रेल मंत्रालय
रेल में यात्री सुरक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए सरकार की ओर से उठाए गए कदम
Posted On:
07 FEB 2024 4:09PM by PIB Delhi
रेल में यात्री सुरक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए सरकार ने निम्नलिखित कदम उठाए हैं:
i) राष्ट्रीय रेल संरक्षण कोष (आरआरएसके) को महत्वपूर्ण सुरक्षा संपत्तियों के प्रतिस्थापन/नवीकरण/उन्नयन के लिए साल 2017-18 में पांच वर्षों के लिए 1 लाख करोड़ रुपये के कोष के साथ शुरू किया गया। साल 2017-18 से 2021-22 तक आरआरएसके कार्यों पर 1.08 लाख करोड़ रुपये का कुल व्यय हुआ है। साल 2022-23 में सरकार ने 45,000 करोड़ रुपये के सकल बजटीय सहायता (जीबीएस) के साथ आरआरएसके की धनराशि को पांच साल की अवधि के लिए बढ़ा दिया।
ii) मानवीय विफलता के कारण होने वाली दुर्घटना को समाप्त करने के लिए 31.12.2023 तक 6521 स्टेशनों पर पॉइन्ट और सिग्नल के केंद्रीकृत परिचालन के साथ इलेक्ट्रिकल/इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग प्रणाली प्रदान किए गए हैं।
iii) लेवल क्रॉसिंग (एलसी) गेटों पर सुरक्षा बढ़ाने के लिए 31.12.2023 तक 11143 लेवल क्रॉसिंग गेटों पर इसकी इंटरलॉकिंग प्रदान की गई है।
iv) 31.12.2023 तक 6558 स्टेशनों पर विद्युत साधनों की ओर से ट्रैक अधिभोग के सत्यापन के लिए सुरक्षा बढ़ाने को लेकर स्टेशनों की पूर्ण ट्रैक सर्किटिंग प्रदान की गई है।
v) सिग्नलिंग की सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर विस्तृत निर्देश जैसे कि अनिवार्य पत्राचार जांच, परिवर्तन कार्य प्रोटोकॉल, समापन ड्राइंग की तैयारी आदि जारी किए गए हैं।
vi) प्रोटोकॉल के अनुरूप एसएंडटी उपकरणों के लिए कनेक्शन काटने और उसे फिर से जोड़ने की प्रणाली पर जोर दिया गया है।
vii) लोको पायलटों की सतर्कता को सुनिश्चित करने के लिए उन्हें सभी लोकोमोटिव सतर्कता नियंत्रण उपकरण (वीसीडी) प्रदान किए गए हैं।
viii) खम्भे पर रेट्रो-रिफ्लेक्टिव सिग्मा बोर्ड लगाए गए हैं, जो विद्युतीकृत क्षेत्रों में सिग्नल से दो ओएचई खम्भे पर स्थित होते हैं, जिससे कोहरे के कारण दृश्यता कम होने पर चालक दल को आगे के सिग्नल के बारे में चेतावनी दी जा सके।
ix) कोहरे से प्रभावित क्षेत्रों में लोको पायलटों को जीपीएस आधारित एक फॉग सेफ्टी डिवाइस (एफएसडी) प्रदान किया जाता है, जो लोको पायलटों को सिग्नल, लेवल क्रॉसिंग गेट आदि जैसे निकटवर्ती स्थलों की दूरी जानने में सक्षम बनाता है।
x) प्राथमिक ट्रैक नवीनीकरण करते समय 60 किलोग्राम के आधुनिक ट्रैक संरचना, 90 अल्टीमेट टेन्साइल स्ट्रेंथ (यूटीएस) रेल, प्री-स्ट्रेस्ड कंक्रीट स्लीपर (पीएससी) इलास्टिक फास्टनिंग के साथ सामान्य/चौड़े बेस स्लीपर, पीएससी स्लीपर पर पंखे के आकार का लेआउट टर्नआउट, गर्डर पुलों पर स्टील चैनल/एच-बीम स्लीपर का उपयोग किया जाता है।
xi) मानवीय गलतियों को कम करने के लिए पीक्यूआरएस, टीआरटी, टी-28 आदि जैसी ट्रैक मशीनों के उपयोग के जरिए ट्रैक बिछाने की गतिविधि का मशीनीकरण किया गया है।
