उप राष्ट्रपति सचिवालय
राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय, नागपुर के शताब्दी समारोह के उद्घाटन पर उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूलपाठ
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04 AUG 2023 8:19PM by PIB Delhi
यहां उपस्थित सभी लोगों को मेरा नमस्कार
इससे पहले कि मैं राष्ट्रवाद के केन्द्र नागपुर पर कुछ कहूं, मुझे आपको यह बताना होगा कि मेरी नागपुर की प्रत्येक यात्रा प्रेरणादायक, प्रेरक और ऊर्जावान रही है, यह अद्वितीय और भिन्न रही है। मुझे यह अवसर उपलब्ध कराने के लिए मैं श्री नितिन गडकरी जी का आभारी हूं।
मुझे यह बताया गया है कि नागपुर संतरे के लिए विख्यात है और यह बाघों के लिए भी जाना जाता है। यहां मंच पर दो बाघ मौजूद हैं , उनकी रीढ़ की हड्डी की ताकत सभी ने देखी है, लेकिन एक शेर राज्य सभा में मेरा काम मुश्किल कर देता है। वह जब किसी प्रश्न का उत्तर देने के लिए खड़े होते हैं तो मैं बड़ी मुश्किल में पड़ जाता हूं। सदन का हर सदस्य शिकायतकर्ता न होकर, आशा-आकांक्षा लेकर प्रश्न पूछना चाहता है, यह कल हुआ। एक कर्मठ व्यक्ति, कार्यान्वयन की दृष्टि में विश्वास रखने वाला व्यक्ति। सौभाग्य से, नागपुर की मेरी अब तक की सभी यात्राएँ गड़करी जी के केंद्र में रही हैं।
माननीय श्री रमेश बैस जी, मेरी और उनमें एक बात समान है, वह 1989 में पहली बार संसद के लिए चुने गए थे, उसी वर्ष मैं भी संसद के लिए चुना गया था। मैं सत्तारूढ़ दल का हिस्सा था, और मैं एक केंद्रीय मंत्री था। वह 2019 तक संसद सदस्य बने रहे, संसद में उनका कार्यकाल मेरे संसद में बिताए गए दिनों से दोगुना है। रमेश जी और मैं एक साथ एक समय में राज्यपाल रहे हैं। वह बेहद प्रतिभाशाली हैं और अपने काम के प्रति प्रतिबद्ध हैं।
माननीय राज्यपाल ने मुझसे कहा कि यह देखना उनका मिशन है कि बाहरी दुनिया के साथ भी अधिक संबंद्धता हो। इस संबंध में, नितिन जी ने मुझसे कहा कि मैं इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स (आईसीडब्ल्यूए) का अध्यक्ष हूं, और हमें एक महीने के भीतर इस विश्वविद्यालय के साथ एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करना होगा। नितिन जी कम समय चाहते थे, लेकिन समस्या यह थी कि आईसीडब्लयूए के निदेशक विदेश में हैं। नितिन गडकरी जी को देश के भीतर और बाहर उनकी उपलब्धियों, हमारे परिदृश्य को बदलने, आशा पैदा करने, रोजगार और सबसे महत्वपूर्ण नवाचार के साथ बाधाओं पर काबू पाने के लिए ही जाना जाता है। आपने गुरु फिल्म तो देखी ही होगी, जब महान उद्योगपति को पांच मिनट का समय दिया गया, तो उन्होंने साढ़े चार मिनट में ही समापन कर दिया और कहा कि जो आधा मिनट बचा है, वही फायदा है। नितिन जी की वजह से जहां भी देश में सड़कों पर जाते हैं.. समय बचता है, वही फायदा है।
दोस्तों, मैं हमेशा टॉपर था, उस समय हमारे पास पोल्सन मक्खन था, इसलिए जब भी मैं अपने शिक्षकों के साथ होता था, तो पीछे से कुछ छात्र पोल्सन...पोल्सन कहते थे, क्योंकि एक को शिक्षक के साथ होना था।
