उप राष्ट्रपति सचिवालय
दिल्ली के प्रगति मैदान में हुए पुस्तकालय महोत्सव के समापन समारोह में उपराष्ट्रपति के संबोधन का पाठ (अंश)
Posted On:
06 AUG 2023 8:52PM by PIB Delhi
सभी को मेरा नमस्कार!
जो भी काम किए गए हैं और जो भी विवरण सामने आया है, उससे वास्तविक दृष्टिकोण का पता चलता है। मेरे द्वारा विमोचित की गई पुस्तकों में से एक ‘बिब्लिओग्राफी ऑन डिमांड’ पर गौर कीजिए। यह देश के सभी पुस्तकालयों से जुड़े किसी विशेष विषय के बारे में जानकारी उपलब्ध कराती है। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है, माननीय मंत्री के नेतृत्व और दूरदर्शिता से, इस दिशा में अधिक ऊंचाइयां हासिल की जाएंगी। वस्तुतः अमृत काल में मंत्रालय की भूमिका अत्यंत प्रेरक और प्रभावशाली रही है।
वास्तव में, जैसे ही मैंने इस समारोह स्थल में कदम रखा, मैंने पुस्तकालयों के लिए कहीं और इस तरह की मानवीय भागीदारी, बच्चों, महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों का जुड़ाव नहीं देखा, जो एक बड़ी उपलब्धि है।
मुझे पुस्तकालय महोत्सव (फेस्टिवल ऑफ लाइब्रेरीज), 2023 के समापन समारोह में शामिल होकर काफी खुशी हो रही है। इस महोत्सव का उद्घाटन माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु जी ने किया था। यह निश्चित रूप से दुनिया भर के सर्वश्रेष्ठ प्रतिष्ठित पुस्तकालयों को सामने लाने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है।
मैं उत्साहित हूं कि 1.3 अरब से अधिक लोगों के देश में, ये चीजें हासिल की जा सकती हैं और इससे महानगरों से लेकर गांवों तक पुस्तकालयों की डेटा मैपिंग सुनिश्चित होगी।
हाल के दौर में, मैंने देखा है कि मंत्रालय ने कई नए कदम उठाए हैं। यह अपनी तरह का अनूठा, पुस्तकालयों का पहला महोत्सव है और विषय तथा फोकस क्षेत्र - डिजिटलीकरण और सभी के लिए पहुंच, पर गौर करें तो यह एक अहम उपलब्धि है। जब आपके पास समृद्ध मानव संसाधन हों तो दुनिया बदल जाती है। किसी भी मानव संसाधन को बुनियादी मजबूती देनी है, अगर उससे महान परिणाम प्राप्त करने हैं, तो ऐसा ज्ञान, शिक्षा से संभव है और यह सब अधिकतर अतीत के ज्ञान से आता है। और इसका एकमात्र साधन पुस्तकें हैं।
मुझे यकीन है कि अच्छी बातें आसपास ही मौजूद हैं। यह मेरी आदत है कि किसी समारोह में आने से पहले मैं सोशल मीडिया पर जाता हूं, जो इन दिनों बेहद महत्वपूर्ण है, मैं उन लोगों से संपर्क करता हूं जो इसके बारे में जानते हैं। मुझे माननीय मंत्री और सचिव से यह कहते हुए खुशी हो रही है कि इस समारोह से चारों ओर अच्छा माहौल पैदा हुआ है। यह बेहद प्रभावशाली रहा है और इसमें कुछ भी नकारात्मक नहीं है। बधाई हो!