xii) पटरी नवीनीकरण की गति बढ़ाने और जोड़ों की वेल्डिंग से बचने के लिए 130 मीटर/260 मीटर लंबे पटरी पैनलों की अधिकतम आपूर्ति करना, जिससे सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
xiii) लंबी पटरियां बिछाना, एलुमिनो थर्मिक वेल्डिंग के उपयोग को कम करना और रेल के लिए बेहतर वेल्डिंग तकनीक यानी कि फ्लैश बट वेल्डिंग को अपनाना।
xiv) ओएमएस (ऑसिलेशन निगरानी प्रणाली) और टीआरसी (ट्रैक रिकॉर्डिंग कार) की ओर से ट्रैक ज्यामिति की निगरानी करना।
xv) वेल्ड/रेल फ्रैक्चर पर नजर रखने के लिए रेलवे पटरियों की गश्ती करना।
xvi) टर्नआउट नवीनीकरण कार्यों में थिक वेब स्विच और वेल्ड-सक्षम सीएमएस क्रॉसिंग का उपयोग।
xvii) सुरक्षित अभ्यासों के अनुपालन के लिए कर्मचारियों की नियमित अंतराल पर निगरानी की जाती है और उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है।
xviii) तर्कसंगत रखरखाव आवश्यकता तय करने और इनपुट को अनुकूलित करने के लिए ट्रैक परिसंपत्तियों की वेब आधारित ऑनलाइन निगरानी प्रणाली यानी ट्रैक डेटाबेस व निर्णय सहायता प्रणाली को अपनाया गया है।
xix) ट्रैक की सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर विस्तृत निर्देश जैसे एकीकृत ब्लॉक, कॉरिडोर ब्लॉक, कार्यस्थल सुरक्षा, मानसून संबंधी सावधानियां आदि जारी कर दी गई हैं।
xx) सुरक्षित ट्रेन परिचालन सुनिश्चित करने और पूरे देश में रेल दुर्घटनाओं पर नजर रखने के लिए रेलवे परिसंपत्तियों (कोच और वैगन) का निवारक रखरखाव किया जाता है।
xxi) पारंपरिक आईसीएफ डिजाइन कोचों को एलएचबी डिजाइन कोचों से बदलने का काम किया जा रहा है।
xxii) ब्रॉड गेज (बीजी) मार्ग पर सभी मानवरहित लेवल क्रॉसिंग (यूएमएलसी) को जनवरी 2019 तक समाप्त कर दिया गया है।
xxiii) नियमित निरीक्षण के माध्यम से रेलवे पुलों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है। इन निरीक्षणों के दौरान मूल्यांकन की गई स्थितियों के आधार पर पुलों की मरम्मत/बदलने की जरूरत पर विचार किया जाता है।
xxiv) भारतीय रेलवे ने सभी कोचों में यात्रियों की व्यापक जानकारी के लिए वैधानिक "फायर नोटिस" प्रदर्शित किया है। हर एक कोच में अग्नि पोस्टर लगाए गए हैं, जिससे यात्रियों को- आग से बचाव के लिए क्या करें और क्या न करें के बारे में सूचित और सचेत किया जा सके। इनमें कोई भी ज्वलनशील पदार्थ, विस्फोटक न ले जाना, कोच के अंदर धूम्रपान पर रोक, जुर्माना आदि से संबंधित संदेश शामिल हैं।
xxv) उत्पादन इकाइयां नवनिर्मित पावर कारों व पैंट्री कारों में आग का पता लगाने और दमन प्रणाली, नव निर्मित कोचों में आग व धुआं का पता लगाने की प्रणाली प्रदान कर रही हैं। जोनल रेलवे द्वारा चरणबद्ध तरीके से मौजूदा कोचों में इसे प्रगतिशील तरीके से फिट करने का काम भी किया जा रहा है।
xxvi) कर्मचारियों को नियमित परामर्श और प्रशिक्षण दिया जाता है।
xxvii) रोलिंग ब्लॉक की अवधारणा को राजपत्र अधिसूचना दिनांक 30.11.2023 के माध्यम से भारतीय रेलवे (ओपन लाइन्स) सामान्य नियमों में उल्लिखित किया गया है, जिसमें रखरखाव/मरम्मत/प्रतिस्थापन का कार्य रोलिंग आधार पर 52 सप्ताह पहले तक योजनाबद्ध किया जाता है और इसके अनुरूप कार्यान्वित किया जाता है।