मुझे माननीय न्यायमूर्ति विकास बुधवार जी को बधाई देना और सलाम करना चाहिए, मुझे एक बार उनके सामने उपस्थित होने का अवसर मिला, जो यादगार रहा। एकदम स्पष्ट बोलने वाले व्यक्ति। मैं एक गांव से आता हूं, जो लोग सामान्य पृष्ठभूमि से आते हैं, वे तुरंत अपनी उपस्थिति महसूस नहीं करते हैं, लेकिन पेशे में, मैं बेहद भाग्यशाली रहा हूं, मुझे अपने प्रैक्टिस के 11 वर्षों में वरिष्ठ वकील नामित किया गया था, उच्च न्यायालय बार का नेतृत्व किया था, मात्र 34 वर्ष की उम्र में बार काउंसिल में पहुंचा । मैं एक दिन में केवल एक ही मामले में पेश होता था। मैं अदालत में वे 3 मिनट कभी नहीं भूल सकता, जब न्यायाधीश ने कहा, “ आपके पास केवल तीन मिनट हैं, मैंने कहा, “ माई लॉर्ड, केवल दो मिनट। ” और मानिए ग्राफ इतना प्रभावशाली था कि किसी के पास कोई जवाब नहीं था, उनको मेरा सलाम।
इस ऐतिहासिक अवसर पर इस सम्मानित सभा के माननीय सदस्यों, मैं आपको बता सकता हूं कि यह मेरे लिए एक आनंददायक क्षण है। एक पल जिसे मैं संजो कर रखूंगा। मैं ऐसे शैक्षणिक संस्थान से जुड़कर सम्मानित और गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं, जिसके पूर्व छात्रों ने देश को गौरवान्वित किया है और जन कल्याण के लिए व्यापक योगदान दिया है।
इस सभा के माननीय सदस्यों, मैं पिछले वक्ताओं से सहमत हूँ, परिवर्तनकारी परिवर्तन केवल शिक्षा के जरिए ही लाया जाता है। यह शिक्षा ही है, जो बदलाव ला सकती है, विश्वविद्यालय उत्कृष्ट विचारों और आदर्शों की जीवित संस्थाएं हैं। वे हमारी प्रगति और उपलब्धियों में सदैव जीवित रहते हैं। हमारे देश में तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय हैं, जिन्होंने भारत को विश्व गुरु बनाया है। ये संस्थाएँ हमारी सामूहिक राष्ट्रीय स्मृतियों में शाश्वत हैं।
मैं जानता हूं कि वर्तमान सरकार कई पहल कर रही है और कई नीतियां बनाई हैं जो आपके आदर्शों, आकांक्षाओं और सपनों को हासिल करने के लिए आपकी प्रतिभा, क्षमता और ऊर्जा को पूरी तरह से उजागर करने के मौके देती हैं। मैं इस मंच से कहूंगा, अब समय आ गया है कि हमारे उद्योग विशेष तौर पर हमारी संस्थाओं को पोषित करें। जब उद्योग जगत के अगुवा बाहरी विश्वविद्यालयों को बड़ी रकम देते हैं, तो मुझे थोड़ी चिंता होती है। हमें अपने राष्ट्रवाद में विश्वास करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारी पहली प्राथमिकता हमारा राष्ट्र, हमारा राष्ट्रवाद, हमारी संस्थाएं हैं।
जरा कल्पना करें कि हमारे देश में कोई है, जिसे नोबेल पुरस्कार दिया जाता है और हम सरकार से एक विदेशी विश्वविद्यालय को 50 लाख अमेरिकी डालर देते हैं। कल्पना कीजिए कि इस देश का एक बड़ा घराना किसी विदेशी विश्वविद्यालय को 50 लाख अमेरिकी डॉलर देता है। मैं जानता हूं कि उनके इरादे गलत नहीं हैं, वे उचित तरीके से काम कर रहे हैं, लेकिन अब समय आ गया है जब हमें अपनी संस्थाओं को पोषित करने के लिए सब कुछ करना होगा। इसी देश में तक्षशिला, नालन्दा आदि होंगे। दुनिया में कहीं भी आपको ऐसी फैकल्टी नहीं मिलेगी जैसी हमारे देश में है। यदि आप पूरी दुनिया में जाएं, तो आप पाएंगे कि शीर्ष कॉरपोरेट घरानों के पास अपने शीर्ष स्तर पर भारतीय विराजमान हैं।
