उप राष्ट्रपति सचिवालय

हिगाशी ऑटिज़्म स्कूल के उद्घाटन के अवसर पर उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूल पाठ

Posted On: 29 OCT 2023 3:56PM by PIB Delhi

सभी को नमस्कार!

मुझे विश्वास है कि आज यहां हर व्यक्ति कम से कम एक संदेश अपने साथ लेकर जाएगा कि यह हमारा पवित्र कर्तव्य है कि हम उन लोगों की सेवा में रहें जो मानसिक रूप से कठिन जीवन जी रहे हैं। मुझे यहां हिगाशी ऑटिज़्म स्कूल के प्रतिष्ठित संकाय सदस्यों से मिलने का सौभाग्य मिला।यह देखकरअच्छालगा कि शिक्षकों का छात्रों के साथ बहुत बढ़िया तालमेल  है। यह आसान काम नहीं है, यह केवल एक मानसिक व्यायाम नहीं है, इसके लिए मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से सक्षमबनना होगा। आपको यह सब करना होगा। यह वैसे ही है, जैसे आदमी भगवान के सामने समर्पण करता है। इस एक्सरसाइज में जो भी लोग लगे हुए हैं, वे साधुवाद के पात्र हैं।

मित्रों, इस अवसर पर इस समय यहां उपस्थित होना मेरे लिए अत्यंत सौभाग्य की बात है। यह ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों की समग्र शिक्षा के लिए समर्पित एक उल्लेखनीय संस्थान है। हिगाशी ऑटिज्म ट्रस्ट द्वारा संचालित हिगाशी ऑटिज्म स्कूल, एमएचएस जापान के सहयोग से स्थापित एक बहु-विभागीय परिसर आधारित डे-बोर्डिंग निजी विशेषज्ञ स्कूल है। यह केवल छात्रों की जरूरतों को पूरा करेगा और मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि आने वाले समय में छात्राओं को भी इस संस्थान से अत्यधिक लाभ मिलेगा, हमें टोक्यो और बोस्टन के बाद तीसरे स्कूल के रूप में इसके महत्व पर गौर करना होगा।

मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि इन तीनों स्कूलों में से यह स्कूल बहुत ही कम समय में पहले स्थान पर होगा और इसके लिए मैं यहां उपस्थित सभी लोगों से प्रार्थना करता हूं और मैं आपकी योग्यता जानता हूं, मैं आपकी प्रतिभा जानता हूं, मैं सामाजिक हित के लिए आगे आने की आपकी प्रतिबद्धता के बारे में जानता हूं और आप आगे बढ़कर संस्थान की जिम्मेदारी लीजिए और इस मुकाम की ओर अग्रसर हो जाइए। डॉ. कियो किताहारा के विचार- “प्रत्येक बच्चे में स्वयं को पहचानने की ताकत होती है। इसे खोजना और स्नेहमय देखभाल के साथ इसे बढ़ावा देना, ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे के लिए शिक्षा का सार है।" यह हिगाशी ऑटिज़्म स्कूल का दर्शन है। इसका उद्देश्य ऑटिज़्म से पीड़ित प्रत्येक बच्चे को मानव विकास की पूरी क्षमता तक बढ़ाना है, ताकि वे स्वत्व और समावेशन की अपनी भावना हासिल कर सकें। उनके पास डेली लाइफ थेरेपी है, जो ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को शिक्षित करने का एक तरीका है जो बहुत प्रभावशाली साबित हो रहा है। उद्देश्य बहुत स्पष्ट है कि ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों में कौशल विकसित करने के साथ उनको सफल बनाना और समाज में दिलचस्पी लेने वाले सदस्य बनने के लिए सशक्त बनाना है और उनके परिवारों में जहां निराशा और हार की भावना का माहौल है, वहां प्रतिष्ठा लाना है। मैं साझा नहीं करना चाहता, लेकिन हमें महसूस करना होगा कि जिस परिवार में एक बच्चा ऑटिज्म से पीड़ित है, उस परिवार के सामने भावनात्मक और दूसरे तरह की अन्य बड़ी चुनौतियां हैं। इनमें से एक सबसे बड़ी चिंता यह है कि अगर मैं वहां नहीं रहूंगा, तो बच्चे का क्या होगा। इस तरह की भावना ही एक मौजूदा चुनौती है। मुझे विश्वास है कि हिगाशी ऑटिज़्म स्कूल जैसा संस्थान इस अंतर को भर देगा। दोस्तों, सामाजिक विकास न्यायसंगत तब होता है और यह असमानताओं को तब दूर करता है, जब एक ऐसे इकोसिस्टम की स्थापना की जाती है जिसमें हर व्यक्ति को उसकी क्षमता, प्रतिभा को निखारने और अपने सपनों को साकार करने तथा आकांक्षाओं को फलीभूत करने के लिए पूरा अवसर मिलता है।