आपमें से जो लोग रसायन विज्ञान जानते हैं, उन्हें मालूम होगा कि उत्प्रेरक बहुत अच्छा काम करते हैं। यह अंकगणित को ज्यामितीय विकास में परिवर्तित करता है। मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं है कि वर्तमान कार्यक्रम एक राष्ट्र, एक डिजिटल लाइब्रेरी को साकार करने की दिशा में कदम बढ़ाएगा और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दृष्टिकोण को फलीभूत करेगा।
हजारों वर्षों के सभ्यतागत इतिहास वाले देश में इस तरह का कार्यक्रम होने से अधिक उपयुक्त कुछ नहीं हो सकता। ऐसे समय में जब हम ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ के दूसरे चरण में हैं। यह पुस्तकालयों के विकास और डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने और भारत में पढ़ने की संस्कृति विकसित करने के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
मैं उस दौर का हूं जब पुस्तकालय बहुत प्रासंगिक था। सैनिक स्कूल का छात्र होने के नाते, हमारे पास सप्ताह में एक घंटा पुस्तकालय के लिए होता था। मैं अब भी पढ़ता हूं, याद करता हूं, मुझे छोटी-छोटी किताबें, जीवनियां मिलती थीं जो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के उन लोगों से प्रेरित होती थीं। पुस्तकालय में जाकर मुझे यह देखने का अवसर मिला कि पिकासो कौन थे। मुझे विवेकानन्द जी, रवीन्द्रनाथ टैगोर के बारे में पता चला और उनका प्रभाव अमिट हैं। इस प्रकार, यह एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है कि उनकी पढ़ने की संस्कृति को एक मंच के माध्यम से सुगम बनाया जा रहा है।
हमने इन दिनों देखा है कि उच्च उत्पादकता के लिए मंच बेहद आवश्यक हैं। और माननीय सचिव के साथ एक मंच पर मुझे बताया जा रहा था कि अगर किसी को राजमार्ग इंजीनियरिंग या राजमार्ग बुनियादी ढांचे के निर्माण के बारे में जानना है, तो यह मांग पर हमारी ग्रंथ सूची (बिब्लिओग्राफी) में उपलब्ध है, और आपको पता चल जाएगा कि किस पुस्तकालय में संबंधित विषय पर कौन सी विशेष पुस्तक उपलब्ध है। अब कल्पना कीजिए कि इस प्रकार की बुद्धिमत्ता आपके तंत्र में समाहित हो गई है; लोगों को निश्चित रूप से सुविधा मिलेगी और वे प्रेरित होंगे।
भारत में आधुनिक पुस्तकालयों के विकास के लिए कार्योन्मुख नीतियां बनाना एक कठिन कार्य है। हम विभिन्न भाषाओं, क्षेत्रीय व्यंजनों और विभिन्न प्रकार की जलवायु परिस्थितियों वाले देश हैं। लेकिन सफलता हर गांव तक पहुंचने में है। यह जानकर संतुष्टि हो रही है कि हमने इस प्रमुख मील के पत्थर को छू लिया है। हर गांव में बिजली पहुंच गई है, यह अब कोई समस्या नहीं है, हर घर में बिजली पहुंच गई है और यह एक बड़ी उपलब्धि है।
दूसरे, गांव में तकनीकी का व्यापक प्रयोग हो रहा है। अन्यथा, हम कैसे समझाते कि दुनिया में 46 प्रतिशत डिजिटल ट्रांसफर भारत में हो रहे हैं। वर्ष 2022 में, अगर मैं संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी में हुए डिजिटल ट्रांसफर के आंकड़ों पर गौर करूं, तो हमारे आंकड़े चार गुना हैं। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह एक बड़ी चुनौती है और आप इसे निस्संदेह और कम से कम समय में पूरा करेंगे।
एक जागरूक नागरिक किसी भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया की सबसे बड़ी शक्ति है। केवल जागरूक नागरिक ही राष्ट्र विरोधी शक्तियों और घटनाओं को बेअसर कर सकते हैं और जागरूक नागरिक की स्थिति हासिल करने के लिए पुस्तकालय - सार्वजनिक पुस्तकालय सबसे बेहतर हैं। यह एक बड़ा काम है जिसमें मंत्रालय लगा हुआ है और मैं इसकी सराहना करता हूं।
मैं यहां पर रवीन्द्रनाथ टैगोर की बात का उल्लेख कर रहा हूं। उन्होंने कहा था, “किताबें दुनिया की खिड़कियां हैं।”