मित्रों, तीन दशक से भी अधिक समय के बाद देश में नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति आई है, यह एक ‘गेम चेंजर’ है, इसने हमारे सभ्यतागत लोकाचार पर ध्यान दिया है। इसने शिक्षा के उस हिस्से को कम कर दिया है, जो विद्यार्थियों को खींच रहा था, यह कौशल और योग्यता उन्मुख हो गया है। यह आपको लचीलेपन की अनुमति देता है और नीति के विकास में, पश्चिम बंगाल राज्य में उस समय राज्यपाल होने के नाते मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं कि सभी संबंधितों से इनपुट लिए गए थे। यह नीति पहले से ही परिणाम दिखा रही है। इस मंच से मैं कुछ राज्यों से अपील करता हूं, जिन कारणों को तर्कसंगत नहीं बनाया जा सकता, उन्होंने सक्रिय कदम उठाने और विद्यार्थियों के साथ अन्याय को समाप्त करने के लिए इस नीति को नहीं अपनाया है। कृपया, राष्ट्रीय शिक्षा नीति को तुरंत अपनाएं।
मैं अपने युवा विद्यार्थियों से कहता हूं, जब मैं छात्र था, तो कठिनाइयां थीं, उस समय बहुत मुश्किलें थीं, जब आप किसी विश्वविद्यालय या कॉलेज से पढ़कर दुनिया में जाएंगे, तो आपके पास संसाधनों की कमी नहीं होगी। मैं एक वकील के रूप में रजिस्टर्ड था और अपनी खुद की लाइब्रेरी बनाने के लिए 6000 रुपये चाहता था। मुझे अभी भी अच्छी तरह याद है, एक राष्ट्रीयकृत बैंक का बैंक प्रबंधक जिसने मुझे बिना सिक्योरिटी के लोन दिया था। देखिए अब कितना बड़ा बदलाव हुआ है। पैसा कोई कारण नहीं है, आपके मन में एक विचार होना चाहिए, आपको लीक से हटकर सोचना होगा। आपको पहल करनी होगी और इसीलिए भारत इस बात पर गर्व कर सकता है कि हमारे पास कितने स्टार्टअप हैं, हमारे पास कितनी यूनिकॉर्न हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में देश ने जो ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल की हैं, उससे दुनिया दंग है। मैं आपको तीन उदाहरण दूंगा। वर्ष 2022 में, हमारे पास 150 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की सीमा तक डिजिटल हस्तांतरण थे और ये हस्तांतरण वैश्विक लेनदेन के 46 फीसदी थे। ये हस्तांतरण अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी में डिजिटल तंत्र द्वारा संयुक्त हस्तांतरण से चार गुना अधिक हैं। क्या आप इस पर विश्वास कर सकते हैं? उस हद तक हमारी उपलब्धि देखिए- चार गुना ।
भारतीयों की बुद्धि प्रतिभाशाली है । भले ही कोई शिक्षा न हो, हम सीखने में तेज हैं और यही कारण है कि हमारे पास 85 करोड़ स्मार्टफोन धारकों और 70 करोड़ से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या है। इंटरनेट पर प्रति व्यक्ति डेटा खपत को देखिए। वर्ष 2022 में, हमारे नागरिकों द्वारा इंटरनेट की प्रति व्यक्ति डेटा खपत संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन की तुलना में अधिक थी। यह एक बड़ी और उल्लेखनीय उपलब्धि है ।
हमें गर्व करना चाहिए और दूसरे पहलू से देखना चाहिए। “ जब वैश्विक आर्थिक स्थिति की बात आती है, तो ठीक एक दशक पहले हम दोहरे अंक में थे। हम कभी सोच भी नहीं सकते थे कि हम कहां होंगे , लेकिन सितंबर 2022 में एक सुखद क्षण आया, एक ऐतिहासिक क्षण आया। भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बन गया, और क्या उपलब्धि है! इस प्रक्रिया में, हमने अपने पूर्ववर्ती औपनिवेशिक शासक , ब्रिटेन को पीछे छोड़ दिया और दशक के अंत तक, किसी को भी संदेह नहीं है कि भारत तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था होगा।