यह उन लोगों के लिए और भी महत्वपूर्ण है, जो जीवन के किसी भी चरण में किसी न किसी तरह से चुनौती का सामना करते हैं। कल्पना कीजिए कि आप एक ऐसी चुनौती के साथ पैदा हुए हैं, जो अलग है, यह मानवता के लिए सबसे कठिन चुनौती है। इस चुनौती को इस दिशा में अत्यधिक प्रेरणा मिलती है, क्योंकि बड़े पैमाने पर यह दूसरा जेंडर मां है, जो बच्चे के विकास को सुनिश्चित करने के लिए हर सुख-सुविधा, हर चीज़ का त्याग कर पूरी ज़िम्मेदारी लेती है। इस विशेष वर्ग के बच्चों के लिए गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रयास एक साथ होने चाहिए। न केवल शिक्षा, बल्कि एक परिवेश, एक इकोसिस्टम सुनिश्चित करना मानवता के लिए एक पवित्र कर्तव्य और उत्कृष्ट सेवा है, जो इस तरह की मानसिक बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों के विकास को सकारात्मक रूप से बढ़ावा देता है। जब आप जानते हैं कि इसका अंततः इलाज नहीं हो सकता है, तब आपके प्रयास अरिथमेटिक न होकर, जियोमेट्रिक होने चाहिए। मुझे पूरी आशा और विश्वास है कि हिगाशी ऑटिज़्म स्कूल निस्संदेह इसको पूरा करेगा और प्रत्येक बच्चे को उसकी क्षमता को तलाशने और जीवन में उसके रुझान के अनुसार उसे पेशा पाने में सहायता करेगा।

