उप राष्ट्रपति सचिवालय

राष्ट्रीय प्रेस दिवस, 2023 के उद्घाटन समारोह में उपराष्ट्रपति के संबोधन का पाठ

Posted On: 16 NOV 2023 6:15PM by PIB Delhi

आप सभी को शुभ दोपहर,

माननीय सूचना एवं प्रसारण और युवा मामले एवं खेल मंत्री श्री अनुराग सिंह ठाकुर,

माननीय सूचना एवं प्रसारण और मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी राज्य मंत्री डॉ. एल. मुरुगन

अध्यक्ष, भारतीय प्रेस परिषद की अध्यक्ष श्रीमती न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई,

जी -20 के शेरपा श्री अमिताभ कांत

भारतीय प्रेस परिषद के सचिव श्री नुंगसांगलेम्बा आओ

देवियो और सज्जनों,

राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर यहां आमन्त्रण के लिए आभारी हूं, यह दिन प्रेस की स्वतंत्रता और हमारे लोकतंत्र में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लास मनाने के लिए समर्पित है।
आज के ही दिन 1966 में, भारतीय प्रेस परिषद ने यह सुनिश्चित करने के लिए एक नैतिक प्रहरी के रूप में कार्य करना शुरू किया कि प्रेस इस शक्तिशाली माध्यम से अपेक्षित उच्च मानकों को बनाए रखे और यह भी सुनिश्चित करे कि यह किसी बाहरी कारकों के प्रभाव या खतरों से बाधित न हो।

यह मीडिया का नैतिक कर्तव्य है कि वह सच बताए और सच के अलावा कुछ भी नहीं।

वास्तव में , मीडिया से जुड़े हर व्यक्ति, चाहे वह पत्रकार हों अथवा समाचारपत्रों व संचार के अन्य माध्यमों के स्वामी हों, का यह उत्तरदायित्व है कि वे सच्चाई के साथ रहें,

विश्वसनीय और भरोसेमंद होना उनके हित में ही है। अब समय आ गया है कि मीडिया को यह अनुभूति हो जाए हो कि उनके दर्शक उनसे दूर हो रहे हैं।

दीवार पर लिखी हुई बातें सभी संबंधित लोगों के लिए स्पष्ट होनी चाहिए कि असत्य समाचार , जानबूझकर दी गई गलत और शरारती जानकारी, राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं और प्राथमिकताएं, सत्ता के दलालों की भूमिका निभाने की प्रवृत्ति और मौद्रिक विचारों ने मीडिया में लोगों का विश्वास कम कर दिया है। वस्तुतः , " असत्य समाचार (फेक न्यूज)" शब्द इतने जोर-शोर से पहले कभी नहीं सुना गया, जितना इन दिनों सुना जा रहा है।

आज मीडिया के सामने विश्वसनीयता सबसे बड़ी चुनौती है और मैं इसे अस्तित्वगत चुनौती के रूप में देख रहा हूं। यह आश्चर्य की बात है कि कुछ क्षेत्रों में इस पहलू की अब भी अनदेखी की जा रही है।

मैं यह कहना चाहता हूँ कि पिछले कई वर्षों से प्रेस के साथ ही संपूर्ण पत्रकारिता का परिदृश्य विकसित और विस्तारित हुआ है। और यह विस्तार ज्यामितीय है I

आज हमारे पास प्रिंट मीडिया के साथ-साथ डिजिटल मीडिया, टेलीविजन मीडिया और सोशल मीडिया भी है।

मीडिया बिरादरी असंख्य तकनीकी और सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों को अपनाने और पारिस्थितिकी तंत्र में इन परिवर्तनों के कारण आने वाली कई चुनौतियों से  निपटने में सक्षम रही है।
हाल की तकनीकी प्रगति और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और चैट-जीपीटी जैसे नवाचारों ने हमारे सामने अवसरों के साथ-साथ अद्वितीय चुनौतियाँ भी प्रस्तुत कर दी हैं I
इस वर्ष का विषय सामयिक और आवश्यक दोनों है: " कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के युग में मीडिया" सामयिक होने के साथ ही आवश्यक भी है।

ऐसे विश्व में जहां सूचना और संचार तेजी से बदल रहे हैं, हमारे लिए मीडिया परिदृश्य पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता के गहरे प्रभाव को समझना महत्वपूर्ण है।