यहां जो लोग हैं, हममें से कुछ लोग साल 2047 में मौजूद नहीं होंगे, जब भारत अपनी स्वतंत्रता की शताब्दी मनाएगा, लेकिन आप शीर्ष पर होंगे। मेरे युवा मित्रों, लड़के और लड़कियाँ, आप साल 2047 के भारत के योद्धा हैं ।
आप परिवर्तन लाएँगे। आप यह सुनिश्चित करेंगे कि उस समय भारत विश्व गुरु होगा और हम दुनिया की नंबर एक अर्थव्यवस्था होंगे। और क्यों नहीं? हमारा अतीत इसका प्रमाण है। संस्थानों को देखें-नालंदा, तक्षशिला, अर्थव्यवस्था में हमारी वैश्विक भागीदारी को देखें। तब हमारी अर्थव्यवस्था को देखिए, यह दुनिया का केंद्र था और हम नंबर एक थे। ऐसा अवश्य होगा, और मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है ।
मेरी चिंता को रखने के लिए नागपुर से बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती है और मेरी चिंता यह है कि क्या हम किसी को भी - अस्थिर, तर्कहीन, बिना आधार के - हमारे संवैधानिक संस्थानों को कलंकित करने, धूमिल करने, अपमानित करने की अनुमति दे सकते हैं? जब पूरी दुनिया भारत का लोहा मानती है, और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) स्पष्ट शब्दों में यह संकेत देता है कि भारत निवेश और अवसर का पसंदीदा स्थान है। हममें से कुछ लोग इस धारणा को बदलना चाहते हैं । हममें से कुछ लोग दूसरा दृष्टिकोण देना चाहते हैं।
मित्रों, अब समय आ गया है जब हमें भारत-विरोधी आख्यानों को निष्प्रभावी करने के लिए व्यक्तिगत रूप से सब कुछ करना होगा। और आप जानते हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है? भारत की कभी भी उस तरह की वैश्विक प्रतिष्ठा नहीं थी, जैसी अब है। इतिहास में पहले कभी किसी भारतीय प्रधानमंत्री को इतना सम्मान नहीं मिला, जितना श्री नरेन्द्र मोदी को मिला है। उनकी अमेरिका यात्रा का ही उदाहरण लें, जब वे वहां जनप्रतिनिधियों को संबोधित कर रहे थे - कांग्रेस और सीनेट - तो उन्होंने दो बातें कहीं, यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता और जब उन्होंने अगली बात कही, अमेरिका और भारत, तो वहां मौजूद पूरे सदन ने अनायास ही उनका अभिनंदन किया, क्योंकि वह है परिस्थिति। दोनों देशो में लोकतंत्र हैं, हम लोकतंत्र की जननी हैं, हम सबसे पुराने लोकतंत्र हैं, दुनिया के किसी भी देश में भारत जैसा संवैधानिक रूप से संरचित लोकतंत्र नहीं है। हमारा संविधान ग्राम स्तर पर, पंचायत स्तर पर, जिला परिषद स्तर पर लोकतंत्र की व्यवस्था करता है। हमारे देश में अब लोकतांत्रिक मूल्य पुष्पित और पल्लवित हो रहे हैं। लेकिन मैंने आपके विचार के लिए चिन्तन रखा है। हमारा देश लोकतांत्रिक है और लोकतंत्र में कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। हर किसी को कानून के अधीन रहना होगा , आप किसी भी कुल या परिवार से हों, किसी भी कद के हों, कानून को अपना काम करना होगा। लेकिन आश्चर्य की बात है कि जब कानून अपना काम करता है तो लोग सड़कों पर उतर आते हैं। क्या इसका प्रतिकार किया जा सकता है? क्या इसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है?