1. कवच स्वदेशी रूप से विकसित स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (एटीपी) प्रणाली है। कवच एक अत्यधिक तकनीक गहन प्रणाली है, जिसके लिए उच्चतम स्तर के सुरक्षा प्रमाणीकरण की जरूरत होती है।
2. अगर लोको पायलट निर्दिष्ट गति सीमा के भीतर ट्रेन चलाने में विफल रहता है तो कवच स्वचालित ब्रेक लगाकर उसे ऐसा करने में सहायता करता है और खराब मौसम के दौरान ट्रेन को सुरक्षित रूप से चलाने में भी उसकी सहायता करता है।
3. यात्री ट्रेनों में कवच का पहला फील्ड परीक्षण फरवरी, 2016 में शुरू किया गया था। इससे प्राप्त अनुभव और तीसरे पक्ष (स्वतंत्र सुरक्षा मूल्यांकनकर्ता: आईएसए) द्वारा सिस्टम के स्वतंत्र सुरक्षा मूल्यांकन के आधार पर कवच की आपूर्ति के लिए साल 2018-19 में तीन कंपनियों को मंजूरी दी गई।
4. इसके बाद कवच को जुलाई, 2020 में राष्ट्रीय एटीपी प्रणाली के रूप में अपनाया गया।
5. कवच को अब तक दक्षिण मध्य रेलवे के 1465 रूट किलोमीटर पर और 139 लोकोमोटिव (इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट रेक सहित) पर लगाया गया है।
6. वर्तमान में कवच निविदाएं दिल्ली-मुंबई (अहमदाबाद-वडोदरा सेक्शन सहित) और दिल्ली-हावड़ा (लखनऊ-कानपुर सेक्शन सहित) गलियारे (लगभग 3000 रूट किलोमीटर) के लिए प्रदान की गई हैं। इन सेक्शनों का एक हिस्सा गुजरात (लगभग 534 रूट किलोमीटर) और उत्तर प्रदेश (लगभग 943 रूट किलोमीटर) से होकर गुजरता है। कवच से संबंधित प्रमुख कार्यों की प्रगति निम्नलिखित है:
(i) ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाना: 3040 किलोमीटर
(ii) लगाए गए दूरसंचार टावरों की संख्या: 269
(iii) 186 स्टेशनों पर उपकरणों को लगाया गया
(iv) 170 लोको में उपकरणों को लगाया गया
(v) 827 रूट किलोमीटर पर ट्रैक साइड उपकरणों को लगाना
7. भारतीय रेलवे ने सर्वेक्षण, विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) और अन्य 6000 रूट किलोमीटर पर विस्तृत अनुमान तैयार करने सहित प्रारंभिक कार्य भी शुरू कर दिए हैं और भारतीय रेल को कवच निरंतर उपलब्ध कराया जा रहा है।
8. कवच के कार्यान्वयन में हर एक स्टेशन पर स्टेशन कवच को लगाना, पूरे ट्रैक की लंबाई में आरएफआईडी टैग को लगाना व भारतीय रेल के हर एक लोकोमोटिव पर लोको कवच का प्रावधान, एक संचार आधार, पूरे सेक्शन में टावरों को लगाने की जरूरत और पूरे सेक्शन में ऑप्टिकल फाइबर बिछाना शामिल है। वर्तमान में तीन भारतीय ओईएम हैं, जिन्हें कवच के लिए मंजूरी दी गई है। कवच की क्षमता को संवर्द्धित करने और कार्यान्वयन को बढ़ाने के लिए अधिक ओईएम विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
9. कवच के स्टेशन उपकरण सहित ट्रैक साइड के प्रावधान की लागत लगभग 50 लाख रुपये प्रति किलोमीटर है और लोको पर कवच उपकरण लगाने की लागत लगभग 70 लाख रुपये प्रति लोको है।
यह जानकारी रेल, संचार और इलेक्ट्रॉनिक व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री श्री अश्विनी वैष्णव ने आज लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में दी।
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