मीडिया हमेशा हमारे लोकतंत्र की वह आधारशिला रहा है जो चौथे स्तंभ, सत्य और जवाबदेही के संरक्षक के रूप में कार्य करता है।

यह सूचना का प्रतीक, बेजुबानों के स्वर और सत्ता में बैठे लोगों का निगरानीकर्ता रहा है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता के आगमन ने हमारे समाचार, सूचना और मनोरंजन प्राप्त करने और उपभोग करने के तरीके को बदल ही दिया है। एआई अब हमारे दैनिक जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है।

एआई-संचालित एल्गोरिदम अब प्रत्येक व्यक्ति के लिए ऐसी वैयक्तिकृत सामग्री तैयार करते हैं, जिससे लोगों के लिए अपनी  इच्छित जानकारी तक पहुंच सरल हो जाती है।

एआई में समाचार सृजन की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने, अपनी बात कहने की क्षमता बढ़ाने के साथ ही व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के अनुसार उस सामग्री को वैयक्तिकृत करने की क्षमता है। यह एक दोधारी शस्त्र भी हैI

हालाँकि, यह चुनौतियों और नैतिक प्रश्नों का अपना ही प्रारूप लेकर भी आता है,जिसमें परमाणु गति से गलत सूचना के प्रसार, डीप फेक, इको चैंबर के निर्माण एवं लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करने के साथ ही समाज में अराजकता और अस्थिरता पैदा करने के लिए सूचना के सूक्ष्म लक्ष्यीकरण शामिल हैं ।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में एक अनियंत्रित घोड़े के रूप में रोजगार की स्थिति को नाटकीय रूप से बदलने की क्षमता भी है। ऐसे एआई प्रस्तोता (एंकर) और भाषा मॉडल का का परिदृश्य में आना जो कई स्रोतों से जानकारी जुटाने और उसे एकत्र करने के बाद मीडिया रिपोर्ट लिखने में सक्षम हैं, अब सैकड़ों और हजारों लोगों की नौकरियों के साथ ही रोजगार के अवसरों को भी संकट में डाल रहे हैं।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में अनियंत्रित घोड़े के रूप में रोजगार टिप्पणी को नाटकीय रूप से बदलने की क्षमता भी है। एआई एंकर और भाषा मॉडल का परिचय जो कई स्रोतों से जानकारी एकत्र करने और एकत्र करने के बाद मीडिया रिपोर्ट लिखने में सक्षम हैं, सैकड़ों और हजारों लोगों की नौकरियों को खतरे में डाल रहे हैं।
इन चुनौतियों का सामना करते हुए, पत्रकारों और मीडिया विशेषज्ञों के उत्तरदायित्व भी बढ़ गए हैं और जिसके लिए सत्य, सटीकता और जवाबदेही के सिद्धांतों के प्रति और भी अधिक प्रतिबद्ध होने की आवश्यकता है।

किसी भी सूचना को प्रसारित करने से पहले मीडिया संगठनों और मीडिया क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों को दोगुना सावधान और सतर्क रहना चाहिए। आज जमीनी सच्चाई वास्तव में गम्भीर और चिंताजनक है। अपूरर्णीय क्षति होने के बहुत बाद जाँच की जाती है।

मुझे लगता है कि संपादकों की भूमिका अब और भी अधिक चुनौतीपूर्ण और आवश्यक हो गई है, क्योंकि उन्हें अब एक द्वारपाल के रूप में कार्य करना होगा और किसी भी भ्रामक और छेड़छाड़ करने के बाद दी गई जानकारी को सूचना के समुद्र को विषाक्त बनाने से पहले ही हटाना होगा। आपको यह देखने के लिए वास्तविकता की जांच (रियलिटी चेक) में शामिल होना होगा कि ऐसा किया गया है या नहीं। मैं वर्तमान स्थिति का आकलन आपके विवेक पर छोड़ता हूं।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) में हानि पहुँचाने की क्षमता होने के बाद भी हमें यह स्वीकार करना होगा कि इस तकनीक का अब यहाँ उपयोग होगा ही । यह एक ऐसी तकनीक है जिसके नियमन को लेकर प्रौद्योगिकी जगत में ऊपर से चिंताएं उठती रही हैं, लेकिन एक बात तो निश्चित है कि यह अब हमारे साथ ही रहेगी. और हमें इसे अनुकूलित और विनियमित करने के साथ ही इसका समाधान भी निकालना पड़ेगा ।