यदि किसी के साथ कानून के अनुसार व्यवहार किया जा रहा है, तो एकमात्र सहारा हमारे देश की सशक्त न्यायिक प्रणाली का लाभ उठाना है। और हमारी मजबूत न्यायिक प्रणाली अत्यधिक स्वतंत्र है। इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता , इसलिए मैं आप सभी से, विशेष रूप से अपने युवा मित्रों से, एक ऐसा इकोसिस्टम बनाने की अपील करता हूं, जहां इस प्रकार की प्रवृत्तियों से निपटा जाए और उन्हें बेअसर किया जाए। ये देशहित में नहीं हैं ।
दोस्तों, अभी जो हम चारों ओर देख रहे हैं, वह हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। हमने कभी नहीं सोचा , यह हमारी कल्पना से परे था। माननीय राज्यपाल और मैं 1989 में संसद सदस्य थे। हमारे हाथ में एक शक्ति थी, 50 गैस कनेक्शन और वह 50 गैस कनेक्शन हमारी शक्ति थी। हम एक साल में, जिसे चाहें, 50 गैस कनेक्शन दे सकते हैं। आज जमीनी हकीकत की कल्पना कीजिए. 17 करोड़ गैस कनेक्शन जरूरतमंद परिवारों को दिए गए हैं और वे सभी के पास हैं। एक बड़ा परिवर्तन हुआ है।
मैं आपको बता दूं- इस देश में प्रधानमंत्री के सबसे भावनापूर्ण प्रणाली द्वारा कोविड से निपटा गया। एक ऐसे देश में, जो हमारा देश जितना बड़ा है, उतना ही विविधतापूर्ण है, जहां सभी राजनीतिक स्थान अलग-अलग हैं, प्रधानमंत्री शुरुआत में जन कर्फ्यू का विचार लेकर आए। जनता के विचार ने कमाल कर दिया, और इस जनता के विचार ने ऐसी जागृति की भावना पैदा की कि यह महामारी गैर-भेदभावपूर्ण है, यह अमीरों, गरीबों, विकसित देशों, विकासशील देशों को नहीं बख्शता। और वहां हमने क्या नायाब तरीका निकाला, और कहने के हम हमारी सांस्कृतिक विरासत पर विश्वास नहीं करते, ये जमीनी हकीकत है, कोविड के दौरान जहां एक ओर भारत की जनता को वैक्सीनेशन दिया जा रहा था, हमारे देश ने इस परंपरा को निभाते हुए पड़ोसी देशों को जरूरतमंद देशों को वैक्सीन मैत्री के माध्यम से कोवैक्सीन दी। और जो अनेक देशों के नेता मुझसे मिलते हैं, अपना आभार प्रकट करते हैं, कि ऐसे मौके पर आपने मदद की जिसको हम कभी भूल नहीं सकते।
और तभी जाकर ये अमृत निकलेगा, यदि हमने हमारी बात को जिद बना लिया, असहमति को विरोध बना लिया, हमने प्रजातांत्रिक मूल्यों को तिलांजलि दे दी, मैं एक सवाल रखता हूं कि संसद का क्या मतलब है, पार्लियामेंट का मतलब है कि देश भर के प्रतिनिधि वहां आते हैं , हर वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, उनका दायित्व है कि वे चर्चा ,बहस में शामिल हों। लेकिन नहीं, वे बाधा उत्पन्न करते हैं और परेशान करते हैं। और इसका उपाय आप लोगों के पास है, वह बात कभी आगे नहीं बढ़ सकती , जिसको जन समर्थन नहीं मिलता है, आप से आह्वान करूंगा कि जन आंदोलन बनाइए, उदाहरण हमारे सामने है, संविधान सभा जिन्होंने हमें यह संविधान दिया, तीन साल तक वह चली, एक बार भी हल्ला नहीं हुआ, प्लेकार्ड नहीं दिखाए, वेल में नहीं आए, शालीनता से काम हुआ।