इससे अधिक व्यावहारिक और यथार्थवादी कुछ नहीं हो सकता। आप किसी पुस्तकालय में जाते हैं, आप एक किताब खोलते हैं और आपको एहसास होता है कि आपने दुनिया के लिए एक खिड़की खोल दी है। पुस्तकालय विद्या का मंदिर है, एक ऐसा स्थान जहां मानव मन पूजा करने के लिए जाता है।
अब, मैं किसी चिंता के कारण नहीं, बल्कि केवल आपकी भागीदारी की इच्छा से कुछ बता रहा हूं। संसद भी मंदिर है, ऐसा मंदिर जहां बहस, चर्चा, संवाद होना है। कोई यह उम्मीद नहीं करता कि संसद अशांति में शामिल होगी; आप चाहते हैं कि आपके प्रतिनिधि राष्ट्रहित में कार्य करें। मैं उसी दिशा में काम कर रहा हूं। हमारी संसद में अत्यधिक प्रतिभाशाली लोग हैं। वे अपने साथ व्यापक अनुभव लेकर आते हैं। मैं चाहता हूं कि उसका उपयोग राष्ट्रीय उद्देश्यों के लिए किया जाए। लेकिन अगर हमारी संसदीय प्रणाली, लोकतंत्र के मंदिर संवाद और चर्चा में शामिल नहीं होते हैं, वे व्यवधान और अशांति से ग्रस्त हैं, तो जगह खाली नहीं होने वाली है और इस पर उन ताकतों द्वारा कब्जा कर लिया जाएगा जो संविधान के प्रति जवाबदेह नहीं हैं। इसलिए मैं आप सभी से अपील करूंगा कि आप आम आदमी के रूप में अपनी शक्ति का उपयोग करें, इस देश के नागरिक के रूप में अपनी शक्ति का उपयोग एक ऐसा इकोसिस्टम बनाने के लिए करें जिसमें हम हमेशा राष्ट्र के हित को सबसे ऊपर रखने के लिए कार्य करें और अनिवार्य तरीके से खुद को अपने कर्तव्यों के लिए प्रतिबद्ध करें।
पुस्तकालयों पर सुविचारित राष्ट्रीय मिशन 2014 में शुरू किया गया था। यह बहुत प्रभावशाली रहा है। मुझे यकीन है कि इसमें और अधिक उत्साह भरा जाएगा, ताकि हम उस स्तर को हासिल कर सकें जहां हम गांव तक भी पहुंच सकें। मुझे यकीन है कि ग्रामीण समुदाय स्तर तक आधुनिक पुस्तकालयों के विकास की दिशा में एक कार्यान्वयन योजना कारगर होगी। हमारी सभ्यता के विकास को बदलने के लिए ऐतिहासिक रूप से उपलब्ध एकमात्र परिवर्तनकारी तंत्र शिक्षा है। यह शिक्षा ही है जो अनुसंधान की ओर ले जाती है। यह शिक्षा ही है जो नवाचार को सक्रिय करती है। कार्यान्वयन कठिन नहीं है लेकिन एक अवधारणा का निर्माण करना हमेशा कठिन होता है। शिक्षा और ज्ञान जुड़वां के समान हैं। इसलिए, जो प्रणाली विकसित की जा रही है वह उन्हें सही परिप्रेक्ष्य में रखेगी और लोगों को इससे लाभ मिलेगा।
कल्पना कीजिए कि हजारों साल पहले, मानव प्रतिभा में यह सुनिश्चित करने की इच्छा रही थी कि ज्ञान का प्रसार और संरक्षण हो और उन्होंने ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियों को अपनाया। मुझे कोलकाता में राष्ट्रीय पुस्तकालय (नेशनल लाइब्रेरी) में उन्हें देखने का अवसर मिला। इसमें किए गए महान प्रयास पर गौर करने की जरूरत है। तकनीकी विकास की बदौलत अब चीजें काफी बेहतर हुई हैं। हमें प्रौद्योगिकी का उपयोग करना चाहिए ताकि ज्ञान के प्रसार और संरक्षण के माध्यम से सार्वजनिक हित को बहुत ऊंचे स्तर पर ले जाया जा सके।
पुस्तकालयों के लिए प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल करने की दिशा में चल रहे प्रयासों की काफी सराहना की जा रही है, क्योंकि इसका प्रभाव महसूस किया जा रहा है। वास्तव में, डिजिटल लाइब्रेरी पहल से जुड़ी बाधाओं को दूर करना, ज्ञान तक पहुंच के साथ सभी नागरिकों को सशक्त बनाना जरूरी है।
मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं। यदि आप भारत के विकास से जुड़े इतिहास का अध्ययन करें। 1950 के दशक से जीवन के किसी भी क्षेत्र में, यानी तकनीकी उद्योग, 50 के दशक के शीर्ष 10 औद्योगिक घराने, उनमें से कितने जीवित बचे हैं? आप तुरंत इस निष्कर्ष पर पहुंच जाएंगे कि हर दशक में ज्ञान, प्रौद्योगिकी के कारण विकास हुआ है और वर्तमान दशक में स्थिति यह है कि नई प्रतिभाएं भारतीय उद्योग पर अपना परचम लहरा रही हैं। यही ज्ञान की शक्ति है। पुस्तकालय विकास से समाज एवं संस्कृति का विकास होता है। यह सभ्यताओं की प्रगति और हमारे विकास इतिहास का भी पैमाना है।