हमें अब बदलते परिदृश्य के अनुरूप ढलने के साथ ही अपनी क्षमताओं को बेहतर बनाने के लिए एआई की परिवर्तनकारी क्षमता को एक उपकरण के रूप में प्रयोग में लाना होगा, और साथ ही इसके दुरुपयोग से भी बचाव करना होगा।

वास्तविक समय रिपोर्टिंग के माध्यम से जनता को विश्वसनीय, निष्पक्ष और तथ्य-आधारित जानकारी प्रदान करना अब भी हमारी जिम्मेदारी बनी हुई है I
मैं एआई के युग में उत्तरदायित्वपूर्ण और नैतिक पत्रकारिता की आवश्यकता पर जोर देना चाहूंगा। जहां एक और भारत की विशाल विविधता विभिन्न दृष्टिकोणों से बचने का आदेश देती है, वहीं रचनात्मक पत्रकारिता को सामाजिक मेलजोल पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। ऐसा समय भी आता हैं जब मीडिया सकारात्मक निभाने के साथ ही सुखदायक भी हो सकता है। परन्तु ऐसे अवसरों पर मीडिया अक्सर चूक जाता है और दर्दनाक, घातक सनसनीखेज़ समाचारों को आगे बढाने में लग जाता है।

यह सर्वोपरि है कि पत्रकार और मीडिया संस्थान सत्यनिष्ठा के उच्चतम मानकों को बनाए रखें। मैं इसे किसी जानकार दर्शक वर्ग तक नहीं ले जाना चाहता। हमारे पास ऐसे टेप हैं जो बताते हैं कि यह व्यवस्था किस सीमा तक सबसे अनैतिक प्रथाओं से भरी हुई थी ।

तथ्य- की जांच (फैक्ट चेक), स्रोत का सत्यापन और संपादकीय स्वतंत्रता बनाए रखना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। यदि तेलंगाना का कोई अखबार यह प्रकाशित कर सकता है कि उपराष्ट्रपति (वीपी) के ट्विटर हैंडल पर संसदीय समिति का भ्रामक चित्र लगा है, तो यह समाचार 100 प्रतिशत गलत है। इस पर फैक्ट चेकिंग कहां है? कोई इस देश के दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक कार्यालय को अपमानित करने की सीमा तक कैसे जा सकता है और फिर केवल क्षमा मांगने के लिए मेरे कक्ष में पहुंच जाएं? इसे हल्के में नहीं ले सकते हैं और इसके लिए उन पर यथोचित कारवाई भी आवश्यक हैं।


हमें एआई को उन मूल्यों से समझौता करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए जो किसी स्वतंत्र और जीवंत प्रेस की नींव हैं।

यह आवश्यक है कि हम एक स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया का वातावरण बनाए रखें। चौथा स्तंभ सरकार के प्रहरी के रूप में कार्य करके, सत्ता में बैठे लोगों को उत्तरदायी बनाकर और नागरिकों को सूचित निर्णय लेने के लिए आवश्यक जानकारी प्रदान करके लोकतांत्रिक समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पर हम अक्सर यह देखते हैं वह यह है कि वे सत्ता में हितधारक बनने के साथ ही , राजनीतिक दिशात्मक दृष्टिकोण, प्रमुख प्रभावशाली व्यक्तियों के रूप में सामने आने वाले हितधारक बन गए हैं। यदि वे ऐसे किसी पेशे में रहना चाहते हैं तो यह उनके करने के लिए आखिरी काम होना चाहिए।

एआई के युग में, मीडिया संगठनों को पत्रकारिता नैतिकता, निष्पक्ष रिपोर्टिंग और तथ्यों को जानने के जनता के अधिकार के प्रति अटूट समर्पण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता में एकजुट होना चाहिए।

भारत की प्रगति इस प्रकार पहले कभी नहीं हुई । भारत के विकास से पूरी दुनिया स्तब्ध है। तकनीकी की पहुंच अब अंतिम व्यक्ति तक और सुदूर गांवों तक है। मीडिया को चिंतन करने, पुनर्विचार करने, आत्मावलोकन करने और नैतिकता तथा उच्च स्तर की व्यावसायिकता का साथी बनने की जरूरत है।

