पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
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वन विकास की सुरक्षा, संरक्षण और प्रबंधन में जनजातीय समुदायों की भागीदारी

प्रविष्टि तिथि: 18 DEC 2023 5:00PM by PIB Delhi

2011 की जनगणना के अनुसार, देश में लगभग 6,50,000 गाँव हैं, जिनमें से लगभग 1,70,000 गाँव वन क्षेत्रों के निकट स्थित हैं, जिन्हें अक्सर वन सीमांत गाँव कहा जाता है। भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा प्रकाशित भारत राज्य वन रिपोर्ट-2019 के अनुसार, लगभग 300 मिलियन लोग वनों पर निर्भर हैं।

भारत के संविधान की पांचवीं अनुसूची अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण के लिए विशेष प्रावधान प्रदान करती है।

राष्ट्रीय वन नीति, 1988 के अनुरूप, वन संरक्षण और वनों के प्रबंधन में स्थानीय समुदायों, मुख्य रूप से आदिवासी समुदायों को शामिल करते हुए, भागीदारी दृष्टिकोण के माध्यम से, संयुक्त वन प्रबंधन समितियों और ग्राम पारिस्थितिकी-विकास समितियों की स्थापना की गई है।

इसके अलावा अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 (एफआरए, 2006) वन में रहने वाले आदिवासी समुदायों और अन्य पारंपरिक वन निवासियों के वन संसाधनों के अधिकारों को मान्यता देता है, जिन पर ये समुदाय विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं, जिनमें आजीविका, निवास और अन्य सामाजिक-सांस्कृतिक आवश्यकताएँ शामिल हैं, के लिए निर्भर थे।

अधिनियम में स्व-खेती और निवास के अधिकार, सामुदायिक अधिकारों के साथ-साथ पारंपरिक प्रथागत अधिकारों की मान्यता और स्थायी उपयोग के लिए किसी भी सामुदायिक को वन संसाधन की सुरक्षा, पुनर्जनन या संरक्षण या प्रबंधन का अधिकार शामिल है।

यह जानकारी केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री श्री अश्विनी कुमार चौबे ने आज लोकसभा में एक लिखित उत्तर में दी।

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