मैं अपने युवा मित्रों से कहूंगा कि वे डर से कभी डरें नहीं। कभी भी तनाव और दबाव में न रहें। भय का डर मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी है। पहली कोशिश में आज तक कोई भी सफल नहीं हुआ है। अधिकांश ऐतिहासिक उपलब्धियाँ, वैज्ञानिक अनुसंधान और आविष्कार कई कोशिशों के पश्चात ही हो पाये हैं। इसलिए, अपनी प्रतिभा के लिए पूरी मेहनत के साथ काम करें। फैसला लेने में जल्दबाजी न करें और चीजों को तेजी से समझने की कोशिश करें। इन दिनों असहिष्णुता का आलम यह है कि हम दूसरों की बात सुनने को तैयार ही नहीं हैं। हम दूसरे के दृष्टिकोण पर मंथन करने के लिए राजी ही नहीं हैं। हम दूसरे के दृष्टिकोण के प्रति बहुत असहिष्णु हैं। मैं अपने युवा मित्रों से अपील करता हूं कि ऐसा दृष्टिकोण कतई न रखें। उन लोगों के संग दिमाग खोलकर रखें , जो आपसे असहमत हैं। जैसे ही आप उनके रुख की सराहना करेंगे, आप समझदार हो जायेंगे। इसका मतलब यह नहीं है कि आपका रुख सही नहीं है, इसका मतलब यह नहीं है कि आपको उनके रुख से सहमत होना होगा। सच्चाई सबसे अहम है लेकिन सत्य की वास्तविक खोज उन लोगों से अपने को जोड़ना है, जो लोग वैसा नहीं सोचते, जैसा आप सोचते-समझते हैं।
और यह कभी न भूलें कि संविधान सभा को अविश्वसनीय रूप से कठिन, विभाजनकारी और विवादास्पद मुद्दों का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने समन्वय, सहयोग और सहयोग की भावना से इसे सुलझा लिया। अब वह नदारद है। लोकतंत्र के मंदिरों को वस्तुतः तहस-नहस कर दिया गया है और मुझे इससे भी बड़ा ख़तरा दिखता है कि लोकतंत्र के मंदिर- राज्य सभा, लोक सभा और राज्यों की विधानसभाएं, अगर चर्चा, बहस, संवाद के मंच नहीं बनेंगे, तो जगह ख़ाली नहीं हो सकती, इस पर दूसरों का कब्ज़ा हो जाएगा, और वे शक्तियां प्रतिनिधि नहीं होंगी, वे शक्तियां जवाबदेह नहीं होंगी, वे शक्तियां वे नहीं हैं ,जिन्होंने संविधान को बनाए रखने की शपथ ली है। इसलिए मैं आप सभी से आग्रह करता हूं कि आप व्यक्तिगत रूप से खुद को सक्रिय करें ताकि यह सुनिश्चित हो सके। एक ऐसी कथा चल रही है, जो इंगित करती है कि हमें उस कार्य में शामिल होने की जरूरत है जिसके लिए जनता भुगतान कर रही है और जिसके लिए संविधान ने हमें बाध्य किया है। मुझे यकीन है कि उस दिशा में सभी कदम उठाये जायेंगे।