मैं इस अवसर का उपयोग प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा के महत्व पर जोर देना चाहूंगा। एक स्वतंत्र मीडिया किसी भी जीवंत लोकतंत्र की आधारशिला है।

 

विश्व का कोई भी देश गांव से लेकर राज्य और केंद्र तक संवैधानिक रूप से पवित्र इस तरह की लोकतांत्रिक संस्थाएं होने का दावा नहीं कर सकता।

यह सरकार, नागरिक समाज और मीडिया संगठनों का कर्तव्य है कि वे इस मौलिक लोकतांत्रिक स्तंभ को संरक्षित और मजबूत करने में सहयोग करें। केवल ऐसे वातावरण में ही मीडिया पुष्प-पल्लवित सकता है और बड़े पैमाने पर जनता की सेवा कर सकता है। लेकिन यदि पर्यावरण को मुक्त रखने के लिए जिन लोगों की आवश्यकता है, वे ही प्रदूषक बन जाएं, तो यह स्थिति वास्तव में बहुत चिंताजनक है और भारत से प्रेम करने वाले प्रत्येक नागरिक के लिए गहरी चिंता का विषय है।

राष्ट्रीय प्रेस दिवस मनाते समय हमें उन अनगिनत पत्रकारों को भी याद करना चाहिए जिन्होंने अक्सर बड़े व्यक्तिगत जोखिम पर भी सच्चाई की रिपोर्टिंग के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है। मैं उन पत्रकारों को बधाई देता हूं जिन्होंने कोविड के दौरान बहुत अच्छा काम किया है। जमीनी स्तर पर पत्रकार उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहे हैं, समस्या केवल एक स्तर पर है जहां कुछ को प्रतिष्ठित श्रेणी का मान लिया गया है और वे नैतिकता, व्यावसायिकता की रूपरेखा, उचित परिश्रम में संलग्न होना और उन्हें दी गई साख पर पनपना सभी कुछ भूल चुके हैं। ये मानदंड चौंकाने वाले हैं और बेहद चिंता का विषय हैं।

पश्चिम बंगाल राज्य के राज्यपाल के रूप में, मैंने एक वरिष्ठ पत्रकार को ट्विटर पर यह कहते हुए सुना कि मैं हर दिन पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री को बुला रहा हूं। मेरा ट्विटर अकाउंट सार्वजनिक डोमेन में है। इसका एक भी उदाहरण नहीं है। कोई पत्रकार उस सीमा तक जाने का साहस कैसे कर सकता है? हम सार्वजनिक जीवन में पत्रकार के खिलाफ दमनकारी तंत्र का सहारा नहीं लेते और ऐसे पटरी से उतरे दिमागों की देखभाल के लिए प्रेस परिषद और प्रेस एसोसिएशन जैसी संस्थाओं की बुद्धिमत्ता में ही विश्वास करते हैं। किसी को इसके बारे में जांच करनी चाहिए।
मैं ऐसा व्यक्ति हूं जो उन पत्रकारों के साहस और दृढ़ विश्वास का सम्मान करूंगा जो उचित परिश्रम करते हुए सच्चाई की जांच करते हैं और इसे सार्वजनिक डोमेन में रखते हैं। हमें अपने ऐसे युवा पेशेवरों की सहायता करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए जिनका जुनून पत्रकारिता है और जिनका मिशन सच्चाई है I साथ ही वे कठिन जमीनी वास्तविकताओं और सच्चाई की ओर सभी संबंधित लोगों का ध्यान आकर्षित करके लोक कल्याण में सब कुछ निष्पादित करना चाहते हैं।

जब हम इस राष्ट्रीय प्रेस दिवस को "आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में मीडिया" विषय के साथ आयोजित कर रहे हैं तब मैं एक स्वतंत्र और जिम्मेदार प्रेस के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करना चाहता हूं।