दोस्तों, जब मैं यहां आया और पहला कदम रखा, तो मुझे यह एहसास हुआ कि यह बहुत अलग है, यह केवल त्याग है, यह समाज को वापस देना है। "पूत के पांव पालने में दिख जाते है" कहावत यहां पूरी तरह चरितार्थ है।" श्री कृष्ण मंदिर, जब मैं वहां गया तो मैंने देखा, एक मंदिर से कहीं आगे, एक मंदिर दूसरे मंदिर के परिसर में स्थित है, जैसा कि दत्ता जी ने कहा है, इसका एक महत्वपूर्ण अर्थ है, यह हमें हमारी सभ्यता के लोकाचार की याद दिलाता है। यह निश्चित रूप से ऑटिज़्म से पीड़ित बच्चों की ऊर्जा पर जोर देने, दिशा देने में योगदान देगा। मुझे बताया गया है कि विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया एक योग पाठ्यक्रम मन और शरीर तथा अन्य मानसिक क्षमताओं को संतुलित करने के लिए है। मेरे पास कक्षाओं के अंदर जाने का कोई अवसर नहीं था, लेकिन क्या हमें इसकी आवश्यकता है कि अंदर जाकर देखें वहां क्या होना चाहिए, हम इसे यहां से महसूस कर सकते हैं, भवन का दायरा, माहौल की शांति, गलियारा, मुझे विश्वास है कि एक विजन को जमीनी हकीकत में बदलने के लिए सभी को क्रियान्वित किया गया है जिसे हम सभी महसूस कर रहे हैं, इसे शूट करना ध्यान देने योग्य है और हमने इसे देखा है। यह संस्थान, यह स्कूल प्रत्येक बच्चे की अद्वितीय क्षमताओं और योग्यताओं को समझने के लिए प्रतिबद्ध है, जब मैंने डॉ. रश्मि से बातचीत की, तो मुझे चुनौतियों के बारे में जानकारी मिली, दोस्तों हमारे पास इन दिनों आसान समाधान हैं, बुनियादी ढांचे से लेकर, हमारे मुद्दे तक फॉर्मूला समाधान के रूप में जाने जाते हैं, एक प्रकार का समाधान सभी के लिए उपयुक्त है और इसी प्रकार का समाधान तब भी काम आता है यदि आपको मलेरिया, तपेदिक, कैंसर है। जब आप ऑटिज्म की चुनौती का सामना कर रहे बच्चे से जूझ रहे हों तो तब इस तरह का समाधान काम नहीं आता है। हर बच्चे की एक विशिष्ट आवश्यकता होती है, प्रत्येक बच्चा अलग तरह का होता है और यही शिक्षकों के लिए चुनौती है। मुझे शिक्षकों को बधाई देनी चाहिए, मैंने उनके साथ व्यक्तिगत रूप से बातचीत नहीं की है, मैंने उन्हें दूर से देखा है, संकाय सदस्य बच्चों के कल्याण में पूरी तरह लगे हुए हैं। जब हमने उन्हें यहां देखा तो यह किसी और के लिए त्याग की सर्वोच्च प्रतिबद्धता का उदाहरण है। दोस्तों शिक्षा केवल स्कूल के कमरों तक ही सीमित नहीं है, इन दिनों एक बुनियादी ढांचा तैयार करना इतना आसान है कि राजकोषीय ताकत वाला कोई भी व्यक्ति इसे कर सकता है, लेकिन यह छोटा सा आवश्यक हिस्सा है, प्रमुख हिस्सा प्रतिबद्धता, दिशात्मक दृष्टिकोण, संकाय दृढ़ संकल्प और उच्च डिग्री हासिल करने की ललक है- स्वयं के लिए संतुष्टि नहीं, बल्कि दूसरों की संतुष्टि को अपनी महान उपलब्धि के रूप में देखें। भारत के नागरिक के रूप में, शिक्षक के रूप में और माता-पिता के रूप में एक समुदाय के रूप में, यह हमारा सामूहिक कर्तव्य है कि हम अपने बच्चों को उनके व्यक्तिगत व्यक्तित्व में आने वाली चुनौतियों के बावजूद व्यापक विश्व से परिचित कराएं। दोस्तो, कोई भी संस्थान अपने समर्पित स्तंभ के बिना आगे नहीं बढ़ सकता है और हमने यहां एक प्रमुख प्रेरक, डॉ. रश्मि को सकारात्मक रूप से, भावनात्मक रूप से संकाय के सदस्यों द्वारा सहायता प्राप्त होते हुए देखा है, मुझे विश्वास है कि ऐसी संस्था का इससे अधिक प्रभावशाली स्वरूप नहीं हो सकता है और मेरे अनुसार हर बीतता दिन विश्वस्तर पर भारत का नाम रोशन करेगा।