मैं इस कॉफ़ी टेबल बुक के लिए माननीय मंत्री और सचिव की सराहना करता हूं। यहां आने से पहले, मैंने कुछ जानकारी एकत्र की, लेकिन कॉफी टेबल बुक को देखिए; मैंने बस इसे देखता ही रह गया, मुझे यकीन है कि आपका इस पर 100 प्रतिशत ध्यान केंद्रित होगा, यह एक असाधारण कॉफी टेबल बुक है। यह वास्तव में स्वतंत्रता के लिए, हमारी मूल्य प्रणाली के लिए भारतीय प्रतिभा का सबसे प्रामाणिक रिकॉर्ड है। यह आपको वो जानकारियां देती है जो आपसे छिपाई गई थीं, जो निषिद्ध थीं, और इसके प्रत्येक शब्द से असर पड़ता है, आपको इन बातों को संबंधित हालात के संदर्भ में देखना होगा।
हम भाग्यशाली हैं कि इस समय भारत इतना आगे बढ़ रहा है जितना पहले कभी नहीं था, देश का विकास रुकने वाला नहीं है। आईएमएफ और अन्य संगठनों द्वारा यह कहा गया है: हम एक चमकता सितारा हैं, अवसर और निवेश का एक पसंदीदा गंतव्य हैं। लेकिन उस समय जब महान नायकों ने, चाहे वे गुमनाम ही क्यों न हों, उन लोगों से मुकाबला करने का साहस दिखाया जो उनके साथ बहुत सख्ती दिखा रहे थे। मैं पोर्ट ब्लेयर की सेल्यूलर जेल में गया था, वे वहां रहे थे, लेकिन उन्होंने भारत माता की सेवा करने का साहस जुटाया। आज वो सब कॉफ़ी टेबल बुक में है। मुझे यकीन है कि यह कभी ना भी आपके मस्तिष्क में और आपकी मेज पर होगा।
हमें प्रत्येक बच्चे को इसे पढ़ने के लिए समझाना चाहिए, यह हमारी भावना का सार और लोकतांत्रिक मूल्यों पर लगातार जोर दिए जाने का प्रतीक है। इसने भारत को आज दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे पुराना लोकतंत्र बना दिया है।
दोस्तों मैं आपको बता सकता हूं, दुनिया के किसी भी देश में उस तरह का लोकतांत्रिक ढांचा नहीं है जैसा हमारे पास है। भारत में हमारा लोकतंत्र संवैधानिक रूप से ग्राम स्तर पर, पंचायत समिति स्तर पर, जिला परिषद स्तर पर बना हुआ है। ठीक वैसे ही जैसे केंद्र में विधानसभा, राज्य और संसद के चुनाव होते हैं। यह हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को सलाम करने का भी अवसर है जिनका नाम कॉफी टेबल बुक में है।
दोस्तों हमें अपने देश पर हमेशा ही गर्व करना चाहिए। आइए हम गौरवान्वित भारतीय बनें। अपनी ऐतिहासिक उपलब्धियों पर गर्व करें और अपने राष्ट्र को हमेशा पहले रखें। कभी-कभी किसी को दुख और वेदना होती है क्योंकि हममें से कुछ लोग नुकसान की भावना से हमारी संस्थाओं को कलंकित करने, बदनाम करने और उन्हें नीचा दिखाने का भयावह प्रयास करते हैं। उनके बारे में फैसले लें। उनके दृष्टिकोण पर ध्यान दें। यदि आप ऐसी बातों के प्रति आश्वस्त हैं, तो भारत विरोधी घटनाओं को बेअसर करने में कभी संकोच न करें क्योंकि तभी हमारे जैसा बड़ा देश बहुत तेजी से बढ़ता है और सबसे तेज विकास का अनुमान लगाया जाता है और वैश्विक मापदंडों पर उसमें बदलाव किया हो सकता है। एक दशक पहले जब वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति की बात आती थी तो हम दोहरे अंक में थे। हम 10वें या 11वें नंबर पर थे। सितंबर 2022 में, हमें 5वें नंबर पर पहुंचने का अवसर मिला और इस प्रक्रिया में, हमने अपने पूर्व औपनिवेशिक शासकों को पीछे छोड़ दिया। दशक के अंत तक हम तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बन जाएंगे।