मैं कभी-कभी चकित हो जाता हूं की बिना किसी जांच के हमारे स्थापित संस्थानों को कलंकित करने, नीचा दिखाने और कलंकित करने के लिए एक कहानी गढ़ दी जाती है। यह उन विचारों के आधार पर किया जाता है जो अप्रासंगिक हैं। यह इस आशय के साथ किया जाता है कि हम प्रामाणिक होने से कोसों दूर हैं और यह इस तरह से भी किया जाता है जो पत्रकारीय नैतिकता और प्रतिबद्धता से कोसों दूर है। मुझे विश्वास है कि की यहाँ उपस्थित प्रतिष्ठित श्रोता इस पर ध्यान देंगे और यह सुनिश्चित करने के लिए आगे आएंगे कि ऐसी भयावह शक्तियों से प्रभावी ढंग से निपटा जाए। आपकी चुप्पी उन लोगों के कानों में गूंजेगी जो देश से प्यार करते हैं और मुझे भरोसा है कि आप बोलेंगे।

एआई एक शक्तिशाली उपकरण हो सकता है, लेकिन यह मानवीय स्पर्श, सत्य के प्रति प्रतिबद्धता और पत्रकारों का अटूट समर्पण है जो मीडिया को हमारे समाज में अच्छाई के लिए एक शक्ति बनाता रहेगा। कोई भी विघटनकारी तकनीक एक जानकार, कर्तव्यनिष्ठ पत्रकार का विकल्प नहीं हो सकती।

भारतीय प्रेस परिषद को जानबूझकर असत्य और भ्रामक समाचार फैलाने और पेशेवर नैतिकता से समझौता करने वालों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए। यह दांत दिखाने का नहीं बल्कि काटने का समय है। और दंश मजबूत होना चाहिए क्योंकि जो लोग उच्च नैतिक मानकों के साथ अपना कार्य कर रहे हैं उन्हें केवल उन लोगों द्वारा प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जो ऐसा नहीं कर रहे हैं उक्के साथ उचित कार्रवाई होनी ही चाहिए।


मीडिया वास्तविक राजनीति में शक्ति केंद्र या हितधारक नहीं है। वास्तविकता यह है कि वह न केवल एक हितधारक बल्कि एक शक्ति केंद्र बनने के लिए ही सब कुछ  कर रहा है और ऐसा लगता है कि वह इसे नियंत्रित कर रहा है, ऐसा लगता है कि यह इसे प्रभावित कर रहा है। यह इतना दुखद है कि कुछ पत्रकारों ने जमीनी भावनाओं के विपरीत लोकतांत्रिक प्रक्रिया की दिशा बदलने का बीड़ा उठाया है। हमें ऐसे खतरों के प्रति सचेत रहने की जरूरत है।

यह समय मीडिया की समस्याओं को संबोधित करने से बचने का नहीं है। वास्तविकता यह है कि अब यह यह वाणिज्य द्वारा संचालित है। यह बस किसी पक्ष विशेष के आख्यानों (नैरेटिव्स) को आगे बढ़ा रहा है। दुर्भाग्य से यह आंदोलनों को बनाए रखने का एक हितधारक ही बन गया है। यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पक्षपातपूर्ण प्रभावक की भूमिका चाहता है। यहां तक कि सुरक्षा, आतंकवाद से जुड़े मामलों में भी मीडिया को अब जिम्मेदार होना होगा जो फिलहाल मुझे दिखाई नहीं दे रहा है। मैं एक ऐसी सुरंग में हूं जहां मुझे फिलहाल कोई प्रकाश नहीं दिख रहा है। आप सभी को अब यहाँ प्रकाश पुंज दिखाना ही होगा।

आइए पत्रकारिता के उन सिद्धांतों को बरकरार रखते हुए एआई की क्षमता का उपयोग करते हुए नवाचार और जिम्मेदारी की उस भावना के साथ आगे बढ़ें, जिसने कई पीढ़ियों से हमें अच्छी सेवा दी है।

हम सभी साथ मिलकर इस नए युग में आगे बढ़ सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि प्रगतिशील मीडिया हमारे लोकतंत्र में सच्चाई और उत्तरदायिता का प्रतीक बना रहे।

धन्यवाद, आइए हम इस राष्ट्रीय प्रेस दिवस को कृत्रिम बुद्धिमत्ता के इस युग में स्वतंत्र प्रेस की शक्ति का एक शानदार उत्सव बनाएं।
जय हिन्द!

 

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