरित हाइड्रोजन और अमोनिया: कोयला मंत्रालय ने हरित अमोनिया/हाइड्रोजन पर परियोजनाएं शुरू करने के लिए नवीन और अक्षय ऊर्जा मंत्रालय के साथ समझौता किया है। सीआईएल ने व्यवहार्यता अध्ययन के लिए अधिशेष भूखंड की पहचान की है।

कोयला गैसीकरण: भारत ने 2030 तक 100 मिलियन टन कोयले को गैसीकृत करने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकारी सार्वजनिक उपक्रमों और निजी क्षेत्र द्वारा कोयला/लिग्नाइट गैसीकरण परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिए 8500 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ एक वित्तीय सहायता योजना को मंजूरी दी गई है। इसका उद्देश्य गैसीकरण परियोजनाओं की वित्तीय और तकनीकी व्यवहार्यता को अधिक व्यापक रूप से प्रदर्शित करना, डाउनस्ट्रीम उत्पादों (ग्राहकों को उपयोग में लाने लायक तैयार माल) के लिए बाजारों में तेजी लाना और कोयले के लिए अर्थव्यवस्था में एक अतिरिक्त मूल्य श्रृंखला बनाना है। मंत्रालय का लक्ष्य कोयले के विविध और स्वच्छ उपयोग को बढ़ावा देना है, ताकि 'आत्मनिर्भर भारत' की ओर तेजी से बढ़ा जा सके और कोयला क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित हो सके।

सीआईएल और भेल ने सतही कोयला गैसीकरण (एससीजी) प्रौद्योगिकी मार्ग के जरिए अमोनियम नाइट्रेट संयंत्र स्थापित करने के लिए औपचारिक रूप से एक संयुक्त उद्यम समझौते (जेवीए) पर हस्ताक्षर किए। यह संयंत्र ओडिशा के महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड के लखनपुर क्षेत्र में स्थापित किया जाएगा। इसके अतिरिक्त, कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) और गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (गेल) के बीच एक संयुक्त उद्यम समझौता चल रहा है, जिससे भारत के ऊर्जा परिदृश्य को नया आकार मिलना संभव हो पाएगा। कॉर्पोरेट दिग्गजों के बीच तालमेल और साझेदारी राष्ट्रीय कोयला गैसीकरण मिशन की दिशा में एक बड़ा कदम है। इससे कोयले के रासायनिक गुणों के उपयोग की सुविधा मिलेगी। आगामी संयंत्र अंतिम उत्पादों की आयात निर्भरता को कम करके कच्चे माल को सुरक्षित करने में मदद करेंगे।

पिट-हेड टीपीपी: ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने के लिए बेहतर और कुशल सुपर क्रिटिकल टीपीपीएस के संचयी लाभों का दोहन करने के लिए पिट-हेड टीपीपी आगे एकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कुशल सुपर क्रिटिकल तकनीक और कोयला लॉजिस्टिक्स के लिए कम बोझ के साथ पिट-हेड में बिजली संयंत्र स्थापित करना अधिक लागत प्रभावी है। यह निर्णय तब लिया गया है जब भविष्य में कोयले के अधिशेष होने का अनुमान है और मंत्रालय का लक्ष्य नए टीपीपी की स्थापना के साथ सीआईएल और एनएलसीआईएल के संचालन में स्थिरता सुनिश्चित करना है।

एनएलसीआईएल ने तमिलनाडु को 1450 मेगावाट, पुदुचेरी को 100 मेगावाट और केरल को 400 मेगावाट बिजली की आपूर्ति करने के लिए ओडिशा के तालाबीरा में 3X800 मेगावाट पिट-हेड थर्मल पावर प्लांट बनाने की योजना तैयार की है। इस परियोजना के इस साल के अंत तक शुरू होने और 2028-29 तक पूरा होने की उम्मीद है।

कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) भी दो पिट-हेड थर्मल पावर प्लांट स्थापित करने की प्रक्रिया में है। इनमें से एक मध्य प्रदेश सरकार के साथ संयुक्त उद्यम के रूप में अमरकंटक के पास स्थित है। इस संयंत्र की नियोजित क्षमता 1X660 मेगावाट होगी। इस परियोजना को एसईसीएल और मध्य प्रदेश बिजली उत्पादन कंपनी लिमिटेड के बीच एक संयुक्त उद्यम के माध्यम से क्रियान्वित किया जाएगा। सीआईएल की एक अन्य सहायक कंपनी महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड (एमसीएल) ने पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी के रूप में महानदी बेसिन पावर लिमिटेड की स्थापना की है। एमसीएल ने अपनी बसुंधरा खनन क्षेत्र के पास 2X800 मेगावाट का थर्मल पावर प्लांट स्थापित करने की योजना बनाई है। इस पिटहेड संयंत्र में 4000 मेगावाट मूल्य के बिजली खरीद समझौतों (पीपीए) के लिए विभिन्न राज्यों से रुचि प्राप्त हुई। इन परियोजनाओं के वित्त वर्ष 2030 तक पूरा होने की संभावना है।

इसके अतिरिक्त, एनएलसीआईएल 3X660 मेगावाट बिजली पैदा करने के लिए कानपुर के पास घाटमपुर में टीपीपी को जल्द चालू करने वाला है। एनएलसीआईएल और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच संयुक्त उद्यम परियोजना के तहत उत्तर प्रदेश को 1478.28 मेगावाट और असम राज्य को 492.72 मेगावाट की आपूर्ति होगी। यह परियोजना कार्यान्वयन के अधीन है और इस संयंत्र के पहले चरण में इस साल के अंत तक बिजली उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है।

कोयला मंत्रालय ने सीआईएल की सभी सहायक कंपनियों को अक्षय ऊर्जा (सौर और पीएसपी), नए पिट-हेड टीपीपी, ग्रीन अमोनिया/हाइड्रोजन या कोयला गैसीकरण संयंत्र स्थापित करने के लिए उपयुक्त कोयला रहित भूमि खोजने की सलाह दी है।

महत्वपूर्ण खनिज: स्वच्छ ऊर्जा संसाधनों में वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण खनिज उत्पादन, विशेष रूप से लिथियम, कोबाल्ट, तांबा और दुर्लभ पृथ्वी तत्वों को बढ़ाने की आवश्यकता है। कोयला मंत्रालय घरेलू महत्वपूर्ण खनिज ब्लॉक की खोज और विकास के साथ-साथ इसे विदेशों से प्राप्त करने का इरादा रखता है। सीआईएल ने न्यू साउथ वेल्स (एनएसडब्ल्यू) कंपनियों के साथ दो गैर-प्रकटीकरण समझौतों (एनडीए) पर हस्ताक्षर किए हैं और ये समझौते होने के अपने उन्नत चरण में हैं। सीआईएल भी सक्रिय रूप से अर्जेंटीना आदि देशों पर ध्यान केंद्रित करते हुए विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण खनिजों का खनन करने की कोशिश कर रही है। कोयला मंत्रालय सीओपी28 में निर्धारित वैश्विक जीवाश्म ईंधन संक्रमण लक्ष्यों के साथ तालमेल बिठाते हुए भारत की अहम और रणनीतिक खनिज आपूर्ति को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण खनिजों पर विचार कर रहा है।

कोयला मंत्रालय टिकाऊ विकास को बढ़ावा देने और संसाधनों की दक्षता को अधिकतम करने के लिए प्रतिबद्ध है, जो कोयला क्षेत्र के कार्बन उत्सर्जन को कम करने में योगदान देगा। कोयल मंत्रालय संसाधनों का कुशल उपयोग सुनिश्चित करने और जनता को भरोसेमंद बिजली आपूर्ति प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह भारत के लिए एक स्थायी और मजबूत ऊर्जा भविष्य सुनिश्चित करने हेतु कोयला क्षेत्र में नवाचार और उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है।

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