इसलिए, जब ऐसा अभूतपूर्व और बेजोड़ विकास होता है, जिसके बारे में कुछ साल पहले सपने में भी नहीं सोचा जा सकता था; प्रतिक्रियावादी चुनौतियां सामने आएंगी। मैं सभी से अपील करूंगा कि जब बात राष्ट्रवाद या राष्ट्रहित की हो तो कभी भी पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण न रखें। राजनीति के क्षेत्र में राजनीतिक पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण ठीक है। लेकिन जब आप राष्ट्र के विकास में भागीदार बन जाते हैं, तो राजनीति को पीछे हट जाना चाहिए। जब देशहित की बात हो तो हमें हमेशा आगे रहना चाहिए। हमें आगे आना चाहिए और साहस और दृढ़ विश्वास के साथ काम करना चाहिए। मुझे यकीन है कि आप सभी ऐसा ही करेंगे।
मित्रों, ये बहुत बड़ा परिवर्तन हो रहा है, जब भारत 2047 में अपनी आजादी की शताब्दी मनाएगा तब मेरी जैसी अधिकांश पीढ़ी यहां नहीं होगी। हमारे युवा मन जिनमें ज्ञान प्राप्त करने की ललक है, उनके लिए एक ऐसा इकोसिस्टम उपलब्ध कराया गया है जहां वे ऐसा कर सकते हैं। अपनी क्षमता और प्रतिभा को साकार करने के लिए अपनी ऊर्जा का उपयोग कीजिए और इस प्रक्रिया में अपने सपनों और आकांक्षाओं को हासिल कीजिए। युवा प्रतिभाएं जनसंख्या के सबसे महत्वपूर्ण घटक हैं, आप 2047 में योद्धा के रूप में होंगे। इसलिए, यह आप पर निर्भर करता है कि आप हमारे राष्ट्रीय विकास का गंभीर विश्लेषण करें और एक दृष्टिकोण अपनाएं। आपकी चुप्पी उचित नहीं होगी। आपको उन भयावह शक्तियों को हराने के लिए अपने मन की बात कहनी होगी जो गलत सोच रखती हैं।
क्या आप यह कल्पना कर सकते हैं कि किसी देश में जब कानून अपना काम करे तो लोग सड़कों पर उतर आते हों? सभ्य दुनिया में ऐसा कहीं नहीं हुआ है। यदि आपको कानून की कार्रवाई का सामना करना पड़ता है, तो एकमात्र रास्ता देश में मौजूद सशक्त न्यायिक प्रणाली का सहारा लेना है। और मैं किसी तरह के विरोध के डर के बिना कह सकता हूं कि वह सशक्त न्यायिक प्रणाली, दुनिया में सबसे अच्छी है। तो फिर सड़कों पर क्यों उतरा जाए?
ये सवाल मुझसे नहीं बल्कि देश की जनता की तरफ से आना चाहिए। उन्हें सोचना होगा, चिंतन करना होगा और आत्मनिरीक्षण करना होगा और एक ऐसा ईकोसिस्टम तैयार करना होगा कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। बिना किसी अपवाद के, पद या शक्ति की परवाह किए बिना, कोई भी नहीं।
मानव इतिहास का विकास हमेशा अपने ज्ञान के आधार पर हुआ है। एक बार जब आपके पास ज्ञान और शोध हो तो कार्यान्वयन आसान होता है और इसलिए हमें ज्ञान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। एक समय था जब हम तक्षशिला और नालंदा जैसे संस्थानों पर बहुत गर्व करते थे। वैश्विक अर्थव्यवस्था में हमारी हिस्सेदारी बहुत ज़्यादा थी। वैश्विक अर्थव्यवस्था में हमारी हिस्सेदारी बहुत ज़्यादा थी। अच्छी बात यह है कि परिवर्तन आया है। हम सही रास्ते पर हैं और आगे की ओर बढ़ रहे हैं। हमारा रास्ता विकास का है। हम मंजिल तक पहुंचेंगे लेकिन उसके लिए हर भारतीय को मन से, दिल से अपना योगदान करना होगा।
मैं अधिक समय नहीं लूंगा, मुझे बहुत कुछ कहना था, लेकिन मैं मंत्रालय की उपलब्धियों से बहुत ज्यादा प्रभावित हूं। मैं यहां के लोगों की गर्मजोशी से बहुत प्रभावित हुआ हूं। मैं उनके साथ घंटों-घंटों समय बिता सकता था। मित्रों, मैंने कुछ लड़के और लड़कियों से बात की, मुझे उनकी आंखों में एक चमक दिखी है। मैंने चारों ओर देखा है, लोग खुश नजर आ रहे थे। दरअसल, ज्ञान आपको एक आनंद देता है। चिंता और तनाव के लिए ज्ञान मारक के समान है। ज्ञान एक ऐसा कारक है जो नकारात्मकता को निष्क्रिय कर देता है। इससे सकारात्मकता का संचार होता है। यह आपको अपने से परे समग्र समाज की ओर देखने की ओर ले जाता है।
तो दोस्तों, मैं माननीय मंत्री से सहमत हूं कि यह अंत नहीं है, यह तो एक शुरुआत है और एक बार फिर मैं सचिव और उनकी टीम को ऐसी उत्कृष्ट उपलब्धि के लिए बधाई देता हूं जो अंतिम पायदान पर मौजूद व्यक्ति को प्रभावित करेगी।
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!
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