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फिल्म 'गुलमोहर' तीन पीढ़ियों में परिवार और घर के प्रयोजन की पड़ताल करती है: निर्देशक राहुल वी. चित्तेला


रंगमंच अभिनेता का माध्यम है जबकि फिल्म निर्देशक का: मनोज बाजपेयी

'सिर्फ एक बंदा काफी है' नाबालिगों की सुरक्षा पर बनी फिल्म है: निर्देशक अपूर्व सिंह कार्की

Posted On: 25 NOV 2023 3:05PM by PIB Delhi

54वें भारत अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव, गोवा में 'इंडियन पैनोरमा' श्रेणी में राहुल वी. चित्तेला द्वारा लिखित और निर्देशित हिंदी फिल्म गुलमोहर को प्रदर्शित किया गया। यह फिल्म बत्रा परिवार के विभिन्न सदस्यों की व्यक्तिगत कहानियों को जोड़ते हुए परिवार और घर के प्रयोजन की पड़ताल करती है।

पीआईबी द्वारा आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में मीडिया और प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करते हुए फिल्म गुलमोहर के मुख्य अभिनेता मनोज बायपेयी ने कहा कि सेट पर निर्देशक द्वारा बनाया गया पारिवारिक माहौल 'परिवार' पर दिल को छू लेने वाली फिल्म की शूटिंग के लिए एक कार्यशाला के रूप में काम आया। उन्होंने कहा कि परिवार और उसकी भावना शूटिंग से कहीं आगे तक फैली हुई है। हम कैमरे के सामने पिता, पुत्र, पुत्री, मां का किरदार निभा रहे थे। शूटिंग के बाद, हम एक परिवार के रूप में एक साथ मिलते, बातें करते, हंसते और खाना खाते थे। इस माहौल ने सभी युवा अभिनेताओं को भूमिका में बने रहने और चरित्र के बारे में सभी बारीकियों को समझने में मदद की है। फिल्म में परिवार, उसके सदस्यों और उनके पारस्परिक संबंधों को दर्शाया गया है। उन्होंने कहा कि ऐसे माहौल के बिना यह सफलता हासिल नहीं की जा सकती थी।

थिएटर से फिल्मों में आने के सवाल का जवाब देते हुए मनोज बाजपेयी ने कहा कि वह हमेशा खुद को सबसे पहले एक थिएटर एक्टर मानते हैं। उन्होंने याद करते हुए बताया कि वह बैंडिट क्वीन के निर्देशक शेखर कपूर ही थे, जिन्होंने थिएटर कलाकारों को भविष्य की आर्थिक मजबूरियों के संबंध में आने वाली कठिनाइयों को रेखांकित करते हुए उन्हें फिल्मों में आने के लिए प्रोत्साहित किया था। श्री बाजपेयी ने यह कहते हुए थिएटर के महत्व पर जोर दिया कि थिएटर अभिनेता का माध्यम है जबकि फिल्म निर्देशक का माध्यम है। जब मैं किसी फिल्म का हिस्सा होता हूं तो अपने प्रदर्शन का श्रेय लेना मेरे लिए बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि मैं गहराई से जानता हूं कि फिल्में पूरी तरह से निर्देशक के दृष्टिकोण से प्रेरित होती हैं।

पारिवारिक फिल्म गुलमोहर के बारे में अपने विचार साझा करते हुए इसके निर्देशक राहुल वी. चित्तेला ने कहा कि परिवार और घर के प्रयोजन और परिभाषा समय के साथ बदलती है और उम्र बढ़ने के साथ यह भी बदलेगी, लेकिन परिवार और घर केवल यही दो चीजें हैं जो हमेशा मायने रखती हैं। उन्होंने बताया कि इस फिल्म तीन पीढ़ियों के बीच परिवार और घर के प्रयोजन को दिखाया गया है। फिल्म के गुलमोहर नाम पर मीडिया को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि गुलमोहर नाम एक काव्यात्मक शब्द है और यह मुझे गुलज़ार के बेहद दिलचस्प गीतों की याद दिलाता है। गुलमोहर एक ऐसा फूल है जो बहुत जल्दी खिलता है और बिखर जाता है और इसकी छवि उस कहानी के अनुकूल है जो मैं बताने की कोशिश कर रहा हूं। फिल्म में दिल्ली का सेट है और दिल्ली फिल्म के एक किरदार की तरह है।

फिल्म गुलमोहर के कलाकारों में से एक सैंथी बालचंद्रन ने कहा कि मनोज बाजपेयी, शर्मिला टैगोर, सिमरन और अमोल पालेकर जैसे दिग्गजों के साथ हिंदी फिल्म में प्रवेश करना एक सपने जैसा है। मलयालम और हिंदी फिल्मों के बीच अंतर बताते हुए संथी बालाचंद्रन ने कहा कि मलयालम फिल्म उद्योग के उलट हिंदी सिनेमा को कॉर्पोरेट स्वरूप मिला हुआ है। लेकिन, फिल्म गुलमोहर के सेट पर गर्मजोशी और पारिवारिक माहौल के कारण मुझे कॉर्पोरेट जैसा माहौल महसूस नहीं हुआ।

फिल्म सिर्फ एक बंदा काफी है के निर्देशक अपूर्व सिंह कार्की भी बातचीत में शामिल हुए। इस फिल्म में मनोज बाजपेयी मुख्य भूमिका में हैं। सच्ची घटनाओं से प्रेरित, ‘सिर्फ एक बंदा काफी हैएक सत्र अदालत के वकील पी. सी. सोलंकी की पांच साल की लंबी लड़ाई की कहानी है जो राजनीतिक रसूख वाले उस प्रभावशाली और शक्तिशाली धर्मगुरु के खिलाफ अकेले सच्चाई के लिए खड़े हुए जिसने एक नाबालिग लड़की पर हमला किया था। यह फिल्म नाबालिगों की सुरक्षा के प्रासंगिक विषय से संबंधित है। यह हम सभी से जुड़ा है। फिल्म में मनोज बाजपेयी ने वकील का किरदार निभाया है और एक नाबालिग लड़की को न्याय दिलाने के लिए सिस्टम से लड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि असली योद्धा या फिल्म में पहली 'बंदा' वह बच्ची है जिसने अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई।

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