पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
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भीषण मौसम की विभिन्न घटनाओं से निपटने के लिए योजना बनाने और उचित कार्रवाई करने के लिए राष्ट्रीय भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्रण (एनएलएसएम) कार्यक्रम के तहत पहाड़ी क्षेत्रों का जोखिम मानचित्रण

Posted On: 18 DEC 2023 4:57PM by PIB Delhi

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्ल्यूआईएचजी), देहरादून (विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार का एक स्वायत्त संस्थान) द्वारा प्रदान की गई जानकारी के अनुसार, उच्च से बहुत उच्च भूस्खलन संवेदनशील क्षेत्र हिमाचल प्रदेश के 25-30% क्षेत्र को कवर करते हैं। इसके अलावा, हिमाचल प्रदेश राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार, राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 32% भारत के भूकंपीय मानचित्र में बहुत उच्च क्षति जोखिम क्षेत्र (जोन-V) में आता है और शेष उच्च क्षति जोखिम क्षेत्र में आता है। बाढ़ के संबंध में, यह प्रकृति में अलग-थलग पाया गया है और मुख्य रूप से शिवालिक और निचले और मध्य हिमालयी क्षेत्र में उच्च मानसूनी बारिश के कारण होता है; जबकि किन्नौर, लाहौल और स्पीति, चंबा और कुल्लू जिलों की ऊंची पहाड़ियां विशेष रूप से हिमस्खलन के प्रति संवेदनशील हैं, जैसा कि हिमाचल प्रदेश राज्य सरकार द्वारा रिपोर्ट किया गया है।

वर्ष 2014-15 में शुरू किए गए राष्ट्रीय भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्रण (एनएलएसएम) कार्यक्रम के तहत, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई), खान मंत्रालय ने देश में 4.3 लाख वर्ग किमी भूस्खलन संभावित क्षेत्रों की भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्रण पूरा कर लिया है, जिसमें हिमाचल प्रदेश में लगभग 42,093 वर्ग कि.मी. शामिल हैं। भूस्खलन, अस्थिर ढलानों आदि के लिए उपयुक्त उपचारात्मक उपाय प्रदान करने के लिए, संबंधित हितधारकों के अनुरोधों के आधार पर जीएसआई द्वारा विस्तृत साइट-विशिष्ट भूस्खलन जांच नियमित रूप से की जाती है।

इसके अलावा, भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी), पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने एक वेब आधारित ऑनलाइन 'क्लाइमेट हैज़र्ड एंड वल्नरेबिलिटी एटलस ऑफ़ इंडिया' निकाला है। नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनआरएससी), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), विभाग अंतरिक्ष ने भारत के भूस्खलन एटलस (2023) के एक भाग के रूप में हिमाचल प्रदेश के विभिन्न जिलों कीभूस्खलन जोखिम एक्सपोजर रैंकिंगभी प्रकाशित की है। ये डेटाबेस विभिन्न चरम मौसम की घटनाओं से निपटने के लिए योजना बनाने और उचित कार्रवाई करने के लिए राष्ट्रीय और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों द्वारा उपयोग के लिए उपलब्ध कराए गए हैं।

यह जानकारी केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री श्री अश्विनी कुमार चौबे ने आज लोकसभा में एक लिखित उत्तर में दी।

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