विधि एवं न्‍याय मंत्रालय
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शीघ्र न्याय दिलाने के लिए फास्ट ट्रैक अदालतें

Posted On: 14 DEC 2023 8:07PM by PIB Delhi

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा पहली दिसंबर 2023 को जारी किये गए कारावास सांख्यिकी भारत-2022 के अनुसार, 31 दिसंबर 2022 तक देश में 4,34,302 कैदी विचाराधीन हैं।

14वें वित्त आयोग (एफसी) ने जघन्य प्रकृति के विशिष्ट मामलों, महिलाओं, बच्चों, वरिष्ठ नागरिकों, दिव्‍यांग व्यक्तियों, अन्त्य रोग से पीडि़त व्यक्तियों और लाइलाज बीमारियों से पीड़ित एवं संपत्ति संबंधित 5 वर्ष से अधिक समय से लंबित मामलों की शीघ्र सुनवाई के लिए 2015 से 2020 के दौरान 1800 फास्ट ट्रैक कोर्ट (एफटीसी) की स्थापना की सिफारिश की थी। एफसी ने राज्य सरकारों से इस उद्देश्य के लिए कर हस्तांतरण (32 प्रतिशत से 42 प्रतिशत) के माध्यम से उपलब्ध बढ़े हुए राजकोषीय वित्‍त का उपयोग करने का आग्रह किया था। केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से वित्तीय वर्ष 2015-16 से एफटीसी की स्थापना के लिए धन आवंटित करने का भी आग्रह किया है। उच्च न्यायालयों द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार, 31 अक्‍टूबर, 2023 तक देश में 848 एफटीसी कार्यरत हैं। एफटीसी के अलावा, आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018 के अनुसरण में, भारत सरकार ने केंद्र प्रायोजित योजना के अंतर्गत बलात्कार और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉस्‍को) अधिनियम, 2012 से संबंधित मामलों की शीघ्र सुनवाई और निपटान के लिए विशेष पॉस्‍को अदालतों सहित फास्ट ट्रैक विशेष अदालतों (एफटीएससी) की स्थापना के लिए अगस्त, 2019 में एक योजना को अंतिम रूप दिया। विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर, 2023 तक, 412 विशिष्ट पॉस्‍को सहित 758 एफटीएससी (ई-पॉस्‍को) अदालतें देश भर के 30 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में संचालित हैं, जिन्होंने 2,00,000 से अधिक मामलों का निपटारा किया है। वर्तमान में, विचाराधीन कैदियों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।

विचाराधीन कैदियों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने के संबंध में न्याय विभाग में कोई अलग से सुझाव/प्रस्ताव प्राप्त नहीं हुआ है। हालांकि, केंद्र सरकार ने बजट 2023-24 की प्रस्तुति के दौरान बजट घोषणा के तहत प्रत्येक वर्ष 20 करोड़ रुपये के बजट प्रावधान के साथ राज्य सरकारों के माध्यम से 'निर्धन कैदियों को जुर्माना भरने और छूट प्राप्त करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने की योजना' तैयार की है।

भारत सरकार ने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में धारा 436-ए को जोड़ा है, जिसके तहत किसी भी कानून के अंतर्गत अपराध के लिए निर्धारित कारावास की अधिकतम अवधि की आधी अवधि की सजा काटने के बाद एक विचाराधीन कैदी को जमानत पर रिहा करने का प्रावधान है। सीआरपीसी में "अध्याय-XXIA" को जोड़ते हुए "प्ली बार्गेनिंग" की अवधारणा भी प्रस्‍तुत की गई, जो प्रतिवादी और अभियोजन पक्ष के बीच मुकदते से पहले वार्ता की सुविधा प्रदान करती है।

"इंटर-ऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम" के साथ एकीकृत एक "कारावास प्रबंधन एप्लिकेशन" (ई-प्रिज़न सॉफ्टवेयर) पेश किया गया है जो राज्य के कारावास अधिकारियों को कैदियों के डेटा को संरक्षित रखने के साथ-साथ शीघ्र और कुशल तरीके से उन कैदियों की पहचान करने की सुविधा प्रदान करता है। यह "अंडरट्रायल कैदी समीक्षा समिति (यूटीआरसी)" द्वारा विचार के लिए लंबित मामलों की पहचान करने में भी मदद करता है। सभी जिलों में यूटीआरसी की स्थापना की गई है जो त्रैमासिक बैठकें आयोजित करती हैं। 1 अप्रैल 2020 से 30 जून, 2023 की अवधि के दौरान, राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) ने राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (एसएलएसए) और जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) के माध्यम से 32,612 यूटीआरसी बैठकों का आयोजन किया है, जिसके बाद 74,630 कैदियों को रिहा किया गया।

एसएलएसए ने कारावासों में कानूनी सेवा क्लिनिक भी स्थापित किए हैं, जो जरूरतमंद व्यक्तियों को नि:शुल्‍क कानूनी सहायता प्रदान करते हैं। इन कानूनी सेवा क्लीनिकों का प्रबंधन सूचीबद्ध कानूनी सेवा अधिवक्ताओं और प्रशिक्षित पैरा-कानूनी स्वयंसेवकों द्वारा किया जाता है। कारावासों में ऐसे क्लीनिक स्थापित किए गए हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी कैदियों को उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए अधिवक्ताओं तक पहुंच प्राप्त हो और उन्हें कानूनी सहायता तथा सलाह प्रदान की जा सके। एनएएलएसए नि:शुल्‍क कानूनी सहायता की उपलब्धता, दलील वार्ता, लोक अदालतों और जमानत के अधिकार सहित कैदियों के कानूनी अधिकारों के बारे में जागरूकता जगाने के लिए कारावासों में जागरूकता शिविर भी आयोजित करता है।

केन्द्रीय कानून एवं न्याय तथा संस्कृति एवम् संसदीय कार्य राज्‍य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री अर्जुन राम मेघवाल ने यह जानकारी आज राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में दी।

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