मैं यहां उपस्थित सभी माता-पिता और अभिभावकों को बधाई देता हूं, मैं विशेष रूप से अपने जेंडर के लोगों से आह्वान करूंगा कि वे मिशनरी मोड में अपने साथी और अपने जीवनसाथी के साथ मिलकर काम करें, उन्हें अकेला न छोड़ें, आप अपनी मानवीय छवि खो देंगे, आप मानव जाति के सदस्य होने का आपना अधिकार खो देंगे, यदि आप तब विश्वासघाती बन जाते हैं जब एक बच्चे को चुनौती का सामना करना पड़ता है और आपका जीवनसाथी केवल काम में लगा हुआ है और आप कहीं और आराम कर रहे हैं तो मुझे यकीन है कि वे इस पर ध्यान देंगे, यह एक सलाह है। दोस्तों, हम सभी के लिए एकजुट होकर एक ऐसा वातावरण विकसित करने का संकल्प लेने का उपयुक्त अवसर है, जहां ऑटिज्म से पीड़ित हर बच्चे का सम्मान दिया जाए। मुझे डॉ. रश्मि की आंखों में चमक दिखाईदी, जब वह कुछ महीने पहले मुझसे मिली थीं, ये ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों की पेंटिंग हैं, वह उनकी पेंटिंग में शामिल हो रही थीं, मुझे यह देखने का अवसर मिला, जब मैंने उनके बच्चे को दत्ता जी के साथ एक तस्वीर में देखा। दोनों एक-दूसरे के साथ क्या तालमेल बिठाते हैं, हमें सामूहिक रूप से इस प्रकार की सहक्रियात्मक प्रतिक्रिया की आवश्यकता है। आइए, हम ऐसे भविष्य की दिशा में एक रास्ता बनाने का संकल्प लें जहां, हम इस श्रेणी के बच्चों के लिए विश्व को सुरक्षित और सार्थक बना सकें।

किसी भी उद्यम की सफलता का सबसे बड़ा आश्वासन उसे रेखांकित करने वाली मानव संसाधन भावना और प्रतिबद्धता है। डॉ.रश्मि इस सद्गुण का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। वह संस्था के प्रति जुनूनी है, मिशनरी उत्साह से भरी हुई है और अपने पास मौजूद हर भौतिक स्थिति को शेड के लिए तैयार है, मैं व्यक्तिगत नहीं होना चाहता। वह पहले ही ऐसा कर चुकी है, जिस दुनिया में हम रहते हैं उसमें से बहुत से लोग इसके बारे में कभी सोच भी नहीं सकते। कठिनाइयों के बावजूद, परियोजना के उनके क्रियान्वयन कीसराहना की जानी चाहिए। एक तरह से यह उल्लेखनीय है, यह बहुत कम समय में हासिल किया गया है। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है, यह संस्थान अपने नेक, उत्कृष्ट रुख और विचारशीलता के साथ इस क्षेत्र में वैश्विक पहचान बनाएगा। मेरे लिए इस स्थान की यात्रा स्वयं से अलगाव और दूसरों के कल्याण के प्रति लगाव को दर्शाने वाली आध्यात्मिक यात्रा से कम नहीं है। एक बार प्राप्त लाभ से खुद को अलग करना बहुत मुश्किल होता है, हम इससे जुड़ जाते हैं, हम जानते हैं कि हम यहां नहीं हैं, फिर भी आखिर तक हम केवल आत्म-प्रशंसा, आत्म-संचय के लिए लापरवाही से काम कर रहे होते हैं, लेकिन यहां आपके अंदर किसी और के कल्याण से जुड़ने की भावना आती है।

मैं हिगाशी ऑटिज्म स्कूल में आशा के एक मंदिर, समावेशिता की एक किरण और प्रत्येक बच्चे के भीतर मौजूद असीमित क्षमता के निर्माण के एक प्रमाण के उद्भव की कल्पना करता हूं।

मैं एक अपील के साथ अपनी बात समाप्त करता हूं कि यहां उपस्थित लोग, अपनी क्षमता को ध्यान में रखते हुए एक बड़े बदलाव का केंद्र और अपने विनम्र तरीके से इस संस्थान के विकास में भागीदार बनें। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम क्या करते हैं, कैसे करते हैं, मायने यह रखता है कि हम क्या करते हैं। मैं और मेरी पत्नी की ओर से मैं यह संकल्प लेता हूं कि इस संस्थान में हर पल अपना छोटा-सा योगदान देता रहूंगा और आपके संस्थान को बहुत-बहुत धन्यवाद।

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एमजी/एमएस/एआरएम/आईएम/डीसी



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