मैं एक किसान परिवार से आता हूं, आपके माननीय प्रधानमंत्री ने मुझे किसान पुत्र कहकर पुकारा, जिससे यह संकेत मिलता है कि मैं सक्रिय रूप से किसान नहीं हूं, लेकिन मेरा परिवार सक्रिय रूप से किसान है। मेरे लिए कितने गर्व का क्षण है कि 11 करोड़ किसानों को सीधे उनके खाते में पैसा मिलता है। अब तक यह रकम 2,25,000 करोड़ रुपये हो चुकी है। मैं राशि पर ध्यान केंद्रित नहीं कर रहा हूँ, मैं सरकार के सामर्थ्य का नहीं हूं, मैं किसान की हैसियत से हूं कि उस राशि को प्राप्त करने के लिए समावेशी बैंकिंग तंत्र के परिणामस्वरुप किसान तैयार है, तकनीकी रूप से सुसज्जित है और इसीलिए ये महान क्रांति हुई है। अभी क्या हो रहा है? एक समय था जब सत्ता के गलियारे सत्ता के दलालों, बिचौलियों से भरे हुए थे। ऐसे लोग होंगे, जो निर्णय लेने में कानूनी रूप से अधिक लाभ उठाएंगे। वे यह निर्धारित करेंगे कि कोई विशेष नीति कैसे तैयार की जाएगी। हम सभी जानते हैं कि इन ताकतवर गलियारों को पूरी तरह से सेनिटाइज कर दिया गया है। दुर्भाग्यवश, सत्ता दलाल की संस्था अब उनके लिए मौजूद नहीं है और सौभाग्य से राष्ट्र के लिए यह विलुप्त हो चुकी है।
भ्रष्टाचार आम आदमी के लिए सबसे बड़ा अन्याय है। हमें भ्रष्टाचार के लिए शून्य समायोजन की आवश्यकता है, और यह देखा जा रहा है। लेकिन भ्रष्टाचारी एक हो गये हैं, वे भागने के रास्ते ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं, वे आंदोलन का रुख भी जुटाने की कोशिश कर रहे हैं, यह आम आदमी के लिए है, जो लोकतंत्र में और राष्ट्र के विकास में सबसे बड़ा हितधारक है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह प्रणाली जो विकसित हुई है, वह न केवल स्थिर हो जाए, बल्कि एक अलग तरह के रास्ते पर चले, जिससे हमारे देश को बड़ी मदद मिले।
मित्रों, मैं आपके लिए एक चिन्तन छोड़ रहा हूँ जो बाबा साहेब डॉ. बी.आर. अम्बेडकर से निकला है और यह विशेष रूप से मेरे युवा मित्रों, लड़कों और लड़कियों के लिए है,
“जो मनुष्य को योग्य नहीं बनाती, समानता और नैतिकता नहीं सिखाती, वह सच्ची शिक्षा नहीं है।” सच्ची शिक्षा समाज में मानवता की रक्षा करती है, आजीविका का सहारा बनती है, मनुष्य को ज्ञान और समानता का पाठ पढ़ाती है। सच्ची शिक्षा समाज में जीवन का निर्माण करती है।”
मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आप गंभीरता से सोचें, व्यापक रूप से पढ़ें, लगातार अनुकूल बनें और अपनी-अपनी यात्राओं पर आगे बढ़ते हुए अपने क्षितिज का लगातार विस्तार करें।
अपने शिक्षकों का सम्मान करें, अपने परिवार के सदस्यों का सम्मान करें। एक अच्छे नागरिक बनें, हमेशा देश को प्रथम रखें , राष्ट्र को प्रथम रखना वैकल्पिक नहीं, अनिवार्य है, यही एकमात्र मार्ग है।
जय भारत
धन्यवाद
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