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54वें इफ्फी में डॉक्यू-मोंटाज श्रेणी के अंतर्गत मैक्सिकन फिल्म 'लुटो' का विश्व प्रीमियर


दु:ख से निपटने के तरीकों की पड़ताल करती है 'लुटो': निर्देशक एंड्रेस अरोची

गोवा में 54वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) में आज मैक्सिकन फिल्म 'लुटो' की टीम ने मीडिया के साथ खुले दिल से बातचीत की। 'लुटो' का कल 54वें इफ्फी में डॉक्यू-मोंटाज श्रेणी के अंतर्गत विश्व प्रीमियर हुआ। वार्ताकारों के पैनल में निर्देशक एंड्रेस अरोची टीनाजेरो, निर्माता सैंटियागो ट्रॉन, अभिनेत्री डेनिएला वाल्डेज़ और अभिनेता रोड्रिगो अज़ुएला शामिल थे।

110 मिनट लंबी यह स्पेनिश फिल्म दुःख की गहन पड़ताल करते हुए मैक्सिकन परिदृश्य के माध्यम से यह दर्शाती है कि सभी विश्वासों, वर्गों और धर्मों के लोग दुःख की विभिन्न अवस्‍थाओं का किस प्रकार अनुभव करते और उनसे गुजरते हैं।

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निर्देशक ने इस फिल्म के पीछे की प्रेरणा को साझा करते हुए बताया कि वह अपनी सभी कमजोरियों के साथ दिल से एक फिल्म बनाना चाहते थे। एंड्रेस ने कहा, मैं लोगों के मरने से कभी नहीं डरा, लेकिन मैं हमेशा अपने लोगों के मरने से होने वाले दुःख से गुज़रने से डरता रहा हूं और मेरे लिए यह फिल्म दु:ख से निपटने के तरीको की पड़ताल करने के बारे में है।

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रोड्रिगो ने इस बात पर जोर दिया कि दुःख से निपटना बहुत कठिन होता है। अभिनेता ने कहा, यह गरिमा और सराहना के साथ दुख को झेलने से संबंधित है। दुःख वह कीमत है, जो आप प्यार के लिए चुकाते हैं और प्यार बिल्कुल इसके लायक है।

निर्देशक ने दुख से निपटने के अनुष्‍ठानों की भूमिका को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा, चाहे मोमबत्ती जलाना हो, अपने गृहनगर का दौरा करना हो, प्रार्थना करना हो या अपना पसंदीदा खाना पकाना हो, जो महत्वपूर्ण हो। हर कोई दिल ही दिल में जानता है कि उसे क्या करना है और ऐसा करने के लिए उसे अपने डर का सामना करना होगा। और यही दुःख की शक्ति है, हर उस चीज़ से निपटना, जिसे कभी छुआ नहीं गया है ।

डेनिएला ने अपने निजी अनुभव साझा करते हुए कहा, मैं खुद को भावुक होने, उदास होने और खालीपन महसूस करने देती हूं। यह कठिन है, लेकिन टीम मुझे अपनी ऊर्जा वापस बटोरने में मदद करती है।

किसी की मौत से उपजे दुख के बारे में चर्चा करते हुए निर्माता सैंटियागो ने पूरे मेक्सिको में मनाए जाने वाले 'डे ऑफ द डेड' का उल्लेख किया। 'डे ऑफ द डेड' परिवार के पुनर्मिलन की एक मैक्सिकन परंपरा है जहां दिवंगत पूर्वज सम्मानित अतिथि होते हैं। यह अपने दिवंगत प्रियजनों को याद करने और उनकी स्मृतियों को ताजा करने का दिन होता है।

एंड्रेस ने इस बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए कहा, देश के हर हिस्‍से में इस दिन को बहुत अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। इस खूबसूरत दिन का एक बड़ा हिस्सा माया संस्कृति और स्पेनिश कैथोलिक धर्म का क्रॉसओवर है। माया संस्कृति में मृत्यु के बाद भी जीवन है और मेक्सिको में ये दोनों तत्व मौजूद हैं। हर साल आप दिवंगत लोगों को याद करते हैं और आपको उनकी कितनी याद सताती है।

फिल्मांकन के लिए पूरे मेक्सिको की यात्रा करने के अपने अनुभवों के बारे में निर्देशक ने कहा कि अजनबियों का स्वागत करने और एक-दूसरे के साथ खुलकर अपने अनुभव साझा करने के संबंध में भारत और मेक्सिको दोनों के लोगों में बहुत समानता है।

पूरी बातचीत यहां देखें:

फिल्म का सारांश

डेमियन अपनी प्रेमिका के निधन के दुःख से उबरने की हताश कोशिश करते हुए पूरे मेक्सिको की यात्रा पर निकल पड़ता है। यादों और पछतावों से परेशान होकर उसे अजनबियों के साथ बातचीत करने, मृत्यु के दुख से उबरने के लिए उनके द्वारा किए जाने वाले अनुष्ठानों देखकर उसे सांत्वना मिलती है।

54वें इफ्फी में डॉक्यू-मोंटाज खंड

डॉक्यू-मॉन्टेज खंड में दुनिया भर की मनमोहक डॉक्‍यूमेंटरीज का मिश्रण शामिल है और इस क्षेत्र में भारत की ऑस्कर प्रविष्टि को चिह्नित करने के लिए इस वर्ष इसकी शुरुआत की गई है। यह वर्तमान में फिल्म निर्माण में डॉक्‍यूमेंटरीज के बढ़ते महत्व को भी उजागर करता है। 54वें इफ्फी में इस श्रेणी के तहत स्क्रीनिंग के लिए दस फिल्मों का चयन किया गया है।

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